स्वाभिमान टाइम्स की इस प्रवृत्ति को परखने के लिए उसके विज्ञप्ति को देखा जा सकता है जिसमें लिखा है, '...बड़ी-बड़ी हस्तियों से संपर्क रखने वाले संपादकीय सहयोगियों की जरूरत है...
दिल्ली से निकलने वाले अखबार स्वाभिमान टाइम्स ने 27 जनवरी को पहले पन्ने पर वामपंथियों को अपराधी और लुटेरे बताते हुए खबर छापी। खबर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रिय मत्री प्रणव मुखर्जी के कथित बयान के हवाले से कि वामपंथी अपराधी और लुटेरे होते हैं,एक पूरी बहस करने की कोशिश की गई है। अखबार के रिपोर्टर राम प्रकाश त्रिपाठी ने कई लोगों के बयानों के साथ वामपंथियों को अपराधी और लुटेरे पुष्ट करने की कोशिश की है।
इस खबर पर आपत्ती करने और गंभीरता से इसलिए सोचने की जरुरत है कि अव्वल तो प्रणव मुखर्जी का ऐसा कोई बयान देश भर के किसी भी जनसंचार माध्यम में देखने को नहीं मिला सिवाय स्वाभिमान टाइम्स के, जो कि एक नया अखबार है और जिसका सर्कुलेशन दिल्ली और एनसीआर के बाहर कहीं नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस खबर को तथ्यों की पुष्टि न कर पाने का रिस्क उठाते हुए भी इस अखबार ने खबर को अपने पहले पन्ने पर क्यों छाप दिया।
दरअसल अब मीडिया की स्वाभाविक परिणति हो गयी है कि वो अपने माध्यम से सरकार और उसकी नीतियों से नत्थी करके अपने आगे के हितों को और सुरक्षित करे। जिससे सरकारी अमले से कम रिश्वत में अपना काम निकलवा सके। यह काम बड़े अखबार रोज-ब-रोज खूब करते हैं पर बहुत ही शातिर परिपक्वता के साथ। क्योंकि उनके रिपोर्टर इस विधा के पुराने खिलाड़ी होते हैं और अपनी इसी विधा की मेरिट पर आज वे देश के कई राष्ट्रीय अखबारों में संपादक भी हो गए हैं।
रामप्रकाश त्रिपाठी भी इसी विधा के प्रशिक्षु लगते हैं। जिन्होंने इक्सक्लूसिव खबर बनाने के लिए एक पूरे झूठे बयान की ही कहानी ही गढ़ दी जिसे न तो किसी ने कहा था न किसी ने सुना था। दरअसल इस तरह की मानसिकता जल्दी से ज्यादा कमाई के चूहा दौड़ में शामिल पत्रकारों में तेजी से बढ़ती जा रही है. जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान पत्रकारिता ओर खबरों को हो रही है.
स्वाभिमान टाइम्स की इस प्रवृत्ति को परखने के लिए उसके संपादक निर्मलेन्दु साहा की एक पोर्टल पर विज्ञप्ति को देखा जा सकता है जिसमें उन्होंने लिखा -‘‘नया रूप, नई सज्जा, नए तेवर और कलेवर के साथ राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्र ‘स्वाभिमान टाइम्स’ को योग्य, कुशल, अनुभवी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संपर्क रखने वाले संपादकीय सहयोगियों (उप-संपादकों,वरिष्ठ उप-संपादकों,मुख्य उप-संपादकों) के अलावा, संवाददाताओं और फोटो पत्रकारों की जरूरत है।’
इन पंक्तियों से इस रिपोर्ट की सचाई को समझा जा सकता है कि किस तरह ऊंचे संपर्क वाले रिपोर्टर ने ऊंचे संपर्क वाले संपादक के लिए खबर लिखी होगी.
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी के मानिटरिंग सेल द्वारा जारी।
चार महीने अस्तिव में आया अखबार "स्वाभिमान टाइम्स" अब "हमारा महानगर" बनने जा
ReplyDeleteरहा है. लगता है लौन्चिंग टीम के पत्रकारों को निकालने में नाकाम रहे सम्पादक
निर्मलेंदु साहा और स्वाभिमान टाइम्स के मालिक बनवारी लाल कुशवाहा ने अब
स्वाभिमान टाइम्स को हमारा महानगर की तर्ज़ पर बंद करने का निर्णय ले लिया है.
अभी १० दिन पहले ही निर्मलेंदु सहा ने पुराने पत्रकारों को निकालने की धमकी दी
थी,जिसके विरोध में अखबार का दफ्तर अखाडा बन गयाऔर पुराने पत्रकारों ने ताल थोक
दी थी की हिम्मत है तो निकाल कर दिखाओ. उस समय तो निर्मलेंदु सहा और बनवारी लाल
खांमोश बैठ गए लेकिन "हमारा महानगर" से प्रेरणा लेते हुए आज निर्मलेंदु सहा ने
अखबार को बंद करने की कोशिश की और पुराने पत्रकारों को शाम 5 बजे ही घर जाने को
कहा. पहले तो पत्रकार बात समझे नहीं लेकिन जैसे ही शाम ६ बजे निर्मलेंदु ने
दफ्तर से कुर्सियां और कम्पूटर निकलवाने शुरू किये तो पुराने पत्रकारों को खबर
होते ही सभी वहां इकट्ठे हो गए और मामला हाथा पायी तक पहुँच गया.
समाचार लिखे जाने तक निर्मलेंदु बैक फुट पर आ गए थे और मजबूर होकर उन्हें सामान
दफ्तर में वापस रखवाना पडा था. अब देखते हैं कि सुबह होने पर क्या होता है.