Apr 8, 2011

अन्ना, जेएस वर्मा की यही ईमानदारी है!


सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीश जेएस वर्मा कोका कोला फाउंडेशन के उन मुख्य सदस्यों में हैं,जो भारत में कोका कोला कंपनी के खिलाफ बन रहे माहौल को रोकने के लिए बनाया गया है...


जंतर मंतर डायरी - 5 

पिछले पांच अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन कर रहे अन्ना हजारे की ओर से जन लोकपाल बिल को लेकर कुछ सुझाव आये हैं। उन सुझावों को कल शाम मीडिया से साझा करते हुए आंदोलन के मुख्य सहयोगी अरविंद केजरिवाल ने बताया कि ‘अन्ना चाहते हैं,जन लोकपाल के मसौदा समिति का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीष जेएस वर्मा या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश  रह चुके संतोष  हेगड़े को बनाया जाये।’

गौरतलब है कि अन्ना ने यह राय आंदोलन समर्थकों के उस मांग के बाद रखी,जिसमें कहा गया था कि अन्ना को ही जन लोकपाल बिल के मसौदा समिति का प्रमुख बनाया जाये। कर्नाटक में लोकपाल पद पर तैनात एन संतोश हेगड़े ने खनन माफियाओं के हित में जुटी राज्य सरकार के खिलाफ व्यापक माहौल बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की छवि साफ-सुथरी मानी जाती है। वह राष्ट्रीय  मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रहे चुके हैं।

मगर सवाल ये है कि आखिर इन दो नामों पर ईमानदारी की मूहर किसने लगायी। किस सर्वेक्षण के जरिये अन्ना को पता चला कि न्यायाधीश जेएस वर्मा ईमानदार हैं। कारण कि जनता भ्रष्टाचार  खत्म कर बेहतर लोकतंत्र चाहती है,उसमें अपनी भागीदारी चाहती है। इसी भरोसे वह अन्ना आंदोलन का समर्थन भी कर रही है।



लेकिन जनता जब जानेगी कि अन्ना हजारे के पहली पसंद वह न्यायधीश  हैं जो दुनिया की सबसे कुख्यात कंपनी के फाउंडेषन में षामिल है,तो उसे कैसा महसूस होगा। अन्ना कहते हैं नेता भ्रष्ट  हैं इसलिए वे जन लोकपाल बिल के मुखिया के तौर पर वरिश्ठ कांग्रेसी नेता और मंत्री प्रणब मुखर्जी को नहीं चाहते हैं। जाहिर तौर पर अन्ना की इस राय का कोई विरोध नहीं है। मगर विकल्प अगर सांपनाथ  की जगह, नागनाथ बनने लगे तो नुकसान आखिरकार उसी का होता है,जिसके भरोसे आज अन्ना सर आंखो पर हैं।

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीश जेएस वर्मा कोका कोला फाउंडेशन के उन मुख्य सदस्यों में हैं,जो भारत में कोका कोला कंपनी के खिलाफ बन रहे माहौल को रोकने के लिए बनाया गया है। दुनिया भर में कोका कोला किस तरह साम्राज्यवादी सरकारों के लिए काम करती है, यह अन्ना हजारे के जागरूक टीम से बेहतर और कौन जान सकता है।

सामाजिक संगठनों के मुख्य नेटवर्क एनएपीएम जिसमें मेधा पाटकर, अरविंद केजरीवाल, संदीप पांडेय और बहुतेरे लोग हैं जो अन्ना आंदोलन के मुख्य लोगों में हैं,यह वही लोग हैं जो इतने ही षानदार तरीके से (जितना आजकल) कोका कोला के खिलाफ भी मुखर होते रहे हैं। और तो और अन्ना ने बाबा रामदेव से ही जान लिया होता कि कोका कोला या विदेषी कंपनियां ने मुल्क में नेताओं से लेकर नौकरशाहों, समाजसेवियों को कैसे अपना जेबी बना रखा है। हालांकि कोका कोला तो सरकार बदलवाने की वकत रखती है, यह दुनिया जानती है।

अन्ना खुद एक गांधीवादी हैं, इसलिए देशी   और विदेशी  के अंतरविरोधों और अंतरसंबंधों को वह भी बेहतर जानते होंगे। केरल के एक गांव में कोका कोला कंपनी एक प्लांट के बंद होने के मामले में किस तरह ग्राम पंचायत के फैसले के खिलाफ अपने समर्थन में अदालत का फैसला ले आयी, इसकी खबर तो अन्ना को होगी।

राजस्थान के कालाडेरा में कोका कोला के कारण कितने सौ फिट पानी नीचे गया और फसलें बरबाद हुईं,यह तो कभी मेधा या संदीप पांडेय ने जिक्र किया होगा। कम से कम बनारस के मेहदीगंज कोका कोला प्लांट द्वारा नदी को जहरीला बनाने से लेकर खेतों में पानी छोड़ने से बंजर खेतों की कहानी तो किसी ने अन्ना से कही होगी। फिर भी यह चूक, अचंभित करती है और संदेह की एक सनसनी पैदा कर जाती है। खासकर तब जबकि भ्रश्टाचार के मकड़जाल में फंसी जनता उन्हें विकल्प के तौर पर देख रही है।

ऐसे में सवाल है कि कई न्यायालयों के मुख्य रह चुके जेएस वर्मा इतने मासूम तो रहे नहीं होंगे कि कोका कोला जनकल्याण के नाम पर जो फाउंडेषन बना रही है,उसका मकसद समझने में चूक गये हों। बहरहाल,अगर वो माननीय चूक भी गये हों तो हमारा आग्रह है कि अन्ना और उनकी टीम अधिक से अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाकर नामों का चुनाव करे। यही एकमात्र रास्ता है जिससे कोई आंदोलन दो कदम आगे बढ़ सकता है और जनता एक बार फिर गहरे निराषा में जाने से बच सकती है।


(यह विज्ञप्ति कोका कोला  के खिलाफ बन रही डाक्यूमेंट्री 'कलर ब्लैक- इंडिया ऑफ़ माय ड्रीम्स'  फिल्म की रिसर्च टीम से  प्राप्त हुई है.)


4 comments:

  1. शुरू से ही न जाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा था की ये सब नाटक है और लोगों का ध्यान भ्रष्टाचार से हटाने के लिए है जितने लोग जन्तर मंतर में जमा हुए हैं उनसे ही पूछ लिए जाता की क्या आपने कभी किसी को काम करवाने के लिए रिश्वत नहीं दी या ली! हर १०० में से ९९ लोग बगलें न झाँकने लगे, तो आप ये मान के चलो की ये आन्दोलन एकदम सही रस्ते पर है! आई पी एल (शरद पवार) वालों ने बोला होगा यार क्यूँ नुक्सान करवाते हो व्यर्थ में और मीडिया का भी तो नुक्सान ही हो रहा है भाई मान जाओ तो अन्ना जी मान गये हैं और आज जूस पी कर अनशन तोड़ दिया है! कल से आप देखिएगा माहौल आई पी एल मय हो जाएगा! तथाकथित देशभक्त लोग भी ट्विट्टर/फेसबुक पर अपडेट छोड़ कर फिर से उसी दुनिया में मगन हो जायेंगे!

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  2. सत्य चरण रायSaturday, April 09, 2011

    अन्ना हजारे का प्रयास सराहनिय है परन्तु उनको गांधी जी के साथ तुलना
    करना जल्द्बाजी होगी । भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति
    की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। भारत मेँ विधेयकोँ की कमी नहीँ है कानुन
    भी सश्क्त है ।आज एक रिक्शे वाला भी आपको तन्हाई मेँ पाता है तो लुटने का
    प्रयास करता है ।प्याज की किमत बढ जाने पर एक छोटा दुकानदार 10 रुपये के
    प्याज को बचाकर रख देता है और 60 रुपये किलो बेचता है। शुरुआत तो निचले
    स्तर से करनी चाहिए तभी यह संभव है। नेता तो हमारी रगोँ को पहचानकर उसके
    अनुरुप कार्य करता है । आजादी के बाद से भारत मेँ गैर सरकारी संगठनोँ तथा
    समाजसेवियोँ का अम्बार
    सा लग गया है। परन्तु भ्रष्टाचार का स्तर घटने की बजाय बढ्ता ही गया है
    ।क्युँ? क्योँकि इन सभी जगहोँ पर नैतिक जिम्मेदारी का अभाव है।

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  3. जनज्वार पत्रकारिता के आलोचनात्मक विवेक को बनाये रखा, इसके लिए आपलोगों को बधाई. जंतर मंतर डायरी बहुत ही acchi रही. कोई डायरी बोरिंग नहीं bhi nahin thi. अब अन्ना पर जनज्वार की agali डायरी का इंतजार.

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  4. अण्‍णा टीम की नजर में भ्रष्‍टाचार लोकपाल, सॉरी जनलोकपाल, जैसी संस्‍था के न होने के चलते बढा है, ना कि उस आर्थिक व्‍यवस्‍था और उससे उपजी सामाजिक सोच के चलते जो लोगों को स्‍वार्थी और लालची बनाती है, और इसलिए वे समझाना चाहते हैं कि आम आदमी के शोषण और लूटमार पर आधारित व्‍यवस्‍था को बदले बिना ही कुछ ईमानदारी के मामले में कुछ संदिग्‍ध लोगों को साथ लेकर और अपने अनशन से दबाव बना कर मनचाही तरह का लोकपाल बिल का प्रारूप बनवा लेगे। रामदेव जैसे धनपशु योग गुरू का अंध समर्थन करने के बाद जेएस वर्मा को लोकपाल बनाने की पेशकश इसका नवीनतम उदाहरण है।
    और जहां तक गांधी से तुलना करने की बात है, अण्‍णा ने बिना ऊफ भी किए वो लाठियां नहीं झेली हैं, वो अपमान नहीं सहे हें जो गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में सहे थे।

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