एक ओर पुतिन जहाँ राज्य के नियंत्रण को प्राथमिकता देते है,वहीं मेदवेदेव उदारीकरण को विकास के लिए जरूरी मानते है...
विष्णु शर्मा
अगर रूस के राष्ट्रपति देमेत्री मेदवेदेव की 18 मई की प्रेस वार्ता ने किसी बात का संकेत दिया है तो वह यह कि वे 2012के राष्ट्रपति चुनाव में पुतिन के खिलाफ मैदान में उतर सकते है.उन्होंने रूस के पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान प्रधानमंत्री पुतिन की ओर इशारा करते हुए कहा कि रूस के राजनीतिक ढांचे को एक व्यक्ति के आस-पास केन्द्रित करना देश के हित में नहीं है.उन्होंने आगे कहा कि रूस में पहले भी ऐसा हुआ है और इसकी कीमत रूसियों को चुकानी पड़ी है.
मेदवेदेव और पुतिन : सतह पर विवाद |
पुतिन रूस के चहेते नेता हैं और लोग इस बात के लिए उनका सम्मान करते हैं कि उन्होंने देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को संभाला और सोवियत संघ के विघटन के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर में लगातार कमजोर होती रूस की दावेदारी को पुनर्स्थापित कर सके थे.यदि संविधान उनके सामने अवरोध खड़ा नहीं करता तो तीसरी बार भी उनका जीतना तय था.
मेदवेदेव ने राष्ट्रपति का पदभार सँभालते ही सबसे पहले संविधान में संशोधन कर पुतिन की वापसी का रास्ता तैयार किया था.पिछले चार साल तक उन्होंने कभी भी पुतिन के विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि वे अच्छी तरह समझते थे कि केजीबी (रूस की खुफिया एजेंसी) के पूर्व एजेंट पुतिन की पकड़ यूनाइटेड रशिया पार्टी में बहुत मजबूत है.
लेकिन अब मेदवेदेव ने जरूरी आत्म विश्वास और साहस हासिल कर लिया है.इस बात का संकेत उसी वक्त मिल गया था जब लीबिया में नाटो की बमबारी का विरोध कर रहे पुतिन को मेदवेदेव ने संयम रखने की सलाह दी. इसके बाद 22 अप्रैल 2011 को दूमा में अपने भाषण में प्रधान मंत्री पुतिन ने मेदवेदेव की आर्थिक नीतियों को यह कह कर ख़ारिज किया कि देश में हो रहे 'उदार प्रयोग' रूस की पांच बड़े शक्तिशाली देशों में शामिल होने की उसके संभावना को कमजोर कर रहे है.
इससे पहले 2 अप्रैल को राष्ट्रपति ने उप प्रधानमंत्री तथा 7 अन्य पुतिन समर्थकों को राज्य संचालित उद्योग की अध्यक्षता से मुक्त कर दिया था. दोनों ही नेताओं की आर्थिक प्राथमिकतायें अलग हैं. एक ओर पुतिन जहाँ राज्य के नियंत्रण को प्राथमिकता देते है,वहीं मेदवेदेव उदारीकरण को विकास के लिए जरूरी मानते है.
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