पंकज कुमार
विधानसभा चुनाव बिहार में है,लेकिन इससे हजारों किलोमीटर दूर इसकी सरगर्मी राजधानी दिल्ली में भी महसूस की जा सकती है। राजधानी दिल्ली में कहने का मतलब अलग-अलग पार्टी के मुख्यालयों और नेताओं की जोड़तोड़ से नहीं,बल्कि उन प्रवासी बिहारवासियों से है,जो रोजगार और बेहतर भविष्य की तलाश में राजधानी और दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर गए।
प्रवासी बिहारी भले ही अपनी मिट्टी से दूर हो गए हैं लेकिन उनका जुड़ाव अभी भी कम नहीं हुआ है। उनकी आंखों में अपने बिहार को समृद्ध और विकसित राज्य बनते देखने की ललक है। ऐसे में जब प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं तो चुनावी हलचल दिल्ली में भी है। इसी संदर्भ में दिल्ली के मालवीय स्मृति भवन में परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसका विषय था ‘बिहार विमर्श‘। बिहार विमर्श का मुख्य मकसद बिहार से बाहर गए लोगों को बिहार से जोड़ना,साथ ही वोट की ताकत के जरिए सही हाथों में नेतृत्व सौंपना।
यह कोई राजनीतिक मंच या फिर किसी पार्टी विशेष की ओर से आयोजित परिचर्चा नहीं थी बल्कि दिल्ली में रहकर बिहार के दर्द को समझनेवालों की जमात थी। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने प्रवासी बिहारियों से आह्वान किया कि वो वोट देने जरूर जाएं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में आपको पांच साल में एक बार मौका मिलता है और इसे चूकना नहीं है।
‘‘चलो बिहार‘‘ का नारा देते हुए संजय पासवान ने किसी राजनीतिक दल का नाम लिए बगैर लोगों को सावधान भी किया। उन्होंने कहा कि वह वोट देने बिहार जरुर जाएं,लेकिन तीन बलियों से सावधान रहें। तीन बालियों के कहने का मतलब-बाहुबली,धनबली और परिवारबली। इन तीन बलियों के खिलाफ मतदाताओं को एकजुट होकर अपने आत्मबल से चोट करने को कहा। इस चुनाव में अगर हम बाहुबली,धनबली और परिवारबली को पटखनी दे देंगे तो बिहार में हालात बदलने से कोई नहीं रोक सकता।
‘‘चलो बिहार‘‘ का नारा देते हुए संजय पासवान ने किसी राजनीतिक दल का नाम लिए बगैर लोगों को सावधान भी किया। उन्होंने कहा कि वह वोट देने बिहार जरुर जाएं,लेकिन तीन बलियों से सावधान रहें। तीन बालियों के कहने का मतलब-बाहुबली,धनबली और परिवारबली। इन तीन बलियों के खिलाफ मतदाताओं को एकजुट होकर अपने आत्मबल से चोट करने को कहा। इस चुनाव में अगर हम बाहुबली,धनबली और परिवारबली को पटखनी दे देंगे तो बिहार में हालात बदलने से कोई नहीं रोक सकता।
इस मौके पर ‘यूथ यूनिटी फॉर वाइब्रेन्ट एक्शन’संगठन के संयोजक विनय सिंह ने प्रवासी बिहारवासियों को वोटर आइकार्ड नहीं होने की बात उठाई। विनय सिंह ने कहा कि जो लोग पलायन कर दूसरे राज्य चले गए उनकी न तो गृह क्षेत्र में अब कोई पहचान है और न ही बाहर। ऐसे लोगों की संख्या लाखों में हैं जो बिहार जाकर वोट डालना तो चाहते हैं लेकिन अपने ही घर में बेगाने हैं। जबकि करीब 10लाख बांग्लादेशियों को पहचान पत्र हासिल हो चुके हैं।
ऐसे में बिहार को बदलते हुए देखने वाले लोग क्या करें और उन्हें बिहार क्यों जाना चाहिए?इस पर फिजीकल फाउंडेशन ऑफ इंडिया के पीयूष जैन ने कहा कि वह बिहार के वोटरों के उत्साहवर्द्धन के लिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रवासी बिहारवासी जो वोट भले ही न डाल पाएं,लेकिन सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास करेंगे।
अच्छी सरकार के लिए मतदान को अनिवार्य बताने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल ने कहा कि चुनाव के समय वोटरों को दो काम करना चाहिए-चुनाव लड़े या वोट दें। दोनों में से कोई काम नहीं करने पर बिहार की दुर्दशा पर बोलने का कोई अधिकार नहीं। प्रोफेसर के मुताबिक‘एक्सरसाइज फ्रेंचाइजी फॉर गुड गवर्नेंस’संगठन के जरिए वह वोटरों को जागरूक करने में जुटे है और विधानसभा चुनाव के लिए वोटरों को जागरूक करने का काम कर रहे है।
वहीं बिहार विमर्श विषय पर बोलते हुए एसके झा ने राज्य के प्रत्यक्ष और अप्रत्क्ष दोनों रूप से बदहाली के लिए नेताओं को जिम्मेदार ठहराया। उनके मुताबिक नेताओं ने बिहार को भारत का उपनिवेश बना दिया है जहंा जनता सरकार तो चुनती है लेकिन फायदा दूसरे राज्यों को मिलता है।
बिहार में 243सीटों के लिए पांच चरणों में चुनाव होने वाले हैं और राज्य के पांच करोड़ 50 लाख 88 हजार वोटर इस विचार विमर्श में जुटे है कि किसे अगले पांच के लिए राज्य की तकदीर सौंपे। बिहार में इन दिनों चौक-चौराहे राजनीतिक मंच में तब्दील होना समझ में आता है।
दिल्ली में रहने वाले प्रवासी बिहारवासियों के बीच चुनाव को लेकर कौतूहल को समझने के लिए अलग नजरिया चाहिए। ऐसा नजरिया जिसमें पलायन का दर्द,अपनों से दूर होने की कसक,अपनी मिट्टी से जुड़ी यादें,दूसरे राज्यों में हो रही उपेक्षा और इन सबके बीच 21वीं सदी में संपन्न बिहार को देखने का सपना शामिल है।
लेखक 'शिल्पकार टाइम्स' हिंदी पाक्षिक अख़बार में सहायक संपादक है इनसे kumar2pankaj@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है.
bihar me is baar ka chunav apne aap me important hai, aur is baar is chunav ko lekar kai sari party ne kafi interest liya hain sath hi nitish ki upladhi ne ise aur bhi important bana diya hai. aise me delhi tak bihar ki chunavi sargarmi na pahunche, aisa kaise ho sakta hai?
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