एबटाबाद की कार्रवाई में पाकिस्तान ने अपनी क्षमता व चौकसी का जो प्रदर्शन किया था वह भी अमेरिका देख चुका है। एबटाबाद में की गई अमेरिकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी विरोध के स्वर का स्तर भी अमेरिका भांप चुका है...
तनवीर जाफरी
पाकिस्तान की इस्लामाबाद स्थित सबसे बड़ी सैन्य अकादमी के बिल्कुल निकट एबटाबाद नामक संवेदनशील रिहायशी क्षेत्र में जहां कि कई पूर्व व वर्तमान सैन्य अधिकारियों के बंगले हैं,अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने गत् 1/2मई की रात अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लाडेन को ढूंढ निकाला तथा उसे वहीं मार गिराया।
इस घटना के बाद अमेरिका ने भी पाकिस्तान से यह कहा था कि ‘वह प्रमाणित करे कि ओसामा बिन लाडेन के एबटाबाद में गत् कई वर्षों से छिपे होने की जानकारी पाक सेना को नहीं थी’। ऐसे में अगला सवाल यह उठता है कि क्या ओसामा बिन लाडेन के खात्मे के बाद अब ‘अमेरिकी रडार’पर पाकिस्तान स्थित परमाणु शस्त्र आ चुके हैं?
पिछले दिनों पाकिस्तान में एक आला सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर अली को पाक सेना द्वारा आतंकवादियों व आतंकी संगठनों से संबंध होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है। ब्रिगेडियर अली का परिवार गत् तीन पुश्तों से पाक सेना की ‘सेवा’करता आ रहा है। अली स्वयं गत् दो वर्षों से रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय में तैनात थे।
ब्रिगेडियर अली की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर पिछले दिनों कराची के नेवल बेस पर हुए पाकिस्तान के अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले को लेकर बने उस संदेह की पुष्टि हो जाती है,जिसमें यह कहा जा रहा था कि कराची के अति सुरक्षित नेवल बेस पर इस प्रकार का सुनियोजित आतंकी हमला तथा इसमें लड़ाकू विमानों को नष्ट किए जाने सहित भारी सैन्य सामग्री को नुकसान पहुंचाया जाना आदि बिना किसी भीतरी सहायता या जानकारी के कतई संभव नहीं था।
पाकिस्तानी परमाणु सैन्य केंद्र : कैसे बचे आतंकियों से |
उधर पाकिस्तान-अफग़ानिस्तान सीमांत क्षेत्र के वज़ीरिस्तान इलाक़े में बढ़ते जा रहे चरमपंथी वर्चस्व को लेकर भी पाकिस्तान दोहरी भूमिका में दिखाई दे रहा है। उत्तरी वज़ीरिस्तान वही इलाक़ा है जहां बड़ी संख्या में तालिबान लड़ाके तो मौजूद हैं ही इनके साथ ही अलकायदा के लड़ाके भी इस क्षेत्र में पूरी तरह सक्रिय हैं। और इसी क्षेत्र में हक्क़ानी नेटवर्क से जुड़े आतंकी संगठनों का भी पूरा दबदबा है। इसी क्षेत्र में चरमपंथी संगठनों ने नाटो सेना के कई सैन्य काफिलों पर हमले किए। कई रसद सामग्रियों से भरी कानवाई तबाह कर दी और कई बार इनके तेल डिपो व पार्किंग में खड़े तेल टैंकर व टैंक आदि तबाह कर डाले।
इस क्षेत्र को जहां अमेरिका दुनिया का सबसे अशांत क्षेत्र व आतंकवादियों का सबसे बड़ा केंद्र मान रहा है वहीं पाकिस्तान इसी इलाक़े को शांत व स्थिर क्षेत्र बता रहा है। अब यहां सवाल यही उठता है कि पाकिस्तान उत्तरी वज़ीरिस्तान में इन चरमपंथी संगठनों के विरूद्ध भरपूर ताक़ त इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहा है। क्या इसलिए कि पाक सेना इन आतंकी संगठनों से खौफ़ खाती है या फिर इसलिए कि ‘अपनों’के विरूद्ध ऐसी कार्रवाई की पाकिस्तान कोई खास ज़रूरत महसूस नहीं कर रहा है।
यदि उपरोक्त दोनों ही बातें गलत हैं फिर अमेरिका से चरमपंथी संगठनों के विरूद्ध कार्रवाई के नाम पर धन उगाही किए जाने का आखिर क्या औचित्य है?हां उत्तरी वज़ीरिस्तान में बड़ी सैन्य कार्रवाई न करने को लेकर पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण बात यह ज़रूर कर रहा है कि ‘पाकिस्तान फ़िलहाल उत्तरी वजीऱीस्तान में बड़ी सैन्य कार्रवाई करने की जल्दी नहीं महसूस कर रहा है’। पाकिस्तान का कहना है कि वह अपने ‘हितों’को ध्यान में रख कर ही कोई भी कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।
यदि उपरोक्त दोनों ही बातें गलत हैं फिर अमेरिका से चरमपंथी संगठनों के विरूद्ध कार्रवाई के नाम पर धन उगाही किए जाने का आखिर क्या औचित्य है?हां उत्तरी वज़ीरिस्तान में बड़ी सैन्य कार्रवाई न करने को लेकर पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण बात यह ज़रूर कर रहा है कि ‘पाकिस्तान फ़िलहाल उत्तरी वजीऱीस्तान में बड़ी सैन्य कार्रवाई करने की जल्दी नहीं महसूस कर रहा है’। पाकिस्तान का कहना है कि वह अपने ‘हितों’को ध्यान में रख कर ही कोई भी कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।
‘हित’ और ‘अहित’ के इसी परिपेक्ष में अब कयास इस बात के भी लगाए जाने लगे हैं कि अमेरिका अपने दूरगामी हितों के मद्देनज़र क्या पाकिस्तान में मौजूद परमाणु हथियारों पर भी अपना नियंत्रण करने की योजना बना रहा है? क्या ओसामा बिन लाडेन जैसे दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी के खात्मे के बाद अब ‘अमेरिकी रडार’पर पाकिस्तान स्थित परमाणु शस्त्र आ चुके हैं?
पाकिस्तान में निरंतर बढ़ती जा रही आतंकी हिंसक घटनाएं,वहां सिलसिलेवार हो रहे आत्मघाती हमले,आए दिन किसी वकील,पत्रकार,नेता या अधिकारियों का मारा जाना,सैन्य ठिकानों तथा सुरक्षा संस्थानों को निशाना बनाकर किए जाने वाले चरमपंथी हमले तथा पीरों-फकीरों की दरगाहों पर व मस्जिदों में नमाज़ पढऩे वालों पर होने वाले चरमपंथी हमले अमेरिका को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि चरमपंथी ताकतों के बढ़ते हुए यह हौसले कहीं किसी दिन उन्हें इस योग्य न बना दें कि वह पकिस्तान में रखे परमाणु हथियारों पर भी अपना नियंत्रण कर बैठें।
खासतौर पर ऐसी परिस्थितियों में जबकि चरमपंथी पाकिस्तान के सैन्य व सुरक्षा तंत्र के भीतर भी अपनी सेंध लगा चुके हों? इन हालात में यदि अमेरिका आप्रेशन जेरोनिमों की ही तर्ज पर उससे भी कई गुणा बड़ा कमांडो आप्रेशन कर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने नियंत्रण में लेने तथा पाकिस्तान से अन्यत्र ले जाने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई करे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
जहां तक पाकिस्तान के प्रतिरोध की क्षमता का प्रश्र है तो दोनों ही देश यानी अमेरिका व पाकिस्तान एक दूसरे की ताकत व एक दूसरे के पास मौजूद हथियारों से भी भली भांति वाकिफ हैं। एबटाबाद की कार्रवाई में भी पाकिस्तान ने अपनी क्षमता व चौकसी का जो प्रदर्शन किया था वह भी अमेरिका देख चुका है। इतना ही नहीं बल्कि एबटाबाद में की गई अमेरिकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी विरोध के स्वर का स्तर भी अमेरिका भांप चुका है। इन हालात में यह कहना गलत नहीं होगा कि लाडेन की मौत के बाद अब अमेरिकी ‘रडार’ पर पाक स्थित परमाणु ठिकानों के आने की भी पूरी संभावना है।
खासतौर पर ऐसी परिस्थितियों में जबकि चरमपंथी पाकिस्तान के सैन्य व सुरक्षा तंत्र के भीतर भी अपनी सेंध लगा चुके हों? इन हालात में यदि अमेरिका आप्रेशन जेरोनिमों की ही तर्ज पर उससे भी कई गुणा बड़ा कमांडो आप्रेशन कर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने नियंत्रण में लेने तथा पाकिस्तान से अन्यत्र ले जाने के लिए कोई बड़ी कार्रवाई करे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
जहां तक पाकिस्तान के प्रतिरोध की क्षमता का प्रश्र है तो दोनों ही देश यानी अमेरिका व पाकिस्तान एक दूसरे की ताकत व एक दूसरे के पास मौजूद हथियारों से भी भली भांति वाकिफ हैं। एबटाबाद की कार्रवाई में भी पाकिस्तान ने अपनी क्षमता व चौकसी का जो प्रदर्शन किया था वह भी अमेरिका देख चुका है। इतना ही नहीं बल्कि एबटाबाद में की गई अमेरिकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी विरोध के स्वर का स्तर भी अमेरिका भांप चुका है। इन हालात में यह कहना गलत नहीं होगा कि लाडेन की मौत के बाद अब अमेरिकी ‘रडार’ पर पाक स्थित परमाणु ठिकानों के आने की भी पूरी संभावना है।
लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.
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