May 31, 2011
ऐसी मुठभेड़ें तो चलती रहेंगी !
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने पुलिस को ललकारा और कहा कि 'अगर वे एक मारें तो आप चार मारें।' उनके इस बयान के बाद सोनभद्र, चन्दौली और मीरजापुर में मुठभेड़ों की बाढ़ आ गयी... किस्त- 3
सोनभद्र से विजय विनीत
मानवाधिकार संगठनों के दबाव के चलते ही भवानीपुर काण्ड की मानवाधिकार आयोग द्वारा जांच की गयी, लेकिन दुर्भाग्यवश अभी तक यह रिर्पोट ज़ारी नहीं की गयी है। इसी बीच मारे गये देवनाथ और लालब्रत ने भी नौगढ़ में अपने को जिन्दा होने का दावा कर दिया। आज तक पुलिस यह बताने में नाकाम है कि देवनाथ, लालब्रत, सुरेश बियार की जगह जो लोग मारे गये वे कौन थे। इसे मानवाधिकार संगठनों ने नरसंहार करार दिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए पीयूसीएल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की।
दुर्भाग्यवश यह याचिका उच्च न्यायालय ने यह कहकर स्वीकार नहीं की कि 'इस याचिका में कुछ खास नहीं है।' पुलिस ने भवानीपुर मुठभेड़ का जश्न मनाया। तत्कालीन डीजीपी एम.सी.द्विवेदी ने इस मुठभेड़ को जायज़ ठहराया और कहा कि ऐसी मुठभेड़ें तो होती रहेंगी। वहीं वाराणसी के आईजी वी.के.सिंह ने पुलिसकर्मियों को बधाई दी, जो कि स्वयं भवानीपुर में मुठभेड़ के दौरान मौजूद थे।
भवानीपुर हत्याकाण्ड ने प्रदेश स्तर पर तमाम मानवाधिकार संगठनों, प्रगतिशील ताकतों और बुद्धिजीवी वर्ग को लामबंद किया। इस हत्याकाण्ड के विरोध में कई कार्यक्रम हुए। सोनभद्र के मुख्यालय राबर्ट्सगंज में इस फर्जी मुठभेड़ को लेकर पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइट्स ने दो दिवसीय मानवाधिकार सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें पूर्व न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय वी.के.मेहरोत्रा और पूर्व न्यायाधीश पंजाब राजेन्द्र सच्चर समेत पीयूसीएल के उपाध्यक्ष चितरंजन सिंह, पूर्व जिला जज भगवन्त सिंह, पूर्व शिक्षा निदेशक उत्तर प्रदेश डा. कृष्णा अवतार पाण्डेय, सम्पादक अरूण खोटे, अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, सलीम समेत कई मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हुए।
पूर्व न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर ने भवानीपुर की घटना को पंजाब से जोड़ा और कहा कि वर्षों पूर्व बसों से उतारकर छः निर्दोष युवकों की हत्या कर दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई से करायी गयी जांच में मुठभेड़ फर्जी पायी गयी। ठीक यहीं स्थिति भवानीपुर की है। उन्होंने इस घटना का सबसे दुःखद पहलू इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इन फर्जी मुठभेड़ों पर याचिका को स्वीकार न करना बताया। राजेन्द्र सच्चर द्वारा उत्तर प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार हनन के मामले के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय को भेजे गये पत्र पर ही उच्चतम न्यायालय ने मानवाधिकार आयोग को भवानीपुर काण्ड की जांच करने के आदेश दिये।
सीबीआई जॉंच भी लम्बित है, लेकिन लगभग दस वर्ष बाद भी जॉंच रिपोर्ट सार्वजनिक न होना केंद्र और राज्य सरकारों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करती है। साथ ही यह भी आभास होता है कि सरकारें आज भी पूरी तरह सामन्ती व्यवस्था के तहत संचालित हैं और उन्हें दलितों और निर्दाषों के मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं। भवानीपुर हो चाहे सोनभद्र का करहिया अथवा चन्दौली में हुई मुठभेड़े।
ऐसी हिंसा की शुरूआत क्यों हुई, इसके पीछे के कारणों पर गौर किया जाये तो उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह इस नरसंहार के लिये कहीं न कहीं जरूर दोषी हैं। राज्य द्वारा हिंसा का यह क्रूर खेल तब शुरू हुआ जब 13 अक्टूबर 2000 को सोनभद्र के करमा थाना क्षेत्र में रात में मुठभेड़ के दौरान चन्दौली के नौगढ़ थानाध्यक्ष ओ.पी. सिंह और सिपाही वेदप्रकाश की कथित माओवादियों की गोली लगने से मौत हो गयी। इस पर मृत थानाध्यक्ष और सिपाही को श्रद्धांजलि देने पहुंचे राजनाथ सिंह ने पुलिस को ललकारा और कहा कि 'अगर वे एक मारें तो आप चार मारें।' उनका यह बयान इस समूचे आदिवासी इलाके के लिए शोषण उत्पीड़न व दमन का कारण बन गया। उनके इस बयान के बाद सोनभद्र, चन्दौली और मीरजापुर में मुठभेड़ों की बाढ़ आ गयी।
भवानीपुर की घटना में शामिल तो इन तीनों जिलों की पुलिस थी, लेकिन पदोन्नति और पुरस्कार सिर्फ मिर्ज़ापुर पुलिस को मिली। सोनभद्र तथा चन्दौली पुलिस ने भी मिर्ज़ापुर पुलिस की तरह पदोन्नति व पुरस्कार पाने के लालच में माओवादियों के नाम पर दलितों-आदिवासियों की हत्या का अभियान शुरू कर दिया।
मई 2001 में करमा थाने की पुलिस ने टिकुरिया गॉंव निवासी राजेन्दर हरिजन को मार गिराया। राजेन्दर क्षेत्र में अपनी बिरादरी के स्वाभिमान, सम्मान और हक़ की आवाज़ उठाने लगा था। इसे भी पुलिस ने नक्सली की सूची में शामिल कर दिया था। इसी वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में पन्नूगंज पुलिस ने बगौरा गॉंव निवासी बचाउ हरिजन को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया, जबकि रामगढ़ बाजार के तमाम लोगों का कहना था कि पुलिस ने उसे बाजार में खरीददारी करते वक्त पकड़ा। इसी तरह सितम्बर और नवम्बर में भी एक-एक दलित युवकों की पुलिस ने हत्या की।
विजय विनीत उन पत्रकारों में हैं,जो थानों पर नित्य घुटने टेकती पत्रकारिता के मुकाबले विवेक को जीवित रखने और सच को सामने लाने की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हैं.
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