Apr 25, 2011

स्त्री शोषण की सुमंगली योजना


मजदूरों के होने वाले शोषण की तमाम बारीकियों से पाठक परिचित हैं.मगर यह पहली दफा होगा जब हमारे हिंदी के पाठक एक ऐसी योजना के बारे में जानेंगे, जिसे कंपनी मालिकों और सरकार ने मिलकर स्त्री उत्पीड़न की  बुनियाद पर खड़ा किया है और नाम सुमंगली योजना रखा है. जनज्वार के लिए यह पहली रिपोर्ट तमिलनाडु के तिरुपुर से लौटकर संतोष कुमार ने लिखी है,जो वहां मार्च महीने में गयी फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य भी रहे हैं.यह टीम मई के पहले सप्ताह में  तिरुपुर  में  काम के  हालात  और  सुमंगली योजना पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करेगी ... मॉडरेटर

संतोष कुमार

तमिलनाडु स्थित तिरुपुर कपड़ा उद्योग का फलता-फूलता केंद्र होने के साथ-साथ भूमंडलीकृत नवउदारवादी विश्व आर्थिक व्यवस्था का मॉडल है. यहां से वालमार्ट, फिला, रीबॉक, एडीडास, डीजल जैसे नामी-गिरामी ब्रांडों को यहां से उत्पादों की आपूर्ति की जाती है.

सुमंगली मजदूर : बंधुआ मजदूरी के नए शिकार
पर इस मॉडल का एक स्याह पक्ष यह  भी है कि पिछले दो सालों (2009-2010) के दौरान यहां 1,050 से भी ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं, जिनमें से अधिकतर फैक्टरी मजदूरों की हैं. जिस शहर को कभी डॉलर सिटी और निटवियर (knitwear) कैपिटल कहा जाता था, उसे आज आत्महत्याओं की राजधानी के रूप में जाना जाने लगा है.अकेले 2010 में ही 565 आत्महत्याएं हुई हैं.

एक तरफ 12000  करोड़ रुपयों के साथ निर्यात का सफलतम मॉडल और दूसरी तरफ प्रतिदिन तकरीबन बीस मजदूरों द्वारा आत्महत्या या आत्महत्या करने की कोशिश. शायद यह नवउदारवादी विश्व आर्थिक व्यस्था के अमानवीय परिणाम का भी मॉडल है, जिसमें हरेक डॉलर का मुनाफा किसी मजदूर के खून से सना है.

इन सारी स्थितियों को समझने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मार्च के पहले हफ्ते में तिरुपुर का दौरा किया. टीम ने तिरुपुर में चल रही सुमंगली योजना का जायजा लिया है. इसमें पता चला कि  मजदूरों की भलाई के नाम पर चल रही यह योजना किस तरह उनके और अधिक तथा गहरे शोषण के एक औजार के रूप में काम कर रही है.

दुनियाभर में कैंप कुली लेबर व्यवस्था को मजदूरों के आवास संबंधी सवाल का सबसे बुरा रूप माना जाता है. इस व्यवस्था में मजदूरों को कारखाने द्वारा या कारखाने में उपलब्ध होस्टल में रखा जाता है. यह व्यवस्था मालिकों को बहुत प्रिय है, क्योंकि इसकी खासियत है- मजदूरों से 12 या उससे ज्यादा घंटे काम कराया जाना, कम मजदूरी की अदायगी, किसी भी तरह के मनोरंजन से वंचित रखना, बाहर निकलने या अपनी मरजी से कहीं आने-जाने या किसी से मिलने-जुलने पर पाबंदी, हर समय मजदूरों को सुरक्षा गार्डों या मालिकों के आदमियों की नजर में रखा जाना, जिससे उनकी आजादी पर ही पहरा लग जाता है. इन्हीं वजहों से बहुत सारे श्रमिक कार्यकर्ता और अध्ययनकर्ता इस व्यवस्था को जेल लेबर कैंप और बंधुआ लेबर व्यवस्था भी कहते हैं.

तिरुपुर में कपड़ा मिल मालिकों ने एक बहुत ही ’आकर्षक’ योजना के तहत 14 से 19 वर्ष की किशोरियों के लिए इसी तरह की व्यवस्था तैयार की है, जिसे सुमंगली योजना के नाम से जाना जाता है. रोचक बात यह है कि इस योजना को भारतीय समाज के एक घटिया चलन दहेज को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया है. इस योजना को 15 से 19 वर्ष की ग्रामीण और गरीब लड़कियों के लिए बनाया गया है, जो अपनी गरीबी की वजह से दहेज नहीं जुटा पातीं और उनकी शादी नहीं हो पाती.

ग्रामीणों की यह मजबूरी मिल मालिकों के लिए वरदान साबित हो रही है. मिल मालिक किशोरियों की ऊर्जा और कुशलता, जो कपड़ा उद्योग के लिए खासा महत्व रखती है, का अबाध शोषण कर अथाह मुनाफा बटोर रहे हैं. इस योजना में शामिल लड़कियों को कारखाने द्वारा उपलब्ध कराये गये होस्टल या कारखाने में ही 24 घंटे सुरक्षा गार्डों के निरीक्षण में रखा जाता है. इस योजना के तहत एक अनुबंध पर मालिकों, अभिभावकों और महिला मजदूरों के बीच हस्ताक्षर किया जाता है.

सुमंगली के लिए तमिल में लिखी लुभावनी
बातें जिसके चक्कर में महिला मजदूर फंसती हैं
कई सारी अमानवीय शर्तों वाले इस अनुबंध में सामान्यतः तीन साल के अंत में 30 से 50 हजार के बीच एक तयशुदा राशि देनी तय होती है. कारखाने में नौकरी के लिए भरती होते समय उन्हें एक पारिवारिक सामूहिक फोटो देना होता है और करार की पूरी अवधि के दौरान उस फोटो में शामिल लोगों के अलावा वे किसी से नहीं मिल सकती हैं. इसमें काम के बाद लड़कियों का होस्टल से जाना मना होता है. वे अपने अभिभावकों से भी एक नियत समय पर ही मिल सकती हैं, जो सामान्यतः महीने में सिर्फ दो घंटा होता है. इसके लिए भी पहले अभिभावकों को मालिकों से अनुमति लेनी होती है.

ये महिला मजदूर महीने में केवल चार घंटे के लिए बाजार जाकर अपनी जरूरत का सामान खरीद सकती हैं और वह भी महिला सुरक्षा गार्डों की निगरानी में, जो उनकी हर गतिविधि पर नजर रखती हैं. साल में एक बार पोंगल या दीवाली की छुट्टी में वे 4-5 दिन के लिए घर जा सकती हैं. उन्हें इस अवधि के भीतर ही वापस कारखाने लाने की जिम्मेदारी उन बिचौलियों की होती है, जिनके माध्यम से उन्हें कारखाने में नौकरी मिली होती है. तयशुदा समय में वापस न आने पर बिचौलिये का कमीशन और महिला मजदूरों की तयशुदा रकम का न दिया जाना आम बात है.

शोषण का यह खेल यहीं खत्म नहीं होता. तीन सालों की अवधि के दौरान अगर कुछ भी नियत अनुबंध से इतर होता है तो मालिक पूरी तयशुदा राशि ही हड़प लेते हैं. इसके लिए मिल मालिक अक्सर विभिन्न तरकीबें अपनाते हैं. मजदूरों और उनके परिजनों से बातचीत करने पर फैक्ट फाइंडिंग टीम  को   एक तरकीब का पता लगा जिसके तहत ढाई या पौने तीन साल होने पर मिल मालिक घर के अभिभावकों को यह पत्र लिखते हैं कि उनकी बेटी का किसी साथी पुरुष मजदूर से शारीरिक संबंध है या इसी तरह की कुछ और ऊल-जुलूल बातें. 

ऐसी चिट्ठी पाने के बाद ज्यादातर मामलों में अभिभावक अपनी बेटियों को वापस ले जाते हैं और  करार की शर्तों को तोड़ देने का बहाना बनाकर मालिक सारी राशि का गबन कर लेता है. इस योजना के बारे में मालिकों की तरफ से दावा किया जाता है कि महिला मजदूरों को अच्छा खाना, रहने की अच्छी व्यवस्था, औद्योगिक प्रशिक्षण और करार के अंत में शादी के लिए मोटी रकम और रोजाना के खर्चों के लिए अलग से स्टाइपेंड मुहैया करायी जायेगी. पर वास्तव में होता इसके बहुत उलट है. 

करार की लुभावनी दिखने वाली हवाई शर्तों की ओट में महिला मजदूरों को बोनस, ईपीएफ, ईएसआई जैसे बुनियादी अधिकारों से तो वंचित किया ही जाता है, लड़कियों को रहने के लिए मुहैया कराये गये होस्टलों में स्वास्थ्य संबंधी कोई सुविधा नहीं होती है. यह पूरी योजना अप्रेंटिसशिप योजना के तहत चलायी जाती है, जिसमें एक नियत समय के लिए ही प्रशिक्षण के बाद नौकरी का प्रावधान है.

कपड़ा बनाने की तैयारी  में मजदूर                सभी फोटो - Frontline  
सुमंगली योजना के तहत लड़कियों की भरती के लिए कारखाना मालिकों ने मजदूर बिचौलियों का एक बहुत ही मजबूत नेटवर्क फैला रखा है.यह नेटवर्क आर्थिक रूप से पिछड़े दक्षिणी तमिलनाडु के जिलों मदुरै, थेनी, दिंदुगल एवं तिरुवन्नवेली के गांवों में पोस्टर, नोटिस एवं अखबारों में विज्ञापनों एवं अपने संपर्कों के जरिये काम करता है. लड़कियों को काम के लिए तिरुपुर लाने के लिए ये बिचौलिये गांव में इस योजना को बहुत ही खूबसूरती से पेश करके अभिभावकों को झांसा देते हैं. बिचौलिये मुख्यतः उन गरीब घरों पर नजर रखते हैं, जिनमें माता-पिता में से किसी एक का या दोनों का निधन हो गया हो, जिन परिवारों में पिता शराबखोरी करता हो या वैसे गरीब परिवार जिनमें बहुत सारी बेटियां हों.इन परिवारों से लड़कियों को कारखाने में ले आना आसान होता है.

कम मजदूरी, अमानवीय कार्यदिवस, बुनियादी अधिकारों का हनन, मनोरंजन का अभाव, शारीरिक एवं मानसिक शोषण के अलावा यौन शोषण ऐसे पहलू हैं जो इस सुमंगली योजना के तहत काम करनेवाली लड़कियों का जीवन दूभर करती हैं. 13 अक्तूबर, 2010 से 16 अक्तूबर, 2010 के बीच ’न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के चेन्नई संस्करण में सुमंगली योजना के तहत काम करनेवाली महिला मजदूरों के शारीरिक-मानसिक एवं यौन शोषण की रिपोर्टिंग विस्तृत रूप से की गयी है. इन रिपोर्टों के अनुसार 19 साल से कम उम्र की इन लड़कियों का ठेकेदारों, सुपरवाइजरों, सुरक्षा गार्डों और साथी मजदूरों द्वारा शारीरिक शोषण की बहुत सारी घटनाएं पायी गयी हैं. 

कई बार ऐसी घटनाओं में महिला मजदूरों की मौत तक हो जाती है या वे आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती हैं. पुलिस इन मौतों को दुर्घटना का रूप देने की भरपूर कोशिश करती है. एक रिपोर्ट के अनुसार पांडिश्वरी में तिरुपुर के एक सेंटमिल में काम करनेवाली 17साल की एक महिला मजदूर (लोगों का कहना है कि वह महज 12 साल की ही थी) की 3 दिसंबर को हुई रहस्यमयी मौत के बारे में सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया है कि लड़की की मौत का कारण उसका लगातार यौन शोषण किया जाना था. दिंदुगल में हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में भी यह सामने आया कि लड़की गंभीर यौन शोषण का शिकार हुई थी.

इस मामले से जिले में हुई आत्महत्या की अनेक घटनाओं के बारे में नये सिरे से संदेह पैदा होने लगे हैं. सामाजिक संगठनों का कहना है कि अधिकतर आत्महत्याएं कारखानों और काम की जगहों पर यौन शोषण की वजह से होती हैं. महिलाओं को दोहरा उत्पीड़न झेलना पड़ता है. जब वे इन घटनाओं का विरोध करती हैं या ठेकेदारों, सुपरवाइजरों, सुरक्षा गार्डों और साथी मजदूरों को मनमानी से मना करती हैं , तो ऐसे में  बहाना बना कर नौकरी से निकाल दिया जाना और तयशुदा रकम का न दिया जाना आम बात है. नतीजतन अधिकतर महिलाएं जो इस योजना के सुनहरे प्रचार को देखकर भरती होती हैं, वे अंत में स्वास्थ्य,आत्मसम्मान, गरिमा और इज्जत को खोकर गरीबी के उसी कुचक्र में वापस लौट जाती हैं.



श्रमिक मामलों के अध्येता और कार्यकर्ता.तिरुपुर गयी फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य हैं. उनसे   mazdoor.delhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.



8 comments:

  1. Santosh u have done an excellent work regarding the actual condition of womens..........great work.........

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  2. अभिषेक रावतMonday, April 25, 2011

    सच में आपके लिखे को पढना उत्पीडन की नयी पीड़ा से गुजरने जैसा है. नाम क्या खूब रखा है 'उमंगली योजना'. सरकार को इसे तत्काल बंद जकरना चाहिए. इससे ना सिर्फ महिलों का संगठित शोषण हो रहा है बल्कि दहेज़ को और मजबूत किया जा रहा है.

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  3. सम्वेदनशील मुद्दे पर सुचिंतित आलेख.

    सुमंगली का असर पूरे तिरुपुर पर देखा जा सकता है.

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  4. Good work Santosh...I'll suggest you to translate it into English, add interview and survey details and concrete references and try to publish it in some reputed journal like Economic and Political Weekly.

    Good luck!

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  5. This report gets to the bottom of the problem of structural causes of labour exploitation in an economy flourishing on the cheap labour stricken by mass poverty. The lanugage and flow of the report suggests that this kind of narrtive is only possible by a person who has developed deep insights on the systemic practices of labour exploitation in currnet economy and society in India.
    Thanks Santosh for enlightening many of us with your critical perspective on this issue. Hope to see more elaborate report and a paper on this issue. This kind of report and evidence are deliberately kept off site. Kudo for the repprt once again ...

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  6. Great work Santosh.....i really like the content of your write up.....carry on the good work.

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  7. santosh you have done a good job, i thought ihis article should be publish in tamil newspaper.

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  8. I am very proud of you about your wide thinking about condition of Women in india>>>>>>

    It should me reform for India development.


    SUJEET

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