Apr 7, 2011

अन्ना के आसपास से कुछ फुटकर नोट


जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर जारी आमरण-अनशन के मसले पर जनज्वार लगातार आपके बीच है.  इसी कड़ी में जनज्वार ने अपने सहयोगियों की मदद से  'जंतर-मंतर' डायरी की शुरुआत की है. साथ ही हमारी कोशिश होगी कि  अन्ना आन्दोलन के पक्ष-विपक्ष में खुलकर बात हो, जिससे जनतांत्रिक  आंदोलनों को और मजबूती मिले. ख़बरों और बहसों की इस पूरी कड़ी को आप दाहिनी और सबसे ऊपर   भी देख सकते हैं... मॉडरेटर        

 
जंतर मंतर डायरी - 2

जबसे दिल्ली में रह रहा हूँ तबसे कई बार राजनीतिक-अराजनितिक, संतों-असंतों के धरना-प्रदर्शनों में जंतर-मंतर जाना हुआ है,लेकिन कभी इतनी कारों वाले प्रदर्शनकारी नहीं दिखे,जितना बुधवार को अन्ना के साथ दिखे...
अन्ना के साथ नकली मनमोहन सिंह: असली का इंतजार

किशन बाबूराव हजारे ऊर्फ अण्णा हजारे मंगलवार से दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैठे हैं. वे कुछ खा -पी नहीं रहे हैं.उनकी मांग है कि सरकार जन लोकपाल विधेयक को पास करे.उन्होंने घोषणा की है कि अगर सरकार जन लोकपाल विधेयक को पास नहीं करेगी तो वे यहीं बैठे-बैठे जान दे देंगे.

उनके समर्थन में वहाँ 169 अन्य लोगों ने भी आमरण  अनशन  कर लिया है. मीडिया में लगातार खबरे आ रहीं हैं कि अण्णा के समर्थन में देश के अन्य शहरों में भी बड़ी संख्या में लोगों ने खाना-पीना छोड़ दिया है. अण्णा कहते हैं, भ्रष्टाचार रूपी कैंसर देश को चट कर रहा है.

अण्णा और उनके आंदोलनकारियों की मांग है कि सरकार उनकी ओर से तैयार जन लोकपाल विधेयक को लेकर आए और लोकपाल की नियुक्ति करने वाली समिति में गैर सरकारी लोगों को भी 50 फीसद का आरक्षण दिया जाए.

मीडिया अण्णा के अनशन को बहुत प्रमुखता दे रहा है.देना भी चाहिए आखिर क्रिकेट के महाकुंभ विश्व कप के बाद और भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े तमाशे आईपीएल से पहले कुछ तो चाहिए जगह भरने के लिए, सो अण्णा की जय हो. आठ अप्रैल के बाद क्या होगा?

 सबसे पहले जंतर-मंतर.बुधवार शाम इंडियन काफी हाउस में कुछ मित्रों के साथ बैठा था.वहीं से विचार बना की जंतर-मंतर की ओर कूच किया जाए जहाँ अण्णा खाना-पीना छोड़कर बैठे हैं. सो हम तीन दोस्त काफी हाउस से जंतर-मंतर कि ओर कूच कर गए.

वहाँ पहुंचे तो लगा कि किसी बड़ी पार्टी में आ गए हैं,चारों तरफ लंबी-चौड़ी और छोटी-बड़ी कारों का जमावड़ा था.जिधर देखो कारें ही कारें नजर आ रही थीं.जबसे दिल्ली में रह रहा हूँ तबसे कई बार राजनीतिक-अराजनीतिक   और संतों-असंतों के धरना-प्रदर्शनों में जंतर-मंतर जाना हुआ है,लेकिन कभी भी मुझे इतनी कारों वाले प्रदर्शनकारी नहीं दिखे,जितना बुधवार को दिखे.चारो तरफ एक साफ-सफ्फाक लकदक चेहरे घूम-टहल रहे थे.

एक और चीज सबसे अधिक ध्यान खींच रही थी वह थी टीवी चैनलों की ओवी वैन (जिससे किसी खबर का घटनास्थल से ही सजीव प्रसारण किया जाता है शार्टकट में कहें तो लाइव करते हैं.). शायद ही कोई चैनल हो जिसकी ओवी वैन वहां नहीं थी. सब चले आए थे उस अभियान की खबर लेने, जो भ्रष्टाचार के विरोध में चल रहा है. इन चैनलों के संवाददाता एक अदद एक्सक्लूसिव बाइट की आस में इधर-उधर भागदौड़ कर रहे थे.

इन्हीं वीर बालक-बालिकाओं में से एक को लाइव करने के लिए कोई अच्छा शॉट नहीं मिल रहा था. वह अनशन कर रही एक महिला को पटा लाई और अपने पीछे उनके छोले-छंटे के साथ सुलाकर स्टूडियों में बैठे एंकर को खबर देने लगी.

अन्ना के साथ अन्ना के तारे
 यह देखकर पंजाब की एक घटना याद आ गई जब इन्हीं वीर बालक-बालिकाओं के कहने पर एक व्यक्ति ने कैमरों के सामने आग लगाकर जान दे दी थी, वह भी भ्रष्टाचार से परेशान था. ठीक उसी तरह अभियानकारी महिला रिपोर्टर के कहने पर किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह चुपचप आकर लेट गई थी.

अण्णा जहाँ खाना-पीना छोड़कर बैठे हैं,उसके पीछे एक पोस्टर लगा है जिस पर अभियान के संबंध में कुछ बातें लिखी गई हैं और देश के कुछ महान लोगों की फोटो के साथ-साथ ‘भारत माता’की बड़ी सी फोटो लगीं है, ठीक वैसा ही जैसा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की प्रचार सामग्रियों और सरस्वती शिशु मंदिरों की किताबों में अक्सर छपी  रहती है. अभियान के कर्ता-धर्ताओं ने बताया कि कृपया इसे अन्यथा न लें.यह फोटो राष्ट्रवाद का प्रतीक है लेकिन अल्लाह की कसम  इसका संबंध किसी राइट विंग से बिल्कुल नहीं.

जंतर-मंतर पर जो जुटान थी उसमें मेरी आंखें किसी ऐसे इंसान की तलाश कर रहीं थीं जो भ्रष्टाचार से रोज दो-चार होता है,जिसे जन लोकपाल की जरूरत हो.लेकिन वहाँ मुझे कोई ऐसा आम आदमी नजर नहीं आया जिसकी गाड़ी भ्रष्टाचार की वजह से फंस जाती हो.वहाँ जो भी नजर आ रहे थे सबकी गाड़ी भ्रष्टाचार की वजह से ही फर्राटे भरती है, तो भइये,जन लोकपाल विधेयक के आने-जाने और लोकपाल की चयन समिति में आरक्षण मिल जाने से फायदा किस जीव का होगा?




6 comments:

  1. सुरेश भाई, गुजरातThursday, April 07, 2011

    बहुत अच्छा. आपलोगों ने इसपर एक दूसरे तरीके से सोचने के लिए बाध्य किया. नहीं तो अबतक मुझे इसमें भी क्रिकेट जैसी देशभक्ति नजर आ रही थी.

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  2. foratsahi samay par sahi sawal thaya. bahut sahi guru

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  3. ek dum sahi baat............bhartiyein jan manas kisi ki sacchayi ki teh tak na jakar bas uar se hi kisika suppart karne lag jatein hai.......aap ka kathan bilkul theek hai jab yeh sab log khud bhrastachariyon se mile hai to kahan se bhrastachar k khilaf ladenge

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  4. अरुण कुमार.Friday, April 08, 2011

    शानदार रिपोर्ट

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  5. अन्ना का आंदोलन जनता की भावना
    अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार हटाओं मुहिम में हजारों लोग जुड रहे है । केन्द्र सरकार हिलती दिखाई दे रही है । क्योंकि आज भ्रष्टाचार से आम आदमी दुखी है इसीलिए ऐसा कोई व्यक्ति आगे आए तो जनता का उसके साथ होना लाजिमी ही है । आम आदमी भ्रष्टाचार से इतना दुखी हो गया है कि कोई भी काम बिना रिश्वत के नहंी होता । सही और वाजिब कार्य के लिए भी सिफारिश और पैसा दोनो देने पडते है । जनता भीतर ही भीतर इस भ्रष्टाचार से त्रस्त थी जैसे ही जनता की दुखती रग पर कोई हाथ रखकर उसे सहलाने वाला दिखा जनता उसके साथ हो ली । अन्ना का यह आंदोलन जन आंदोलन का रूप लेता जा रहा है गांव शहर सभी उनके साथ जुड रहे हैं वकील डाक्टर राजनीतिज्ञ समाजसेवी युवा वर्ग महिलांए सब कोई अन्ना के साथ खडा दिखाई देता हैं
    आम जनता का साथ तो अन्ना को मिल ही रहा है लेकिन इनके साथ वे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ भी अन्ना की इस मुहिम में शामिल होकर अपने को पाक साफ साबित करने में जुटे है जिनके अगर आय के स्त्रोतो की जांच की जाए तो परत दर परत भ्रष्टाचार से कमाई गइ्र्र करोडो की सम्पतिं का खुलासा हो सकता हैं । अन्ना को ऐसे लोगो से अपने आंदोलन से दूर रखना होगा जो भेड की खाल में हैं ।
    वकील भी अन्ना का समर्थन कर रहे है लेकिन यह किसी से छुपा नहीं है कि न्याय के मंदिर में ही सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है । अदालतों में तारीख पेशी के लिए पेशकारों की क्या खातिरदारी करनी पडती है किसी से छिपा नहीं है किसी निर्णय की कापी निकलवानी है तो आपको कोर्ट फीस के अलावा नजराना तो देना ही पडेगा । कार्यालयो की कार्य प्रणाली को तो अब हमने मान्यता ही दे दी हैं।
    भ्रष्टाचार उपर से नीचे की ओर चलता है । जब मंत्री अधिकारी भ्रष्ट होते है तो पूरा तंत्र भ्रष्ट होने लगता है । आज हमारे देश में पूरा तंत्र ही भ्रष्ट हो चुका है । उसे अन्ना का आंदोलन कितना समाप्त कर सकेगा कहा नहीं जा सकता लेकिन इस पर अंकुश जरूर लग सकता हैं । लेकिन पवि़त्र आंदोलन की बागडोर उन भ्रष्ट लोगो के हाथ में नही जानी चाहिए जो देश को लूट रहे है और दिखावा ऐसा कर रहे है जैसे उन जैसा कोई पाक साफ है ही नही । जरूरत है ऐसे लोगो को पहचान कर उनको इस पवित्र आंदोलन से दूर रखने की । नही तो अन्ना का यह आंदोलन भी अपनी दिशा से भटक जाएंगा

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  6. अन्ना का आंदोलन जनता की भावना
    अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार हटाओं मुहिम में हजारों लोग जुड रहे है । केन्द्र सरकार हिलती दिखाई दे रही है । क्योंकि आज भ्रष्टाचार से आम आदमी दुखी है इसीलिए ऐसा कोई व्यक्ति आगे आए तो जनता का उसके साथ होना लाजिमी ही है । आम आदमी भ्रष्टाचार से इतना दुखी हो गया है कि कोई भी काम बिना रिश्वत के नहंी होता । सही और वाजिब कार्य के लिए भी सिफारिश और पैसा दोनो देने पडते है । जनता भीतर ही भीतर इस भ्रष्टाचार से त्रस्त थी जैसे ही जनता की दुखती रग पर कोई हाथ रखकर उसे सहलाने वाला दिखा जनता उसके साथ हो ली । अन्ना का यह आंदोलन जन आंदोलन का रूप लेता जा रहा है गांव शहर सभी उनके साथ जुड रहे हैं वकील डाक्टर राजनीतिज्ञ समाजसेवी युवा वर्ग महिलांए सब कोई अन्ना के साथ खडा दिखाई देता हैं
    आम जनता का साथ तो अन्ना को मिल ही रहा है लेकिन इनके साथ वे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ भी अन्ना की इस मुहिम में शामिल होकर अपने को पाक साफ साबित करने में जुटे है जिनके अगर आय के स्त्रोतो की जांच की जाए तो परत दर परत भ्रष्टाचार से कमाई गइ्र्र करोडो की सम्पतिं का खुलासा हो सकता हैं । अन्ना को ऐसे लोगो से अपने आंदोलन से दूर रखना होगा जो भेड की खाल में हैं ।
    वकील भी अन्ना का समर्थन कर रहे है लेकिन यह किसी से छुपा नहीं है कि न्याय के मंदिर में ही सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है । अदालतों में तारीख पेशी के लिए पेशकारों की क्या खातिरदारी करनी पडती है किसी से छिपा नहीं है किसी निर्णय की कापी निकलवानी है तो आपको कोर्ट फीस के अलावा नजराना तो देना ही पडेगा । कार्यालयो की कार्य प्रणाली को तो अब हमने मान्यता ही दे दी हैं।
    भ्रष्टाचार उपर से नीचे की ओर चलता है । जब मंत्री अधिकारी भ्रष्ट होते है तो पूरा तंत्र भ्रष्ट होने लगता है । आज हमारे देश में पूरा तंत्र ही भ्रष्ट हो चुका है । उसे अन्ना का आंदोलन कितना समाप्त कर सकेगा कहा नहीं जा सकता लेकिन इस पर अंकुश जरूर लग सकता हैं । लेकिन पवि़त्र आंदोलन की बागडोर उन भ्रष्ट लोगो के हाथ में नही जानी चाहिए जो देश को लूट रहे है और दिखावा ऐसा कर रहे है जैसे उन जैसा कोई पाक साफ है ही नही । जरूरत है ऐसे लोगो को पहचान कर उनको इस पवित्र आंदोलन से दूर रखने की । नही तो अन्ना का यह आंदोलन भी अपनी दिशा से भटक जाएंगा

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