Jan 3, 2011

नया संविधान निर्माण, जनता का लोकतान्त्रिक अधिकार- गणपति

भाग- 2

हमारे हमलों के कारण सेना की तैनाती का प्रश्न है,तो यदि जनता प्रतिरोध न करे और चुपचाप अपना सिर झुका दे तथा सदियों से जारी शोषण और दमन को चुपचाप सहती रहे तो सेना की बात छोड़िये,पुलिस और अर्धसैनिक बलों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। तब शासक वर्गों को हमले करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। जनता की चेतना जैसे-जैसे बढ़ती है,वह शोषण और दमन के पीछे की असली कहानी,संसदीय व्यवस्था और झूठे लोकतंत्र के छलावे को समझने लगती है...गणपति


सरकार आपसे लगातार हिंसा छोड़ने को कह रही है,जबकि आपकी पार्टी सरकारी संपत्ति और पुलिस बलों पर हमला करने से बाज नहीं आ रही है? ताड़ीमेतला (दंतेवाड़ा), कोंगेरा (नारायणपुर), सिल्दा (प. बंगाल) और लखीसराय (बिहार) में हुए आपके हाल के हमलों की पृष्ठभूमि में कुछ लोग अपनी यह चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि आप सिर्फ सैन्य तरीकों से ही प्रत्युत्तर दे रहे हैं।

पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इस मुद्दे पर कई बार अपनी स्थिति स्पष्ट की है। मैं एक बार फिर इसे साफ तौर पर रखना चाहता हूं कि सरकार द्वारा राज्य की हिंसा को बरकरार रखते हुए जनता से हिंसा छोड़ने की बात कहना एक बड़ा धोखा और छल है। सरकार अपने खुद के बनाये नियमों का उल्लंघन कर रही है और जनता का कत्लेआम कर रही है इसलिए यह जरूरी है कि राजनीतिक रूप से सजग लोग सरकार से इस बारे में मांग करें कि वह जनता के खिलाफ युद्ध बंद करे।

जब सरकार कहती है कि माओवादी हिंसा कर रहे हैं तो यह उसी तरह है जैसे एक चोर ‘चोर-चोर’ चिल्लाये। ऐसा करके वह मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का प्रयास कर रही है। जिनकी चेतना उन्नत हो चुकी है वे कभी भी इन हमलों को चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे,खासकर तब जबकि हमलावरों का उद्देश्य उनके संसाधनों को लूटना और सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से उन्हें स्थायी गुलाम बनाना हो। वे स्वयं को सशस्त्र करके इसका प्रतिरोध करेंगे।

हमारे गुरिल्ला सेना के सभी सदस्य आमजन ही हैं,जिन्होंने अपने आपको स्वैच्छिक तरीके से सशस्त्र किया हुआ है। सदियों से गुलामों के रूप में जिस जनता का शोषण और दमन हो रहा था उसने समाज के ऐतिहासिक विकास के नियमों को समझ लिया है और स्वयं को सशस्त्र करते हुए लड़ रही हैं। हमारी पार्टी ने बार-बार यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि जनता सिर्फ सशस्त्र तरीके से ही अपनी मुक्ति हासिल कर सकती है। यही कारण है कि पीएलजीए के स्थापना दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष हमारी पार्टी देश के नौजवानों से खुद को सशस्त्र करने का आह्वान करती है। यह आह्वान जनता के बीच तेजी से व्यापक रूप से फैल रहा है।

हाल में पार्टी के नेतृत्व में और जनता के सक्रिय समर्थन से हमारी जनसेना से ताड़ीमेटला (मुकाराम),सिल्दा, लखीसराय और कोंगेरा जैसी जगहों पर जिन हमलों को अंजाम दिया वे सभी सैन्य हमले हैं। इन हमलों से कौन चिंतित है? शासक वर्ग और उसके भाड़े के लोग या फिर जनता? प्रत्येक हमला व्यावहारिक रूप से एक राजनीतिक संदेश है,जो उन्हें मुक्ति का रास्ता दिखाता है। जनता ठीक इसी रूप में इसको समझती है। इसके विपरीत यह सब देखकर शासकवर्ग भय से कांपने लगता है।

हालांकि वे लोग जो हमारे आंदोलन को नहीं समझते और वे जिनकी इस बारे में समझ साफ नहीं है, वे दोनों तरफ हुए नुकसानों से गुस्सा होते हैं। हम उनके गुस्से को समझ सकते हैं,लेकिन सिर्फ इसके लिए जनता इस प्रतिरोध को बंद नहीं कर सकती। उन्हें यह समझना चाहिए कि यह तीखा युद्ध क्यों चल रहा है। प्रत्येक हमले में हजारों लोग क्यों शामिल होते हैं। हम जनता का सक्रिय समर्थन कहां से पाते हैं। हमें यह समर्थन क्यों मिल रहा है। यदि वे यह समझने का प्रयास करेंगे तो उनके सामने सबकुछ स्पष्ट हो जायेगा। तब वे इस बात को समझेंगे कि लगातार ऐसे बड़े हमलों की जरूरत क्यों है?लेकिन जनता के दुश्मन हमेशा इसका विरोध करेंगे। वे मूर्खतापूर्वक और प्रतिक्रियावादी तरीके से जनता के ऊपर बड़े से बड़ा हमला करेंगे। वे मूर्खतापूर्ण तरीके से एकमात्र दमन का ही रास्ता अपनायेंगे और जनता के बीच घृणा के पात्र बन जायेंगे। परिणामस्वरूप वे फिर से जनता के बड़े हमलों का शिकार होंगे।

जहां तक हमारे हमलों के कारण सेना की तैनाती का प्रश्न है,तो यदि जनता प्रतिरोध न करे और चुपचाप अपना सिर झुका दे तथा सदियों से जारी शोषण और दमन को चुपचाप सहती रहे तो सेना की बात छोड़िये,पुलिस और अर्धसैनिक बलों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। तब शासक वर्गों को हमले करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। जनता की चेतना जैसे-जैसे बढ़ती है, वह शोषण और दमन के पीछे की असली कहानी, संसदीय व्यवस्था और झूठे लोकतंत्र के छलावे को समझने लगती है,वह जमीन पर जोतने वाले के मालिकाने के लिए तथा जनता के असली लोकतंत्र के लिए लड़ाई शुरू करती है। तब शासक वर्ग को यह डर सताने लगता है कि उसकी बुनियाद हिल रही है और वह गंभीर दमन का सहारा लेने लगता है।

ये मूर्ख यह नहीं समझते कि बढ़ते हुए जनप्रतिरोध के लिए उनकी नीतियां ही जिम्मेदार हैं और वे सेना उतारने की पूरी तैयारी कर रहे हैं। वस्तुतः वाजपेयी के शासनकाल में जब आडवाणी गृहमंत्री थे तब सेना ने प्रतिक्रांतिकारी सलवा जुडूम सैन्य अभियान की योजना बनायी थी। गृह मंत्रालय ने इस पर मुहर लगायी थी। वाजयेपी सरकार के गिरने के बाद केंद्र में आयी कांग्रेस और छत्तीसगढ़ में आयी कांग्रेस की जगह भाजपा सरकार ने इसे लागू किया। तब से लेकर आज तक सेना अपनी सभी कमांड (उत्तरी, केंद्रीय, दक्षिणी, पश्चिमी एवं पूर्वी) का सक्रियतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए इन सभी में विशेष ढांचा गठित करके इसके माध्यम से राज्य पुलिस विभाग को सभी तरह की सलाह दे रही है। इसने जनता के खिलाफ युद्ध के लिए एक रणनीति सूत्रबद्ध की है और यह केंद्रीय गृह मंत्रालय को सभी तरह का प्रशिक्षण, गुप्तचर सूचना, तकनीक और तैनाती योजना दे रहा है।

भारत की विशेष परिस्थिति में माओवादी आंदोलन को दबाने के लिए साम्राज्यवादियों द्वारा सूत्रबद्ध कम तीव्रता वाले युद्ध (एलआइसी)की नीति को अपनी विशिष्टताओं को शामिल करते हुए तेजी से लागू कर रहा है। वर्तमान में सेना प्रत्यक्ष रूप से हथियार लेकर हमलों में भागीदारी नहीं कर रही है,लेकिन हमारे मजबूत क्षेत्रों में सेना के अफसर कुछ विशेषज्ञ और गुप्तचर अधिकारी प्रतिगुरिल्ला अभियान को प्रत्यक्ष मार्गदर्शन दे रहे हैं। यह पिछले तीन-चार वर्षों से हो रहा है। अतः यह सच नहीं है कि हमारे कुछ हमलों के कारण वे सेना को तैनात करेंगे। सेना के अंदर इस उद्देश्य के लिए प्रति बगावत बलों का गठन किया जा चुका है। वे युद्ध स्तर पर नये कैन्टोनमेंट,हवाई बेस और हैलीपैड का निर्माण उसी तरह कर रहे हैं जैसे सीमाओं पर किया जाता है।

जाहिर है शासक वर्ग जनता पर अभूतपूर्व अत्याचार,नरसंहार और विध्वंसक कार्रवाइयां करने के लिए सभी तरह की तैयारियों कर चुका है। हमारी पार्टी यह महसूस करती है कि सभी क्रांतिकारी पार्टियों,जनवादी संगठनों, बुद्धिजीवियों,राष्ट्रीय मुक्ति संगठनों,साम्राज्यवाद विरोधी देशभक्त संगठनों और समस्त भारतीय जनता को इसका अहसास करना चाहिए और बिना देर किये इसका सक्रिय और पुरजोर प्रतिरोध करना चाहिए। हमारे आंदोलन के इलाके की जनता भी ऐसा ही सोचती है और इसके प्रति आशान्वित है।

यह सच है कि सेना की तैनाती से गरीब और आदिवासी जनता पर हिंसा बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर जनहानि होगी। जब जनता आत्मरक्षा में लड़ती है तो जनसंख्या के महज पांच प्रतिशत का निर्माण करने वाले शोषक और उनके दलाल को ही क्षति उठानी पड़ती है। लेकिन जब राज्य हिंसा करता है तो बड़े पैमाने पर शोषित जनता को नुकसान उठाना पड़ता है। जनता ही पीएलजीए, माओवादी पार्टी, जनसंगठनों और जनताना सरकार के रूप में मारी जा रही है। अतः जब सामान्य जनता और आदिवासी इतने बड़े पैमाने पर नुकसान झेलते हैं तो किसी को भी सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि यह सब क्यों हो रहा है।

मासूमियत से या कुटिलतापूर्वक,भ्रमित करने वाले ऐसे वक्तव्य कि निर्दोष जनता मारी जा रही है,जैसे लोकप्रिय बयानों से कुछ भी हल नहीं होगा। जनहानि की इस पृष्ठभूमि में शोषित और व्यापक जनता प्रत्येक से यह सीधा सवाल कर रही है-आप हमारी तरफ हैं या शासक वर्ग की तरफ। इसका मतलब यह हुआ कि बीच में कोई तटस्थ जमीन नहीं है। अतः हम सभी लोगों से जो जनहानि के बारे में अपना गुस्सा व्यक्त करते हैं अनुरोध करते हैं कि वे इस सवाल की पृष्ठभूमि में पुनर्विचार करें।

इस अवसर पर मैं कुछ बातों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं। 12 जून को झारखंड के कोरहाट जंगल में हमारी पार्टी के पूर्वी रीजनल ब्यूरो की तरफ से आयोजित एक राजनीतिक कैंप पर राज्य पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों ने हमला किया। इस हमले में कोबरा बल,बीएसएफ और झारखंड एसटीएफ के जवान शामिल थे। इसमें एयरफोर्स के तीन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि सरकार का कहना है कि इस हमले में 2000जवान शामिल थे लेकिन हमारा मानना है कि इसमें कहीं अधिक जवान शामिल थे। उस क्षेत्र में हमारी पीएलजीए की महज दो कंपनियां थीं। हमारे हथियार भी निम्नकोटि के थे। हमारी पार्टी और पीएलजीए पर हुए इस बड़े हमले में हजारों सरकारी बलों के शामिल होने का क्या कारण था?यह युद्ध है या नहीं?वे इस स्पष्ट तथ्य को क्यों छुपा रहे हैं? उन्हें यह युद्ध क्यों छेड़ना पड़ा है।

जाहिर है भाड़े के सैनिकों ने यह हमला चंद शोषकों के हितों की रक्षा के लिए किया था। हमला करने वाले लोग चाहे कमांडो हों या विशेष बल,हमारे गुरिल्लों के बहादुराना प्रतिरोध के सामने टिक नहीं सकते। हमारे कॉमरेड उच्च राजनीतिक चेतना और त्याग की भावना से लैस हैं और ऐसे हमलों का बहादुरी के साथ मुकाबला करते रहेंगे। हमारे प्रति हमले में कोबरा के कुछ लोग मारे गये और कई लोग जख्मी हुए। लेकिन इस हमले का नेतृत्व करने वाले अफसरों में इतना भी साहस नहीं रहा कि वे यह घोषणा करें कि कितने लोग मारे गये और कितने जख्मी हुए। वे इस बात से डरते हैं कि यदि तथ्य को सामने लाया गया तो उनके जवानों का नैतिक बल नीचे गिर जायेगा।

सितंबर 26-27के बीच झारखंड में ही सारण्डा के जंगलों में हमारे पूर्वी रीजनल ब्यूरो द्वारा चलाये जा रहे राजनीतिक कैंप पर सरकारी बलों ने एक बड़ा हमला किया। पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों के उच्चाधिकारियों ने खुद यह घोषणा किया कि इस हमले के लिए 5000 बलों (एक रेजिमेंट के बराबर) को तैनात किया गया था और उनकी सेवा के लिए हेलीकॉप्टरों को तैयार रखा गया था। जाहिर तौर पर हमेशा की तरह हमला करने वाले बलों की तादाद कहीं ज्यादा होगी। ऐसे में कोई भी यह बात समझ सकता है कि सरकार कितने बड़े पैमाने पर युद्ध चला रही है।

आप इसे युद्ध के अलावा और क्या कह सकते हैं। रेजिमेंट के स्तर पर हमला करने के बावजूद वे इस युद्ध के तथ्य को क्यों छिपा रहे हैं। शायद जब डिवीजन स्तर पर हमला करेंगे तब जाकर इस बात को स्वीकार करेंगे। वे यह युद्ध किसके लिए चला रहे हैं। यहां भी कोरहाट में कामरेड डेविड ने अपने जीवन की कुर्बानी दी थी। सारण्डा में भी एक कामरेड शहीद हुआ। दुश्मन की ताकत को कहीं ज्यादा नुकसान हुआ,लेकिन इस तथ्य को छिपाने के लिए उन्होंने झूठा प्रचार किया कि उनकी तरफ से तीन लोग मारे गये और सुरक्षा बलों ने 10-12माओवादियों को मार डाला,बड़ी मात्रा में हथियार और दूसरी सामग्री जब्त की और माओवादियों के ट्रेनिंग कैंप को ध्वस्त कर दिया गया।

विश्व की जनता का नंबर एक दुश्मन अमेरिकी साम्राज्यवाद के मार्गदर्शन में और इजरायल (विश्व की सबसे क्रूर सरकार और अमेरिकी दलाल) के सहयोग से भारत की सरकार यह युद्ध चला रही है। सरकार चाहे जो कहे, सोनिया-मनमोहन-चिदम्बरम गैंग और उनके टुकड़खोर बुद्धिजीवी चाहे जितना झूठ बोलें, कोरहाट और सारण्डा में हुए ये बड़े हमले और कुछ नहीं बल्कि युद्ध है। हम स्पष्ट तौर पर यह घोषणा करते हैं कि हमारे द्वारा किये जाने वाले सभी हमले आत्मरक्षा के युद्ध के तहत किये जाते हैं। सरकार द्वारा चलाये जा रहे इस अन्यायपूर्ण युद्ध में सामान्य जनता को बहुत नुकसान उठाना पड़ा रहा है। इसलिए हम एक बार फिर समूची जनता से अपील करते हैं कि वे इस अन्यायपूर्ण युद्ध का विरोध और प्रतिरोध करें।

सरकार के मुताबिक माओवादी जनता के मुद्दों पर गंभीर नहीं हैं और न ही उन्हें जनकल्याण से कुछ लेना देना है। उनका एकमात्र उद्देश्य सशस्त्र ताकत से लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंककर साम्यवादी शासन की स्थापना करना है, आप इसको कैसे न्यायोचित ठहरायेंगे?

शासक वर्गों को माओवादियों पर दोषारोपण करने और जनहित,जनकल्याण और जनविकास के बारे में हमारी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। हमारा उद्देश्य सशस्त्र ताकत के जरिये जनसंख्या के 95 प्रतिशत लोगों के हितों के बिल्कुल खिलाफ खड़े इस लोकतंत्र और संसदीय व्यवस्था, जो सामंती-दलाल-नौकरशाह-बुर्जुआ के अधिनायकत्व के अलावा और कुछ नहीं है,को उखाड़ फेंककर नई जनसत्ता की स्थापना करना है। यह कहना चमत्कारों में भी एक चमत्कार होगा कि ये चुनाव और संसद बहुत पवित्र है और वर्तमान शासन,जनवादी शासन का सर्वोत्तम रूप है।

हम जनता से कह रहे हैं कि इसतानाशाह सरकार को उखाड़ फेंके और अपनी खुद की सरकार स्थापित करे जो चार वर्गों-मजदूर-किसान-शहरी मध्यवर्ग और राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग का सच्चा जनवाद होगा। जनता अपने आपको संगठित कर रही है और इसके लिए लड़ रही है। वह कोई भी व्यक्ति जो राजनीति का क ख ग जानता है, इस बात को समझ सकता है। लेकिन शासक वर्ग कह रहा है कि संविधान और संसद पवित्र हैं और वर्गहितों से ऊपर है। साम्राज्यवादियों के संश्रय से स्थापित राज्य मशीनरी और तानाशाह बुर्जुआ संसद इन वर्गों के अलावा और किसी की सेवा नहीं करती। उन वर्गों के लिए यह पवित्र हो सकता है, लेकिन जनता के लिए यह एक बड़ा खतरा है। अतः यह जनता का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह इसे नेस्तनाबूद कर दे। यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। वह सच्ची जनवादी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करेगी,जिसके तहत नये वैधानिक निकाय और नया संविधान बनाया जायेगा।

विकास कार्यों में बाधा हम नहीं पहुंचा रहे हैं, शासक वर्ग बाधा पहुंचा रहा है। दण्डकारण्य में पुलिस, अर्धसैनिक बल और सलवा जुडूम जैसे फासीवादी गैंगों के क्रूर हमलों व हिंसा का मुकाबला करते हुए जनता अपनी खेती के कामों को अंजाम दे रही है। मिलीशिया जुताई-बुआई करते हुए निरंतर खेतों की निगरानी कर रही है। पीएलजीए जनता द्वारा पैदा की गयी फसल की रक्षा कर रही है। सरकारी भाड़े के टट्टू ऐसी इकाइयों पर हमले कर रहे हैं और उन्हें मार रहे हैं। सरकारी बल आदिवासी क्षेत्रों में कहर बरपा रहे हैं। वह उनकी संपत्ति नष्ट कर रहे हैं,गांव व घरों को जला रहे हैं। गरीब लाचार जनता से उनकी मुर्गियां, सुअर, पशु छीन रहे हैं। खेतों को नष्ट कर रहे हैं और फसलों को जला दे रहे हैं। यह व्यापक विध्वंस ही शासक वर्ग की विकास नीति है। यहां यह एकदम स्पष्ट है कि जनकल्याण का दुश्मन कौन है।

निःसंदेह इस अन्यायपूर्ण राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए हम जनता का आह्वान कर रहे हैं। हम जनता से आह्वान कर रहे हैं कि वह सबके लिए खतरा बन चुके इस राज्य को नष्ट कर दे और अपने आपको मुक्त कर ले। इस मुक्ति संघर्ष से ही जनता नई सत्ता स्थापित करने में सक्षम होगी और सभी क्षेत्रों में एक वैकल्पिक रास्ते से चैतरफा विकास करने में सक्षम होगी। हम जिस विकास की बात कर रहे हैं वह निश्चित रूप से वह नहीं है जो आईएमएफ और वल्र्ड बैंक द्वारा थोपा जाता है और न ही वह है जो अहलूवालिया-रंगराजन-मनमोहन सिंह, चिदम्बरम, पिल्लई जैसे लोगों द्वारा प्रस्तावित किया जाता है।

हम जिस विकास नीति की बात कर रहे है। वह उत्पादन के संबंधों को गुणात्मक रूप से बदल देगी,फलस्वरूप उत्पादक शक्तियों में गुणात्मक विकास होगा। यह एक वास्तविक विकास नीति है जिसके अनुसार हर एक को अपने देश की संप्रभुता को विदेशी कंपनी के चरणों में डालने का विरोध करना चाहिए। यह विकास नीति आत्मनिर्भर और स्वतंत्र होनी चाहिए। यानी देश के संसाधनों का इस्तेमाल साम्राज्यवादियों के लिए नहीं,बल्कि जनता के लिए होना चाहिए। बहुत से बुद्धिजीवी और शोधकर्ता जिन्होंने हमारे क्षेत्रों का दौरा किया है,पहले ही लिख चुके हैं कि यहां एक वैकल्पिक राजनीतिक सत्ता स्थापित हो रही है। लोग यह महसूस कर रहे हैं कि हम विचारधारा,राजनीति, सांगठनिक, सैन्य, आर्थिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण जैसे सभी क्षेत्रों में एक वैकल्पिक दिशा पर काम कर रहे हैं। पर्यवेक्षकों ने यह साफ तौर पर लिखा है कि इन सभी क्षेत्रों में विकास आगे बढ़ रहा है, हालांकि यह अभी प्राथमिक स्तर पर है।

बहुत से जनवादी लोगों ने आपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ आवाज बुलंद की है,लेकिन क्या आप यह नहीं सोचते कि फ्रांसिस इंदुवार की गला काटकर हत्या,जमुई नरसंहार,दन्तेवाड़ा में बस को बम से उड़ाना और ज्ञानेश्वरी एक्सपे्रस दुर्घटना जैसी चीजों से आपकी पार्टी लोगों की सहानुभूति खो देगी?इन घटनाओं पर आप क्या स्पष्टीकरण देना चाहेंगे?

सर्वप्रथम मैं सभी जनवादी ताकतों को अपना क्रांतिकारी अभिवादन देता हूं जो सरकार द्वारा जनता के खिलाफ चलाये जा रहे क्रूर और अन्यायपूर्ण युद्ध का विरोध और प्रतिरोध कर रहे हैं। जहां तक हमारे खिलाफ कुत्सा प्रचार और दोषारोपण की बात है तो ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की घटना में हमारा कोई हाथ नहीं है। हमारी पश्चिमी बंगाल पार्टी इकाई ने इस संबंध में पहले ही स्पष्ट वक्तव्य जारी कर दिया है। यह घटना सीपीआईएम और केंद्रीय जांच एजेंसियों के सम्मिलित “ाड्यंत्र के कारण घटित हुई है। यद्यपि इस मामले में न्यायिक जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है, मुख्य दोषी के रूप में प्रचारित किये गये उमाकांत महतो को पकड़कर एक झूठी मुठभेड़ में मार डाला गया। यह भी पूरे “ाड्यंत्र का एक हिस्सा है। हमारी पार्टी जनता की मुक्ति के उद्देश्य के लिए लड़ रही है। अतः वह कभी भी जनता को निशाना बनाकर कोई हमला नहीं करती और न ही भविष्य में ऐसा करेगी।

हमारी पार्टी ने दंतेवाड़ा जिले के चिंगावरम नामक स्थान के नजदीक बस को बम से उड़ाये जाने की घटना के संदर्भ में पहले ही साफतौर पर वक्तव्य जारी किया है। हमारी पार्टी ने इस गलती के लिए माफी भी मांग ली है। इंदुवार की गला काटकर हत्या के बारे में कामरेड आजाद ने पहले स्पष्ट तौर पर उत्तर दे दिया है। ऐसे मुद्दों पर हमारी पार्टी की अवस्थिति बिल्कुल साफ है। जब भी अपवादस्वरूप कुछ घटनायें घटी हैं तो हमारी पार्टी ने उसका स्पष्टीकरण दिया है। लेकिन ‘ाासक वर्ग जानबूझकर क्रांतिकारी आंदोलन और जनता के प्रतिरोध को बदनाम करने के लिए कुत्सा प्रचार चला रहा है। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की घटना इसका एक ज्वलंत उदाहरण है।

इंदुवार मुद्दा,दंतेवाड़ा बस विस्फोट और ज्ञानेश्वरी दुर्घटना के बीच बहुत अंतर है। चिंगावरम (दंतेवाड़ा बस विस्फोट) के पास हमारा निशाना स्पष्ट तौर से कोया कमांडो और एसपीओ थे। ये रक्तपिपासु लोग कुतरेन गांव में तीन आदिवासियों को मारकर और महिलाओं के साथ बलात्कार करके लौट रहे थे। लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि बस के अंदर जनता भी है। हमारे पास सूचना थी कि ये एसपीओ जनता को नीचे उतारकर बस में बैठ गये हैं। बस की छत पर भी यह सशस्त्र हत्यारे गिरोह बैठे हुए थे। अतः हमने इसे एक सैन्य लक्ष्य समझा और इस पर हमला किया। ज्ञानेश्वरी घटना में हमारा कोई हाथ नहीं है। इंदुवार के मामले में हमारी पार्टी स्पष्टीकरण दे चुकी है।

हत्यारे गैंगों और अपने ऊपर जारी अनवरत क्रूर हिंसा का मुकाबला करते हुए जनता कुछ जगहों पर अपवादस्वरूप बदले की भावना से ऐसी कार्रवाइयों का सहारा ले सकती है। जब तक हम देश में असमान सामाजिक परिस्थितियों को नहीं समझेंगे,इस समस्या को भी नहीं समझ सकते। एक अर्थ में शहरी क्षेत्रों में स्थितियां भिन्न हैं। सुदूर ग्रामीण इलाके में जहां सामंती उच्च जाति का दमन क्रूर रूप में मौजूद है और जहां जनता सलवा जुडूम,सेंद्रा, हरमदवाहिनी जैसे हत्यारे गैंगों द्वारा जारी अमानवीय हिंसा को झेल रही है तथा राज्य के व्यापक विध्वंसों का शिकार है, वहां प्रतिरोध कभी-कभी ऐसा रूप ले सकता है।

शहरी क्षेत्रों में भी उन बस्तियों में जहां जनता कुख्यात सूदखोरों,राजनीतिज्ञों,माफिया गैंगों और गैंगस्टर व राजनीतिज्ञों से सांठगांठ किये पुलिस अफसरों का शिकार है,वहां भी प्रतिरोध ऐसा रूप अख्तियार कर सकता है। नागपुर में कुख्यात बलात्कारी और गुंडे का बस्ती की महिलाओं द्वारा मारा जाना, ऐसे कई उदाहरणों में से एक है। यह महज एक स्पष्टीकरण है कि ऐसी घटनायें क्यों घटित होती हैं और यह बहुत साफ है कि हमारी पार्टी नीति के तौर पर ऐसी घटनाओं को अंजाम नहीं देती। हमारा दृष्टिकोण यह है कि हमें अपने लोगों और कैडरों को इस मामले में शिक्षित करना चाहिए। कारपोरेट घराने के दलाल बुद्धिजीवी तिल का ताड़ बनाते हुए हमारे खिलाफ कुत्सा प्रचार में लगे हुए हैं।

जमुई(बिहार)की घटना में सरकार प्रायोजित एक प्रतिक्रियावादी गैंग ने फुलवरिया कोदासी गांव में हमारे आठ कामरेडों को पकड़ लिया और उनके अंगों को काटकर जघन्य एवं क्रूर तरीके से उनकी हत्या कर दी थी। जब ऐसी घटनायें घटती हैं तब यदि हम चुपचाप बैठ जायें और कोई कार्रवाई न करें तो अपने आंदोलन और अपने लोगों की रक्षा कभी नहीं कर पायेंगे। इसीलिए हमें प्रति हमले के लिए बाध्य होना पड़ा। इस हमले में 3मुख्य गुंडा नेताओं सहित नौ लोग मारे गये। यह बहुत दुख की बात है कि एक महिला और बच्चा आग के घेरे में आ गये और दुर्घटनावश मारे गये। बाकी कुख्यात अपराधी,हत्यारे और लम्पट तत्व थे। हमारी बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी ने इस बारे में स्पष्ट वक्तव्य अखबारों में जारी किया था जो बिहार के अखबारों और माओवादी इंफार्मेशन बुलेटिन 17 में प्रकाशित हुआ था।

कुल मिलाकर कहें तो सरकार और उनके जरखरीद बुद्धिजीवी उन घटनाओं में जहां हमने गलतियां की हैं,वे हमारे स्पष्टीकरण को सुनने को तैयार नहीं हैं। अतः हम जनता और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों से अनुरोध करते हैं कि सरकार द्वारा चलाये जा रहे मनोवैज्ञानिक युद्ध के जाल में न फंसें। जनता के हितों की रक्षा के लिए बनी हमारी जनसेना,जनता के लिए अपनी जान न्यौछावर करती है। वह जनता को कभी नुकसान नहीं पहुंचा सकती। अतः प्रत्येक घटना के पीछे की सच्चाई को जानने का प्रयास कीजिये। हम किसी भी उचित आलोचना को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और प्रत्येक गलती को दुरूस्त करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।


माओवादियों की इसलिए भी आलोचना होती है कि पुलिस और अर्धसैनिक बल के जो जवान हमलों में जान गंवा रहे हैं,वे गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों से आते हैं। एक तरफ माओवादी कहते हैं कि वे उनकी मुक्ति के लिए हथियार उठाये हैं और दूसरी तरफ पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों को आपकी पार्टी मार हैं?

राजनीतिक रूप से सजग किसी भी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि राज्य मशीनरी,शोषण और दमन करने के लिए जिन उपकरणों का इस्तेमाल करती है उसके निर्णायक पहलू पुलिस,अर्धसैनिक बल और सेना ही हैं। शोषकों की संख्या हमेशा ही बहुत कम होती है। वे जनसंख्या के पांच फीसदी भी नहीं होते हैं,लेकिन उत्पादन के औजारों पर उनका नियंत्रण होता है और बहुमत बनाने वाली व्यापक जनता के दमन और शोषण के लिए वे पुलिस और सेना का निर्माण करते हैं। शासक इसके लिए जनता से ही नियुक्तियां करता है। इसलिए इन ताकतों का बहुमत गरीब और मध्यवर्ग से आता है। ये ताकतें शोषक वर्ग की तरफ से जनता के खिलाफ युद्ध चला रही हैं। चूंकि युद्ध में ये ताकतें अग्रिम पंक्ति में खड़ी होती हैं इसलिए यह अपरिहार्य है कि जनता के आत्मरक्षात्मक युद्ध में ये मारे जाते हैं। शोषण और दमन को खत्म करने,शोषित जनता की मुक्ति और इस पीड़ादायी स्थिति को खत्म करने के लिए यह आत्मरक्षात्मक युद्ध अपरिहार्य हो जाता है।

हमारे क्षेत्र में पुलिस और अर्धसैनिक बलों के कुछ लोग हमसे मिलते हैं। वे हमारी मदद करते हैं और हम भी अनेक तरह से उनकी मदद करते हैं। सरकारी बल जब बंदूक लेकर हमारे ऊपर हमला करने के लिए आते हैं, केवल तभी हम आत्मरक्षा में उन पर हमला करते हैं। हम बार-बार पुलिस और अर्धसैनिक बलों की निचली कतारों से अपील करते हैं कि अपने वर्ग से गद्दारी मत करो। शोषक वर्ग की सेवा मत करो। जनता और क्रांतिकारियों पर हमले मत करो। जनता के साथ एकजुट होकर अपनी बंदूकों को दुश्मन की ओर मोड़ दो। अपने वर्ग भाइयों और बहनों पर बंदूक मत चलाओ। आप जो कर रहे हैं इससे जनता की नहीं,शोषक वर्ग की सेवा हो रही है। अतः गुलामों की तरह शोषक वर्ग की सेवा बंद करो। सिर्फ अपनी जीविका के बारे में मत सोचो,कृपया देश और जनता के बारे में सोचो।

हम उनके परिवारों से भी अपील करते हैं कि वे यह देखें उनके परिवार के सदस्य अल्पकालिक लाभ के लिए इस शोषक व्यवस्था की सेवा न करें। वे उन्हें जनता का पक्ष लेने को उत्साहित करें। जब यह परिवार हमारे क्षेत्रों में निवास करते हैं तो हमारी जन सरकारें सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें उचित जीविका मिले और उनकी उचित सहायता की जाये।

(जारी...)


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