गाँधी और नेहरु के बहुत विरोध के बावजूद भी जब यह निकाह संपन्न हो गया तब समस्या 'खान' उपनाम को लेकर आ खड़ी हुई, जिसका हल सोलिसिटर जनरल श्री सप्रू के द्वारा निकाला गया...
गाँधी परिवार का परिचय जब भी किसी कांग्रेसी अथवा मीडिया द्वारा देशवासियों को दिया जाता है तब वह फिरोज गाँधी तक जाकर यकायक रुक जाता है. फिर बड़ी सफाई के साथ अचानक उस परिचय का हैंडिल एक विपरीत रास्ते की और घुमाकर नेहरु वंश की और मोड़ दिया जाता है।
फिरोज गाँधी भी अंततः किसी के पुत्र तो होंगे ही। उनके पिता कौन थे ? यह बतलाना आवश्यक नहीं समझा जाता। फिरोज गाँधी का परिचय पितृ पक्ष से काट कर क्यों ननिहाल के परिवार से बार-बार जोड़ा जाता रहा है. यह एक ऐसा रहस्य है जिसे नेहरु परिवार के आभा-मंडल से ढक कर एक गहरे गड्ढे में मानो सदैव के लिए ही दफ़न कर दिया गया है।
फिरोज 'खान' और इंदिरा : राजनीति के लिए धर्मान्तरण |
यह कैसा आश्चर्य है की पंथ निरपेक्षता(मुस्लिम प्रेम) की अलअम्बरदार कांग्रेस के द्वारा भी आखिर यह गर्वपूर्वक क्यों नहीं बतलाया जाता की फिरोज गाँधी एक पारसी युवक नहीं, एक मुस्लिम पिता के बेटे थे। दरअसल फिरोज गाँधी का मूल नाम फिरोज गाँधी नहीं फिरोज खान था,जिसको एक सोची समझी कूटनीति के अर्न्तगत फिरोज गाँधी करा दिया गया था। फिरोज गाँधी मुसलमान थे और जीवन पर्यन्त मुसलमान ही बने रहे।
उनके पिता का नाम नवाब खान था जो इलाहबाद में मोती महल (इशरत महल)के निकट ही एक किराने की दूकान चलाते थे । इसी सिलसिले में (रसोई की सामग्री पहुंचाने के सिलसिले में)उनका मोती महल में आना जाना लगातार रहता था। फिरोज खान भी अपने पिता के साथ ही प्रायः मोती महल में जाते रहते थे। वहीँ पर अपनी समवयस्क इंदिरा से उनका परिचय हुआ और धीरे-धीरे जब यह परिचय गूढ़ प्रेम में परिणत हुआ तब फिरोज खान ने लन्दन की एक मस्जिद में इंदिरा को मैमूदा बेगम बनाकर उनके साथ निकाह पढ़ लिया।
गाँधी और नेहरु के बहुत विरोध किये जाने के बावजूद भी जब यह निकाह संपन्न हो ही गया तब समस्या 'खान' उपनाम को लेकर आ खड़ी हुई। अंततः इस समस्या का हल नेहरु के जनरल सोलिसिटर श्री सप्रू के द्वारा निकाला गया। मिस्टर सप्रू ने एक याचिका और एक शपथ पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करा कर 'खान' उपनाम को 'गाँधी' उपनाम में परिवर्तित करा दिया।इस सत्य को केवल पंडित नेहरु ने ही नहीं अपितु सत्य के उस महान उपासक तथाकथित माहत्मा कहे जाने वाले मोहन दास करम चंद गाँधी ने भी इसे राष्ट्र से छिपा कर सत्य के साथ ही एक बड़ा विश्वासघात कर डाला ।
गांधी उपनाम ही क्यों -वास्तव में फिरोज खान के पिता नवाब खान की पत्नी जन्म से एक पारसी महिला थी जिन्हें इस्लाम में लाकर उनके पिता ने भी उनसे निकाह पढ़ लिया था। बस फिरोज खान की माँ के इसी जन्मजात पारसी शब्द का पल्ला पकड़ लिया गया। पारसी मत में एक उपनाम गैंदी भी है जो रोमन लिपि में पढ़े जाने पर गाँधी जैसा ही लगता है।
और फिर इसी गैंदी उपनाम के आधार पर फिरोज के साथ गाँधी उपनाम को जोड़ कर कांग्रेसियों ने उस मुस्लिम युवक फिरोज खान का परिचय एक पारसी युवक के रूप में बढे ही ढोल-नगाढे के साथ प्रचारित कर दिया। और जो आज भी लगातार बड़ी बेशर्मी के साथ यूँ ही प्रचारित किया जा रहा है।
( प्रस्तुत लेख बोधिसत्व कस्तूरिया के जरिये प्राप्त हुआ है, जिसे गौरव त्रिपाठी ने 'मेरे पिता श्री देवेन्द्र सिंह त्यागी द्वारा लिखित' के तौर पर मेल कर प्रस्तुत किया है. )
वैसे तो हेमा मालिनी और धरमेंदर भी मुसलमान हैं! और अनुवांशिकता को ही धार्मिकता का आधार माना जाए तो ईशा देओल भी!
ReplyDeleteऔर अब तो कांग्रेस पर भरोसा बढ़ गया की वो सिर्फ कहते नहीं करते भी है!
जय कांग्रेस
जनज्वार के विषय में अंदेशा था की जनपक्ष की वेब पत्रिका है! अब सड्की कहानी छाप कर आपने साबित किया है की मौका मिला तो आप एक अपना संकीर्ण रूप अवश्य दिखायेंगे! किसी कमेन्ट की आवश्यकता नहीं मैं दुबारा इधर पलट कर नहीं देख रहा! जिन मित्रों को इसे पढ़ने को कहा था उनसे माफ़ी भी मांग लूँगा! बहुत अच्छे अपनी छिछोरी पत्रकारिता जारी रखें