सरकार बार-बार देश में न्यायायिक सुधार को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की बात दोहरा चुकी है, लेकिन सारा का सारा मामला बजट में आकर अटक जाता है...
संजय स्वदेश
केंद्रीय बजट आने वाला है। मीडिया अपेक्षित बजट पर चर्चा करा रही है। पर इन चर्चाओं में अन्य कई मुद्दों की तरह न्यायापालिका पर खर्च की जाने वाली राशि पर कोई हो-हल्ला नहीं है।
एक अकेले न्यायापालिका ही है जिसने कई मौके पर सरकार की जन अनदेखी कदम पर अंकुश लगाने की दिशा में पहल की। न्यायपालिका के दामन पर कई बार भ्रष्टाचार के दाग लगे। इसके बाद भी आम आदमी उच्च और उच्चतम न्यायालय के प्रति विश्वसनीयता बनी हुई है। पर किसी सरकार ने न्यायपालिका को मजबूत करने के लिए कभी अच्छी खासी बजट की व्यवस्था नहीं की। इसका दर्द भी पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय के एक खंडपीठ के बयान में उभरा।
खंडपीठ ने साफ कहा कि कोई भी सरकार नहीं चाहती कि न्यायपालिका मजबूत हो। यह सही भी है। देश महंगाई और भ्रष्टाचार की आग में जल रहा है। भ्रष्टारियों के मामले में अदालत में लंबित पड़ रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा माइली ने भी बयान दिया था कि केंद्र ने न्यायिक सुधार की दिशा में पहल कर दिया है, जिससे मामलों का जल्द निपटारा होगा। कोई भी केस कोर्ट में तीन साल से ज्यादा नहीं चलेगा और भ्रष्टाचार के मामले में एक साल के अंदर न्याय मिलेगा।
कानून मंत्री के कहे मुताबिक ऐसा हो जाए तो निश्चय ही भ्रष्टाचारियों में खौफ बढ़ेगा। वर्तमान कानून में भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा का प्रावधान नहीं है। त्वरित न्याय की दिशा में फास्ट ट्रैक्क अदालतों के गठन हुए थे। इन पर भी धीरे-धीरे मामलों का बोझ बढ़ता गया। न्याय में देरी की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। मामलों के लंबे खिंचने से उनके हौसले बुलंद है।
सरकार बार-बार देश में न्यायायिक सुधार को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की बात दोहरा चुकी है। लेकिन सारा का सारा मामला बजट में आकर अटक जाता है। जिसको लेकर कभी देश में गंभीर बहस नहीं हुई। स्वतंत्र कृषि बजट,दलित बजट आदि की तो खूब मांग उठती है,पर अदालत की मजबूती के लिए गंभीर चर्चा नहीं होती है। इस ओर ध्यान उच्चतम न्यायालय के खंडपीठ के दर्द भरे बयान के बाद ही गया।
भारी भरकम बजट देकर यदि सरकार न्यायपालिका को मजबूत कर दे तो देश में कई समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाएगा। देशभर के अदालतों के लाखों मामलों में तारिख पर तारिख मिलती जाती है। जनसंख्या और मामलों के अनुपात में देश में अदालतों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती रही है। दरअसल मामलों की बढ़ती संख्या और सरकार की उदासिनता के कारण ही न्यायपालिका का आधारभूत ढांचा ही चरमराने लगा है।
अदालतों की कम संख्या न्यायापालिका की वर्तमान व्यवस्था में निर्धारित अविध में सरकार त्वरित न्याय की गारंटी नहीं दे सकती है। जिन प्रकरणों से मीडिया ने जोरशोर से उठाया वे भी वर्षों तक सुनवाई में झूलती रही है। दूर-दराज में होने वाले अनेक सनसनीखेज प्रकरणों में पीड़ित दशकों से न्याय की आशा लगाये हैं। प्रकरणों के लंबित होने से तो लोगों के जेहन से यह बात ही निकल जाती है कि कभी कोई वैसा प्रकरण भी हुआ था। अनेक लोग तो न्याय की आश लगाये दुनिया से चल बसे। मामला बंद हो गया। कई लोगों को जवानी में लगाई गई गुहार का न्याय बुढ़ापे तक नहीं मिला। लिहाजा, त्वरित न्याय की मांग हमेशा होती रही है।
पिछले दिनों सरकार ने भी त्वरित न्याय आश्वासन तब दिया जब जब देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन की सुगबुगाहट हुई। प्रमुख शहरों में भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली निकली, सीबीसी थॉमस को लेकर सरकार कटघरे में आई। आदर्श सोसायटी घोटाले को लेकर हो हल्ला हुआ। काले धन को स्वदेश वापसी को लेकर सरकार की फजीहत हुई। फिलहाल देश की नजरे वर्ल्ड कप क्रिकेट और आने वाले बजट पर टिकी है।
बहुत कम लोगों के जेहन में बजट में न्यायपालिका की उपेक्षा को लेकर टिस उभर रही होगी। यदि सरकार ने बजट में न्यायपालिका के लिए खजाना खोला तो निश्चय ही न्यायपालिका को मजबूती मिलेगी। लेकिन पिछली सरकार की परंपरा को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि सरकार न्यायापालिका पर मेहरबान होगी। जाहिर है न्यायपालिका की मजबूती सरकार की मनमानी का अंकुश साबित होगा।
दैनिक नवज्योति के कोटा संस्करण से जुड़े संजय स्वदेश देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व पोटर्ल से लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं . उनसे sanjayinmedia@rediffmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
sahi kaha aapne. sarkar ko adalat kee majbuti ka hi dar hai.
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