Jun 11, 2011

खनन से बेजार बुंदेलखण्ड का पानी


पिछले कुछ सालों से विंध्य बुंदेलखण्ड के बांदा, चित्रकूट, महोबा, झांसी, ललितपुर में चल रहे अधाधुंध खनन ने यहां के पानी, पहाड़, जंगल, वन्यजीवों के प्रवास,खेती, मजदूरों व रहवासियों की सेहत और पर्यावरण को गहरे अंतरमुखी अकाल की ओर धकेल दिया है...

आशीष सागर

बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग से ताल्लुकात रखता है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चट्टानों से निर्मित हैं, इसमें नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पाई जाती है. इस पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 150मी0 उत्तर और दक्षिण में 400मी0 तक फैली है. इस क्षेत्र को भोगौलिक दृष्टि से 23 सेन्टीग्रेट, 10 अक्षांश उत्तर और 78 सेंटीग्रेट, चार अक्षांश, 81सेन्टीग्रेट से 34 अक्षांश पश्चिम दिशा की ओर रखा जा सकता है। इसका ढाल  दक्षिण से  और उत्तर पूर्व की ओर है। बुंदेलखण्ड की सीमा मे विंध्य उत्तर प्रदेश के 7 व मध्य प्रदेश की सीमा से लगे 6 जनपदों को आमतौर पर स्वीकृत दी गयी है, लेकिन राजनीतिक द्वन्द में फंसे बुंदेलखण्ड राज्य की मांग इसके 21 से 23 जिले को लेकर आंदोलन की मुहिम समयानुकूल छेड़ती रहती है। 

मध्य प्रदेश का टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर, शिवपुरी, दमोह, पन्ना और सागर तक विस्तृत है। विंध्य बुंदेलखण्ड के हिस्से में झांसी, ललितपुर, महोबा, चित्रकूट, बांदा प्रमुखता से समाहित है। छतरपुर में खनन के अन्तगर्त पाये जाने पत्थर को लाल फार्च्यून के नाम से जाना जाता है वहीं उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के क्षेत्र में ग्रेनाइट को झांसी रेड़ कहा गया है। सिद्धबाबा पहाड़ी 1722 मीटर इस क्षेत्र की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। इन दोनो प्रदेशों की सीमा से लगे बुंदेलखण्ड ग्रेनाइट, ब्लैक स्टोन सामग्री का उपयोग पूरे देश में 80प्रतिशत सजावटी समान,भवन निर्माण आदि के लिये किया जाता है। ललितपुर जनपद में पाये जाने वाले ग्रेनाइट को लौह अयस्क, राक फास्फेट के नाम से जाना जाता है।

जल दोहन और विनाश की इबारत है अवैध खनन- पिछली सर्दियों की बात है आम दिनों की तरह उस दिन भी शाम 4 .30 बजे महोबा जनपद के कस्बा कबरई, जवाहर नगर निवासी 8 वर्षीय उत्तम प्रजापति घर के आंगन में खेल रहा था, जब अवैध ब्लास्टिंग से हवा में उड़कर पांच किलो का पत्थर उत्तम प्रजापति के ऊपर गिरा। मौके पर ही उत्तम की मौत हो गई।

मृतक के पिता के साथ गांव के हजारों लोग जब लाश को लेकर स्थानीय पुलिस चौकी पहुंचे तो थाना इंचार्ज ने एकबारगी तो एफआईआर लिखने से मना ही कर दिया, लेकिन जन दबाव को बढ़ता देख उसे स्थिति का अनुमान हो गया, तो खदान मालिक छोटे राजा के ऊपर आई0पी0सी0की धारा 307, 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया। एफआईआर की भनक जैसे ही पहाड़ मालिक को लगी, उसने अपनी बिरादरी के लोगों के साथ मृतक के पिता के घर पर एक सप्ताह तक लगातार फायरिंग करवाई जिसके चलते पूरा परिवार गांव से पलायन कर गया। मृतक के पिता के ऊपर मुकदमा वापस लेने की धमकियां और लाश की कीमत बताये जाने का दबाव लगातार बनाया जाता रहा। गरीबी और फांकाकसी के बीच जीवन-यापन कर रहे उत्तम के परिवार ने डेढ़ लाख रूपये में बेटे की लाश का सौदा कर लिया।

दरअसल, यह एकमात्र घटना नहीं है जिससे बुंदेलखण्ड में खनन के नाम पर हो रहे प्राकृतिक तांडव को समझा जा सके, बल्कि इस जनपद की तकरीबन 90 हजार आबादी को इन्ही उड़ते गिरते पत्थरों और 24 घण्टे दम घोंटते स्टोन क्रशरों की उड़ती धूल के बीच रहना पड़ता है। कबरई इलाके की पचपहरा (सिद्ध बाबा) खदान, गंगा मैया खदान इस क्षेत्र की सर्वाधिक जल दोहन करने वाली अवैध खदानें हैं।

इसकी एक बानगी बीते नवंबर 2010में देखने को मिली। जब सर्वे टीम के साथ स्वैच्छिक संगठन प्रवास के कार्यकर्ता मृतक उत्तम के घर से बैठक करने के बाद पचपहरा खदान की तरफ पहुंचे। 200 मीटर ऊंची सिद्ध बाबा पहाड़ी को लगभग 300फिट नीचे तक दबंग माफियाओं ने ग्रेनाइट खनन के नाम पर जमींदोज कर रखा था। वहीं गंगा मैया पहाड़ में खदान के नीचे पंपिग सेट,जनरेटर से मोटर के द्वारा सैकड़ों लीटर पानी बाहर फेंका जा रहा था।

पाताल की सीमा तक खोदी जा चुकी खदानें बुंदेलखण्ड में दिन प्रतिदिन गहराते जा रहे जल संकट का एक बहुत बड़ा कारण है। विंध्याचल पर्वत श्रेणी केन पहाड़ों पर हो रहे खनन के चलते यहां के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लौंड़ा, रमकुंडा, पचपहरा, डहर्रा, मोचीपुरा, गौहारी जैसे दर्जनों पहाड़ तो पहले ही खत्म हो चुके हैं, अब बांदा, चित्रकूट क्षेत्र के पर्यटन स्थल वाले बेशकीमती पहाड़ों को भी तीन-तीन सौ फिट गहरी खाईयों में तब्दील किया जा रहा है।

पहाड़ के खत्म होने का मतलब है भू-जल स्तर में गिरावट। अब जबकि लगातार खनन से यहां पहाडि़यों को निशाना बनाया जा रहा उसके देखते हुए बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि बुंदेलखण्ड पानी की कमी की अंतहीन समस्या की तरफ तेजी से कदम बढ़ा चुका है। जनसूचना अधिकार 2005 के तहत भू-गर्भ जल विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बुंदेलखण्ड में तीन मीटर तक जलस्तर नीचे जा चुका है। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश की चालीस जनपदीय क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल, सुरक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत प्रदेश शासन के द्वारा जारी की गयी सूची में बुंदेलखण्ड क्षेत्र के किसी भी जनपद को स्थान नहीं दिया गया।

प्रदूषण और पर्यावरण संकट- कबरई इलाके के चारों ओर पांच-दस किलोमीटर के क्षेत्र में तेरह गांव बसे हुए हैं। इस तहसील को भी मिला दें तो इनकी कुल आबादी 90 हजार से ज्यादा है इनमें भी करीब 25 हजार खनन मजदूर, दस हजार बाल श्रमिक, चार सैकड़ा बंधुआ मजदूर हैं। उत्तर प्रदेश के इस सबसे पिछड़े और गरीब इलाके में जब खनन उद्योग की शुरूआत हुयी थी तब खेती किसानी जो यहां कभी ज्यादा फायदे का सौदा नहीं रही- उससे ऊबे लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब उनके पास आमदनी का एक और जरिया होगा लेकिन वक्त बीतने के साथ साथ यहां खनन का कारोबार मंत्री, विधायकों और प्रशासिनक अधिकारियों के ताकतवर हाथों में आ गया। 


फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार के वर्तमान कैबिनेट मंत्री बादशाह सिंह, पूर्व मंत्री सिद्धगोपाल साहू, शिवनाथ सिंह कुशवाहा, विधायक अशोक सिंह चन्देल, दबंग अरिमर्दन सिंह, पूर्व विधायक कुंवर बहादुर मिश्रा, जयवन्त सिंह, सीरजध्वज सिंह, प्रदेश खनिज मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा जैसे आला माफिया खनन की पैमाइश में दर्ज हैं। इनका शुरू से ही एक ही मक्सद रहा कि किसी भी कीमत पर जल्दी से मोटा मुनाफा कमाना, चूंकि कारोबार की कमान ताकतवर लोगों के हाथ में थी इसलिये सारे नियमों को ताक पर रखकर इलाके में तेजी से पहाड़ों के पट्टे बंटने लगे और क्रशरों की तादाद बढ़ने लगी। इसी के चलते तेजी से पर्यावरण कानून भी धराशायी होती चले गये।


अब तक यहां के लोगों को समझ में आ गया था कि जिस खनन उद्योग से वे अतिरिक्त आमदानी का सपना देख रहे थे वे ही उनके जीवन यापन के बुनियादी संसाधन का सबसे बड़ा खतरा हैं। इस दौरान जब कभी स्थिति बिगड़ी और विरोध की आवाजें उठीं तो दबंगों के द्वारा उन्हें बुलट और बैलेट के नाम पर ठगा गया और उनको जमीन के सबसे अंतिम पायेदान पर खड़े होने का एहसास भी कराया गया। पर्यावरण प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य और कृषि भूमि पर पड़ते विपरीत प्रभाव के विरोध में कई मरतबा धरने प्रदर्शन भी आयोजित हुए।


वर्ष 2000 में ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के बांदा मण्डल अध्यक्ष दिनेश खरे ने तत्कालीन बांदा मण्डल आयुक्त एस0सी0सक्सेना से शिकायत कर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सभी क्रशरों का निरीक्षण करवाया। निरीक्षण के बाद कुल 57 क्रशर में से 11 को कानूनों के उल्लंघन व मानक के विपरीत काम करने के कारण बंद करने के निर्देश दे दिये गये। महोबा के जिलाधिकारी आलोक कुमार ने जब कबरई के आबोहवा में प्रदूषण की मात्रा की जांच करायी तो जांच के निष्कर्ष भयावह थे।

जिलाधिकारी का कहना था कि सामान्य परिस्थितियों में हवा में छोटे छोटे कणों की मात्रा जहां 200 माइक्रग्राम प्रति घनमीटर होनी चाहिए, वहीं कबरई में यह आंकड़ा 1800 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था यानि सामान्य से नौ गुना ज्यादा। वर्ष 2000 में महोबा जनपद में कुल 57 क्रशर थे जो अब तीन सौ तीस हो चुके हैं और 2011तक शासन सरकारों ने किसी भी प्रकार से प्रदूषण की जांच नहीं करवायी। हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। 30 जनवरी 2010 तक पिछले दस सालों में बुंदेलखण्ड क्षेत्र विशेष के अन्तर्गत जनपदवार खनन उद्योग बढ़ोत्तरी को निम्न आंकड़ों से देखा जा सकता है। इस कारोबार से प्रदेश सरकार को सालाना 458करोड़ रूपये राजस्व की आमदनी होती है।

बुंदेलखण्ड के आसपास इलाकों में हो रहे अवैध खनन,माइनिंग कारोबार को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के विपरीत किसी भी क्षेत्र में देखा जा सकता है। हाल ही में लामबंद हुए संगठनों की पहल पर मजदूर किसानों ने जब खान निदेशालय ग्वालियर, गाजियाबाद से मानकों के विपरीत खनन की लिखित शिकायत की तो खनिज डायरेक्टर डॉ, के जैन ने 87 खदानो को बंद करने के आदेश जारी किये हैं लेकिन जिला खनिज अधिकारी मुइनुद्दीन व जिला प्रशासन की मिलीभगत से यह मुनासिब नहीं हो सका है। 


बैरियर पर जिला पंचायत द्वारा निर्गत किये गये ठेकों को यहां के बाहुबली ठेकेदार इस तरह से चलाते हैं कि बीस रूपये से 40 रूपये ट्रक निकासी के नाम पर उनसे 150 रूपये की अवैध वसूली की जाती है और हर ओवर लोडिंग ट्रक से दो हजार रूपये की गुण्डा टैक्स वसूली अलग से रात दिन खनन कारोबार में की जाती है। इन्हीं तमाम ज्वलंत मुद्दो को आधार बनाकर बुंदेलखण्ड स्वैच्छिक संगठन प्रवास ने बीते 2.12.2010 को उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल की है जिसकी सुनवाई लगातार की जा रही है और खनन के माफिया दहशत में आकार समाजिक कार्यकताओं के खिलाफ फर्जी मुकदमो की साजिशे रच रहे है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव- हालांकि कबरई के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में किसी भी दिन जाकर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि जिला अस्पताल से लोगों की सेहत के बारे मे मिली सूचना कितनी थोथी है, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र कबरई के प्रभारी डाक्टर एसके निगम के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी मे हर दिन तकरीबन 100 मरीज आते हैं, जिनमें से ज्यादातर सांस और आंख के रोगी होते हैं, यहां के खनन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर के बारे में बात करते हुए डॉ, निगम कहते हैं, ‘कबरई के क्रशर उद्योग में काम कर रहे सारे लोग मौते को गले लगा रहे हैं, इन्हें तो दिहाड़ी के साथ-साथ कफन दिया जाना चाहिए’।


स्टोन क्रशरों से उड़ती धूल के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव की बात कबरई के एक अन्य डॉ. रामकुमार परमार भी मानते हैं, ‘स्टोन क्रशरों केक कारण हवा में हमेशा ही 4-5 माइक्रान के कण मौजूद रहते हैं, जो श्वास नली की एल्वोलाई में जमकर उसे ब्लाक कर देते हैं, जिससे सांस की बीमारी हो जाती है. इससे रक्तशोधन क्षमता भी कम होती जाती है। लोगों का पाचनतंत्र गड़बड़ा जाता है और वे धीरे-धीरे अस्थमा के मरीज बन जाते हैं। डॉ. परमार बताते हैं कि खनन और क्रशर उद्योग से घिरे नब्बे फीसदी लोग एसबेसटोसिस और सिलिकोसिस जैसी बीमारियों से प्रभावित हैं, और हर दिन ऐसे कम से कम एक दर्जन मरीज उनके अस्पताल में आते हैं।



   लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं.




No comments:

Post a Comment