Apr 7, 2011

क्रिकेट की राष्ट्रभक्ति या हजारे का आंदोलन

जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर जारी आमरण-अनशन के मसले पर जनज्वार लगातार आपके बीच है.  इसी कड़ी में जनज्वार ने अपने सहयोगियों की मदद से  'जंतर-मंतर' डायरी की शुरुआत की है. साथ ही हमारी कोशिश होगी कि  अन्ना आन्दोलन के पक्ष-विपक्ष में खुलकर बात हो, जिससे जनतांत्रिक आंदोलनों को और मजबूती मिले. ख़बरों और बहसों की इस पूरी कड़ी को आप दाहिनी और सबसे ऊपर   भी देख सकते हैं... मॉडरेटर  


अच्छा हो बाबा अन्ना हजारे का जिन्होंने राष्ट्र को एक सुखद संदेश दिया भ्रष्टाचार और नये भारत के निर्माण का, नहीं तो जीत के जश्न में हमारी मूल समस्याओं से ध्यान हटाने का पूरा इंतजाम व्यवस्था ने कर दिया है...
 

चारु तिवारी

भारत के क्रिकेट विश्वकप जीतने के बाद देश में राष्ट्रभक्ति का नया उभार आया है। उद्योगपतियों से लेकर मजदूरी करने वाले एक साथ जश्न में शामिल हुये हैं। दुनिया की सबसे मजबूत सुरक्षा व्यवस्था में रहने वाली सोनिया गांधी राजधानी दिल्ली की सडक़ों पर ऐसे उतर आयीं, जैसे वह कोई आम इंसान हों। इसे देखकर लोगों को भी लगा कि राष्ट्र एक है। यहां कोई छोटा-बड़ा नहीं है।

मुंबई की सडक़ों पर अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी, बेटे-बहू के सडक़ों में जश्न मनाने को राष्ट्र ने देखा। राष्टभक्ति नये रूप में परिभाषित हुयी। देश के वेटिंग प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी अपने घर में अपने समर्थकों के साथ मैच देखा। भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने सेमीफाइनल और भारत-श्रीलंका के राष्ट्रपतियों ने फाइनल मैच एक साथ देखा। क्रिकेट से इन देशों के साथ प्रगाढ़ता बढ़ी।

समाचार माध्यमों से पता चला कि एक क्रिकेटप्रेमी ऐसा था जिसने भारत-पाकिस्तान का मैच देखने के लिये अपनी किडनी तक दांव पर लगा दी। एक व्यक्ति मेरठ से मुबंई रिक्शे में मैच देखने पहुंचा। कई लोगों ने सचिन की पूजा की। एक ने सचिन के लिये मंदिर बनाने की घोषणा की। भारत ने जैसे ही श्रीलंका को हराया रांची के राजकुमार महेन्द्र सिंह धौनी देश के नये नायक बनकर उभरे हैं।

सचिन और धौनी को भारत रत्न देने की बातें जोर पकडऩे लगी हैं। मुंबई विधानसभा में सचिन और झारखण्ड में धौनी को भारतरत्न देने की संस्तुति भेजी है। क्रिकेट को भ्रष्टाचार की जननी बताने वाले योगगुरु रामदेव के स्वर भी बदल गये हैं। अब उन्हें भी सचिन के लिये भारत रत्न चाहिये।

बाजारपोषित नायकों के लिये ऐसी बैचेनी भारत में ही देखी जा सकती है। अच्छा हो बाबा अन्ना हजारे का जिन्होंने राष्ट्र को एक सुखद संदेश दिया भ्रष्टाचार और नये भारत के निर्माण का, नहीं तो जीत के जश्न में हमारी मूल समस्याओं से ध्यान हटाने का पूरा इंतजाम व्यवस्था ने कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिये कि अन्ना हजारे का आंदोलन देश में नई चेतना और स्फूर्ति का संचार करेगा।

इसी बहाने हम देश की उन तमाम सवालों को समझने और उनके लिये जनगोलबंदी का कोई रास्ता तैयार कर पायेंगे। इसलिये इस क्रिकेट उत्सव से बाहर निकलकर हम उन तथ्यों की पड़ताल भी करें जो छद्म राष्ट्रभक्ति के नीचे दब जाते हैं।

देश राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय गान और भौगोलिक सीमा से नहीं बनता, इसमें निवास करने वाले लोगों से बनता है। नागरिक खुशहाल होंगे तो देश भी खुशहाल होगा। प्रतीक चिन्ह हमें सिर्फ देश होने का अहसास कराते हैं। इसलिये ‘फीलगुड’ वाली राष्ट्रभक्ति देश को आगे नहीं ले जा सकती।

अन्य राज्यों के तरह उत्तराखण्ड भी क्रिकेट की राष्ट्रभक्ति में शामिल हो गया। यहां के मुखिया जो हमेशा राष्ट्रभक्ति की कविता करते रहे हैं, उनके लिए इसे दिखाने का इससे अच्छा और कोई मौका नहीं हो सकता था। लगे हाथ उन्होंने सचिन तेंदुलकर और भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी को मसूरी में प्लाट या कोठी बनाकर देने की घोषणा कर दी है। उन्होंने एक स्टेडियम का नाम धौनी के नाम रखने की बात भी कही है।

मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं को कई संदर्भों में देखने की जरूरत है। पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में भीषण आपदा आयी। इस आपदा में बागेश्वर के सुमगढ़ के एक स्कूल में 18 बच्चों समेत 172  लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। राज्य के 17हजार गांवों में से छह हजार गांव इस आपदा की चपेट में आये।

साढ़े तीन हजार गांव ऐसे थे जहां लोगों के मकान पूरी तरह या तो ध्वस्त हो गये या उनमें इतनी बड़ी दरारें आ गयीं कि वे रहने लायक नहीं रहे। गांवों की जमीन नष्ट हो गयी। कुछ दिन तक तो लोग टैंटों या स्कूलों में रहे, बाद में उनके सिर से छत भी नहीं रही।

राज्य सरकार ने कहा था कि इस आपदा से पार पाने के लिये उसे केन्द्र सरकार से 21हजार करोड़ रुपये चाहिये। केन्द्र ने तात्कालिक सहायता के रूप में 650 करोड़ रुपये भेजे भी। जो सरकार 21 हजार करोड़ की बात कर रही थी, वह अभी 650 करोड़ को भी खर्च नहीं कर पायी है। लोगों को 40 रुपये के राहत चैक पकड़ाये गये हैं। घरों की हालत छह महीने बाद वैसी है। राहत के पैसों को अन्य कामों में खर्च करने की शिकायतें भी मिल रही हैं।

राज्य में इस तरह की आपदा को विज्ञापनों में निपटा देने वाली सरकार के पास अचानक मसूरी में ऐसी जमीन निकल आयी जिसे वह सचिन और धौनी को देने को आतुर दिखी। जहां तक खेलों को प्रोत्साहन देने का सवाल है इसमें भी इस सरकार की उदारता के कोई मायने नहीं है।

झारखण्ड और उत्तराखण्ड एक साथ बने राज्य हैं। झारखण्ड के कई खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में नाम कमा रहे हैं। रांची निवासी धौनी ने जहां अपने प्रदेश का नाम ऊंचा किया है,वहीं पिछले दिनों संपन्न हुये राष्ट्रीय खेलों का न केवल उन्होंने सफल संचालन किया, बल्कि अनेक मेडल भी जीते।

उत्तराखण्ड में अभी भी अधिकतर खेलों की एसोसिएशनें अस्तित्व में नहीं हैं। राष्ट्रीय खेलों के लिये अल्मोड़ा के एक खिलाड़ी ने झारखण्ड की ओर से खेलते हुये तीन पदक जीते। पिथौरागढ़ का उन्मुक्त चंद, पौड़ी का पवन सुयाल दिल्ली के लिये रणजी ट्राफी में खेल रहे हैं। आईपीएल में पहला शतक बनाने वाला बागेश्वर का मनीष पांडे भी बाहर के राज्यों के लिये खेलने को मजबूर है।

टेनिस के स्टार खिलाड़ी अधिकारी बंधु प्रायोजक के लिये लंबा संघर्ष करते रहे। फिलहाल दिल्ली में रहने वाली गरुड़ निवासी पारूल जैसी राष्ट्रीय स्तर की टेनिस खिलाड़ी है,जिन्हें आगे बढ़ाने की सुध प्रदेश सरकार ने नहीं ली। इसलिये ये सवाल उठने लजिमी हैं कि आखिर जिन सरकारों के पास अपनी जनता और समाज को बढ़ाने की समझ और इच्छाशक्ति नहीं है,उन्हें इस बात का अधिकार किसने दिया कि वह सामंती युग की तरह जिस पर चाहे जनता की गाढ़ी कमाई लुटा दे। इसलिये खेल से उभरी राष्ट्रभक्ति और अन्ना हजारे के आंदोलन में फर्क करना होगा। यह भी तय करना होगा कि हम किस ओर हैं।




पत्रकारिता में जनपक्षधर रुझान के प्रबल समर्थक और जनसंघर्षों से गहरा लगाव और उत्तराखंड के राजनितिक-सामाजिक मामलों के अच्छे जानकार हैं.फिलहाल जनपक्ष आजकल पत्रिका के संपादक, tiwari11964@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.




1 comment:

  1. anna ke bahane uttarakhand ke swalon ko lekar ek behtreen or sarkar ki aankhen kholane wala lekh.

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