बोट क्लब के ऐतिहासिक धरने में प्रसिद्ध समाजवादी नेता किशन पटनायक और हरियाणा के घासीराम मैन समेत सैकड़ों किसान नेता शामिल हुए थे। इस धरने में टिकैत ने कहा था, 'इंडिया वालों संभल जाओ, अब दिल्ली में भारत आ गया है' ...
अजय प्रकाश
किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की 15मई की सुबह हुई मौत देश के उन सभी लोगों और संगठनों के लिए गहरा सद्मा है जो किसानों की समस्या और आंदोलनों से जुड़े हैं। नीजिकरण-उदारीकरण के मौजूदा दौर में किसानों के बीच टिकैत की उपस्थिति एक ढाल थी,जिसके कारण केंद्र हो या राज्य सरकारें किसान हितों को रौंदने वाले कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती थीं।
महेंद्र सिंह टिकैत : बहुत याद आयेगी |
पिछली यूपीए सरकार द्वारा किसान कर्ज माफी योजना हो या कम ब्याज पर कृशि ऋण या फिर बीज विधेयक का लंबित होना,इन सबमें महेंद्र सिंह टिकैत की अध्यक्षता वाली भारतीय किसान यूनियन की केंद्रीय भूमिका रही है। टिकैत के बड़े बेटे राकेश टिकैत ने बताया कि ‘पिताजी लंबे समय से आंत के केंसर से पीड़ित थे,जो उनकी मौत का कारण बना।’
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली कस्बा में 1935 में जन्में टिकैत ने अपने सामाजिक जीवन की शुरूआत सर्वखाप पंचायतों के सुधारवादी पहलकदमियों से की। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इलाके में अदालतों के समानांतर चलने वाली खाप पंचायतों में से बालियान खाप के मुखिया बनने के बाद टिकैत ने दहेज,भ्रुण हत्या,दिखावा और मृत्यु भोज जैसी कई प्रवृत्तियों के खिलाफ जनहित में फैसले लिये, तो वहीं सर्वखाप पंचायतों में उनके लिये कई फैसलों को स्त्री विरोधी और दलित विरोधी भी करार दिया जाता रहा।
मात्र सातवीं तक पढ़े टिकैत के राजनीतिक चुनौतियों की शुरूआत 1986 में भारतीय किसान यूनियन के बनने के साथ हुई जब उन्हें यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। यूनियन का गठन सिसौली में 17 अक्टूबर 1986 में कई राज्यों के किसान और सर्वखाप नेताओं की उपस्थिति में हुआ। युवा महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने पहला आंदोलन उनके गृह जनपद खेड़ीकरमू बिजली घर के घेराव से किया और उत्तर प्रदेश सरकार को बिजली दरें कम करनी पड़ी थीं। उसके बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने 22 सफल आंदोलन किये और 23 बार गिरफ्तार हुए। वर्ष 2001 से 2010 के बीच दिल्ली के जंतर-मंतर पर विश्व व्यापार संगठन, बीज विधेयक 2004, जैव परिवर्तित बीज, कर्ज माफी, उचित लाभकारी मूल्य जैसे मसलों पर वह आजीवन संघर्ष करते रहे।
दिल्ली के इंडिया गेट के पास 1988 में पांच दिन तक चले ‘बोट क्लब’ ऐतिहासिक धरने का असर इतना व्यापक रहा कि एक साल बाद ही धरने की जगह बोट क्लब से बदलकर जंतर-मंतर करना पड़ा था। इस धरने में प्रसिद्ध किसान नेता किशन पटनायक और हरियाणा से घासीराम मैन समेत सैकड़ों किसान नेता शामिल हुए थे। इस प्रसिद्ध धरने में टिकैत ने कहा था,‘इंडिया वालों संभल जाओ, अब दिल्ली में भारत आ गया है।’ टिकैत के नेतृत्व में चले इन्हीं ऐतिहासिक धरनों की कड़ी में 3 अगस्त 1989 को नईमा काण्ड में उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध 39 दिन तक भोपा गंगनहर पर धरना भी है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को झूकना पड़ा तथा किसानों की पांच मांगे माननी पड़ी थीं।
अब टिकैत की मौत के बाद अगर कोई यह पूछे कि किसान आंदोलन का राष्ट्रीय नेता कौन,तो शायद कोई दूसरा नाम बता पाना संभव न हो। क्योंकि दिल्ली से लेकर मुंबई और हैदराबाद से लेकर उड़ीसा तक में किसान नेता के तौर पर अगर किसी की स्वीकार्यता थी तो वह टिकैत ही थे। वैसे टिकैत के दौर में कई किसान नेता उभरे और डूबे मगर किसी का कद टिकैत के करीब संभवतया इसलिए नहीं पहुंच सका कि कभी टिकैत किसी राजनीतिक दल के प्यादे कभी नहीं बने।
टिकैत के मिलने वालों में शामिल मुतफ्फरनगर के पत्रकार संजीव वर्मा कहते हैं कि ‘टिकैत बड़े ठेठ आदमी थे। कहा करते थे- अन्न अगर हम उपजाते हैं, देश हम चलाते हैं तो हमतक चलकर वो आयें जो हमारे भरोसे पलते हैं।’ किसान नेता बलवीर सिंह उनको याद करते हुए कहते हैं, ‘टिकैत घोड़ों के बड़े शौकीन थे और मिलने वालों को बैल के कोल्हू का गन्ने का रस जरूर पिलाते थे।’अब जबकि करोड़ों किसानों के चहेते टिकैत हमारे बीच नहीं रहे,उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व पीढ़ियों के लिए उदाहरण बनेगा।
द पब्लिक एजेंडा से साभार
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