Oct 20, 2010
कश्मीर की घाटी, दक्खन का पठार
हाल ही में जनज्वार पर प्रकाशित वरवर राव की कविता 'अपना नाम कल वियतनाम आज कश्मीर' के बाद अब तेलगू से अनुदित उनकी कश्मीर पर दूसरी कविता पढ़ें...
वरवर राव
घायल दिल ही देख पाता है जिसे
ऎसे गहरे दिलों की घाटी
सिर उठाए संघर्ष कर सकते हैं जो
उन जैसी दिलेर घाटी
स्वर्ग और नरक ने शायद झाँककर देखा भी हो
पर सूरज और चँदा के
अँधेरे उजालों की आँख मिचौली
आकाश कुसुम ही है वहाँ
देवदार वृक्षों की देह दृढ़ता
गुलमोहर फूलों की कोमलता
बर्फ-सा पिघलने वाला मन
नदियाँ-सी बहने वाली जीने की चाह
कश्मीर नींद से वंचित लोगों का है दिवास्वप्न
जागती संघर्षरत शक्तियों का है
अधूरा सपना
सिर से पैर तक आज़ादी की चाह लिए
पार कर लोहे के कंटीले बाड़
करके कर्फ्यू का सामना
सैनिकों के घेरे में बदन को ही हथियार-सा घुसाकर
गोली खाकर धराशाही होने वाले
चिड़ियों का झुँड बन जाते हैं
आँसुओं का बर्फ पिघलकर
बहता है लहू बनकर
भारत का मन मोहने वाला शासन
कर लेता है जब परमाणु अणुबंध अमेरिका से
आइनस्टीन का डर सच हो जाता है
वहाँ के लोगों के हाथ तो
पत्थर ही आए अपनी सुरक्षा के लिए
दूधमुँहें बच्चे, नौजवान, औरतें
बन गए आज़ादी की जीती जागती ज्वालाएँ
कश्मीर आज बना केसर के फूलों का गुलशन
सुलगने से रोम-रोम में आज़ादी
छितरने लगे हैं ख़ून के छींटे
सहानुभूति मत दिखाइए
उनमें से एक बन जुड़ जाइए उनके साथ
भारत में ही अलग होने की बात सुन
देशद्रोही कहने वाले फासिस्ट
भारत के कब्जे में फँसी जनता का
क्या हाल कर सकते हैं कल्पना कीजिए
पुलिस कर्रवाई के नाम पर
सेना से आक्रमण कराने वाला यूनियन
सात आदमी के लिए एक सैनिक के हिसाब से
दमन काण्ड कर रहा है कितने सालों से सोचिए
कश्मीर की घाटी और दक्खन के पठार का
दुश्मन तो है एक
वह दिल्ली में बैठा
अमेरिका के हाथों की कठपुतली
श्रीनगर गोल्फ में
और हैदराबाद के सचिवालय में
दलाल नियुक्त है उसके
मनुकोटा में हमसे फेंका गया पत्थर
कश्मीर में उनसे फेंका गया पत्थर
उसी दुश्मन को निशाना बनाए हुए हैं
उस पर आइए मिलकर हमला करें
अनुवादः आर. शान्ता सुन्दरी
(क्रांतिकारी कवि वरवर राव विप्लव रचयिता संघम के संस्थापक सदस्य हैं .हथियारबंद जनसंघर्षों के पक्षधर होने की वजह से उन्हें अबतक छह वर्ष कारावास में गुजारने पड़े हैं. कारावास के अनुभव पर उनकी लिखी 'जेल डायरी' प्रकाशित हुई है.)
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