एटीएस और एनआईए में जिस तरह का अंतर्विरोध है ऐसा ही अंतर्विरोध मई 2007 मक्का मस्जिद हैदराबाद धमाकों के समय तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल और पुलिस के बीच था...
राजीव यादव
मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद इसकी जांच कर रही केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और मुंबई पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के बीच उपजे विवाद ने इस मामले पर कई दृष्टिकोणों से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अव्वल तो आखिर वो कौन से तथ्य थे जिनको एटीएस ने नकार दिया और एनआईए को जांच में सहयोग नहीं किया, दूसरा आखिर इन तथ्यों में क्या अंतर्विरोध क्या थे।
जुलाई 13 को मुंबई में हुए बम धमाकों के कुछ देर बाद विभिन्न संचार माध्यमों में कई प्रकार की खबरें प्रसारित र्हुइं। किसी ने कहा कि कसाब के जन्मदिन के अवसर पर यह हुआ तो कुछ पुलिस वालों के बयान आए कि इस घटना को इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) ने लश्कर के सहयोग से अंजाम दिया। सबसे दिलचस्प पहलू यह रहा कि 13 जुलाई को हुए इस बम धमाके में न तो कोई मेल आया था और न ही किसी संगठन ने किसी और माध्यम से इसकी जिम्मेदारी ली थी।
पर हमारी जांच एजेंसियां जिनके अनुभव को हम मक्का मस्जिद और मालेगांव आदि में देख चुके हैं जहां पहले उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद की फोबिया से ग्रस्त होकर मुस्लिम नौजवानों को पकड़ा पर बाद में इन घटनाओं में हिंदुत्वादी समुहों का हाथ सामने आया। उनमें अपनी इन गलतियों से सबक सीखने की मंशा नहीं दिखी और अभी भी वह आतंकवाद के मसले पर सांप्रदायिक नजिरिए से ही सोच रही है।
एटीएस और एनआईए में जिस तरह का अंतर्विरोध है ऐसा ही अंतर्विरोध मई 2007 मक्का मस्जिद हैदराबाद धमाकों के समय तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल और पुलिस के बीच था। जहां पाटिल ने सीबीआई जांच की संभावना व्यक्त करते हुए कहा था कि जल्दबाजी में इसे मालेगांव, मुंबई या दिल्ली की जामा मस्जिद में हुए विस्फोटों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। अंतिम नतीजे पर पहुंचे बिना किसी पर दोषारोपण ठीक नहीं होगा। साथ ही पाटिल ने विस्फोट में विदेशी हाथ होने का नतीजा जल्दीबाजी में न निकालने की चेतावनी भी दी थी।
इस घटना में भी पुलिस और खूफिया कह रही थी कि विस्फोट में हूजी और 19 फरवरी को समझौता एक्सप्रेस में हुए धमाके में वांछित आतंकी मोहम्मद अब्दुल शाहिद उर्फ बिलाल का हाथ होने का शक है। बिलाल ने राज्य मेंसांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बिगाड़ने के लिए इन धमाकों की साजिश रची। बिलाल लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से भी जुड़ा रहा है। साथ ही इस बात को भी कहा गया कि आतंकियों ने धमाका करने के लिए सेल फोन का इस्तेमाल किया था। इस तरीके से पूर्व में लश्कर, जैश और
हरकत-उल-इसलामी जैसे आतंकी सगंठन हमला करते रहे हैं।
हरकत-उल-इसलामी जैसे आतंकी सगंठन हमला करते रहे हैं।
साइकिल, स्कूटर, मोबाइल और धमाकों के बाद ‘कचरे की तफ्तीश’ से आतंकी संगठनों का सुराग लगाने वाली हमारी आईबी के सारे हवाई तर्क कुछ ही दिनों में सबके सामने आ गए कि किन लोगों ने मक्का मस्जिद, समझौता या मालेगांव विस्फोटों को अंजाम दिया था। यहां सवाल उठता है कि आखिर बावजूद इसके क्यों सरकार और मीडिया के स्तर पर आईबी के इन कमजोर और हास्यास्पद तर्कों को इतना महत्व दिया जाता है। क्या यह सब अमरीका की इस्लामिक फोबिया को खड़ा करने की रणनीति की ही नकल है जिसके सहारे निरंतर ओसामा और अलकायदा की तरह यहां भी लश्कर-हूजी के हव्वै को खड़ा करने की कोशिश की जा रही है।
यहां बताना जरुरी होगा कि जिन दो आतंकी वारदातों, दश्वासमेध वाराणसी और जामा मस्जिद पर मिले ‘बारुद के कचरे’ को 13 जुलाई की घटना के ‘कचरों’ से मिलाकर देखा जा रहा है या फिर अंक 13 की सच्चाई पर टीवी स्क्रीनों पर ‘‘गंभीर राष्ट्रवादी विमर्ष’’ हो रहे है उसे कोई भी तार्किक आदमी गंभीरता से नहीं ले सकता। क्योंकि दश्वासमेध और जामा मस्जिद पर हुई दोनों वारदातों पर आईएम का मेल आया था, जिसकी पुलिस ने सत्यता की कोई पुष्टि भी नहीं की थी। तब ऐसे में इन घटनाओं के सहारे इंडियन मुजाहिद्दीन से जो ‘तार जोड़े’ जा रहे हैं
वो कोरी कल्पना और जनता को जांच के नाम पर गुमराह करने के प्रयास ही कहे जाएंगे। मुंबई बम धमाकों की जांच पर मुंबई आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख राकेश मारिया के बयानों समेत जो भी पुलिसिया बयान आ रहे हैं और जिस तरह से इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर नए क्षेत्रों विशेषकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को टारगेट किया जा रहा है उससे यह बात साफ है कि एक तीर से दो निशाना लगाने की कोशिश हो रही है। जिस तरह से 2007-08 में यूपी के आजमगढ़ जिले पर निशाना साधा गया था, वैसा ही प्रयोग इस बार झारखंड में किया गया और इस बात को ले जाने की कोशिश की गई कि माओवादी इंडियन मुजाहिद्दीन के सहारे लश्कर के संपर्क में हैं।
और इस तरह से लंबे समय से लाल और हरे गलियारे के बीच संबंध होने की खूफिया विभाग की काल्पनिक थ्योरी को इस घटना के सहारे मजबूत तर्क देने की कोशिश की गई कि माओवादी अंतराष्ट्रीय आंतकी नेटवर्क का हिस्सा हैं। उनके खिलाफ किसी सैन्य कार्यवाई को सुप्रिम कोर्ट के इन तर्कों के आधार पर नहीं खारिज किया जा सकता कि ‘राज्य अपने ही बच्चों को इस तरह नहीं मार सकता।’
जांच की इस दिशा से जाहिर होता है कि सरकार इस धमाके के दोषियों तक पहुंचने के बजाय अपने अलपसंख्यक और आदिवासी विरोधी एजेंडे को ही बढ़ाने में ज्यादा दिलचस्पी ले रही है। जिससे मुंबई और ऐसी घटनाओं में सरकार की संदिग्ध भूमिका भी शक के दायरे में आती है।
पत्रकार और पीयूसीएल उत्तर प्रदेश के संगठन सचीव.
राजीव यादव जी, केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और मुंबई पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के बीच अंतर्विरोध क्या हैं और किस बात पर हैं.आपके लेख से समझ में नहीं आया.कृपया समझाने का कष्ट करें.बहुत कृपा होगी.
ReplyDeleterajeev yadav ke lekh men kuch bhi saaf nahin hai. lagta hai unki mati bhrasht ho gayi hai jo bata nahi pa rahe ki केंद्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और मुंबई पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के बीच अंतर्विरोध क्या हैं
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