Apr 14, 2011

अन्ना हजारे से आठ सवाल

 
गलती से इस (लोकपाल) पद पर कोई भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति आ गया तो..? इसलिये जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति को प्रस्तावित जन लोकपाल को नियन्त्रित करने की व्यवस्था भी, बिल में ही करनी चाहिये....


 डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

इतिहास के पन्ने पटलकर देखें तो पायेंगे कि जब संविधान बनाया गया था तो किसने सोचा होगा कि पण्डित सुखराम, ए. राजा, मस्जिद ध्वंसक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, संविधान निर्माता डॉ. अम्बेड़कर को गाली देने वाले अरुण शौरी जैसे लोग भी मन्त्री के रूप में संविधान की शपथ लेकर माननीय हो जायेंगे? जब सीवीसी अर्थात् मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाया गया था तो किसी ने सोचा होगा कि इस पद पर एक दिन दागी थॉमस की भी नियुक्ति होगी? किसी ने सोचा होगा कि मुख्यमन्त्री के पद पर बैठकर नरेन्द्र मोदी गुजरात में कत्लेआम करायेंगे?जिससे पूरे संसार के समक्ष भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि तहस-नहस हो जायेगी?

इसलिए गलती से इस (लोकपाल) पद पर कोई भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति आ गया तो..? इसलिये जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति को प्रस्तावित जन लोकपाल को नियन्त्रित करने की व्यवस्था भी, बिल में ही करनी चाहिये.

राजनेताओं से निराश और अफसरशाही से त्रस्त भोले देशवासियों द्वारा बिना कुछ जाने समझे कथित गॉंधीवादी  अन्ना हजारे के गीत गाये जा रहे हैं.गाये भी क्यों न जायें,जब मीडिया बार-बार कह रहा है कि एक अकेले अन्ना ने वह कर दिखाने का विश्‍वास दिलाया है,जिसे सभी दल मिलकर भी नहीं कर पाये अर्थात् उन्होंने देश के लोगों में जन लोकपाल बिल पास करवाने की आशा जगाई है.लेकिन नए मीडिया माध्यमों ने कई ऐसी बातें खोज निकली है जिसे बाजारू मीडिया नहीं बता सका है.  वैब-मीडिया ने जो तथ्य उजागर किये

1. अन्ना हजारे असली भारतीय नहीं, बल्कि असली मराठी माणुस :मुम्बई में हिन्दीभाषी लोगों को जब बेरहमी से मार-मार कर महाराष्ट्र से बाहर खदेड़ा जा रहा था तो अन्ना हजारे ने इस असंवैधानिक और आपराधिक कुकृत्य का विरोध करने के बजाय राज ठाकरे को शाबासी दी और उसका समर्थन करके असली भारतीय नहीं,बल्कि असली मराठी माणुस होने का परिचय दिया .

2. अन्ना हजारे ने दो विवादस्पद पूर्व जजों के नाम सुझाये : पहले हैं -पूर्व चीफ जज जे. एस. वर्मा जो संसार की सबसे कुख्यात कम्पनी ‘‘कोका-कोला’’ के हितों के लिये काम करते हैं.  संसार की सबसे कुख्यात कम्पनी ‘‘कोका-कोला’’ को भ्रष्ट अफसरशाही एवं राजनेताओं के गठजोड़ के कारण भारत की पवित्र नदियों को जहरीला बनाने और कृषि-भूमि में जहरीले कैमीकल छोड़कर उन्हें बंजर बनाने की पूरी छूट मिली हुई है जिसे देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी सही ठहरा दिया है ये कैसे सम्भव हुआ होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है.ऐसी खतरनाक कम्पनी को देश से बाहर निकालने हेतु देशभर में राष्ट्रभक्तों द्वारा वर्षों से जनान्दोलन चलाया जा रहा है. इस आन्दोलन को कुचलने और इसे तहस-नहस करने के लिये कम्पनी ने अपार धन-सम्पदा से सम्पन्न एक ‘‘कोका-कोला फाउण्डेशन’’ बनाया है, जिसके प्रमुख सदस्य हैं पूर्व चीफ जज जे. एस. वर्मा

3. दूसरे पूर्व जज हैं-एन. सन्तोष हेगड़े जो संविधान की मूल अवधारणा सामाजिक न्याय के विरुद्ध जाकर शोषित एवं दमित वर्ग अर्थात्-दलित,आदिवासी और पिछड़ों के विरुद्ध निर्णय देने से नहीं हिचकिचाये : अन्ना हजारे द्वारा सुझाये गये दूसरे पूर्व जज हैं-एन. सन्तोष हेगड़े जो सुप्रीम कोर्ट के जज रहते संविधान की मूल अवधारणा सामाजिक न्याय के विरुद्ध जाकर आरक्षण के विरोध में फैसला देने के लिये चर्चित रह चुके हैं.

4. वकालती हुनर के जरिये बीस करोड़ सम्पत्ति एक लाख में ले लेने वाले शान्तिभूषण को बनाया सह अध्यक्ष : उक्त दोनों जजों की सारी असलियत अनशन के दौरान ही जनता के सामने आ गयी, तो अन्ना हजारे वित्तमन्त्री प्रणव मुखर्जी को अध्यक्ष एवं अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शान्तिभूषण को सह-अध्यक्ष बनाने पर सहमत हो गये, जो 1977 में बनी पहली गैर-कॉंग्रेसी सरकार में मन्त्री रह चुके हैं.
हजारे की ओर से समिति के सह अध्यक्ष बने शान्तिभूषण एवं उनके पुत्र प्रशान्त भूषण (दोनों जन लोकपाल का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति में हैं) ने 2010 में अपने वकालती हुनर के जरिये इलाहाबाद शहर में बीस करोड़ से अधिक बाजार मूल्य की अचल सम्पत्ति एवं मकान मात्र एक लाख में ले ली और स्टाम्प शुल्क भी नहीं चुकाया.
5. बाबा रामदेव और अन्ना हजारे कितने गॉंधीवादी और अहिंसा  समर्थक हैं? हजारे ने अनशन शुरू करने से पूर्व गॉंधी की समाधि पर जाकर मथ्था टेका और स्वयं को गॉंधीवादी कहकर अनशन की शुरूआत की, लेकिन स्वयं अन्ना की उपस्थिति में अनशन मंच से अल्पसंख्यकों को विरुद्ध बाबा रामदेव के हरियाणा के कार्यकर्ता हिंसापूर्ण भाषणबाजी करते रहे जिस पर स्वयं अन्ना हजारे को भी तालियॉं बजाते और खुश होते हुए देखा गया. यही नहीं अनशन समाप्त करने के बाद हजारे ने आजाद भारत के इतिहास के सबसे कुख्यात गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमन्त्री घोषित कर दिया.

6. एनजीओ और उद्योगपतियों के काले कारनामों और भ्रष्टाचार के बारे में भी एक शब्द नहीं बोला : अन्ना हजारे ने सेवा के नाम पर विदेशों से अरबों का दान लेकर डकार जाने वाले और देश को बेचने वाले कथित समाजसेवी संगठनों (एनजीओ)के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला, सरकारी बैंकों का अस्सी प्रतिशत धन हजम कर जाने वाले भारत के उद्योगपतियों के काले कारनामों और भ्रष्टाचार के बारे में भी एक शब्द नहीं बोला!आखिर क्यों?  क्योंकि इन्हीं सबके मार्फत तो अन्ना के अनशन एवं सारे तामझाम का खर्च वहन किया जा रहा था

7. अन्ना के अनुसार देश का आम मतदाता सौ रुपये में और दारू की एक बोतल में बिक जाता है.  अब अन्ना को ये कौन समझाये कि मतदाता ऐसे बिकने को तैयार होता तो संसद में आम लोगों के बीच के नहीं, बल्कि अन्ना के करीब मुम्बई में रहने वाले उद्योगपति बैठे होते. अन्ना जी आम मतदाता को गाली मत दो, आम मतदाता ही भारत और स्वयं आपकी असली ताकत हैं

8. लोकपाल कौन होगा?  ऐसे हालात में सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि हजारे के प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को यदि संसद पास कर भी देती है,तो इस सबसे शक्ति सम्पन्न संवैधानिक संस्था का मुखिया अर्थात् लोकपाल कौन होगा? क्योंकि जिस प्रकार का जन-लोकपाल बिल ड्राफ्ट बनाये जाने का प्रस्ताव है, उसके अनुसार तो लोकपाल इस देश की कार्यपालिका,न्यायपालिका और व्यवस्थापिका से भी सर्वोच्च होगा
उसके नियन्त्रणाधीन केन्द्रीय एवं सभी राज्य सरकारें भी होगी और वह अन्तिम और बाध्यकारी निर्णय लेकर लागू करने में सक्षम होगा. बाबा राम देव तो लोकपाल को सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष दर्जा देने की मांग कर रहे हैं
ऐसे में देश के सवा सौ करोड़ लोगों की ओर से मेरा सीधा सवाल यह है कि यदि गलती से इस (लोकपाल) पद पर कोई भ्रष्ट, चालाक और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति आ गया तो..? आने की सम्भावना को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है.

 
(जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र 'प्रेसपालिका' के सम्पादक.विविध विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, चिन्तक, शोधार्थी तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार, मनमानी,मिलावट,गैर-बराबरी आदि केविरुद्ध संघर्षरत.उनसे   dr.purushottammeena@yahoo.in   पर संपर्क किया जा सकता है .)  




 


1 comment:

  1. भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए सांस्कृतिक/सामाजिक परिवर्तन भी बेहद जरूरी है. उसके लिये सिविल सोसायटी ने जो कुछ किया है उसे भी देखे जाने की जरुरत है तथा उसके बरअक्स सत्ता द्वारा लगातार उत्पीडित किये जा रहे विनायक सेन जैसे लोगों के संघर्ष को भी समझा जाना चाहिए. अजीब बात है जो लोग जिंदगी भर गरीबों का खून चूसते हैं वे गंगा नहा कर अपने पाप धो लेते हैं. अन्ना के अधिकाँश समर्थक भी ऐसे ही कहे जा सकते हैं. यह इवेंट मध्य वर्ग द्वारा अपराधबोध से मुक्त होने के टोटके सरीखा था. भारत माता और मोदी की जय बोलने वाले तथाकथित देशभक्त लोगों की भीड़ ने गुजरात मे कितने निरपराध लोगों को मारा था यह कोई छुपा हुआ रहस्य नहीं हैं. आज दलितों को जिंदा जलाने वाले भी भ्रष्टाचार की प्रखर आलोचना करते दिखाई पड़ते हैं,इसे संवेदनशीलता कहा जाय या संवेदनहीनता .. नितीश के नाम पर बड़ी-बड़ी फेंकने वाले वाले दबंग गरीब की मजूरी मारने से नहीं चूकते. सामाजिक न्याय व आरक्षण के प्रबल विरोधी क्या यह सच्चाई नहीं जानते कि मनुवाद स्वयम में आरक्षण व्यवस्था है,जिसके तहत कुछ लोग सदियों से आज तक मलाई खाते रहे हैं. पूंजीवादी व्यवस्था में नेता और नौकरशाहों की भूमिका पूंजीपतियों के मैनेजर और बड़े बाबू से ज्यादा नहीं है. जाहिर तौर पर नेता और नौकरशाह से बड़े भ्रष्ट खुद पूंजीपति हैं जो अन्ना का समर्थन कर रहे हैं. अगर यह लड़ाई सही मायने में भ्रष्टाचार के खिलाफ होती तो पूंजीपति इसका समर्थन करते नहीं दिखाई देते. थोड़ी बहुत नानुकर के बावजूद सरकार भी सिद्धान्तिक तौर पर जन लोकपाल के समर्थन में ही दिखती है. अन्ना के प्रचार में लगे लोग इतने सुनियोजित व साधन सम्पन्न हैं कि एक ही दिन पूरी दुनिया में गणेश को दूध पिला सकते हैं. क्या जनता को इनकी असलियत नहीं समझाई जानी चाहिए?? जनता (माफ़ कीजिये मध्य वर्ग और सिविल सोसायटी) गुस्से में नज़र आ रही है. भले ही छोटे-मोटे सुधार लोगों को थोड़े दिन और भ्रम में डाले रखें पर असलियत तो खुलनी ही है. ऐसा नहीं है कि भगत का सपना देखने वाले लोग कहीं चूक गए हैं. भले ही क्रांतिकारी चेतना के विकास की गति और अन्धविश्वास की रफ़्तार में ज्यादा फर्क हो,पर सुबह तो आनी ही है.

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