जनज्वार. आदिवासियों की तबाही के सरकारी अभियान ‘सलवा जुडूम’ को फिर से एक बार नये क्षेत्र में आजमाने का मामला उजागर हुआ है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के चिंतलनार क्षेत्र में 11 से 16 मार्च के बीच हत्या-बलात्कार, लूट- आगजनी का नेतृत्व अबकी कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा ने नहीं, बल्कि दंतेवाड़ा के एसपी, एसआरपी कल्लूरी ने किया है।
दंतेवाड़ा के चिंतलनार में माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ में 36 माओवादियों को मार देने की झूठी खबर से गदगद हो रही छत्तीसगढ़ की सरकार की पोल खुल गयी है। 25 और 26 मार्च को प्रभावित गांवों का दौरा कर लौटी 13 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम ने दिल्ली में 1 अप्रैल को प्रेस वार्ता कर खुलासा किया कि सरकारी अत्याचार के इस अभियान में सिर्फ एक माओवादी भीमा उर्फ सुदर्शन मारा गया है।
इस घटना को सीआरपीएफ और माओवादियों के बीच मुठभेड़ के रूप में प्रचारित किया गया था. पुलिस के मुताबिक इस मुठभेड़ में तीन एसपीओ और 36 माओवादी मारे गए थे. पुलिस ने मीडिया में इस घटना को माओवादियों के वर्चस्व वाले इलाके चिंतलनार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के रूप में पेश कर जश्न मनाया था. गौरतलब है कि यह वही इलाका है जहाँ पिछलेवर्ष ६ अप्रैल को माओवादियों ने 76 जवानों को मार दिया था.
इस नए अभियान की 21 मार्च को जानकारी होने के बाद जब पत्रकारों और तथ्यान्वेषी दलों ने प्रभावित इलाकों में जाने की कोशिश की तो उन्हें हर तरीके से रोका गया. 25मार्च को करीब 300 घरों को जला दिए जाने के बाद तबाह हुए लोगों के लिए राहत सामग्री ले जा रहे सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमला किया गया. वहीं इस बहाने भी इलाके के अंदर जाने से रोका गया कि यह इलाका युद्धक्षेत्र है और राज्य तथा माओवादियों के बीच तथाकथित युद्ध अभी भी जारी है, ऐसे में किसी बाहरी व्यक्ति का इलाके के अंदर जाना खतरनाक हो सकता है.
बहरहाल तेरह सदस्यीय तथ्यान्वेषी दल दूसरे रास्ते वहां पहुँचने में सफल रहा. इस दल में नागरिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वालों के अलावा कई स्वतंत्र लोग भी शामिल थे. यह दल 26और 27 मार्च को इलाके के अंदर तक गया और घटना के पीड़ितों और अन्य ग्रामीणों से घटना के संबंध में विस्तार से बातचीत की.इस दौरान दल के सदस्य यह जानकर अवाक रह गए कि राज्य की ओर से प्रचारित किया गया पुलिस का बयान पूरी तरह से मनगढ़ंत और सच्चाई से कोसों दूर था.
दल में शामिल मानवाधिकार संगठन पीयूडीआर के सदस्य और पत्रकार आशीष गुप्ता ने कहा कि मार्च 11 को अर्धसैनिक बलों और सलवा जुडूम के करीब तीन सौ लोगों के एक समूह ने चिंतलनार इलाके के मोरपल्ली गांव पर हमला कर दिया. उनका कहना था कि उन्हें सूचना मिली है कि यहां आदिवासी एक बड़ी बैठक करने जा रहे हैं.
जाँच दल की मुख्य मांगे :
- सीआरपीएफ और सलवा जुडूम के खिलाफ बलात्कार, हत्या, दमन और अपहरण का मामला दर्ज किया जाए.
- इसके दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए.
- घायलों को तत्काल चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जाए और बलात्कार पीड़ितों का मेडिकल कराया जाए.
- लोगों को उनके नुकसान के मुताबिक मुआवजा दिया जाए. प्रभावित इलाकों में और पत्रकारों व नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों को जाने की इजाजत दी जाए.
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सलवा जुडूम पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाए और ‘कोया कमांडो’ के नाम पर सलवा जुडूम की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए.
- ऑपरेशन ग्रीनहंट को तत्काल प्रभाव से रोका जाए.
मोरपल्ली गांव में इन लोगों ने 33घरों को जला दिया और सुनीता और अनीता नाम की दो महिलाओं के साथ बलात्कार किया (बदला हुआ नाम). लाक्के और उनके पिता मारावी भीमा को बेरहमी से पीटा और मारवी सुला नामक एक वृद्ध आदिवासी को मार डाला. मोरुपल्ली गांव को बरबाद करने के बाद ये लोग 13 मार्च को तिम्मापुरम गांव की ओर बढ़ गए. अगले दिन रास्ते में माओवादियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. यह सशस्त्र संघर्ष करीब दो घंटे तक चला. इसमें भीमा उर्फ सुदर्शन की मौत हो गई और दो अन्य लोग घायल हो गए.
जेएनयू विश्विद्यालय की छात्र बानोज्योत्सना लाहड़ी आगे बताती हैं कि इस संघर्ष में तीन एसपीओ की भी मौत हुई और नौ अन्य घायल हो गए,जिनमें से एक की बाद में मौत हो गई.मुठभेड़ के बाद सीआरपीएफ और सलवा जुडूम के एसपीओ पीछे हटने पर मजबूर हुए. उन्होंने तिम्मापुरम गांव लौटकर वहां शरण ली.
माओवादियों के संभावित हमले से बचने के लिए इन लोगों ने गांव में बंकर बनाए. गाँव छोड़ने से पहले इन लोगों ने 55 घरों में आग लगा दी. तिम्मापुरम गांव लौटते समय सुरक्षा बलों ने पुलामपड गाँव से बुर्सी भीमा को उठा लिया था. तिम्मापुरम गांव में आग लगाने के बाद इन लोगों ने भीमा को कुल्हाड़ी से काटकर मार डाला. उन्होंने शायद ऐसा इसलिए किया था क्योंकि वह इस पूरे नरसंहार का चश्मदीद गवाह था. तिम्मापुरम गाँव से यह दल ताड़मेटला गांव पहुंचा, जो उनका नया लक्ष्य बन गया.
जांच दल की रिपोर्ट के मुताबिक ताड़मेटला गाँव में इन लोगों ने 207 घरों में आग लगाई. इससे वे राख में बदल गए. उन लोगों ने रीता (बदला हुआ नाम) से बलात्कार किया और उसे तबतक पीटा जबतक वह बेहोश नहीं हो गई.उसे जब होश आया तो पता चला कि उसके कुछ नगद रुपए और करीब 12हजार रुपए मूल्य के आभूषण गायब हैं.
ताड़मेटला गांव की बलात्कार पीड़ित आदिवासी महिला |
इस वारदात का नेतृत्व करने वाले सलवा जुडूम के कई सदस्यों की तिम्मापुरम गांव के लोगों ने पहचान की है. इसमें मंतम भीमा उर्फ रमेश (जानागुडा गांव निवासी),तेलम अंडा (लीकपुर गांव नवासी), वांजन पेवा (चारपान गांव निवासी), दासरु (विल्लामपल्ली गांव निवासी), मारा (मोनीपल्ली गांव निवासी),रामलाल (बोदीकली गांव निवासी), केचा नंदा (कोरापद गांव निवासी), करताम दुला उर्फ सूर्या (मिसमान गांव निवासी)और तिम्मापुरम गांव का एक एसपीओ और एक महिला एसपीओ शामिल थी.इससे यह साफ है कि यहाँ सलवा जुडूम सक्रिय और पहले की ही तरह काम कर रहा है. सरकार उन्हें ‘कोया कमांडो’ बताती है, जो कि पूरी तरह फर्जी है.
सलवा जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूरी तरह प्रतिबंध लगा देने के निर्देश के बाद भी यह सक्रिय रूप से काम कर रहा है और उसे सरकार को पूरा सहयोग और समर्थन हासिल है.यह पूरी तरह से निहत्थे और निर्दोष आदिवासियों पर सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम की ओर से किया गया एकतरफा हमला था.लेकिन मीडिया में इसे माओवादियों के साथ चल रही मुठभेड़ के रूप में प्रचारित किया गया.
जाँच दल की रिपोर्ट में कहा गया कि ताड़मेटला गांव की बलात्कार पीड़ित रीता (बदला हुआ नाम) की ओर से अभी तक किसी के भी खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं कराया गया है और न ही चिकित्सा परीक्षण कराया गया है.ताड़मेटला गांव के मारावी अंडा और मारावी आइता अभी भी गायब है और उनका कोई पता नहीं चला है, ग्रामीणों का दावा है कि उन्हें सुरक्षा बल उठा ले गए, लेकिन अभी तक उन्हें कहीं पेश नहीं किया गया है.यह तांडव पूरी तरह सरकार के सहयोग और सक्रिय समर्थन से मचाया गया.
वारदात के बाद माओवादियों का पर्चा |
मोरपल्ली और तिम्मापुरम गांव के निवासी अभी भी बहुत बुरे हालात में रह रहे हैं. इन गांवों के लोगों को अभी तक सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिली है.उन्होंने बताया कि माओवादियों की ओर से उन्हें कुछ अंतरिम राहत मिली है. इनमें से बहुत से लोग अभी भी पेड़ों के नीचे रह रहे हैं.
इलाके से लौटे तथ्यान्वेषी दल की राय में ग्रामीणों पर केवल इसलिए हमला किया जा रहा है कि इन लोगों ने तालाबों की खुदाई, भूमिहीनों में जमीन बांटने, सिंचाई की सुविधाओं का विकास करने जैसे वैकल्पिक विकास के काम किए हैं जिसे सरकार पिछले कई दशकों में कर पाने में नाकाम रही है. आदिवासियों को उनके जीवन की बुनियादी सुविधाओं और आजीविका के साधनों से बेदखल किया जा रहा है और अब उन्हें सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम के अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है.
इलाके से लौटे तथ्यान्वेषी दल की राय में ग्रामीणों पर केवल इसलिए हमला किया जा रहा है कि इन लोगों ने तालाबों की खुदाई, भूमिहीनों में जमीन बांटने, सिंचाई की सुविधाओं का विकास करने जैसे वैकल्पिक विकास के काम किए हैं जिसे सरकार पिछले कई दशकों में कर पाने में नाकाम रही है. आदिवासियों को उनके जीवन की बुनियादी सुविधाओं और आजीविका के साधनों से बेदखल किया जा रहा है और अब उन्हें सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम के अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है.
तथ्यान्वेषी दल के सदस्य में सीएच चंद्रशेखर, वी चित्ति बाबू, आर राजानंदम, वी रघुनाथ, जी रवि, के विप्लव कुमार,के श्रीसा,आर मुरुगेसन,आशीष गुप्त, यू संभाशिवराव ,बानोज्योत्सना लाहड़ी और चंद्रिका शामिल थे.
सभी फोटो- चन्द्रिका
हिंदी में अनुपलब्ध जानकारी को हमारे बीच लाने के लिए जनज्वार को आभार. दूसरा अब कल्लूरी को सरकार ने उनके किये कि सजा दे दी है और उन्हें दंतेवाडा के एसपी से सरगुजा जिले का डीआइजी बना दिया गया है. सजा में परमोसन का अपना ही मजा है. अगर कल्लूरी जैसे अपराधियों को सरकार खुबसूरत सजा देती रही तो फिर कौन रोकेगा देश को विद्रोही होने से. अरे आपलोग अग्निवेश का दुःख भी तो लिखिए...बेचारे शाकाहारी को कल्लूरी ने अंडा दे मारा है और वे उसी दिन से शुद्धि में लगे हुए हैं.
ReplyDeleteपहले इस हत्याकांड के बारे में अख़बारों में छपा 36 माओवादी मारे गए. दावा ऐसे किया गया मानों वह खुद मौके पर मौजूद रहे हों. हिंदी अख़बार दैनिक भाष्कर लगातार तीन दिन फर्जी खबरे छापता रहा. अब वह झूठी साबित हुईं तो खेद भी नहीं प्रकट कर रहा. पत्रकारिता की इस गैर जिम्मेदारी को कण्ट्रोल करने का कोई तरीका क्यों नहीं विकसित किया जाता.
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