Oct 24, 2010

बंटवारा समाधान नहीं

ये सच है कि बंदूकों और बूटों के बल पर देशभक्त नहीं पैदा किये जा सकते कश्मीर ही नहीं समूचे देश में मानवाधिकारों की स्थिति बेहद चिंताजनक है,लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए ये हमारे समय की समस्या है.

आवेश तिवारी

कश्मीर मसले पर  वहां की जनता का मत महत्वपूर्ण है,इससे  इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन ये भी उतना ही बड़ा सच है कि किसी को भी वहां की जनता पर जबरिया या फिर वैचारिक तौर पर गुलाम बनाकर या उनका माइंडवाश करके उन पर शासन करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता.

अरुंधती जब कश्मीरियों को आजादी देने के लिए हिंदुस्तान में हिन्दू और आर्थिक अधिनायकवाद का उदाहरण देती हैं ,तो ये साफ़ नजर आता है कि वो श्रीनगर में रहने वाले उन २० हजार हिन्दू परिवारों या फिर ६० हजार सिखों के साथ-साथ उन मुसलमानों के बारे में बात नहीं कर होती हैं जिन्हें आतंकवाद ने अपनी धरती,अपना घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया. 

ये सच है कि बंदूकों और बूटों के बल पर देशभक्त नहीं पैदा किये जा सकते कश्मीर ही नहीं समूचे देश में मानवाधिकारों की स्थिति बेहद चिंताजनक है,लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए ये हमारे समय की समस्या है. इसका समाधान राजनैतिक और गैर राजनैतिक तौर से किये जाने की जरुरत है.

कभी अरुंधती ने देश की जनता या फिर अपने चाहने वालों से कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर आन्दोलन चलाने की बात तो नहीं की,हाँ पुरंस्कारों के लिए कुछ निबंध या किताबें लिख डाली हो तो मैं नहीं जानता. लेकिन अरुंधती जैसे लोगों के द्वारा मानवाधिकारों की आड़ में राष्ट्र के अस्तित्व को चुनौती दिया जाना कभी कबूल नहीं किया जा सकता.

दिल्ली : कश्मीरियों को मिले न्याय  सम्मलेन में अरुंधती  
मुझे याद है अभी एक साल पहले मेरे एक मित्र ने अरुंधती से जब ये सवाल किया कि आप कश्मीर फ्रीडम मूवमेंट के समर्थन में हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं… "मैं कश्मीर के फ्रीडम मूवमेंट के समर्थन में हूं ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि वहां एक मिलिटरी ऑकुपेशन (सैन्य कब्जा) हैं। कश्मीर में आजादी का आंदोलन बहुत पेचीदा है। अगर मैं कहूं कि मैं उसके समर्थन में हूं तो मुझसे पूछा जाएगा कि किस मूवमेंट के। ये उन पर निर्भर करता है। एज ए पर्सन हू लिव्स इन दिस कंट्री आई कैन नॉट सपोर्ट द सेपेरेशन ऑफ पीपुल इन दिस मिलिट्री ऑकुपेशन"। और अब वही अरुंधती कहती हैं भारत को कश्मीर से और कश्मीर से भारत को अलग किये जाने की जरुरत है .

एक ही सवाल पर बयानों में ये दुहरापन चरित्र का संकट है ,जो अरुंधती पर निरंतर हावी होता जा रहा है. अरुधती जैसे लोगों के अस्तित्व के लिए पूरी तौर पर समकालीन राजनीति जिम्मेदार है ,वो राजनीति जिसने भ्रष्टाचार के दलदल में पैदा हुई आर्थिक विषमता और अप-संस्कृति को ख़त्म करने के कभी इमानदार प्रयास नहीं किये ,कभी ऐसे प्रयोग नहीं किये जिससे कश्मीर की जनता देश की मिटटी ,देश के पानी ,देश के लोगों से प्रेम कर सके.

कांग्रेस और फिर भाजपा ने सत्तासीन होने के बावजूद कभी भी कश्मीर और कश्मीर की अवाम की आत्मा को टटोलने और फिर उसे ठेंठ हिन्दुस्तानी बनाने के लिए किसी  किस्म के प्रयोग नहीं किये,अगर कोई प्रयोग हुआ तो सिर्फ सेना का या पाकिस्तान से जुड़े प्रोपोगंडा का. जिसने हमें बार बार बदनाम किया,और अब अरुंधती और गिलानी जैसे लोगों के हाँथ में हिंदुस्तान को कोस कर अपना खेल खेलने का अवसर दे दिया.

अरुंधती और उनकी टीम का यह रवैया  नाकाबिले बर्दाश्त है. बाबरी पर हमला या फिर गोधरा एवं बाद में पूरे गुजरात में हुई हत्याएं भी इसी श्रेणी में आती हैं. कहते हैं व्यक्ति को तो माफ़ किया जा सकता है मगर राजनीति में माफ़ी नहीं होती.हिंदुस्तान की राजनीति में जो गलतियाँ हुई उनका खामियाजा न सिर्फ कश्मीर बल्कि पूरा देश भुगत रहा है.व्यवस्था के पास बहाने हैं और झूठे अफ़साने हैं. अगर गांधी जीवित होते तो शायद कश्मीर में जाकर वहीँ अपना आश्रम बनाकर रहने लगते और कश्मीरियों से कहते हमें एक और मौका दो,फिर से देश को न बांटने को कहो. 



आवेश तिवारी  इलाहाबाद और लखनऊ  से प्रकाशित हिंदी दैनिक डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में ब्यूरो प्रमुख हैं उनसे   awesh29@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

2 comments:

  1. arundhati par saval uthakar mahan banane kee koshish bhar hai, baat tarksangat hokar ho ato accha. kam se kam arundhati kisi puraskar kee mohtaj nahin hai.

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  2. अरुंधती देश की एक ऐसी बुद्धिजीवी हैं जो विरोध की बुद्धिजीविता करती हैं, और कई बार वह मार्क्सवाद की धुर विरोधी दिखती हैं. आउटलुक में छपे लेख को सन्दर्भ के तौर पर देखा जा सकता है.

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