Feb 4, 2011

नहीं तो मारे जाते रामचंद्र गुहा !


आप विश्वास करेंगे कि ख्याति  प्राप्त इतिहासकार,लेखक और बुद्धिजीवी रामचंद्र गुहा को छत्तीसगढ़ के एक पुलिस थाने के भीतर नक्सली सिद्ध कर दिया गया और उनको मारने की तैयारी कर ली गयी थी...

हिमांशु  कुमार  

अभी देश में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को नक्सली,माओवादी और आतंकवादी कह कर डरा कर चुप कराने का जोरदार धंधा चल रहा है.और हमारे देश का मध्यवर्ग जो बिना मेहनत किये ऐश की ज़िंदगी जी रहा है वो सरकार के इस झूठे प्रचार पर विश्वास करना चाहता है ताकि कहीं ऐसी स्थिति ना आ जाए जिसमें ये हालत बदल जाए और मेहनत करना ज़रूरी हो जाए.

इसलिए बराबरी ओर गरीबों के लिए आवाज़ उठाने वाले मारा जा रहा है या झूठे मुकदमें बना कर जेलों में डाल दिया गया है.लेकिन क्या आप विश्वास करेंगे की अंतर्राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त इतिहासकार,लेखक और बुद्धिजीवी रामचंद्र गुहा को एक पुलिस थाने के भीतर नक्सली सिद्ध कर दिया गया और उनको मारने की तैयारी कर ली गयी थी.


बाएं से इतिहासकार रामचंद्र गुहा, प्रोफ़ेसर नंदिनी सुन्दर और प्रभात खबर के संपादक हरिवंश : मारे जाने से बच गए

ये घटना सन २००७ के जून महीने की है.दंतेवाड़ा में सरकार ने सलवा जुडूम शुरू कर दिया था.सलवा जुडूम वाले और पुलिस मिल कर आदिवासियों के घरों को जला रहे थे.आदिवासी लड़कों को मार रहे थे और आदिवासी लड़कियों से बड़े पैमाने पर बलात्कार किये जा रहे थे.उसी दौरान रामचंद्र गुहा,दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर डॉ.नंदिनी सुन्दर, इंदिरा गांधी के प्रेस सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीस, केंद्रीय शासन में सचिव रहे ईएएस शर्मा,फरहा नक़वी,और झारखंड के प्रसिद्ध अखबार प्रभात खबर के सम्पादक हरिवंश जी आदि की एक टीम सलवा जुडूम और आदिवासियों के बारे में जानकारी लेने आयी थी.

इस दौरे के दौरान एक टीम दंतेवाडा के करीब साठ किलोमीटर दूर एक गाँव में आदिवासियों से मिलने गयी. पुलिस को पता चल गया.बस फिर क्या था?कानून को बचाने सरकार का हुकुम बजाने और संविधान की रक्षा करने सरकार दल-बल के साथ पहुँच गयी. टीम के सदस्य अपनी गाड़ी नदी के इस पार खड़ी कर नदी पार करके गावों में गए हुए थे.

सरकारी सुरक्षा बलों ने ड्राईवर के गले पर चाक़ू रख दिया और उसको धमका कर टीम की अगली पिछली गतिविधियों की जानकारी ली. कुछ देर के बाद जब जब ये टीम वापिस आयी तो इन लोगों से पूछताछ करके इन्हें सीधे वापिस जाने की इजाज़त दे दी गयी,लेकिन रास्ते में आगे पड़ने वाले भैरमगढ़ थाने को ज़रूरी निर्देश दे दिए गए.

जैसे ही रामचंद्र गुहा, नंदिनी सुन्दर आदि की टीम भैरमगढ़ थाने पहूंची शाम हो चुकी थी. थाने के सामने का नाका रोक कर इन लोगों को थाने चलने का आदेश दिया गया.थाने के भीतर एसपीओ लोगों का राज था.एक एसपीओ ने राम चन्द्र गुहा की तरफ इशारा करके कहा इसे तो हम जानते हैं, ये तो नक्सली है,छत्तीसगढ़ में गवाहों की क्या कमी? आनन फानन में तीन गवाह भी आ गए. उन्होंने कहा हाँ इसे तो हमने नक्सलियों की मीटिंगों में देखा है.बस फिर क्या था.किसी ने कहा चलो साले को गोली मार दो.

एसपीओ लोगों का एक झुण्ड राम चन्द्र गुहा को एक तरफ ले गया.इस बीच कुछ एसपीओ और सलवा जुडूम वालों ने नंदिनी सुन्दर का पर्स और कैमरा छीन लिया.तब मोबाइल से नंदिनी ने कलेक्टर को फोन लगाया.कलेक्टर ने कहा मैं एसपी को कहता हूँ.एस पी का फ़ोन आया लेकिन थानेदार ने एसपी का फोन सुनने से मना कर दिया.और पूरे थाने को एसपीओ और सलवा जुडूम के ऊपर छोड़ कर खुद को एक कमरे में बंद कर लिया.

मैं उस दिन रायपुर में था.नंदिनी ने मेरी पत्नी वीणा को कवलनार आश्रम में फोन किया.वीणा ने मुझे फोन किया और कहा की नंदिनी एवं साथी बहुत बड़ी मुसीबत में हैं.आप तुरंत कुछ कीजिये. मैंने भैरमगढ़ सलवा जुडूम के नेता अजय सिंह को फोन किया. हम तब खासी मज़बूत स्थिति  में थे.

आदिवासियों की एक बड़ी सँख्या हमारी संस्था और कोपा कुंजाम जैसे कार्यकर्ताओं के साथ थी.(इसी जनशक्ति के बल पर हम वहां इतने लम्बे समय तक टिक पाए) मैंने अजय सिंह से कहा की राम चन्द्र गुहा आदि लोगों को कुछ नहीं होना चाहिए .और इसके बाद ये टीम वहां से जान बचा कर निकल पाई.

नंदिनी ने बड़े आश्चर्य से मुझे बताया की आपका फोन आते ही उन्होंने हमें छोड़ दिया.रामचंद्र गुहा भी अगले दिन वनवासी चेतना आश्रम में बैठ कर सलवा जुडूम की बदमाशियों पर गुस्सा निकाल रहे थे . नंदिनी का कैमरा छ माह के बाद कलेक्टर ने वापिस किया था...



दंतेवाडा स्थित वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख और सामाजिक कार्यकर्त्ता हिमांशु कुमार का संघर्ष,बदलाव और सुधार की गुंजाईश चाहने वालों के लिए एक मिसाल है. उनसे vcadantewada@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.




5 comments:

  1. हरीश सान्डिल्यFriday, February 04, 2011

    इन महाप्रभुओं ने कभी इस मामले पर जुबान क्यों नहीं खोली और हिमांशु को भी बताने में तीन साल लगा. यह सब लोकतंत्र में ही हो रहा है और माओवाद से सरकार निपटने की बात कर रही है. क्या माओवाद में इतना भी लोकतंत्र नहीं है.

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  2. really terrifying,its the real face of indian democracy and police,@harish sir himanshu ji telling us story after story,and he had an endless list..

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  3. आशीष कुमारFriday, February 04, 2011

    हमलोग किस सच के इंतज़ार में हैं, अब और सच जानने को. कल एक मित्र कह रहे थे मिस्र देखिये, भारत भी इससके इंतज़ार में है. मैंने कहा भूल जाइये यहाँ २० नौजवान आवेदन देने में मरे हैं और उनकी जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली और हम चुप रहे और आप मिस्र की सोचते हैं. हमें ठीक से शर्म आये इसकी सोचिये.

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  4. himanshu ji

    aapne ek bohot bari galti ki hai unko bacha ke ydi kuch ho jata to in budhijeeviyon ko lagta ki manav adikar ka hanan hota hai is desh me

    or sayad unme kuch unity banti

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