Oct 30, 2010

पेडों के साथ गई, पेडों की छाँव रे

नर्मदा आंदोलन के पचीस वर्ष पूरे होने पर संघर्ष  को समर्पित एक गीत...


प्रशांत दुबे


देखो देखो देखो देखो, उजड़ गए गाँव रे ।

पेडों के साथ गई, पेडों की छाँव रे॥

हम माझी बन खेते रहे, समय की धार को ।

जाने काये डुबो दई, हमरी ही नाव रे॥



खेत हमरा जीवन है, धरती हमरी माता है।

इनसे हमारा सात जन्मों का नाता है॥

बांध तुम बनाते हो, हमें क्यूँ डुबाते हो।

हमारे खेतों में क्यूँ, बारूदें बिछाते हो॥

अपने स्वार्थ को विकास कह के तुमने।

हमरा तो लगा दिया, जीवन ही दाँव रे॥

पेडों के साथ गई........................................।




पुरखों से जीव और, हम साथ रह रहे।

पत्थरों को चीर कर, प्रेम झरने बह रहे॥

हम जंगल में जीते हैं, हमें क्यूँ भगाते हो।

पर्यावरण के झूठे आंसू क्यों बहाते हो॥

हमरी रोजी,हमरी बस्ती छीन कर सरकार ने ।

अपनों से दूर कर, कैसा दिया घाव रे॥

पेडों के साथ गई........................................।



http://www.cgnetswara.org/   से साभार

2 comments:

  1. Nirmal kumar, raipurSaturday, October 30, 2010

    main bus itna kah sakta hun is kavita ko padhakar hindi ke kaviyon ko likhna sikhna chahiye .... bahut sundar kavita

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  2. jindagi jikar likhi kavita, jeevan se otprot hai.kaha jata hai jindagi najdeek se dekhna aur kitabon ka bojh dhote rahne se bahoot jyada kareeb ka anubhav deti ha aur vah yahan sakar hota dikh raha hai. bahut khub janab....badhai

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