देश के पैमाने पर औसतन हर घंटे में एक बच्चा गायब होता है। देशभर में चौबीस घंटे में कुल 24 लोगों के जिगर के टूकड़ों को छिन कर जिंदगी के अंधेरे में ढकेल दिया जाता है...
संजय स्वदेश
आपको मजेदार बात बताये, हर दिन हर घंटे गायब होने वाले बच्चों का यह आंकड़ा 11 अगस्त को संसद में शून्य काल के दौरान भाजपा और कांग्रेस के संवेदनशील सदस्यों ने शुन्यकाल में उठाया गया। सदस्य ने सवाल पूछा। सरकार ने जवाब दिया कि वह इसको लेकर गंभीर है। सरकार के जवाब में कहीं नहीं लगा कि मामूसों की तबाह होती जिंदगी में उसका दिल पसीजता भी है। चर्चा दूसरे विषय पर चल पड़ी। न उम्मीद की किरण दिखी न ऐसे मासूमों की रक्षा के लिए सरकार की दृढ़ता। भाजपा के मनसुखभाई वासवा और एस एस रामासुब्बू ऐसे गंभीर सवाल को उठाने के लिए बधाई के पात्र है।
संजय स्वदेश
अपने बच्चे को चहकते देख हर मां-बाप का मन गदगद हो जाता है। जरा सोचिये, जब यही मासूम दुनिया समझने की होश संभालने से पहले ही लापता हो जाए। क्या बीतती होगी ऐसे लोगों पर। जिस जिगर के टुकड़े को हर मुसीबत से बचाने के लिए लोग दु:खों का पहाड़ झेल लेते हैं, वह एक दिन अचानक गुम होकर नर्क की दुनिया में चला जाता है।
देश लंबा-चौड़ा है। आबादी बड़ी है। संभव हो आपके आसपास कोई ऐसा नहीं मिले, जिसके बच्चे होश दुनिया समझने से पहले गायब हो चुके हो। पर आपको जानकार यह आश्चर्य होगा, लेकिन एक हकीकत यह है कि आज देशभर में करीब आठ सौ गैंग सक्रिय होकर छोटे-छोटे बच्चों को गायब करने के धंधे में लगे हैं। यह रिकार्ड सीबीआई का है। मां-बाप का जिगर का जो टुकड़ा दु:खों की हर छांव से बचता रहता है, वह इस गैंग में चंगुल में आने के बाद एक ऐसी दुनिया में गुम हो जाता है, जहां से न बाप का लाड़ रहता है और मां के ममता का आंचल।
किसी के अंग को निकाल कर दूसरे में प्रत्यारोपित कर दिया जात है, तो किसी को देह के धंधे में झोंक दिया जाता है। कुछ मजदूरी की भेंट चढ़ जाते हैं। जब देश में करीब 800 गिरोह सक्रिय है कि तो जाहिर है बड़ी संख्या में बच्चे भी गायब होते होंगे। जरा गायब बच्चों का आंकड़ा देखिये। देश के पैमाने पर औसतन हर घंटे में एक बच्चा गायब होता है। मतलब देशभर में चौबीस घंटे में कुल 24 लोगों के जिगर के टूकड़ों को छिन कर जिंदगी के अंधेरे में ढकेल दिया जाता है। तेज रफ्तार जिंदगी में जब संवेदना से सरोकार दूर होते जा रहे हों, तक यह पढ़ते हुए शायद ही किसी को आश्चर्य हो कि देश की जो राजधानी अपनी सौवीं वर्षगांठ मना रही हैं, वहीं रोज सात बच्चे लापता हो जाते हैं। भयावह स्थिति यह है कि इनमें से आधे से कम ही बच्चों का पता लग पाता है।खबरों कहती हैं कि लापता होने वाले बच्चों का इस्तेमाल अंग प्रतिरोपण व्यापार, देह व्यापार और बाल मजदूरी के लिए होता है। उच्चतम न्यायालय ने लापता बच्चों का पता लगाने के लिए विशेष दल का गठन करने की बात कही थी, लेकिन इस बारे में हमारी असंवेदनशील सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 44,000 बच्चे हर साल लापता हो जाते हैं और उनमें से करीब 11,000 का ही पता लग पाता है।
लापता होने वाले अधिकतर बच्चे गरीब परिवार के होते है । ऐसे परिवार के लोग जब थाने में रिपोर्ट लिखवाने जाते हैं तो पहले उन्हें टरकाया जाता है। यदि रिपोर्ट लिख भी ली जाए तो उन्हें ढूंढ़ने में पुलिस भी लापरवाही बरतती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस घृणित अपराध को रोकने के लिए कई सुझाव दिये। पर सुझाव तो सुझाव होते हैं, आदेश नहीं। जब उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अभी तक ठोस कदम नहीं उठे तक भला सरकार इतनी असानी से ऐसे सुझावों को क्यों माननें लगे।
कुछ वर्ष पहले स्लम डॉग मिलेनियर आई थी, तब इस तरह गायब बच्चों की एक दर्दनाक हकीकत से रूपहले परदे पर दिखी। देश में ढेरों-चर्चाएं हुई। मगर कहीं से कोई संवदेना की ऐसी मजबूत आंधी नहीं चली जो एक आंदोलन बन कर सरकार को कटघरे में खड़ी करती।
आपको मजेदार बात बताये, हर दिन हर घंटे गायब होने वाले बच्चों का यह आंकड़ा 11 अगस्त को संसद में शून्य काल के दौरान भाजपा और कांग्रेस के संवेदनशील सदस्यों ने शुन्यकाल में उठाया गया। सदस्य ने सवाल पूछा। सरकार ने जवाब दिया कि वह इसको लेकर गंभीर है। सरकार के जवाब में कहीं नहीं लगा कि मामूसों की तबाह होती जिंदगी में उसका दिल पसीजता भी है। चर्चा दूसरे विषय पर चल पड़ी। न उम्मीद की किरण दिखी न ऐसे मासूमों की रक्षा के लिए सरकार की दृढ़ता। भाजपा के मनसुखभाई वासवा और एस एस रामासुब्बू ऐसे गंभीर सवाल को उठाने के लिए बधाई के पात्र है।
does any politician had lost their kids ever in past ,not at all ,because if they had inner concious such crime may get aborted,but under the umbrella,and said nexus between abducter and politicians,masking real fact,these is gross apathy to discuss such a sensible matter in zero hour,and govt just release asurrance over it,will not curb menace,
ReplyDeletethese NGO, HUMAN RIGHT COMMISION ETC are just for leisure and grab the money.
police system is only working to facilate chamchagiri of their god father politicians.
its very shame on part of democracy,better to learn lesson from UAE
sitting in parliament and changing of party politics are main concern of our democracy,ihad no words at last,if in rebirth,would be born other then india????????????????