जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयत्र को लेकर कोंकण क्षेत्र में राजनीति तेज हो गई है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पक्षकार इसे विकास से जोड़कर देख रहें हैं तो स्थानीय लोग इसे विनाश की कहानी की अंतहीन शुरुआत मान रहे हैं...
आशीष कुमार 'अंशु'
आशीष कुमार 'अंशु'
अभी अधिक दिन नहीं हुए जब जैतापुर में रैली कर रहे कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं के बीच एक कांग्रेसी कार्यकर्ता मंच पर पहुँच गया और जैतापुर परियोजना के खिलाफ बोलने लगा। इस स्थिति को देख मंचासीन नेता और आयोजक सन्न थे, वहीं कार्यक्रम में शामिल हुई आम जनता की तरफ से उस कार्यकर्ता के लिए जिन्दाबाद, जिन्दाबाद के नारे लगने लगे. मंच पर चढ़े उस कांग्रेसी कार्यकर्ता को किसी पुराने मामले में आरोपित कर जेल में डाल दिया गया है।
एनपीसीआईएल (न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) और फ्रांस की कंपनी अरेवा के बीच हुए समझौते से भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और फ्रांसिसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी के चेहरे पर जो खुशी आई, भारत के नागरिकों और भारतीय अर्थव्यवस्था जैतापुर के लोगों को उसकी कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया जा है। डॉ. सिंह इस समय फ्रेंच न्यूक्लियर उद्योग को उबारने वाले तारणहार की भूमिका में हैं।
जैतापुर में प्रस्तावित 9900मेगावाट परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए कुल 938हेक्टेयर जमीन ली जानी है,जिसमें 669 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज च्वहाण कहते हैं कि स्थानीय लोग जमीन देने के लिए राजी हैं। लेकिन जब वे मुम्बई में इस मुद्दे पर बातचीत के लिए माड़वन के लोगों को बुलाते हैं तो गांव वाले जाने से साफ इंकार कर देते हैं।
जैतापुर में प्रस्तावित 9900मेगावाट परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए कुल 938हेक्टेयर जमीन ली जानी है,जिसमें 669 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज च्वहाण कहते हैं कि स्थानीय लोग जमीन देने के लिए राजी हैं। लेकिन जब वे मुम्बई में इस मुद्दे पर बातचीत के लिए माड़वन के लोगों को बुलाते हैं तो गांव वाले जाने से साफ इंकार कर देते हैं।
अब इसका क्या अर्थ निकाल जाए? गांव वालों का पक्ष साफ है कि बातचीत तो उस समय की जाए जब हमें भी अपनी बात कहने का मौका मिले और उम्मीद हो कि हमने अपनी बात से मुख्यमंत्री को विश्वास में ले लिया तो परियोजना रुक जाएगी। ऐसी जगह बात करने का क्या फायदा, जिसमें माड़वन में परमाणु ऊर्जा संयत्र लगाने का फैसला पहले से सुरक्षित है।
जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयत्र को लेकर कोंकण क्षेत्र में राजनीति तेज हो गई है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पक्षकार जहां इसे विकास से जोड़कर देख रहें हैं। वहीं इस परियोजना के खिलाफ खड़े लोगों का स्पष्ट मानना है कि यह परियोजना कोंकण के विनाश की कहानी का पहला अध्याय होगी।
पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता विवेके भिड़े से जब बातचीत हुई तो उनका कहना था कि ‘कोंकण की जमीन पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील है। यहां दो सौ पचहत्तर किलोमीटर के क्षेत्रफल में जिस तरह 17 परियोजनाओं पर एक साथ काम हो रहा है, इससे यह बात साफ हो गई है कि कोंकण पर किसी की बुरी नजर लग गई। बेशक,माड़वन हम सभी के लिए गंभीर मुद्दा है।’भिडे़ आगे कहते हैं, 'प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होने वालों की संख्या भले ही दस हजार के आसपास नजर आ रही हो, लेकिन इससे वास्तव में प्रभावित होने वालों की संख्या लाखों में होगी।'
जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयत्र के काम को छह हिस्सों में फ्रांसिसी कंपनी अरेवा के हाथों पूरा होना है। योजना के अनुसार पहले चरण में प्रस्तावित छह ईकाइयों में 1650-1650 मेगावाट वाली दो इकाइयों का काम पूरा होगा। यह दोनों ईकाइयां रत्नागिरी जिले के माड़वन में होंगी। योजना के अनुसार इस परियोजना के पहले चरण को 2013-14 तक पूरा होना है और बची चार ईकाइयों का काम भी 2018 तक पूरा कर लिया जाना है।
वर्तमान में हमारे कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की भागीदारी 2.90प्रतिशत की है। देश में इसे 2020 तक बढ़ाकर छह प्रतिशत तक ले जाने की योजना है और 2030 तक इसे तेरह प्रतिशत की भागीदारी में बदल दिया जाएगा। इसके लिए माड़वन (जैतापुर) की तरह कई परियोजनाओं की देश को जरुरत होगी। बहरहाल बात माड़वन (जैतापुर) की करते हैं जिसमें पांच गांवों माड़वन, मीठागवाने, करेल, वारिलवाडा और नीवेली की 938 हेक्टेयर जमीन जानी है।
इन पांच गांवों में से चर्चा में माड़वन (जैतापुर) गांव का नाम ही बार-बार आ रहा है। इसकी पहली वजह यह है कि छह ईकाइयों में पूरे हो रहे इस परियोजना की पहली दो ईकाइयों का काम माड़वन में ही पूरा होना है। दूसरी वजह जनहित सेवा समिति के प्रवीण परशुराम गवाणकर बताते हैं,‘परियोजना में जाने वाली कुल 938 हेक्टेयर जमीन में से 669 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है।
इन पांच गांवों में से चर्चा में माड़वन (जैतापुर) गांव का नाम ही बार-बार आ रहा है। इसकी पहली वजह यह है कि छह ईकाइयों में पूरे हो रहे इस परियोजना की पहली दो ईकाइयों का काम माड़वन में ही पूरा होना है। दूसरी वजह जनहित सेवा समिति के प्रवीण परशुराम गवाणकर बताते हैं,‘परियोजना में जाने वाली कुल 938 हेक्टेयर जमीन में से 669 हेक्टेयर जमीन माड़वन की है।
यह वही माड़वन है जो रत्नागिरी जिले में स्वतंत्रता सेनानियों के गांव के रूप रुप में जाना जाता है। इस गांव में आधे दर्जन से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार रहते हैं। अंग्रेजों से लड़ने वालों के परिवारों को अब अपनी सरकार से लड़ना पड़ रहा है। वैसे उनके लिए अपनी सरकार अंग्रेज से भी अधिक क्रूर साबित हो रही है, क्योंकि अंग्रेजों ने इन्हें अपने घर से तो बेदखल नहीं किया था।
परमाणु ऊर्जा के लिए चुनी गई यह जमीन पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील है। समुद्र का किनारा, 150 किस्म के पक्षी, 300 किस्म की वनस्पतियां। खास बात यह है कि इनमें कई वनस्पतियों और पक्षियों की किस्म दुर्लभ है। समुद्र के इस मनोरम तटीय क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक परमाणु ऊर्जा संबंधित प्रकल्प प्रस्तावित हैं। जबकि रत्नागिरी को राज्य सरकार ने ओद्यानिकी (हॉर्टिकल्चर)जिला घोषित किया है और इसका पड़ोसी जिला सिंधदुर्ग गोवा से भी लगा हुआ होने के कारण पर्यटकों की खास पसंद रहा है।
बड़ी संख्या में गोवा देखने के लिए आने वाले पर्यटक सिंधदुर्ग का रुख करते हैं। पर्यावरणविद इस बात से अचंभित हैं कि जिस रत्नागिरी को दुनियाभर मे जैव विविधता के हॉट स्पॉट के तौर पर देखा जाता है,उस जिले के लिए परमाणु ऊर्जा संबंधित परियोजना के करार पर उस साल हस्ताक्षर होता है,जब पूरी दुनिया ‘अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष’ का उत्सव मना रही है।
साखरी नाटे मछुआरों की बस्ती है। वहां मिले मच्छीमार कृति समिति के उपाध्यक्ष, अमजद बोरकर। वे और उनके साथी समुद्र को लेकर अपने रागात्मक रिश्तों की बात करते-करते भावुक हो गए। बकौल बोरकर ‘समुद्र के साथ हमारा रिश्ता पीढ़ियों का है। हमारे पूर्वजों के समय से यह समुद्र हमें रोटी दे रहा है। सरकार परमाणु ऊर्जा प्रकल्प को कोंकण और महाराष्ट्र का विकास कहकर प्रचारित कर रही है, लेकिन यह विकास का नहीं कोंकण की बर्बादी का समझौता है।’ बोरकर के अनुसार महाराष्ट्र की सरकार प्रकल्प के नाम पर गंदी राजनीति कर रही है।
टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंस (टिस) की एक रिपोर्ट के अनुसार परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए सरकार ने जो स्थान तय किया है वह बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। टिस की यह रिपोर्ट महेश कांबले ने इस इलाके के 120 गांवों में जाकर लोगों से मिलकर तैयार की है।
कांबले के अनुसार इस परियोजना का स्थानीय और पर्यावरणीय परिवेश पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सरकार तथ्य को तोड़-मरोड़ रही है और माड़वन के उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर कर पेश कर रही है। जैतापुर के जिस 626.52 हेक्टेयर जमीन अनुपजाऊ दिखाया जा रहा है वहां के किसान उस जमीन पर धान, फल, सब्जी लगा रहे हैं।
वर्ष 2007में बाढ़ में सरकार ने राजापुर के किसानों को आम की फसल खराब होने पर एक करोड़ सैंतीस लाख सात हजार रुपए का मुआवजा दिया था। अर्थक्वेक हजार्ड जोनिंग ऑफ इंडिया के अनुसार जैतापुर जोन तीन में आता है। जो भूकम्प के लिहाज से रिस्क जोन माना जाएगा। ऐसे इलाके में परमाणु से जुड़े किसी प्रकल्प को शुरु करना कम खतरे की बात नहीं है।
टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल साईंस (टिस) की एक रिपोर्ट के अनुसार परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए सरकार ने जो स्थान तय किया है वह बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। टिस की यह रिपोर्ट महेश कांबले ने इस इलाके के 120 गांवों में जाकर लोगों से मिलकर तैयार की है।
कांबले के अनुसार इस परियोजना का स्थानीय और पर्यावरणीय परिवेश पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि सरकार तथ्य को तोड़-मरोड़ रही है और माड़वन के उपजाऊ जमीन को बंजर बनाकर कर पेश कर रही है। जैतापुर के जिस 626.52 हेक्टेयर जमीन अनुपजाऊ दिखाया जा रहा है वहां के किसान उस जमीन पर धान, फल, सब्जी लगा रहे हैं।
वर्ष 2007में बाढ़ में सरकार ने राजापुर के किसानों को आम की फसल खराब होने पर एक करोड़ सैंतीस लाख सात हजार रुपए का मुआवजा दिया था। अर्थक्वेक हजार्ड जोनिंग ऑफ इंडिया के अनुसार जैतापुर जोन तीन में आता है। जो भूकम्प के लिहाज से रिस्क जोन माना जाएगा। ऐसे इलाके में परमाणु से जुड़े किसी प्रकल्प को शुरु करना कम खतरे की बात नहीं है।
स्थानीय लोगों के लिए रेडिएशन का मामला भी एक बड़ा मुद्दा है। परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के आसपास जो लोग होंगे, उनके स्वास्थ पर इसका दुष्प्रभाव एक बड़ी चिन्ता बना हुआ है। गांववाले पूछते हैं,यदि यह प्रकल्प इतना सुरक्षित है तो यहां काम करने वाले अधिकारियों के लिए आवास की व्यवस्था प्रकल्प से पांच-सात किलोमीटर दूर क्यों प्रस्तावित है? उनके रहने के लिए आवास परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के परिसर में क्यों नहीं किया जा रहा?
माड़वन (जैतापुर)के लोग कहते हैं,यदि फ्रांसिसी कंपनी अरेवा उनके गांव आ रही तो यहां वह कोई समाजसेवा करने तो नहीं आ रही है। वह एक निजी कंपनी है, जो यहां कमाई के इरादे से आएगी और कोंकण की जमीन पर पहली बार वह अपने ईपीआर (यूरोपियन प्रेसराइज्ड रिएक्टर)तकनीक की जांच भी कर पाएगी। जिसे पहले कहीं जांचा-परखा नहीं गया है। क्या अरेवा भारत को परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के नाम पर अपनी प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है?
भाई आशीष आपने अच्छा लिखा है. शायद आपलोगों के लिखने से सरकार को समझ आये. धन्यवाद.
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