Jan 3, 2011

असंभव है दमन-दबाव और वार्ता एक साथ - गणपति

भाग- 1

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति ने पत्रकारों के भेजे सवालों का लिखित जवाब दिया है। जवाब अंग्रेजी में और विस्तृत होने के नाते हमें अपने पाठकों तक पहुंचाने में विलंब हुआ, जिसके लिए हम क्षमा चाहेंगे। गणपति के पास पत्रकारों के सवाल दो क्रम में गये थे। पहली बार अंग्रेजी के ओपेन साप्ताहिक पत्रिका के राहुल पंडिता की तरफ से और दूसरी बार पत्रकारों के एक समूह की ओर से। गणपति की ओर से भेजे गये दोनों जवाबों का संपादित हिंदी अनुवाद यहां इस उम्मीद से प्रकाशित किया जा रहा है कि सही-गलत का फैसला अंततः अपनी भाषा में ही होना है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह माओवाद को मुल्क का सबसे बड़ा खतरा मानते हैं, जबकि प्रतिबंधित माओवादी पार्टी के महासचिव गणपति इसे भविष्य कहते हैं। जाहिरा तौर पर भारत की स्वाभिमानी जनता कत्तई नहीं चाहेगी कि उसके अच्छे-बुरे का फैसला उसकी अनुपस्थिति में हो। उपस्थिति की उसी परंपरा को कायम रखते हुए जनज्वार पर गणपति का हिंदी में आये पहले विस्तृत साक्षात्कार के पहले हिस्से को प्रस्तुत किया जा रहा है.... अनुवाद- जनज्वार टीम


बहुत लोग ऐसा सोचते हैं कि आजाद की मृत्यु के कारण आपकी पार्टी को बड़ी क्षति उठानी पड़ी है। वे कौन सी परिस्थितियां थीं जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई?

आजाद हमारी पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों में थे। लंबे समय से वे भारतीय इन्कलाब का नेतृत्व कर रहे थे। साम्राज्यवादियों विशेषकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों की मदद और सहयोग से भारतीय शोषक-शासक वर्ग आंदोलन के दमन का प्रयास कर रहा है और अभूतपूर्व स्तर पर क्रूर अत्याचार कर रहा है। जनता और शासक वर्गों के बीच हो रहे इस युद्ध में दुश्मन ने क्रांति का नेतृत्व करने वाले आजाद जैसे कामरेडों पर विशेष निशाना साधा और उनकी हत्या की योजना बनायी।

इसी षड्यंत्र के हिस्से के तौर पर कामरेड आजाद को पकड़ा गया और बहुत क्रूर और कायरतापूर्वक तरीके से उनकी हत्या कर दी। सोनिया-मनमोहन-चिदम्बरम गैंग, केंद्रीय गुप्तचर एजेंसियां तथा आंध्र प्रदेश एसआईबी (विशेष खुफिया ब्यूरो) द्वारा चलाये जा रहे ‘जनता के खिलाफ युद्ध’ का नेतृत्व करने वाले गृहमंत्री चिदम्बरम पर इस वीभत्स हत्या की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी बनती है।

कामरेड आजाद केंद्रीय कमेटी की ओर से संपूर्ण शहरी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। इसके अलावा राजनीतिक प्रचार, पार्टी पत्रिकायें, पार्टी शिक्षा तथा अन्य दूसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी उनके पास थीं। वे बहुत ही विश्वस्त जननेता थे। उन्होंने विभिन्न स्तर के कामरेडों और क्रांतिकारी जनता के साथ निकट संबंध बनाया हुआ था। भीषण दमन के दौर में उन्होंने निडर होकर निःस्वार्थ भाव से काम किया। इन्हीं कामों को अंजाम देते हुए दुश्मन को उनके बारे में कहीं से पता चला। तब वह उन्हें घात लगाकर पकड़ सका।

जुलाई में आजाद को दण्डकारण्य जाना था। वहां उन्हें पार्टी नेतृत्व व कैडर के लिए बनी राजनीतिक शिक्षण-प्रशिक्षण योजना में शामिल होना था। उन्हें एक जुलाई को नागपुर शहर में दण्डकारण्य के एक कामरेड से मिलना था,लेकिन उन्हें और उनके साथ यात्रा कर रहे पत्रकार हेमचंद्र को इससे पहले ही पकड़ लिया गया। दोनों को आदिलाबाद जंगल ले जाया गया और उसी रात उन्हें मार डाला गया। जिन्होंने उनके मृत शरीरों को देखा है, उनका कहना है कि ऐसा लगता है पकड़ने के बाद उन्हें नींद का इंजेक्शन दिया गया था।

इसका अर्थ यह है कि दुश्मन ने उन्हें मारने के इरादे से ही योजनाबद्ध तरीके से पकड़ा था। उन्होंने हेमचंद्र पाण्डेय की हत्या इसलिए की ताकि इस हत्या के बारे में सच्चाई बाहर न आ सके। दोनों के शरीरों को आदिलाबाद जिले के वानकिडी मंडल के जोगापुर जंगल में फेंक दिया गया और हमेशा की तरह झूठी मुठभेड़ की कहानी गढ़ दी गयी। हमारी पार्टी के साथ-साथ समूची जनता ने एक स्वर से इस फर्जी मुठभेड़ और कामरेड आजाद की हत्या की निंदा की है।

कई क्रांतिकारी पार्टियों,जनवादी व नागरिक अधिकार संगठनों ने इस झूठी मुठभेड़ के बारे में न्यायिक जांच की मांग की है। बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों और आंध्र सहित विभिन्न राज्य के छात्रों ने आजाद की हत्या के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया है। बहुतों ने लेख लिखे और बयान दिये। चार जुलाई को हैदराबाद में कामरेड आजाद की अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए। पूरी दुनिया की कई माओवादी पार्टियों ने उनकी हत्या की निंदा की और हमारी केंद्रीय समिति को पत्र लिखते हुए भारतीय क्रांति में आजाद के योगदान को सराहा। इस अवसर पर मैं अपनी केंद्रीय समिति की तरफ से उन सभी संगठनों और व्यक्तियों को क्रांतिकारी अभिवादन और आभार व्यक्त करता हूं।

वर्ष 1972 में वारंगल रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई करते हुए आजाद क्रांतिकारी आंदोलन की तरफ आकर्षित हुए। आजाद पढ़ाई में बहुत विलक्षण थे। 1974में रैडिकल स्टूडेंट यूनियन(आरएसयू)के गठन में आजाद ने भूमिका निभायी। 1978में वह आरएसयू के राज्य अध्यक्ष चुने गये। वह अखिल भारतीय क्रांतिकारी छात्र आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में थे और 1985में इसकी शुरुआत से ही उसका मार्गदर्शन करते रहे। 1981 में तब के मद्रास शहर में राष्ट्रीयता के सवाल पर हुए सेमीनार को आयोजित करने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभायी। उसके बाद उन्होंने कर्नाटक में क्रांतिकारी आंदोलन गठित करने की जिम्मेदारी ली और पहली बार कर्नाटक में माओवादी पार्टी का गठन किया।

उन्होंने साकेत राजन जैसे विलक्षण प्रतिभा वाले अनेक कामरेडों को पार्टी की ओर आकर्षित किया। अवसरवादी तत्वों ने 1985 और 1991 में जब पार्टी को तोड़ने का प्रयास किया तब आजाद ने सर्वहारा दृष्टिकोण के साथ पार्टी की एकता बनाये रखने,उसे मजबूत करने और अवसरवादी राजनीति को परास्त करने में निर्णायक भूमिका अदा की। कामरेड आजाद 1990से आज तक केंद्रीय कमेटी सदस्य व पोलित ब्यूरो सदस्य के रूप में पिछले बीस साल से अब तक कार्य करते रहे। हम आजाद के जीवन को पिछले चालीस साल के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास से अलग नहीं कर सकते। विशेष तौर पर उन्होंने विचारधारा,राजनीति के क्षेत्र में,पार्टी शिक्षा में तथा पार्टी की पत्रिकायें निकालने जैसे कामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

पिछले तीन साल से आजाद के नाम से पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेदारी विलक्षण तरीके से निभायी। उन्होंने अपनी बुद्धि और कलम का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए चिदम्बरम गैंग द्वारा चलाये जा रहे ‘जनता के खिलाफ युद्ध’ पर पुरजोर हमला किया। वह शासकों और शोषकों के खिलाफ जनता की आवाज बनकर खड़े हुए। पार्टी की राजनीतिक लाइन के विकास,पार्टी के विकास,जनसेना और जनसंगठनों के विकास में आंदोलनों को विस्तारित करने में नवजनवादी सत्ता निकायों के विकसित होने में और सभी विषयों में आजाद के वैचारिक-राजनीतिक काम और उनके व्यवहार ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

सभी तरह की मुसीबतों के सामने और आंदोलनों के उतार-चढ़ाव के बीच उनकी अडिग प्रतिबद्धता,महान त्याग का उनका स्वभाव,निस्वार्थता, सादा जीवन, क्रांति तथा जनता के लिए अनथक काम, गहन अध्ययन,समय-समय पर समाज में घटित होने वाली परिघटनाओं का अध्ययन, हमेशा जनता के साथ रहना ये कुछ महान सर्वहारा आदर्श थे जिन्हें कामरेड आजाद ने स्थापित किया था। यद्यपि वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन निश्चित रूप से सभी क्रांतिकारियों, विशेषकर नौजवानों, छात्रों और बुद्धिजीवियों के लिए क्रांतिकारी आदर्श बने रहेंगे।

यह सच है कि इस क्षति की भरपायी करना बहुत मुश्किल है। क्योंकि कामरेड आजाद की जिंदगी क्रांतिकारी आंदोलन के विकास से पूरी तरह गुंथी हुई थी। वह एक महान क्रांतिकारी थे। जो आंदोलन के उतार-चढ़ाव के साथ फौलादी बन चुके थे। क्रांतिकारी आंदोलन इसी तरह से नेतृत्व पैदा करता है और तत्पश्चात वे नेता क्रांतिकारी आंदोलन को विजय के रास्ते पर आगे ले जाते हैं। अनेक नेताओं की कुर्बानी क्रांतिकारी आंदोलन में अपरिहार्य है। जो परिस्थितियां क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म देती हैं,और उसके आगे बढ़ाने में मदद करती है वही उसके नेतृत्व को भी पैदा करती हैं। विश्व क्रांतिकारी इतिहास में यह बात बार-बार सिद्ध हुई है।

जो भौतिक परिस्थितियां आज हमारे देश में क्रांतिकारी आंदोलन के विकास के अनुकूल हैं,वही कामरेड आजाद जैसे हजारों नेताओं को पैदा करेंगी। कामरेड आजाद द्वारा किये गये वैचारिक-राजनीतिक और व्यावहारिक काम तथा उनके द्वारा स्थापित कम्युनिस्ट आदर्श इसके लिए आधार का काम करेंगी। सुरायनेनी जनार्दन की शहादत ने आजाद जैसे बहुत से कामरेडों के सामने एक आदर्श पेश किया था,उसी तरह आजाद की शहादत का आदर्श कई और क्रांतिकारियों को पैदा करेगा। दुश्मन आजाद को भौतिक रूप से तो खत्म कर सकता है,लेकिन पार्टी और जनता के बीच फैले उनके विचारों को भौतिक ताकत बनने से नहीं रोक सकता।

पार्टी इतिहास में हमने कई महत्वपूर्ण नेताओं को खोया है और कई उतार-चढ़ावों का सामना किया है। फिर भी हमेशा संभलकर खड़े हुए हैं और आंदोलन को आगे बढ़ा सके हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से शिक्षित कैडरों को पार्टी में भर्ती कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि इन्हें व्यवहार में प्रशिक्षित करके आजाद की मृत्यु से पैदा होने वाले शून्य  को भर सकेंगे। शासक वर्ग खुशी से चिल्ला रहा है कि उसने आजाद की हत्या करके ज्ञान के पात्र को तोड़ दिया है,लेकिन वे मूर्ख यह नहीं समझ पा रहे हैं यहां बिखरे उसी ज्ञान से हजारों आजाद पैदा होंगे। आजाद जब जिंदा थे तो उन्होंने अपने राजनीतिक आक्रमण से शासक वर्ग को हिला रखा था। उनकी मृत्यु के बाद भी शासकवर्ग उनसे डरा हुआ है और उनके नाम से ही कांपने लगता है।

आजाद की मृत्यु के पहले भी हमने महत्वपूर्ण कामरेडों को झूठी मुठभेड़ों में खोया है और बहुत से लोग गिरफ्तार हुए हैं। ये क्षतियां भी बहुत भारी हैं,लेकिन हम निश्चय ही इन क्षतियों से उबरेंगे और दृढ़ता के साथ क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ायेंगे।


आजाद की मौत के बाद क्या आप मानते हैं कि वार्ता अभी संभव है ?

आपको यह सवाल चिदम्बरम और मनमोहन सिंह से पूछना चाहिए। पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान मैंने, कामरेड आजाद और किशन जी ने कई बार वार्ता के संदर्भ में पार्टी की राय रखी है। जबकि सरकार अपनी अंतहीन हिंसा को छिपाते हुए हर बार यह कहती है कि वार्ता तभी होगी जब माओवादी हिंसा छोड़ेंगे। चिदम्बरम हर बार यह बात चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं। जनता के खिलाफ चलाये जा रहे इस युद्ध और इस कारण जनता द्वारा झेली जा रही कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए कामरेड आजाद ने अंतिम समय तक यह बार-बार घोषित किया था कि यदि सरकार तैयार हो तो हम एक साथ युद्धविराम करने को तैयार हैं।

उनका इरादा था कि जनता द्वारा झेली जा रही कठिनाइयों को यथासंभव कम किया जाये। उन्होंने इसी मांग का जिक्र स्वामी अग्निवेश को लिखे पत्र में भी किया था। चिदम्बरम और मनमोहन सिंह ने न सिर्फ उन्हें षड्यंत्रकारी तरीके से मार दिया,बल्कि एक बार फिर बेशर्मी के साथ धोखेबाजी का खेल शुरू कर दिया। वस्तुतः सरकार वार्ता की जरूरत ही नहीं महसूस करती। यदि बुद्धिजीवियों, जनवादियों और जनता की इच्छित शांति  को स्थापित करना है तो यह बहुत ही अनर्थकारी बात होगी कि जनता द्वारा चलायी जा रही प्रतिहिंसा को रोकने की मांग की जाये, जबकि उसी समय सरकार अपनी हत्या की मशीन चालू रखे।

जब चिदम्बरम ने यह ऐलान किया था कि माओवादी 72 घंटे के लिए हिंसा बंद करें तब किशन जी ने 72 दिन की बात करके उन्हें इसका उत्तर दिया। जवाब में चिदम्बरम ने किशन जी को लक्ष्य करके उन्हें मारने के उद्देश्य से अपना हमला और तेज कर दिया। अग्निवेश को पत्र लिखने वाले आजाद को लक्ष्य किया गया और उनकी हत्या कर दी गयी। आपरेशन ग्रीन हंट  के बतौर 1 लाख अर्धसैनिक बल और 3 लाख राज्य बलों को तैनात किया गया है। इनमें से विशेष बल मुख्य ताकत है।

प्रत्येक दिन, प्रत्येक घंटे और प्रत्येक मिनट ये सशस्त्र बल जनता पर अनगिनत अत्याचार कर रहे हैं। इसका विरोध करने वाले जनवादियों और जनता को निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें यूएपीए और दूसरे राज्य-काले कानूनों के तहत जेलों में डाला जा रहा है। प्रतिक्रियावादियों और मीडिया में उनके दलालों के अलावा इस देश में कोई भी जनता के खिलाफ इस युद्ध का समर्थन नहीं कर रहा है। यदि कुछ लोग  व्यक्तिगत इसका समर्थन कर रहे हैं तो इसका कारण यह नहीं है कि उन्हें तथ्य पता हैं, बल्कि वे मासूमियत के साथ सरकार के झूठे प्रचार पर विश्वास कर रहे हैं। हम समझते हैं कि अभी वार्ता के लिए अनुकूल माहौल नहीं है।

अग्निवेश जैसे लोग हमसे कह रहे हैं कि आजाद की हत्या के बावजूद हम वार्ता की प्रक्रिया से पीछे न हटें और वार्ता के लिए आगे आयें। हम उनसे कहना चाहते हैं कि क्या वे सरकार द्वारा हमारे पार्टी नेताओं को मारने के उनके षड्यंत्रों को रोक सकते हैं? निःसंदेह कामरेड आजाद की हत्या एक षड्यंत्र के तहत सरकार द्वारा की गयी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरेंसिक रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई है। अतः हम सभी जनवादी लोगों,शांतिप्रिय बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार संगठनों से अनुरोध करते है कि वे आगे आयें और दृढ़तापूर्वक आजाद की हत्या के लिए न्यायिक जांच की मांग करें। बहुत साफ है कि वार्ता के लिए अनुकूल माहौल नहीं है। इसके बावजूद हम जनता और जनवादी लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे सरकार से मांग करें कि सरकार निम्न बिंदुओं को लागू करते हुए वार्ता की प्रक्रिया के बारे में अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध करें-

1. आपरेशन ग्रीनहंट बंद करो। अर्धसैनिक बलों को वापस बुलाओ। यदि सरकार जनता पर अपना आक्रमण बंद करती है तो जनता का प्रति आक्रमण भी बंद हो जायेगा।

2. हम उसी तरह एक राजनीतिक पार्टी हैं जैसे विश्व और अपने देश की कई राजनीतिक पार्टियां हैं। हमारी पार्टी की एक विचारधारा है, एक सैन्य नीति है और स्पष्ट उद्देश्य है। संस्कृति, जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, पर्यावरण आदि के बारे में एक साफ और सही नीति है। शासक वर्ग की इन पार्टियों द्वारा सूत्रित कानून के अनुसार भी हमारी पार्टी पर जनवादी कानून लागू होते हैं। अतः हमारी पार्टी से प्रतिबंध हटना चाहिए। हमारे जनसंगठनों पर से प्रतिबंध हटना चाहिए। जनलामबंदी के लिए लोकतांत्रिक अवसरों का निर्माण किया जाना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में ही, जहां हम लोकतांत्रिक तरीके से काम कर सकेंगे हम वार्ता के लिए आगे आ सकते हैं।

3. आंध्र प्रदेश में 2004 में सरकार के साथ हुई वार्ता में भाग लेने वाले कामरेड रियाज को पकड़ लिया गया और उन्हें बुरी तरह यातना देने के बाद मार डाला गया। वार्ता में भाग लेने वाले अन्य लोगों को भी निशाना बनाया गया है और उनकी हत्या के प्रयास हुए हैं। अब वार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगे कामरेड आजाद की हत्या कर दी गयी। अतः सरकार पर विश्वास नहीं किया जा सकता और भूमिगत कामरेडों को वार्ता के लिए नहीं भेजा जा सकता। अतः यदि सरकार जेल से हमारे नेतृत्वकारी कामरेडों को छोड़ती है तब वे हमारी पार्टी की ओर से प्रत्यक्षतः वार्ता में भाग ले सकते हैं।

अतः आप सभी को इन तीनों मांगों पर विचार करना चाहिए और इन्हें सरकार के सामने रखना चाहिए। हम एक बार फिर यह साफ करना चाहते हैं कि वार्ता से संबंधित कोई भी सवाल सबसे पहले सरकार के सामने रखना चाहिए, हमारे सामने नहीं।

जीके पिल्लई, प्रकाश सिंह और चिदम्बरम जैसे लोग यह कह रहे हैं कि हमारी पार्टी पर फासीवादी सैन्य हमलों को तेज करके और जनता का नरसंहार करके जब तक दबाव नहीं बनाया जाता, तब तक हम उनकी बात नहीं मानेंगे। वे कल्पनालोक में जी रहे हैं। दबाव बनाना,वार्ता के नाम पर विभ्रम खड़ा करना,छल करना और पार्टी को नष्ट करना-यह सरकार की रणनीति का हिस्सा हैं। वे सिर्फ दमन में विश्वास करते हैं और विचारधारा और राजनीति के क्षेत्र में हमारा सामना करने में वे असमर्थ हैं।

अपने देश और संपूर्ण मानव समाज से शोषण,दमन तथा हिंसा को खत्म करके स्थायी शांति  की स्थापना के बड़े उद्देश्य के लिए जनता हमारी पार्टी के नेतृत्व में लड़ाई लड़ रही है। हम वार्ता और शांति  के मुद्दे को वर्ग संघर्ष के हिस्से के तौर पर भी देखते हैं। जब वर्ग संघर्ष तीखा होता है तब यह सशस्त्र होता है। दूसरी परिस्थितियों में इसे शांतिपूर्ण  तरीके से भी चलाया जाता है। अतः यह पूरी तरह से झूठ है कि हमारी पार्टी वार्ता के लिए तभी तैयार होगी जब उस पर दबाव बनाया जायेगा। मीडिया के द्वारा भी एक झूठा प्रचार यह चलाया जा रहा है कि हमारी पार्टी में वार्ता को लेकर मतभेद हैं और यह मतभेद भूतपूर्व एमसीसीआई और भूतपूर्व पीडब्ल्यू की लाइन के आधार पर हैं। यह सौ प्रतिशत झूठ है।

दुश्मन द्वारा प्रचारित किया जा रहा यह झूठा प्रचार और कुछ नहीं,बल्कि हमारी पार्टी और उसके उद्देश्यों के बारे में जनता के दिमाग में संदेह पैदा करने का प्रयास है। हमारी एकता कांग्रेस ने वार्ता के विषय में एक साफ अवस्थिति ली है। पार्टी में सही और गलत विचारों के बीच संघर्ष एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। हम अपने मतभेदों को मार्क्सवाद -लेनिनवाद-माओवाद की रोशनी में जनवादी केंद्रीयता के सिद्धांत के आधार पर हल करते हैं। इससे पार्टी का विकास होता है।

दोनों पार्टियों के विलय से हमने महान एकता हासिल की है। अब हमारी पार्टी में कोई भी बहस या मतभेद एकीकृत पार्टी के बीच वैचारिक राजनीतिक बहस के रूप में है,न कि भूतपूर्व एमसीसीआई और सीपीआईएमएल पीडब्ल्यू के बीच के मतभेद के रूप में। हम स्पष्ट कहते हैं कि हमारे बीच के मतभेद कभी भी विलय के पहले मतभेदों का रूप नहीं लेंगे।


आप कहते हैं कि सरकार ने जनता के खिलाफ युद्ध घोषित कर रखा है,लेकिन सरकार कहती है कि कहीं कोई युद्ध नहीं है और आपरेशन ग्रीन हंट मीडिया की कल्पना मात्र है।

सिर्फ हम ही यह नहीं कह रहे हैं कि सरकार ने जनता के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया हुआ है। सभी लोग एक स्वर से यह बात कह रहे हैं। यह युद्ध जिन क्षेत्रों में चलाया जा रहा है,वहां के सारे लोग यह कह रहे हैं। सभी जनवादी संगठन,प्रगतिशील ताकतें और हमारे देश के जनवादी लोग बहुत साफ तरीके से कह रहे हैं कि सरकार जनता के खिलाफ युद्ध चला रही है और वे इसकी भत्र्सना कर रहे हैं।

लांग कुमार,कल्लूरी और विश्वरंजन यह घोषणा कर रहे हैं कि आपरेशन ग्रीन हंट चल रहा है। वहीं दूसरी ओर चिदम्बरम बेशर्मी से ऐलान कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं है। धीरे-धीरे यह साफ हो चुका है कि ग्रीन हंट कितनी क्रूर-भयानक और फासीवादी कार्रवाई है और कितने भयानक तरीके से इसे चलाया जा रहा है। वस्तुतः उन सभी राज्यों में जहां माओवादी आंदोलन मौजूद है,करीब एक लाख अर्धसैनिक बल तैनात हैं। यदि नौ-दस राज्यों में हमारे आंदोलन के खिलाफ तैनात पुलिस बलों की गणना करें तो वह संख्या तीन से चार लाख होती है।

इतनी बड़ी संख्या में बलों की तैनाती का क्या कारण है,ये बल रोजाना क्या करते हैं,वे कारपेट सुरक्षा को क्यों बढ़ा रहे हैं? बेस कैंपों का निर्माण,विशेष प्रशिक्षण स्कूलों का निर्माण तथा जंगल युद्ध कौशल स्कूलों का निर्माण क्यों किया जा रहा है?इन राज्यों इतनी तेजी के साथ बजट क्यों बढ़ाया जा रहा है?सरकार ने एक बार में ही 13500करोड़ रुपये का पैकेज क्यों जारी किया है?आंतरिक सुरक्षा पर एक ट्रिलियन रुपये की बड़ी राशि क्यों आवंटित की गयी है। हमारे आंदोलन को खत्म करने की योजना के लिए प्रत्येक वर्ष हजारों करोड़ रुपये केंद्र और राज्य सरकारें क्यों खर्च कर रही हैं? छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र, उत्तरी आंध्र प्रदेश और उत्तरी तेलंगाना जैसे हमारे मजबूत क्षेत्रों में सरकार सफाया अभियान क्यों चला रही है?

सफाया अभियान का मतलब है- सबकुछ नष्ट कर देना। किसी को भी मारा जा सकता है, गिरफ्तार किया जा सकता है, गायब किया जा सकता है और बलात्कार किया जा सकता है। संपत्ति, घर, फसल आदि को नष्ट किया जा सकता है। यह और कुछ नहीं बल्कि फासीवादी शासन है। सरकार इस युद्ध में सशस्त्र दमन को मुख्य हथियार बनाये हुए है। इसके अलावा वह विचारधारात्मक,मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी आक्रामक अभियान चलाये हुए है।

जनता हमारी पार्टी के नेतृत्व में स्वयं को संगठित कर रही है,जिसके पास जनयुद्ध को तेज करते हुए,वर्तमान शोषक वर्गों के शासन के विकल्प के रूप में नवराजनीतिक सत्ता,नई अर्थव्यवस्था और नई संस्कृति को स्थापित करने की एक स्पष्ट रणनीति है। हमारी पार्टी के नेतृत्व में पीएलजीए,हमारे नये सत्ता निकाय और जनता कई राज्यों जैसे उड़ीसा, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकारो और बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा बड़े दलाल कारपोरेट घरानों के बीच हुए अरबों रुपये मूल्य के एमओयू के खिलाफ जीवन-मरण का संघर्ष चला रही है। जनता और क्रांतिकारी ताकतें एकताबद्ध होकर और मजबूती से सरकार द्वारा दिन-प्रतिदिन तेज किये जा रहे जनता के खिलाफ युद्ध का विरोध कर रही हैं और इसके खिलाफ लड़ रही हैं। पूरे विश्व की साम्राज्यवाद विरोधी ताकतें और क्रांतिकारी सर्वहारा भी अपने देश के शासक वर्गों द्वारा जनता के खिलाफ चलाये जा रहे युद्ध का मजबूती से विरोध कर रही हैं।

मैं स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं कि सरकार का यह युद्ध राजनीतिक तौर पर एक अन्यायपूर्ण युद्ध है। शासक वर्गों द्वारा चलाये जा रहे इस युद्ध का एक साफ राजनीतिक उद्देश्य है। आत्मरक्षा में जनता द्वारा चलाये जा रहे इस युद्ध का भी एक स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य है। हम शोषण और दमनकारी व्यवस्था को नष्ट करके एक नये समाज की स्थापना के उद्देश्य के लिए लड़ रहे है।

सर्वप्रथम हम इस युद्ध का मुकाबला राजनीतिक तरीके से करना चाहते हैं। हमारा मानना है कि व्यापक जनता जितनी गहरायी से इस बात को समझेगी,जितने व्यापक स्तर पर वह स्वयं को संगठित करेगी और जितने व्यापक स्तर पर वह अपने आपको सशस्त्र करेगी,उसी हिसाब से हम इस युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने में सक्षम होंगे। इसके लिए हम मजबूती से कदम बढ़ा रहे हैं। इसीलिए हम दुश्मन से सभी क्षेत्रों में चौतरफा लड़ाई लड़ रहे हैं।

(जारी....)
 
 
 

3 comments:

  1. देश के लिए सबसे बड़ा खतरा तो वो सरकारी नीतियां हैं जो अधिसंख्यक अवाम के दमन के दमपर खूनी विकास की नींव रख रही है... लेकिन भविष्य माओवाद भी नहीं है, जो बंदूकों के दम पर सत्ता हासिल करने के मंसूबे बनाए हुए है... क्योंकि फिर वो भी न्याय अपने ही चश्मे से करेगा... अवाम के नजरिए से नहीं... माओवादियों द्वारा न्याय के नाम पर निर्दोषों का खून बहाना सबूत है... और चाहे माओवाद हो या सरकार की नीतियां, अवाम का वर्तमान तो दोनों से नाउम्मीद ही दिखाई दे रहा है...

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  2. रोहित कुमारMonday, January 03, 2011

    हिंदी में माओवादी नेता का साक्षात्कार पहली बार पढ़ा. जनज्वार ने यह बहुत बड़ा काम किया है. अगले भागों का बेसब्री से इंतज़ार.

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  3. मैं देखता हूँ कई ऐसे ब्लॉग हैं जिसपर दो-दो दर्जन कमेन्ट रहते हैं और बात कुछ भी नहीं होती है. फेसबुक पर कोई लड़की पाद दे तो सैकड़ों दर्शनाभिलाषी नगमें गाने लगते हैं और यहाँ कोई राय ही नहीं देता. क्या बाजार की सबसे ताकतवर भाषा की बुद्धि इतनी गयी बीती है. अपने समय के सबसे ज्वलंत सवालों पर छपे इस साक्षात्कार को हिंदी वाले भाव ही नहीं दे रहे हैं, क्या इसमें छिनाल जैसा मजा नहीं है. हाय रे छिनाल पर बेकरार हो रहे सपूतों. कोई नहीं भाइयों अकेले ही सही मैं जनज्वार टीम को हिंदी में छापने के लिए तहेदिल से शुक्रिया कहता हूँ. अनुवाद अच्छा और पठनीय है. अगले हिस्से के इंतजार में --

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