May 23, 2011

42 हत्याएं, 140 गवाह और 24 साल का हाशिमपुरा


मेरी समझ में आ गया कि उसके थाना क्षेत्र में कहीं नहर के किनारे पीएसी ने कुछ मुसलमानों को मार दिया है, इसके बाद की कथा एक लंबा और यातनादायक प्रतीक्षा का वृतांत है...

महताब आलम

"जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होतें हैं जो जिन्दगी भर आपका पीछा नहीं छोडतें.एक दु:स्वप्न की तरह वे हमेशा आपके साथ चलतें हैं और कई बार तो कर्ज की तरह आपके सर पर सवार रहतें हैं. हाशिमपुरा भी मेरे लिये कुछ ऐसा ही अनुभव है.22-23मई सन 1987की आधी रात दिल्ली गाजियाबाद सीमा पर मकनपुर गाँव से गुजरने वाली नहर की पटरी और किनारे उगे सरकण्डों के बीच टार्च की कमजोर रोशनी में खून से लथपथ धरती पर मृतकों के बीच किसी जीवित को तलाशना सब कुछ मेरे स्मृति पटल पर किसी हॉरर फिल्म की तरह अंकित है,"  ये कहना है महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय   हिंदी विश्वविद्यालय  वर्धा के कुलपति एवं गाजियाबाद के तत्कालीन एसपी विभूति नारायण राय का. उस रात, मेरठ शहर के हाशिमपूरा इलाके में उत्तर प्रदेश पीएसी के जवानों ने 42 मुस्लिमों की निर्मम हत्या कर दी थी.
अभी भी न्याय की आस बाकी

राय आगे कहते है,"उस रात द्स-साढे दस बजे हापुड़  से वापस लौटा था.साथ में जिला मजिस्ट्रेट नसीम जैदी भी थे, जिन्हें उनके बँगले पर उतारता हुआ,मैं पुलिस अधीक्षक निवास पर पहुँचा.निवास के गेट पर जैसे ही कार की हेडलाइट्स पड़ी मुझे घबराया हुआ सब इंसपेक्टर वीबी सिंह दिखायी दिया,जो उस समय लिंक रोड थाने का इंचार्ज था.मेरा अनुभव बता रहा था कि उसके इलाके में कुछ गंभीर घटा है. मैंने ड्राइवर को कार रोकने का इशारा किया और नीचे उतर गया.

वीबी सिंह इतना घबराया हुआ था कि उसके लिये सुसंगत तरीके से कुछ भी बता पाना संभव नहीं लग रहा था.हकलाते हुये और असंबद्ध टुकडों में उसने जो कुछ मुझे बताया वह स्तब्ध कर देने के लिये काफी था.मेरी समझ में आ गया कि उसके थाना क्षेत्र में कहीं नहर के किनारे पीएसी ने कुछ मुसलमानों को मार दिया है, इसके बाद की कथा एक लंबा और यातनादायक प्रतीक्षा का वृतांत है जिसमें भारतीय राज्य और अल्पसंख्यकों के रिश्ते,पुलिस का गैर पेशेवराना रवैया और घिसट घिसट कर चलने वाली उबाऊ न्यायिक प्रणाली जैसे मुद्दे जुडे हुयें हैं”.

तारीख पर तारीख

22 मई 1987 को जो मुकदमा गाजियाबाद के थाना लिंक रोड और मुरादनगर पर दर्ज कराया गया था. पहले तो कई सालों तक यूँ ही बंद रहा और उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लगातार कोशिशों के बावजूद भी जब मुकदमे की कार्रवाई शुरू नहीं हुयी तो उच्चतम न्यायालय   में केस को दुसरे राज्य में स्थानान्तरित  करने कि याचिका  दायर की गई. 2002 में, उच्चतम न्यायालय के आदेश पर मुकदमे को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में स्थानान्तरित कर दिया गया. लेकिन उससे भी बात नहीं बनी क्योंकि  उत्तरप्रदेश सरकार ने केस लड़ने के लिए कोई वकील ही नहीं नियुक्त किया.नरसंहार के बीस वर्षो बाद जब 24 मई 2007 को सूचना के अधिकार के तहत ये पता किया गया कि उस घटना के आरोपियों के साथ क्या हुआ तो डीजीपी कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सब के सब आरोपी अभी भी नौकरी में बने हैं और यही उनकी सर्विस डायरी में ऐसी किसी घटना का उल्लेख तक नहीं है. पिछले 24 वर्षों से विभिन्न बाधाओं से टकराते हुये अभी भी मामले अदालत में चल रहें हैं और अपनी तार्किक परिणति की प्रतीक्षा कर रहें हैं.

कब मिलेगा न्याय ?

 वो तार्किक परिणति कब आएगी, को जानने के लिए मैंने इस मामले के वकील अकबर अबिदी को फोन किया तो उनका जवाब था. "अगली तारीख, 30 मई को है." दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में इस मामले को देख रहे अकबर अबिदी ने बताया कि मुक़दमा अभी किसी परिणति पर पहुँचने के लिए बाकी  है. ज्यादातर  गवाहियाँ हो चुकी है. इस मामले में लगभग 140 गवाह थे, जिसमे पिछले 24 वर्षो में 20 की मौत हो चुकी. इसी दौरान 19 आरोपियों में से 3 आरोपी भी मर चुके हैं. अबिदी ने आगे कहा कि अगले कुछ महीनों  मुकदमे का फैसला सुना दिया जायेगा.

हाशिमपुरा कि घटना, भारतीय इतिहास में कोई मामूली घटना नहीं थी. एक रात में, एक ही जगह के, एक ही समुदाय के 42 लोगों को मौत के घाट उतर दिया गया था. और ये सब किसी किसी आम व्यक्तियों के गिरोह ने नहीं किया था बल्कि उनलोगों ने किया था जिन पर जनता के रक्षा की जिम्मेवारी है. इस घटना ने पूरे भारत के नागरिकों, खासतौर पर मुसलमानों का दिल दहला दिया था, लेकिन विडम्बना ये है कि आज इस घटना के 24 साल गुज़र चुके हैं. गवाहियों पर गवाहियों हो चुकी है.कितने लोग न्याय का आस लिए इस दुनिया से गुज़र चुके हैं.गवाहों के बाल  सफ़ेद हो चुके हैं. देश की जनता भूल चुकी है और हाशिमपुरा के लोग भी,खास तौर पर नई पीढ़ी भूलने जा रही है.लेकिन नतीजा वही, तारीख पर तारीख. क्या हमारे देश में न्याय का यही भविष्य है ?




लिखने और लड़ने की जरुरत को एक समान मानने वाले महताब, उन पत्रकारों में हैं जो जनसंघर्षों को मजबूत करने के लिए कभी कलम पकड़ते हैं तो कभी संघर्षों के हमसफ़र होते हैं.



8 comments:

  1. shamim khan, AMUMonday, May 23, 2011

    apne parichay ke mutabik hi mahtab acche muddon par likh rahe hain, bahut shukriya.

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  2. इस रिपोर्ट में कोई खास बात तो है नहीं. लिखने वाले को शायद खुद ही हत्या के पीछे के कारणों की जानकारी नहीं थी. ऐसी रिपोर्ट बेवजह होती है.

    kp

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  3. K P babu, aap shayad khud sahi kah rahe hain ki lekhak ko kuch pata nahi hai...kyunki unke hisse ka sara 'gyan' to aapke pas hai...aur aap hai ki uspar kundali mar kar baithe hain, Kyun K P Maharaj? To ab apani barhamnayiye chodiye aur bant dijiye Gyan...taki hamen is narsanhar ke karan ka pata chal jayega...waise, aapke jawab dene se ye bhi pata chal jayrga ki aap batana kya chahate hain aur wahi aapki jaat bhi bata dega?

    Mahtab Alam

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  4. मुझे लगा था की महताब आलम या तो खेद प्रकट करेंगे कि उनसे कुछ छूट गया है लेकिन वे तो एक छोटी सी आलोचना सुनते ही जात पात की घटिया मुहावरों का इस्तेमाल करने लगे. उस लेखक पर अफ़सोस होता है जो आलोचना बर्दास्त नहीं कर सकता. जात पात की बात करके उन्होंने अपने अन्दर छिपी उसी ब्राह्मणवादी मानसिकता का परिचय दिया है जिस के खिलाफ लड़ने का संकल्प उनके लेख में दीखता है.

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  5. K P sahab,

    Aap Jilebi kyun bana rahe hain. Saaf saf kyun nahi bata dete ki us narsanhar ke piche kya karan tha? Jaisa ki aapne khud hi likha hai ki 'Lekhak ko shayad khud hi hatya ke karano ki janakari nahi hahi thi'. Waise, jaat ka nam sunte hi itna bhadak kyun gayae...lagta hai maine aapki dukhati huyi ragon aap ungli ho rakh di...khair, ab kam se kam ye kam pathakon par chod dijiye ki ye wo decide kare ki kaun Brahamanwadi hai hai aur kaun nahi. Ek cheez aur Branhamwad sirf jaat ka nam nahi hai balki Mansikta ka bhi hai aur is ke liye Hindu ya kisi khas dharm ka hona bhi zaroori nahi hai...

    Waise, bahut achcha ho ki aap jab ye tippani kar rahe the ki report me koi khas bat nahi hai to usi waqt aap khas bata dete aur baat se baat nahi nikalati...kyun?

    Apne KP ka fullfarm bhi bata dijiye...

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  6. Iss prakar ke one sided lekh likhkar public me bhranti na failai. Writersahab aap kisi KP sahab par bekar hi baras rahje hai. Akhir kya hai aapke iss article me?

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  7. Hashimpura kand se Gayab hua momdans ki to baat ki jaa rahi hai lekin waha ke jin Hinduon ka aaj tak pata nahi lag paya uske bare me koie kyu nahi bolta hai? Kya sirf Samajwadi Party ko sirf muslasman hi vote dete hain? Jabki is case me bahut sare Yadav's ko fgasaya ja raha hai. Is case kiu haquiquat yah hai ki momdans and Advocates ko UAE se money mil raha hai. Case ko kisi bi tarah se jeeto, chahe Nyay khareedo ya kuchh aur....aisa ho bhi raha hai. Nahi mante to aa jaiea Tis Hazari Court No 102.

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  8. This is fully disgusting blog. I think no need to post hear this blog.

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