Jan 31, 2011

बंधुवर परेशान हैं !


बंधुवर वकीलों को गणेश शंकर विद्यार्थी  से लेकर इमरजेन्सी आंदोलन में पत्रकारों का इतिहास- भूगोल बता डाले, लेकिन ये वकील भी...

निखिल आनंद

अबतक सियासी किस्सागोई और बहस का कारण बंधुवर बनते रहे हैं, लेकिन नवलेश की गिरफ्तारी के बाद इन दिनों बंधुवर ही खासे चर्चा में हैं। बंधुवर करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन डरते हैं कि ज्यादा बोले तो अगला नंबर उनका न हो। अब बंधुवर नौकरी बचाएं कि आंदोलन बचाएं, दुविधा में पड़े हैं। हालत ये है की अब तो राह चलते लोग मजाक उड़ाने लगे हैं कि जैसे पत्रकार न हुए कोई अपराध हो गया।

अब कुछ दिनों पहले की ही बात है, बंधुवर हाईकोर्ट गये प्रतिक्रिया लेने कुछ वकीलों की। मामला था सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की निचली अदालतों की कार्यप्रणाली सुधारने के बारे में टिप्पणी की थी। वे प्रतिक्रिया लेते, उससे पहले ही वकीलों ने बंधुवर से पूछ लिया कि भाईजी का क्या हाल है? बंधुवर पहले तो समझे ही नहीं, तो वकील साहब ने कहा-'अरे वही आपके नवलेश भाई। देखिये,खबर आपलोग बहुत छापते हैं। जरा संभल के रहियेगा की अगला नंबर आप ही का न हो।'

 दूसरे वकील साहब ने कहा, 'बंधुवर! मणिपुर की खबर पता है न, 30 दिसम्बर 2010 को एक संपादक की गिरफ्तारी हुई तो मणिपुर में अखबार ही नहीं छपा।'बंधुवर को खबर का पता ही नहीं था, तो भौचक रह गए। वकील साहब ने कहा की 'गूगल' पर जाकर खोजिये मिल जायेगा। बंधुवर फजीहत होते देख कहते हैं- ऐसा नहीं है जनाब, हमारे साथियों ने पूर्णिया और फतुहा में विरोध-प्रदर्शन किया है।

वकील साहब ने कटाक्ष किया-'भाई बिहार की पत्रकारिता की धुरी पटना से हैंडल होती है। ये तो गजब हो गया है कि पटना में नवलेश के मसले पर विरोध और सड़क पर उतरना तो दूर, कोई लिखने को भी तैयार नहीं है। लगता है कि आपलोग भी भोंपू बनते जा रहे हैं। बंधुवर ने वकीलों को गणेश शंकर विद्यार्थी, हजारी प्रसाद द्विवेदी से लेकर इमरजेन्सी आंदोलन में पत्रकारों का इतिहास- भूगोल बता डाला। लेकिन ये वकील भी पता नहीं किस जनम का बैर मिटा रहे थे।

वकीलों ने  बंधुवर को फिर धर-लपेटा, ' भाई! हमारे वकालत में छेद देखने आये हैं। अपने दुकान में देखिये, ये आप ही लोग हैं जनाब जो छोटी कुर्सियों को सत्ता का केन्द्र बनाते हैं। सत्ता से गठजोड़ कर सदन पहुँचने की कला आप ही लोग बेहतर जानते हैं।'

जान बचते न देख बंधुवर थोड़ा  आदर्शवादी होकर कहते हैं- 'अब पहले वाली बात नहीं है, लोकतंत्र के सभी खम्बे नैतिकता के मसले पर सवालों के घेरे में हैं।' वकील साहब गुस्साए-'अब अपना छेद छुपाने के लिए सबको मत लपेटिये। मुखौटे के पीछे क्या है, सब पता है । सत्ता की चाटुकारिता और चापलूसी से गांवों में ठेकेदारी कराने के किस्से भी मशहूर हैं। नीरा राडिया के बहाने तो दलाली में शामिल आपके मीडिया के मठाधीशों  के चेहरे पहले ही बेनकाब हो चुके है।'

बाप-रे-बाप! जिंदगी में इतनी फजीहत किसी लंगोटिया दोस्त और खानदानी दुश्मन ने भी बंधुवर की नहीं की थी। वकीलों के व्यंग्य-बाण से घायल बंधुवर सोचने लगे, नवलेश के मसले पर वाकई सब चुप हैं। एक दिन बंधुवर ने जोश में आकर अपने सहयोगियों को फोन किया कि 'भाई ये तो गजब हो गया है। अब तो पत्रकारों की भी शामत आ गई है। हमें कुछ करना चाहिये, सो कल 2 बजे बैठक में आइयेगा। नवलेश के मसले पर आंदोलन खड़ा करना है।' बंधुवर पहुँचे तो बैठक स्थल पर अकेले पहले आदमी थे। दो घंटे बैठे तो कुल जमा चार  लोग पहुँचे। अब बंधुवर ने थककर कहा कि 'चलिये अपने बड़े श्रमजीवी बंधुओं से मुलाकात कर एक प्रेस रिलीज निकालते हैं।'

तब तक सीबीआई इन्क्वारी की खबर आई तो बड़े बंधु ने फोन किया  'बंधुवर अब खुशी मनाईये, आपकी बात मान ली गई है।' बंधुवर ने पूछा कौन सी भईया।'तो महोदय ने खुशी से उछलते हुए कहा 'बंधुवर नीतीशजी ने सीबीआई इन्क्वारी की घोषणा कर दी है। अब तो आप खुश हैं न... अब तो प्रेस रिलीज निकालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।'

फोन कट चुका था और बंधुवर हाथ में रिसीवर पकड़कर उसे झुनझुने की तरह हिला रहे थे।


(लेखक निखिल आनंद टीवी पत्रकार हैं. फिलहाल 'इंडिया न्‍यूज बिहार' के राजनीतिक संपादक  हैं. उनसे nikhil.anand20@gmail.com   पर संपर्क किया जा सकता है .) 



2 comments:

  1. umda hai. bechare naukari bachane men hi safal hote rahenge aur andolan japte rahenge.

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  2. यही गति पत्रकारों की. अच्छा लिखा है

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