विकीलिक्स के खुलासों ने दुनिया भर में जिस तरह से खलबली मचाई है,वह इस बात का सबूत है कि इसके असर से मुख्यधारा और उससे इतर वैकल्पिक पत्रकारिता के स्वरुप,चरित्र और कलेवर में आ रहे परिवर्तनों का कितना जबरदस्त प्रभाव पड़ने लगा है.
आनंद प्रधान
विकीलिक्स ने मुख्यधारा की पत्रकारिता को निर्णायक रूप से बदलने की जमीन तैयार कर दी है.हम-आप आज तक पत्रकारिता को जिस रूप में जानते-समझते रहे हैं,विकीलिक्स के बाद यह तय है कि वह उसी रूप में नहीं रह जायेगी.
अभी तक हमारा परिचय और साबका मुख्यधारा की जिस कारपोरेट पत्रकारिता से रहा है,वह अपने मूल चरित्र में राष्ट्रीय,बड़ी पूंजी और विज्ञापन आधारित और वैचारिक तौर पर सत्ता प्रतिष्ठान के व्यापक हितों के भीतर काम करती रही है लेकिन विकीलिक्स ने इस सीमित दायरे को जबरदस्त झटका दिया है.यह कहना तो थोड़ी जल्दबाजी होगी कि यह प्रतिष्ठानी पत्रकारिता पूरी तरह से बदल या खत्म हो जायेगी लेकिन इतना तय है कि विकीलिक्स के खुलासों के बाद इस पत्रकारिता पर बदलने का दबाव जरूर बढ़ जायेगा.
असल में,विकीलिक्स के खुलासों ने दुनिया भर में खासकर अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान में जिस तरह से खलबली मचाई हुई है,वह इस बात का सबूत है कि विकीलिक्स के असर से मुख्यधारा और उससे इतर वैकल्पिक पत्रकारिता के स्वरुप,चरित्र और कलेवर में आ रहे परिवर्तनों का कितना जबरदस्त प्रभाव पड़ने लगा है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकीलिक्स की पत्रकारिता शुरूआती और सतही तौर पर चाहे जितनी भी ‘अराजक’,‘खतरनाक’और ‘राष्ट्रहित’को दांव पर लगानेवाली दिखती हो लेकिन गहराई से देखें तो उसने पहली बार राष्ट्रीय सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के संकीर्ण और काफी हद तक अलोकतांत्रिक दायरे को जोरदार झटका दिया है.
इस अर्थ में,यह सच्चे मायनों में २१ वीं सदी और भूमंडलीकरण के दौर की वास्तविक वैश्विक पत्रकारिता है.यह पत्रकारिता राष्ट्र और उसके संकीर्ण बंधनों से बाहर निकलने का दु:साहस करती हुई दिखाई दे रही है,भले ही उसके कारण देश और उसकी सरकार को शर्मिंदा होना पड़ रहा है.
सच पूछिए तो अभी तक विकीलिक्स ने जिस तरह के खुलासे किए हैं, उस तरह के खुलासे आमतौर पर मुख्यधारा के राष्ट्रीय समाचार मीडिया में बहुत कम लगभग अपवाद की तरह दिखते थे.लेकिन विकीलिक्स ने उस मानसिक-वैचारिक संकोच,हिचक और दबाव को तोड़ दिया है जो अक्सर संपादकों को ‘राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा’के नाम पर इस तरह की खबरों को छापने और प्रसारित करने से रोक दिया करता था.
दरअसल,राष्ट्र के दायरे में बंधी पत्रकारिता पर यह दबाव हमेशा बना रहता है कि ऐसी कोई भी जानकारी या सूचना जो कथित तौर पर ‘राष्ट्रहित’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के अनुकूल नहीं है, उसे छापा या दिखाया न जाए. इस मामले में सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि आमतौर पर ‘राष्ट्रहित’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की परिभाषा सत्ता प्रतिष्ठान और शासक वर्ग तय करता रहा है. वही तय करता रहा है कि क्या ‘राष्ट्रहित’ में है और किससे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ को खतरा है?
सरकारें और कारपोरेट मीडिया भले ही लोकतंत्र,अभिव्यक्ति की आज़ादी,पारदर्शिता,जवाबदेही,सूचना के अधिकार,मानव अधिकारों जैसी बड़ी-बड़ी बातें करते न थकते हों लेकिन सच्चाई यही है कि शासक वर्ग और सत्ता प्रतिष्ठान आम नागरिकों से जहां तक संभव हो,कभी ‘राष्ट्रहित’और कभी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर सूचनाएं छुपाने की कोशिश करते रहे हैं.
इसकी वजह किसी से छुपी नहीं है.कोई भी सरकार नहीं चाहती है कि नागरिकों को वे सूचनाएं मिलें जो उनके वैध-अवैध कारनामों और कार्रवाइयों की पोल खोले.सच यह है कि सरकारें ‘राष्ट्रीय हित और सुरक्षा’के नाम पर बहुत कुछ ऐसा करती हैं जो वास्तव में,शासक वर्गों यानी बड़ी कंपनियों, राजनीतिक वर्गों, ताकतवर लोगों और हितों के हित और सुरक्षा में होती हैं.
असल में,शासक वर्ग एक एक आज्ञाकारी प्रजा तैयार करने के लिए हमेशा से सूचनाओं को नियंत्रित करते रहे हैं. वे सूचनाओं को दबाने, छुपाने, तोड़ने-मरोड़ने से लेकर उनकी अनुकूल व्याख्या के जरिये ऐसा जनमत तैयार करते रहे हैं जिससे उनके फैसलों और नीतियों की जनता में स्वीकार्यता बनी रहे.मुख्यधारा का मीडिया भी शासक वर्गों के इस वैचारिक प्रोजेक्ट में शामिल रहा है.
लेकिन विकीलिक्स ने सूचनाओं के मैनेजमेंट की इस आम सहमति को छिन्न-भिन्न कर दिया है.इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वह किसी एक देश और उसकी राष्ट्रीयता से नहीं बंधा है.वह सही मायनों में वैश्विक या ग्लोबल है.यही कारण है कि वह राष्ट्र के दायरे से बाहर जाकर उन लाखों अमेरिकी केबल्स को सामने लाने में सफल रहा है जिसमें सिर्फ अमेरिका ही नहीं,अनेक राष्ट्रों की वास्तविकता सामने आ सकी है.
राष्ट्रों के संकीर्ण दायरे को तोड़ने में विकीलिक्स की सफलता का अंदाज़ा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि जूलियन असान्जे ने केबल्स को लीक करने से पहले उसे एक साथ अमेरिका,ब्रिटेन,फ़्रांस और जर्मनी के चार बड़े अख़बारों को मुहैया कराया और उन अख़बारों ने उसे छापा भी.
यह इन अख़बारों की मजबूरी थी क्योंकि अगर वे उसे नहीं छापते तो कोई और छापता और दूसरे, उन तथ्यों को सामने आना ही था, उस स्थिति में उन अख़बारों की साख खतरे में पड़ जाती. यह इस नए मीडिया की ताकत भी है कि वह तमाम आलोचनाओं के बावजूद मुख्यधारा के समाचार मीडिया का भी एजेंडा तय करने लगा है.
मामूली बात नहीं है कि विकीलिक्स से नाराजगी के बावजूद मुख्यधारा के अधिकांश समाचार माध्यमों ने उसकी खबरों को जगह दी है.यह समाचार मीडिया के मौजूदा कारपोरेट माडल की जगह आम लोगों के सहयोग और समर्थन पर आधारित विकीलिक्स जैसे नए और वैकल्पिक माध्यमों की बढ़ती ताकत और स्वीकार्यता की भी स्वीकृति है.
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि पिछले डेढ़-दो दशकों से मुख्यधारा की कारपोरेट पत्रकारिता के संकट की बहुत चर्चा होती रही है.लेकिन यह संकट उनके गिरते सर्कुलेशन और राजस्व से ज्यादा उनकी गिरती साख और विश्वसनीयता से पैदा हुआ है.
विकीलिक्स जैसे उपक्रमों का सामने आना इस तथ्य का सबूत है कि मुख्यधारा की पत्रकारिता ने खुद को सत्ता प्रतिष्ठान के साथ इस हद तक ‘नत्थी’(एम्बेडेड)कर लिया है कि वहां इराक और अफगानिस्तान जैसे बड़े मामलों के सच को सामने लाने की गुंजाईश लगभग खत्म हो गई है.
ऐसे में,बड़ी पूंजी की जकडबंदी से स्वतंत्र और लोगों के समर्थन पर खड़े विकीलिक्स जैसे उपक्रमों ने नई उम्मीद जगा दी है.निश्चय ही,विकीलिक्स से लोगों में सच जानने की भूख और बढ़ गई है.इसका दबाव मुख्यधारा के समाचार माध्यमों को भी महसूस हो रहा है.जाहिर है कि विकीलिक्स के बाद पत्रकारिता वही नहीं रह जायेगी/नहीं रह जानी चाहिए.
('राष्ट्रीय सहारा' से साभार )
Bahut hi Umda lekh hai guru. meri ray me sabhi patrkaron ko ise ek baar jaroor padhna chahiye.
ReplyDeleteanand pradhan ji thanks for a great writing.
'इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकीलिक्स की पत्रकारिता शुरूआती और सतही तौर पर चाहे जितनीभी ‘अराजक’,‘खतरनाक’और ‘राष्ट्रहित’को दांव पर लगानेवाली दिखती हो लेकिन गहराई से देखें तो उसने पहली बार राष्ट्रीय सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के संकीर्ण और काफी हद तक अलोकतांत्रिक दायरे को जोरदार झटका दिया है'.
ReplyDeleteआनंद जी आपने जिस भविष्य का अनुमान लगाया है वह बहुत ही सटीक है. पता नहीं हमारे देश में विकिलीक्स का जूठन कब गिरेगा और हम भी साहसिक पत्रकारिता के दो चार एपिसोड देख पाएंगे.
भाइयों विकिलीक्स ने वेब पत्रकारिता की ताकत दिखा दी. अब सवाल है अजय प्रकाश जैसे पत्रकार कुछ लीक से अलग कर पाते हैं या विकीलिक्स का गाना गाकर अपने कर्तव्यों को पूरा कर लेते हैं और किसी माफिया या बिल्डर के यहाँ कलमपुर्सी कर जीवन के सारे बसंत क्रांतिकारी पतझड़ के अफ़सोस में गुजार देते हैं . बुरा ना मानना भैये हमलोगों को तुमसे बड़ी आस है. बस इस आस रुपी घास को कभी उजड़ने न देना. जनपत्रकारिता के कई झंदाबर्दारियों को हमलोग देख रहे है और देख भी चूके हैं. जो अब कहीं हीरोइनों की कमर लचाकवा रहे हैं तो कुछ सवाल यह है, कहते -कहते भूल गए हैं पत्रकारिता किस सवाल के साथ शुरू की थी. अब वे तुकबंदी अपनी सारी काबिलियत लगा देते हैं. बस आज इतना ही फिर कभी और.
ReplyDeleteविकीलीक्स ने वाकर्इ वेब पत्रकारिता में जान डाल दी है.
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