माओवादी पार्टी के महासचिव गणपति के साक्षात्कार की अंतिम किस्त और भाग-4
पार्टी मुख्यतः जनता से सहयोग लेती है और हमारे गुरिल्ला जोन में व्यापारियों से फंड लेती है। हमारे पास एक साफ जनवित्तीय नीति है। क्षेत्र में विभिन्न तरीके का काम करने वाले ठेकेदारों से हमारी पार्टी वाजिब लेवी भी लेती है। इस फंड का एक बड़ा हिस्सा जनसत्ता निकायों द्वारा जनता के कल्याण पर खर्च होता है...गणपति, इस अंतिम किस्त के आलावा भाग-१,भाग-२ और भाग-३ के क्रम में छपे गणपति के ये सभी साक्षात्कार हिंदी में पहली बार सिर्फ जनज्वार पर ही प्रकाशित हुए हैं.गणपति के भेजे जवाबों का अनुवाद जनज्वार टीम ने किया है.बाकी साक्षात्कारों को पढ़ने के लिए कर्सर नीचे ले जाएँ...
हाल ही में गृह मंत्रालय ने आरोप लगाया कि आप विदेशों से विशेषकर चीन,म्यांमार और बंगलादेश से हथियार और पैसे प्राप्त कर रहे हैं। वे यह भी आरोप लगा रहे हैं कि उत्तर पूर्व के अलगाववादी संगठनों से आपको सहायता मिल रही है, इस बारे में आपका क्या स्पष्टीकरण है?
हमारी पार्टी को जनता से अलग-थलग करने और उसे एक आतंकवादी और गद्दार संगठन के रूप में चित्रित करने के लिए शासक वर्ग द्वारा हमारे खिलाफ जो मनोवैज्ञानिक युद्ध चलाया जा रहा है, यह दोषारोपण उसी का हिस्सा है। हमारे हथियार मुख्यतः देशी हैं। सभी हथियार हमने मुख्यतः सरकारी सशस्त्र बलों पर हमला करके जब्त किये हैं। दुश्मन यह भलीभांति जानता है कि हथियारों का हमारा मुख्य स्रोत यही है।
हमारी पार्टी विभिन्न राष्ट्रीयता के संघर्षों का समर्थन करती है जो राष्ट्रीयता की मुक्ति के लिए और आत्मनिर्णय के अधिकार चलाये जा रहे हैं। इन संघर्षों का नेतृत्व करने वाले कुछ संगठनों के साथ हमारे राजनीतिक संबंध हैं। हमने अपनी पत्रिकाओं में भी इसके बारे में वक्तव्य जारी किये हैं। व्यापक जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली एक क्रांतिकारी राजनीतिक पार्टी के रूप में और भविष्य में सत्ता में आने के बाद इस देश के लिए पूरी तरह जिम्मेदार सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी के रूप में विश्व में विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देशों के साथ पंचशील सिद्धांत के आधार पर संबंध स्थापित करेंगे।
मौजुदा समय में और भविष्य में भी विश्व के विभिन्न संगठनों और पार्टियों के साथ हम विश्व क्रांति के हित में संबंधों को बनायेंगे। पार्टी कार्यक्रम के जरिये बहुत पहले ही इस नीति की घोषणा कर दी गयी है। जनयुद्ध की जरूरतों को पूरा करने के लिए हम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हथियार भी खरीदेंगे। हथियारों का यह हमारा तीसरा और अंतिम स्रोत है। उन देशों से हथियार और पैसा प्राप्त करने के बारे में चिदम्बरम और जीके पिल्लई ने जो दोषारोपण किया है, वह निराधार बकवास है।
वस्तुतः भारत सरकार ही क्रांतिकारी आंदोलन,राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों और लोकतांत्रिक जनांदोलनों को कुचलने के लिए अमेरिका, रूस, फ्रांस जैसे साम्राज्यवादी देशों तथा इजरायल और दूसरे देशों से हथियार, युद्ध सामग्री और आधुनिक तकनीक खरीद रही है। इतनी बड़ी मात्रा में युद्ध सामग्री के साथ भारतीय विस्तारवाद दक्षिण एशियाई देशों के लिए खतरा बनता जा रहा है और यह पाकिस्तान के साथ हथियारों की दौड़ को भी बढ़ावा दे रहा है। क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कामरेडों को निशाना बनाने और उनकी हत्या करने का प्रशिक्षण लेने के लिए यहां से अफसरों को कुख्यात गुप्तचर एजेंसियों जैसे मोसाद और सीआईए के पास भेजा जा रहा है। शासक वर्ग और उनकी सेना के उच्च अधिकारी जनता के पैसों को नष्ट कर रहे हैं। विभिन्न सौदों में दलाली के बतौर अरबों रुपये अपनी झोली में भर रहे हैं और देश से गद्दारी कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इसकी निंदा करनी चाहिए और इस पर सवाल उठाना चाहिए।
माओवादी नेतृत्व को भारी मात्रा में खनन उद्योगों और दूसरी कारपोरेट कंपनियों से फंड मिल रहा है, इस आरोप पर आपकी क्या सफाई देंगे?
यह भी सरकार द्वारा हमारे बारे में चलाये जा रहे गंदे प्रचार का हिस्सा है। वे यहां तक कहते हैं कि हम सालाना पांच हजार करोड़ रुपये इकट्ठा कर रहे हैं। जीके पिल्लई, पी चिदम्बरम और प्रकाश सिंह लगातार ‘वसूली’ की बात कर रहे हैं। शायद वे दलाली के रूप में हजारों करोड़ रुपये देखने के आदी हो चुके हैं और इसी आदत से मजबूर होकर वे हमारे धन संग्रह को भी इसी अर्थ में देख रहे हैं। जितनी राशि इकट्ठा करने का आरोप हम पर लगता है उसका एक प्रतिशत भी इकट्ठा कर पाते तो हम जनता के लिए बहुत कुछ कर सकते थे।
हमारी पार्टी मुख्यतः जनता से सहयोग लेती है और हमारे गुरिल्ला जोन में व्यापारियों से फंड लेती है। हमारे पास एक साफ जनवित्तीय नीति है। हमारे क्षेत्र में विभिन्न तरीके का काम करने वाले ठेकेदारों से हमारी पार्टी वाजिब लेवी भी लेती है। इस फंड का एक बड़ा हिस्सा जनसत्ता निकायों द्वारा जनता के कल्याण पर खर्च होता है।
जहां तक खनन कंपनियों का सवाल है, हमारी जनता हरसंभव तरीके से उनको हमारे मजबूत क्षेत्र में आने से रोकने के लिए लड़ रही है। हमारी पार्टी इन संघर्षों का नेतृत्व कर रही है। अतः स्पष्ट है कि इन कंपनियों से फंड इकट्ठा करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। पुलिस अफसरों, सरकारी अधिकारियों और शासकवर्गीय पार्टियों के लोगों को जो गैरकानूनी तरीके से विभिन्न संगठनों से करोड़ों रुपये इकट्ठा करते हैं,दलाली खाते हैं और अपने पैसों को स्विस बैंक में जमा करते हैं,हमारे खिलाफ उंगली उठाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
ईराक और अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के संदर्भ में,ओबामा की नीति के बारे में,भारत-अमेरिका परमाणु डील के बारे में और हाल में पास हुए न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल के बारे में आपका क्या मूल्यांकन है? ओबामा की भारत यात्रा को आप कैसे देखते हैं?
ईराक युद्ध को जारी रखने के लिए अमेरिका को सैकड़ों बिलियन डालर खर्च करने पड़े जिससे उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी। इस युद्ध के दलदल में फंसने के कारण हजारों अमेरिकी सैनिक मारे गये हैं। बुश ने बहुत घमंड से कहा था कि वह कुछ महीनों में ही परिस्थितियों पर नियंत्रण पा लेगा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। उसकी काफी बेइज्जती हुई। इन कारणों से ओबामा की तो बात ही छोड़िये,बुश को भी बहुत पहले ही सेना वापसी की बात करनी पड़ी थी।
अमेरिका का ईराक पर हमला मानवता के प्रति एक जघन्य अपराध है। वस्तुतः अमेरिका ने वहां कोई बहादुराना युद्ध नहीं लड़ा। अमेरिका एक बहुत बड़ी ताकत है, लेकिन उसने वहां क्या किया? ईराकी शहरों-कस्बों पर लाखों टन बम बरसाये, लाखों इराकियों को मार डाला। वहां तबाही मचायी और दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता, उसकी समृद्ध विरासत, संस्कृति और समाज को नष्ट कर डाला। अतः जिस दिन से ईराक पर कब्जा किया, उसी दिन से अमेरिका को ईराक की मुक्तिकामी जनता, देशभक्तों और विद्रोहियों के प्रतिरोधों का सामना करना पड़ा।
अमेरिकी साम्राज्यवाद ने सद्दाम द्वारा बनाये राज्य सेना, न्याय व्यवस्था, वैधानिक निकाय और प्रशासनिक मशीनरी को पूरी तरह नष्ट कर डाला। अपनी कठपुतलियों को सामने रखकर वह नवऔपनिवेशिक राज्य बनाने में जुट गया। इसने कठपुतली ताकतों के सथ एक नयी शासन व्यवस्था बनायी। इसने सद्दाम और उसके अनुयायियों को तो नष्ट कर दिया,लेकिन जनता और अमेरिका की कठपुतलियों के बीच पैदा हो चुके नये अंतरविरोधों को हल नहीं कर सका। जन प्रतिरोधों को दबाने में भी वे नाकामयाब रहे। ओबामा ने जो सेना वापस बुलाई है उसकी संख्या अभी ईराक में मौजूद संख्या से कम है। हाल ही में जब ईराकी राष्ट्रीय बलों ने बड़े हमले को अंजाम दिया तब अमेरिकी सेना उसकी मदद के लिए ईराक की बैरक से तुरंत बाहर आ गयी।
ओबामा जब सत्ता में आये तो उन्होंने 30 हजार अतिरिक्त सेना को अफगानिस्तान भेजा। अफगान जनता के भीषण विरोध के बीच चुनाव का पाखंड आयोजित किया और अमेरिका की कठपुतली हामिद करजई को जिताया गया। अमेरिकी बमबारी में मरने वाले 90 प्रतिशत लोग सामान्य नागरिक हैं। अमेरिकी नेतृत्व में नाटों की सेना अंधाधुंध तरीके से अफगान जनता को मार रही है। अमेरिकी अत्याचार इतना भयानक है कि उसकी कठपुतली करजई को अपना मुंह खोलने पर बाध्य होना पड़ा। पश्चिमी पाकिस्तान में ड्रोन हमले में वे सैकड़ों आम लोगों को मार रहे हैं।
करजई की सत्ता शहरों तक सीमित है। अफगान जनता अपने पूरे इतिहास में किसी भी घुसपैठिये के शासन के आगे नहीं झुकी है। सारी मुसीबतों का सामना करते हुए जनता ने अपनी जमीन पर से साम्राज्यवादियों और कब्जा करने वालों को भगा दिया है। ठीक रूसी साम्राज्यवादियों की तरह अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए भी अफगान राजनयिक कब्र साबित होगी। ओबामा भी बुश की ही राजनयिक नीतियों को मध्य और दक्षिण एशिया में लागू कर रहे हैं। चीन को घेरने, अफगानिस्तान में स्थायी बेस बनाने और कैस्पियन समुद्री गैस पर नियंत्रण करके विश्व पर आधिपत्य जमाने की अमेरिकी रणनीति का असफल होना तय है।
यूपीए प्रथम काल के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जनता के कड़े विरोध को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका के साथ सिविलियन न्यूक्लियर डील को पास करके यह सिद्ध कर दिया कि वह अमेरिकी साम्राज्यवादियों का एक विश्वस्त सेवक हैं। संसद द्वारा हाल में पास किया गया न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल और कुछ नहीं,इसी चाकरी की निरंतरता है। भोपाल गैस कांड में हजारों लोगों की भयानक तरीके से जान गयी और भोपाल के हजारों लोगों के लिए यह एक बड़ी दुर्घटना साबित हुई। भारत की जनता के दिलादिमाग में यह जख्म आज भी निरंतर टीस रहा है और अब यूपीए सरकार ने बेशर्मी के साथ इस बिल को तैयार करने की जुर्रत की है जिसमें अनेक ऐसे ‘भोपाल की संभावना बढ़ गयी है।
इस बिल ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि यदि ऐसे जनसंहार होते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार विदेशी पूंजीपतियों को न्यूनतम जिम्मेदारी से भी मुक्त कर दिया जाये। (जैसा कि वारेन एण्डरसन और डो केमिकल के मामले में हुआ।)जहां भारतीय जनता पार्टी ने यूपीए सरकार को इस बिल को पास कराने में मदद की वहीं अपने आपको कम्युनिस्ट कहने वाली वाम पार्टियों ने एक बार फिर अपना समझौतावादी चरित्र बेनकाब किया। उन्होंने इस विश्वासघाती बिल की दृढ़तापूर्वक मुखालफत नहीं की और इसके खिलाफ जनांदोलन शुरू नहीं किया। ओबामा के आने से पहले इस बिल को पास कराने में मनमोहन सिंह ने कड़ी मेहनत की।
अमेरिकी साम्राज्यवाद पूरे विश्व में गरीब देशों को लूट रहा है। शोषित राष्ट्रीयताओं का दमन कर रहा है और कुख्यात ठगों ओर तानाशाहों को सत्ता में बिठा रहा है। जो देश उसका सहयोग नहीं कर रहे,उन्हें धमका रहा है। किसी भी हद तक जाकर तेल-खनिज और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों और स्रोतों को लूट रहा है। अतः यह दुनिया की जनता का दुश्मन नंबर एक है। इसके नेता बराक ओबामा से समूची मानवता को घृणा करनी चाहिए। इसके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश ने पूरी दुनिया से अपने लिए घृणा इकट्ठा की,तब अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने बराक ओबामा को इस योजना के साथ पेश किया कि उनके रंग से जनता को धोखा दिया जा सकता है। हालांकि ओबामा बुश की नीतियों का विरोध करते रहे हैं,लेकिन व्हाइट हाउस में घुसने के बाद उनके द्वारा लिये गये सभी निर्णय और नीतियां बुश प्रशासन के अंतिम दिनों तक के निर्णयों और नीतियों की निरंतरता ही है।
वास्तव में जॉर्ज बुश और बराक ओबामा के बीच का अंतर उनके रंग और उनकी पार्टियों के नाम में ही है। विश्व की जनता,शोषित राष्ट्रीयताओं और देश तथा अमेरिका के मजदूर वर्ग के दमन-उत्पीड़न के मामले में इनके बीच कोई फर्क नहीं है। इस तथ्य से बिल्कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस काले राष्ट्रपति को कुख्यात सफेद अमेरिकी साम्राज्यवादी गिद्धों द्वारा चुना गया है।
भारत के दलाल शासक वर्ग ओबामा का स्वागत पलक-पावड़े बिछाकर कर रहे हैं। ओबामा के स्वागत का मतलब संप्रभुता, स्वतंत्रता, स्वाधीनता, आत्मनिर्भरता, शांति, न्याय और लोकतंत्र के मूल्यों से गद्दारी है। अपने प्यारे देश में ओबामा को आमंत्रित करने का मतलब इसकी युद्धपरक आक्रमणकारी शाषक और आधिपत्य वाली नीतियों की चाकरी है। अतः भाकपा (माओवादी)की केंद्रीय कमेटी की तरफ से मैं समूची जनता,क्रांतिकारी और जनवादी संगठनों तथा भारत की सभी देशभक्त ताकतों का आह्वान करता हूं कि वे विभिन्न तरीकों से अपना विरोध दर्ज करें और एक स्वर में जोरदार तरीके से ‘ओबामा वापस जाओ’ का नारा लगायें।
अंत में, 2007 में हुई एकता कांग्रेस के बाद सफलता और असफलता का मूल्यांकन आप कैसे करते हैं?
जनवरी 2007 में हमारी एकता कांग्रेस हुई। इसने मुख्य, तात्कालिक और केंद्रीय कार्यभारों को हाथ में लिया-पूरे देश में जनयुद्ध को तेज करना, गुरिल्ला युद्ध को चलायमान युद्ध में बदलना और आधार क्षेत्र की स्थापना के उद्देश्य से पीएलजीए को पीएलए (नियमित सेना) में बदलना। इसी के तहत हमारी कांग्रेस ने हमें कई कार्यभार दिये। जैसे कि जनसंघर्षों को तेज करना, आंदोलन को फैलाना, संयुक्त मोर्चा बनाना और उसे मजबूत करना। पिछले साढ़े तीन सालों में हमारी समूची पार्टी अपने आपको जनता के बीच मजबूती से जमाते हुए हरसंभव तरीके से इन कार्यभारों को पूरा करने के लिए लड़ी।
इस प्रक्रिया में हमें कुछ महत्वपूर्ण सफलतायें हासिल हुईं। हमें कुछ गंभीर असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। हमें कई मूल्यवान अनुभव हासिल हुए। हमने कुछ मजबूत सबक सीखे। कुल मिलाकर जब हम अपनी सफलताओं की ओर देखते हैं तो हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि इन सफलताओं के द्वारा भारतीय क्रांति को विजयपथ पर आगे बढ़ाने के लिए जरूरी बुनियाद अधिक मजबूत हुई है।
पिछले साढ़े तीन वर्षों में हमारे देश के कई हिस्सों में हमारी पार्टी के नेतृत्व में जनसंघर्षों का विस्फोट हुआ है। विशेषकर दण्डकारण्य, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में जनता और विदेशी कंपनियों द्वारा की जा रही उनके संसाधनों की लूट के खिलाफ और विशेष तौर पर आदिवासियों के विस्थापन के खिलाफ व्यापक स्तर के संघर्षों में शामिल हुई है। भारतीय शासक वर्ग ने सलवा जुडूम,सेन्द्रा,नागरिक सुरक्षा समिति और हरमदवाहिनी जैसे गुण्डा गैंग खड़े कर लिये हैं और जनता पर भयानक हिंसा और अत्याचार बरपा रहे हैं। इसके बावजूद जनता हमारी पार्टी के नेतृत्व में और पीएलजीए के समर्थन से बहादुराना संघर्ष चला रही है।
कलिंगनगर, सिंगुर, नंदीग्राम, लालगढ़, नारायण पटना, दुमका, पुलावरम, लोहानदिगुदा, रावघाट, पलमाड़ और कई दूसरी जगहों की जनता बड़े पैमाने पर लामबंद हुई है और संघर्षों में शामिल हुई है। नंदीग्राम,लालगढ़ और नारायण पटना जनसंघर्षों के नये मॉडल के रूप में सामने आये हैं। राजनीतिक मुद्दों पर हमने जिन विभिन्न कार्यक्रमों को अपने हाथ में लिया उसमें हमने लाखों जनता को लामबंद किया। विभिन्न राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनाव का बहिष्कार करने वाले हमारे राजनीतिक कार्यक्रमों का जनता ने बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया। हमारे आंदोलन के इलाके में बड़ी संख्या में जनता ने चुनावों का बहिष्कार किया और जन राजनीतिक सत्ता की जरूरत को मजबूती के साथ स्थापित किया।
वर्ष 2009के मध्य से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय द्वारा चलाये जा रहे आपरेशन ग्रीनहंट के तहत जनता का नरसंहार किया गया है। इसके बावजूद दण्डकारण्य, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में हजारों की संख्या में शोषित जनता,विशेषकर आदिवासियों और महिलाओं ने राज्य दमन के खिलाफ विभिन्न कार्यक्रमों और राजनीतिक मुद्दों पर हुए कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की।
दूसरी महत्वपूर्ण विजय साम्राज्यवादियों के सहयोग से चलने वाले सामंती दलाल,नौकरशाह बुर्जुआ राज्य व्यवस्था के विकल्प के रूप में जनता की जनवादी राजनीतिक सत्ता का प्राथमिक स्तर पर विकास और उसकी मजबूती तथा फैलाव है। दण्डकारण्य और बिहार-झारखण्ड के हमारे मुख्य गुरिल्ला जोनों में क्रांतिकारी जन कमेटी (आरपीसी) गठित हो चुकी है और अपना काम कर रही है। वे मजबूत हो रही हैं और उनका फैलाव हो रहा है। हमारे देश के राजनीतिक परिदृश्य पर अभी-अभी आये लालगढ़ और नारायणपटनम में दुश्मन के क्रूर हमलों के बीच में जनता के विकास को केंद्र में रखते हुए प्राथमिक स्तर पर जनसत्ता के जो निकाय गठित हुए हैं,उन्होंने हमारे देश की जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा है।
उन्होंने स्थानीय शोषक वर्गों के शासन को उखाड़ फेंका है और प्राथमिक स्तर पर जन शासन चला रहे हैं। ये राजनीतिक सत्ता के निकाय, जनता के वास्तविक विकास के उद्देश्य के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, जनव्यवस्था और विकास के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। देशभर की शोषित जनता,जनवादी संगठनों और बुद्धिजीवियों के लिए ये महान प्रेरणा के स्रोत हैं। ये जनता की सही वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में सामने आ रहे हैं। शोषकों के झूठे विकास के मॉडल के उत्तर के रूप में ये नये राजनीतिक सत्ता निकाय जनता के सच्चे विकास के मॉडल के रूप में सामने आ रहे हैं।
पिछले साढ़े तीन सालों में गुरिल्ला युद्ध तेज हुआ है और उच्चतर स्तर पर जारी है। शोषक वर्गों के हितों को पूरा करने के लिए जनता पर अंतहीन अत्याचार और हिंसा करने वाली पुलिस,अर्धसैनिक बल और कमांडो बलों पर हमारे जन गुरिल्लाओं ने बहादुराना हमले किये हैं। हमारे गुरिल्लों ने भाड़े की इन सेनाओं के सैकड़ों लोगों को खत्म किया है। इनसे सैकड़ों आधुनिक हथियार जब्त करते हुए अपने आयुध भंडार को समृद्ध किया है।
हमारे नेतृत्व में चलने वाले गुरिल्ला युद्ध ने जनता को प्रेरित किया है और उसे आत्मबल प्रदान किया है। प्राथमिक स्तर पर विकसित हो रही जन राजनीतिक सत्ता की रक्षा करते हुए और जनता के जीवन एवं उसकी संपत्ति की रक्षा करते हुए हमारी जनसेना जनता के वास्तविक रक्षक के रूप में उभरकर सामने आयी है। यद्यपि दुश्मन कई दमनात्मक अभियान चला रहा है, लाखों पुलिस और अर्धसैनिक बलों को नियुक्त कर कारपेट सुरक्षा लागू कर रहा है और लगातार हमले कर रहा है,इसके बावजूद जनता के सक्रिय सहयोग से हमारी पीएलजीए और अधिक तेजी से विकसित हो रही है।
विशेष तौर से जब हम एकता कांग्रेस के बाद के समय पर नजर डालते हैं तो देश के राजनीतिक परिदृश्य पर एक बड़े वैकल्पिक राजनीतिक ताकत के रूप में हमारी पार्टी का विकास एक दूसरी महत्वपूर्ण सफलता है। जनता इस बात को ज्यादा से ज्यादा समझने लगी है कि हमारी राजनीतिक लाइन सही है। आज देश के सामने जो ढेर सारी समस्यायें हैं, उसके बारे में हमारी अवस्थिति और समाधानों के बारे में हमारे देश के नागरिक ज्यादा से ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। पिछले 63वर्षों से जनता विभिन्न शोषक-शासक वर्गीय पार्टियों,हिंदू धार्मिक अंधराष्ट्रवादियों और स्वयं को वाम पार्टी कहने वाले संशोधनवादियों की दीवालिया राजनीति से निराश हो चुकी है। अब यह स्पष्ट देखा सकता है कि जनता पहले की तुलना में कहीं तेजी के साथ माओवादियों की राजनीति से प्रभावित हो रही है और उसके करीब आ रही है। हमें विश्वास है कि इससे भविष्य में एक मजबूत व्यापक और देशव्यापी संयुक्त मोर्चे का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
इन सफलताओं के साथ हमें कुछ गंभीर असफलताओं और नुकसानों का भी सामना करना पड़ा है। दुश्मन के हमले में नेतृत्वकारी ताकतों को खोने से हमें गंभीर नुकसान हुआ है। हमारी पार्टी कांग्रेस के बाद बड़ी संख्या में हमारी केंद्रीय कमेटी के सदस्य दुश्मन द्वारा पकड़े गये हैं और या तो उन्हें झूठी मुठभेड़ों में मार दिया गया है या फिर जेलों में डाल दिया गया है। अपना लक्ष्य प्राप्त करने में हमारे सामने यह एक बड़ा अवरोध है। निस्संदेह भारतीय इंकलाब पर इसका गहरा असर पड़ा है।
दुश्मन के गंभीर आक्रमण के कारण इसे अच्छी तरह से समझने में हमारी असफलता के कारण और उचित प्रतिकार्यनीति बनाकर इसे लागू करने में हमारी असफलता के कारण हम कुछ नीतियों में कमजोर पड़े और कुछ जगहों से हमें पीछे हटना पड़ा।
इसी बीच हमारे देश में मजदूर वर्ग की जीवन स्थितियां लगातार खराब होती जा रही हैं। किसान अपने ऊपर सामंती और साम्राज्यवादी शोषकों द्वारा जारी नीतियों के कारण लगातार निर्धन होता जा रहा है और लाखों की संख्या में आत्महत्यायें कर रहा है। नई नीतियों के नाम पर शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, रक्षा, यातायात, मीडिया, व्यापार आदि क्षेत्रों में विदेशी पूंजी की घुसपैठ काफी बढ़ चुकी है। साम्राज्यवादियों का शोषण, दमन और नियंत्रण 1947 के बाद से अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ चुका है।
कश्मीर और उत्तर पूर्व की जनता,जो अलग होने के अधिकार सहित आत्मनिर्णय के अधिकार तथा अपनी राष्ट्रीय मुक्ति के लिए लड़ रही है,पर भी भीषण दमन जारी है। अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर भारतीय विस्तारवाद जिन नीतियों का अनुसरण कर रहा है उसके कारण दक्षिण एशिया की जनता उससे अत्यधिक नफरत करती है। दलित, आदिवासी, महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों का सामाजिक रूप से सबसे दमित तबका आज विभिन्न तरह की समस्यायें झेल रहा हे।
जब हम इन सारी समस्याओं का आकलन करते हैं तो यह ज्यादा से ज्यादा साफ होता जाता है कि हमारे देश में सभी बुनियादी अंतरविरोध ज्यादा से ज्यादा तीखे होते जा रहे हैं। जैसे सामंतवाद और व्यापक जनता के बीच का अंतरविरोध, साम्राज्यवाद और भारतीय जनता के बीच का अंतरविरोध, पूंजी और श्रम के बीच का अंतरविरोध और शासक वर्गों के बीच का अंतरविरोध। हमारी पार्टी जनता की समस्याओं को उठाते हुए लगातार आगे बढ़ रही है। हमारी राजनीतिक लाइन इन समस्याओं के समाधान पर जोर देती है।
हमारा विश्वास है कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन, आधार क्षेत्र की स्थापना के उद्देश्य से हमारी जनसेना को मजबूत करते हुए और सर्वहारा के नेतृत्व में इन सारी ताकतों को संयुक्त मोर्चे में गठित करते हुए, हमारी पार्टी के नेतृत्व में चलाये जा रहे जनयुद्ध के रास्ते से ही विजय पथ पर आगे बढ़ेगा। हमारा यह भी विश्वास है कि इसका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि यह प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ेगी। कुल मिलाकर हम भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के भविष्य के प्रति बहुत आशान्वित हैं।
हमारी पार्टी हमारे देश की शोषित जनता के लिए आशा की मशाल का काम कर रही है। इस पतनशील और भ्रष्ट व्यवस्था के बीच हमारी पार्टी एक चमकदार तारे की तरह चमक रही है। हम यह नहीं कहते कि हमारे पास विश्व क्रांति और भारतीय क्रांति में मौजूद जटिलताओं का पहले से तैयार समाधान मौजूद है,लेकिन हमारे पास एक सही राजनीतिक लाइन है। हमें विश्वास है कि हम समाजवाद और साम्यवाद की तरफ पहले कदम के रूप में नवजनवादी क्रांति को सफलतापूर्वक संपन्न करने की प्रक्रिया में इन सभी समस्याओं को हल कर सकते हैं। हमारा विश्वास है कि समाज के सामने मौजूद सभी समस्याओं को माक्र्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद की रोशनी में हल किया जा सकता है।
(समाप्त)
जनज्वार जरूरी सवालों को शिद्दत से उठा रहा है, इसके लिए पूरी टीम को शुभकामनाएं. मित्र राजेश आर्या जी को धन्यवाद जिन्होंने जनज्वार का पाठक बनाया. वे लगातार मुझे लिंक भेजते रहे और सक्रिय रूप से जुडऩे को भी प्रेरित किया, लेकिन अपनी 'बेकारÓ व्यस्तताओं की वजह से मैं अब तक सिर्फ पाठक के तौर पर ही रहा.
ReplyDeleteगणपति का साक्षात्कार पढऩे के बाद मैं जनज्वार टीम को एक बार फिर धन्यवाद बोले बगैर नहीं रह सका. रियली थैंक्स...
sakshtkar ke sabhi bhag padhne ke baad laga ki janjwar ko thanks bol dun. dhanyvaad janjwar team.
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