Jun 30, 2011

9.30 की डीटीसी बार

रात 9 बजे के बाद  डीटीसी बस 'बियर बार' में बदल जाती है. घर लौटते कई ‘मर्द’ पीछे की सीट में अपनी महफ़िल जमा लेते है और मोबाइल या एमपीथ्री पर गाना बजने लगता है...


विष्णु शर्मा

जब भी लाल रंग की डीटीसी की चर्चा होती है दोस्त बताते है कि रात के 9 बजे के बाद अक्सर इसके अंदर बियर बार सा माहौल हो जाता है.

साथियों की इस बात पर पहले तो यकीन नहीं हुआ लेकिन बाद में हमने खुद इस बात की जाँच करने का इरादा बनाया. रात 9 बजे कॉफी हाउस से निकल कर सिन्ध्या हाउस से आंबेडकर नगर जाने वाली 522 नंबर की बस में चढ गए. वहां महफ़िल जैसा कुछ नहीं था पर शराब की महक बस में भरी हुई थी. इधर उधर जांचने से लगा कि कोई दीवाना नशा करके बैठा होगा. हम पीछे जा कर बैठ गए. थोड़ी देर बाद हम देखते है कि एक साहब पेप्सी की बोतल निकाल कर गटक रहे है.लेकिन तेज महक बता रही थी कि मामला कुछ और ही है.जब दोबारा बोतल खुली और पेप्सी गटकी गई तो यकीन हो गया कि ये हरकत उन हज़रत की है.

हमने जब उनसे पुछा कि वे बस में शराब क्यों पी रहे है तो पहले वे बोतल दिखा कर कहने लगे कि पेप्सी है लेकिन जब मामला गरम होने लगा तो माफ़ी मांगने लगे. फिर उठ कर चल दिए. बस से बाहर निकल कर हमे गलियां और उतर कर आने की चुनौती देने लगे. हम नहीं उतरे. हमसे एक सीट आगे बैठी संगीता हमें बताने लगी,  ‘अरे ये तो रोज का मामला है.मेरी छुट्टी रोज 8 बजे खत्म होती है और मैं इस एहसास के साथ बस में चढती  हूँ  कि आज भी कोई शराबी मेरे साथ बतमीज़ी कर सकता है.’
हमने डीटीसी के कंडक्टर से पूछा कि वह क्यों बस में ऐसा होने देता है तो उसने बताया कि दिन में ऐसा करने की हिम्मत कोई नहीं करता क्योंकि टिकट चेक करने वाले बस में कभी भी चढ जाते है लेकिन रात में कभी चेक करने वाले नहीं आते और लोग मनमानी करने लगते है.उसने यह भी कहा कि एक दो बार शुरू में उसने हस्तक्षेप करने की कोशिश की लेकिन जब उसकी पिटाई होने लगी तो कोई बचाने नहीं आया. कंडक्टर फरीदाबाद का रहने वाला है और उसे इस बात अफ़सोस है कि दिल्ली में लोग गलत देखने पर भी उसके खिलाफ नहीं बोलते. रात में वह पिटाई के डर से टिकट भी लोगों से नहीं मांगता.

बातों- बातों में  हमें कई किस्से पता चले. राजेश, जो खानपुर का रहने वाला है, ने बताया कि सबसे ज्यादा ऐसी हरकत पंचशील और जी. के. के रहने वाले करते है. वे लोग बियर पीते है और लड़कियों के साथ बतमीजी करते है. कई बार तो ऐसी गन्दी गाली देते है कि शर्म आ जाती है.

लोग बताते है कि यह ऐसी  बस के आने के बाद बढ़ा है.ऐसा नहीं कि पहले ऐसा नहीं होता था लेकिन तब शीशे सफ़ेद होते थे और हवा के लिए खुले रखने पड़ते थे ऐसे में जब कोई ऐसा करता था तो बाहर आवाज़ लगाकर पुलिस को बुलाना आसान होता था.लेकिन रंगीन  शीशों  के कारण और दरवाज़ा बंद होने के चलते आदमी अंदर कुछ भी करे, मरे, पीटे, गाली  दे बाहर पता नहीं चलता.

संगीता बताती है कि रात में बस का सफर जोखिम भरा होता है.क्योंकि चेक करनेवाले कभी नहीं आते इस लिए लोगों में डर नहीं होता.कई बार उसे लगता है कि उसके साथ बदतमीजी होने वाली है लेकिन भगवन का शुक्र है कि ऐसा अब तक नहीं हुआ.

जब हम खानपुर से लौट रहे थे तब सच में बार जैसा माहौल था.पीछे की सीट में 5शरीफजादे बियर पी रहे थे और बीच की सीट पर नमकीन रखा हुआ था.और जैसा कि साथियों से सुना था संगीत भी बज रहा था. हमने बस के रंगीन शीशे पर नज़र दौडाई, बंद दरवाज़े को परखा फिर सोचा कुछ नहीं बोलते.  


3 comments:

  1. bilkul sach likha hai vishnu ji ne. DTC ke is BAR wale mahaul se sabse jyada pareshani naukri karne wali ladkiyon ko hoti hai, jo 8 baje ke baad ghar jati hain.
    is masle par likhne ke liye janjwar or vishnu ji dono ka dhnybad.

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  2. रचना सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालयFriday, July 01, 2011

    एक अच्छी रिपोर्ट पर एक टिप्पड़ी! यह क्या हो रहा है. कामरेडों से दुनिया की बात करा लीजिए पर घर पर क्या हो रहा है इससे बेखबर रहने में ही उन्हें महानता लगती है.
    फिर जनज्वार घर की खबर के लिए प्रयास ही करना छोड देगा. क्या खबर पुरुष समाज विरोधी है इस लिए इसकी अनदेखी हो रही है. या फिर इसके times of india पर छपने का इंतज़ार है.

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  3. अन्ना लाख्पतेFriday, July 01, 2011

    ऊपर की टिपण्णी को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है लेखक खुद ही टिपण्णी करता है.अंधेरगर्दी

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