Sep 9, 2010

गुजरात नरसंहार के बाद भी उठा था सवाल

भाग - १
माओवादियों और सरकार के बीच शांतिवार्ता में  स्वामी अग्निवेश की भूमिका पर  उनके साथियों ने ही जो सवाल उठाये हैं  (शांति दूत की जगह चुनावी एजेंट बने अग्निवेश !) , वह साफ कर देता है कि स्वामी जी  की शांतिवार्ता नायकत्व की चालाकी थी.स्वामी अग्निवेश की इस चालाकी से निराश वह लोग जो उन्हें पहले से एक प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष शख्सियत मानते रहे हैं,उन्हें तब और निराशा होती है जब २००२ के गुजरात नरसंहार को लेकर  प्रो.शम्सुल इस्लाम, स्वामी अग्निवेश की गतिविधियों को केंद्र में रख एक हिन्दू सांप्रदायिक नेता के बतौर  विश्लेषित एक खुला पत्र जारी करते हैं. 

यह पत्र उन सभी लोगों को हतप्रभ कर देने वाला है जो स्वामी जी को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं और उन वामपंथियों के लिए ककहरा है जो स्वामी जी से लाल सलाम सुनकर लहालोट हुए जा रहे हैं.शम्सुल इस्लाम द्वारा लिखित यह पत्र गांधीवादी नेता स्व.निर्मला देश पाण्डेय और स्वामी अग्निवेश को संबोधित है.याद होगा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के भारत आगमन पर जब पुरे देश में जबरदस्त विरोध हो रहा था,तो जो पांच सामाजिक कार्यकर्त्ता बुश के स्वागत में मिलने गए थे उनमें स्वामी अग्निवेश और देशपांडे भी शामिल थीं.  


मनमोहन सिंह का मुखड़ा लिए शम्सुल: विरोध दर्ज कराया
शम्सुल इस्लाम 


निर्मला दीदी और स्वामी जी,

आप दोनों की आत्मा पवित्र है और हममें से कई मानते हैं कि आप दोनों सच के आलंबरदार हैं!इसके बावजूद, अप्रैल 1 से 4 2002 के दौरान गुजरात में ‘करुणा की तीर्थयात्रा’ (पीओसी) नामक कार्यक्रम के दौरान आपके व्यवहार से हमें गहरी निराशा हुई है और हमारे दिल को चोट पहुंची है.अगर आप सचमुच वैसे ही हैं जैसा कि आप दावा करते हैं तो हमारी मांग है कि आप हमारे कुछ सवालों का जवाब दीजिए!

इन सवालों को आप ये कहकर खारिज नहीं कर सकते कि निशांत नाट्य मंच भी उस भीड़ का हिस्सा था जो पीओसी (पीस  कमिटी )में शामिल था  और हम कैसे आपसे सवाल करने की जुर्रत कर सकते हैं? निश्चित तौर पर हम सब पीओसी के अछूत हैं,लेकिन इस देश के अछूतों को भी आप जैसी पवित्र आत्माओं की मंशा जानने का हक है.हम आपको बताना चाहते हैं कि ये मुद्दा इसलिए नहीं उठा रहे हैं कि हम व्यक्तिगत रूप से आहत हैं,बल्कि उस जरूरी वजह से उठा रहे हैं जिससे धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ संघर्ष कमजोर पड़ रहा है.ये फासीवादी ताकतों की मजबूती की वजह से नहीं हो रहा है,बल्कि उन गद्दारों की गुप्त मंशाओं के कारण हो रहा है जो लोकतांत्रिक और सहिष्णु होने का चेहरा चिपकाए घूमते हैं.

आप इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि यहां पर उठाए जा रहे बहुत से मुद्दे पीओसी के दौरान हर दिन आपके संज्ञान में लाए गए हैं.तब आपसे से ये अनुरोध किया गया था कि इन मुद्दों पर पूरे ग्रुप के सामने चर्चा होनी चाहिए,लेकिन आपने उन बातों को तवज्जो नहीं दी और पीओसी को बपौती की तरह इस्तेमाल किया.

हमारे सवाल कुछ इस तरह हैं- 

1. क्या यह सच है कि ‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद’, दिल्ली के बैनर तले मुस्लिम विरोधी और दलित विरोधी दो पेज का पर्चा बांटा गया था?ये वही संगठन है जो पीओसी को एक अप्रैल को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक विदा करने आया था.पीओसी के सदस्यों ने जब इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा तो उनसे क्या कहा गया था? क्या आपने इस तरह का फासीवादी पर्चा बांटने वालों के खिलाफ कहीं एफआईआर दर्ज कराई थी?इस तरह के पर्चे देश के एक खास समुदाय के खिलाफ जहर फैलाने का काम कर रहे थे और ये भारतीय दंड संहिता का सरेआम उल्लंघन हैं?

2. ट्रेन (फ्रंटियर मेल) के अंदर हिंदी के जिस पर्चे को बांटा गया था उसे यहां फिर से दोबारा छपवाया गया.निश्चित तौर पर आपके पास इस पर्चे की मूल कॉपी होगी.और अगर नहीं है तो हम इसकी फोटोकॉपी आपको भेज सकते हैं.जिस संगठन के लोग पर्चे बांट रहे थे उसका नेतृत्व अनिल आर्य नाम का आदमी कर रहा था.ये वही अनिल है जिसने न केवल स्वामी जी और निर्मला दीदी का फूलों का हार पहना कर स्वागत किया था,बल्कि पूरे कार्यक्रम की फोटोग्राफी भी की थी.ये फोटोग्राफ दिल्ली के कई अखबारों में प्रकाशित हुए थे और जांच के लिए अभी भी उपलब्ध हैं.

 अनिल आर्य ने मार्च 31,2002को 'गुजरात दंगों की सच्चाई क्या है?'शीर्षक से जो पर्चा बांटा था उसका एक नमूना देखें...

 ये (गुजरात दंगे)सांप्रदायिक नहीं थे,बल्कि ये पाकिस्तान और पश्चिमी देशों द्वारा भारत के खिलाफ भड़काया गया (एक किस्म)गृहयुद्ध था.पाकिस्तान की आईएसआई और मुस्लिम एजेंट गुजरात के गांव-गांव तक पहुंच चुके हैं. हमने मुस्लिम कार्यकर्ताओं के साथ लंबी बातचीत की. बातचीत के दौरान उन लोगों ने हमें बताया कि माधव सिंह सोलंकी और अमर सिंह चौधरी के राज में हुए दंगों के दौरान हिंदुओं के खिलाफ लड़ते हुए औऱ लोगों की हत्या करते हुए उन्होंने इसका लंबा अनुभव प्राप्त कर लिया है.मुसलमानों की पुरानी और नई पीढ़ी लड़ाई में माहिर हो चुकी है.परिस्थिति के मुताबिक उनके पास हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज उड़ाने की क्षमता है.सिमी के कई कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि उनका मकसद हिंदू बहुल इलाकों में बम गिराना है,आतंक फैलाना है और इन इलाकों को अपने कब्जे में लेना है.अहमदाबाद, पुरानी दिल्ली,है दराबाद और अजमेर को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.

गले में गमछा लटकाए अनिल आर्य, स्वामी अग्निवेश के साथ
आज स्थिति ये है कि गुजरात के हर हाईवे के नजदीक पाकिस्तानी एजेंटों ने अपनी कॉलोनी बना ली है.बड़े-बड़े घर,हॉल और आधुनिक सुख-सुविधाओं और तहखानों से सजी-धजी हजारों मस्जिदों का निर्माण किया गया है.मुस्लिम गुंडों और आपराधिक गैंगों की उपस्थिति से आतंक फैल रहा है.हिंदू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर उनसे शादी करना और फिर उनका धर्म परिवर्तन कराना आम बात हो चुकी है. आतंक फैलाकर हिंदू कॉलोनियों को खाली कराया जा रहा है.
{ हस्ताक्षर- मित्र महेश आर्य (अध्यक्ष आर्य केन्द्रीय सभा, अहमादाबाद), शरद चंद्र आर्य (मंत्री आर्य केन्द्रीय सभा, अहमदाबाद), अनिल आर्य (अध्यक्ष, केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली) 

3. क्या यह सच है कि पीओसी के अधिकांश सदस्य गांधी आश्रम द्वारा संचालित एक दलित स्कूल में ठहरे थे और इस स्कूल के लड़के और लड़कियों (उम्र- 5 साल से 12 के बीच) को पानी भरने, बिस्तर सजाने और सफाई करने के काम में लगाया गया था? क्या ये सच है कि इन बच्चों को रात के 2 बजे उठा दिया जाता था और अगले दिन का खाना बनवाया जाता था? क्या वहां ऐसे लोग भी मौजूद जिन्होंने इस तरह की अमानवीय स्थितियों का विरोध किया था और खाने से इंकार किया था?

4. क्या ये सच है कि पीओसी के सदस्यों को गैरमुस्लिम इलाकों में जाने और शाति का संदेश प्रसारित करने की इजाजत नहीं दी गई?ऐसा क्यों हुआ कि हममें से कुछ लोगों ने जब पर्चा बांटने की कोशिश की तो उनको ऐसा करने से मना कर दिया गया.ऐसा क्यों हो रहा था कि केवल मुस्लिम राहत शिविरों में तो हम पीओसी का बैनर लगाते थे,लेकिन जब दूसरे इलाकों में होते थे तो इसे छिपाकर रखते थे?क्या आप ये मानते थे कि गैर मुस्लिम इलाकों में शांति का संदेश प्रसारित करने की कोई जरूरत नहीं,ये केवल मुसलमानों की समस्या है?क्या आपको वड़ोदरा की वो घटना याद है जहां धर्मनिरपेक्ष लोगों के एक स्थानीय समूह ने आपको सड़क पर उतरने के लिए बाध्य कर दिया था और निशांत नाट्य मंच ने हिंदुओं के बीच सांप्रदायिकता के मसले पर जोरदार हस्तक्षेप किया था.

5. देलोल गांव में जो हुआ क्या आपको उस बारे में शर्म आती है? हो सकता है आप इसे भूल गए होंगे, लेकिन हम उन घटनाओं को एक बार फिर सिलसिलेवार तरीके से आपके सामने रखना चाहते हैं?यह गांव वड़ोदरा और गोधरा हाईवे के बीच में है और दुर्भाग्य से मुसलमानों के संपूर्ण सफाये की वजह से सुर्खियों में है.मुसलमानों की संपत्तियों को यहां पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है और करीब 30 लोगों की हत्या की गई है. जब हम लोग गोधरा में थे तो इस गांव के कई मुसलमानों ने दीदी और स्वामीजी से अनुरोध किया वो इस गांव का दौरा करें.

गोधरा में इस बात का ऐलान किया गया था कि हमारी यात्रा इसी गांव में जाकर समाप्त होगी. हम दो बसों में सवार होकर इस गांव में पहुंचे.वहां पहुंचने पर हमने देखा कि जिन दो बसों में आप लोग सवार थे उसे वहां पार्क कर दिया गया है.स्वाभाविक तौर पर निशांत के लोग गांव में गए और उन्होने वहां भगत सिंह,रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला और चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों के साथ सांप्रदायिक सौहार्द के गीत गाने शुरु किए.इन गीतों में कहा गया था कि हम सबके शहीद एक हैं, हमारी विरासत एक है इसलिए धार्मिक पहचान के आधार पर लड़ाई व्यर्थ है.

गांव की सभी औरतें, बूढ़े, और बच्चे जो कि हिंदू थे बड़ी तन्मयता के साथ इन गीतों को सुन रहे थे. हम करीब 30 -35 मिनट तक गांव में थे तभी विश्व हिंदू परिषद के लोग 20-25 युवकों के साथ मारने-पीटने के मकसद के साथ गालियों की बौछार करते हुए हमारी तरफ बढ़े. हम गीत सुनते रहे, जबकि वो लोग हाथापाई पर उतर आये.गांव के लोगों ने बीचबचाव किया और उनसे चले जाने के लिए कहा.तभी अचानक पुलिस की एक जीप वहां प्रकट हुई और पुलिस अधिकारी हमें ये कहते हुए डांटने लगा कि जब आपके नेताओं ने वहां जाने की हिम्मत नहीं की तो आप यहाँ कैसे हैं? तब तक हमें ये नहीं मालूम था कि आप दोनों ने बस में ही रहने का फैसला किया था और पुलिस को भी ये बात मालूम थी.हम लोग अभी भी इस बात से व्यथित हैं कि आपने खुले तौर पर हमसे ये बात साझा नहीं की.

आखिर में हम ये जानना चाहते हैं कि अगर आपने इस गांव में नहीं जाने का फैसला किया था तो फिर गांव के बाहर अपनी बस क्यों पार्क की?क्या आप इस बात का इंतजार कर रहे थे कि हममें से किसी को पीट दिया जाए?

(पत्र का शेष भाग अगली पोस्ट में देखें  )

अनुवाद - विडी 



4 comments:

  1. agnivesh to lal dikhne kee koshish men lage the, ab lagta hai bhagava ban kar lal salam kahenge.

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  2. swamiji ka pardafas jaruri tha kyonki inhone pura jeevan hi natak kar gujara hai.

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  3. प्रिय अजय,

    यह त्वरित प्रतिक्रिया शम्सुल के ख़त को पढ़ कर लिख रहा हुं. भगवाधारी स्वामी अग्निवेश न तो पहले कभी धर्म निर्पेक्ष थे न अब हैं और न भविष्य में कभी होंगे. शम्सुल, नीलिमा और उनके साथियों ने बहुत माक़ूल स्वाल उठाये हैं. इन साथियों को सलाम. श्वामी अग्ब्निवेश इसका जवाब क्या देंगे ? अल्बत्ता, आत्मालोचन के लिए भी उन्हें अपना धार्मिक चोला उतारना होगा. दर असल, अरुन्धती और मेधा पाट्कर जैसे लोगों ने स्वामी अग्निवेश जैसे सन्दिग्ध स्वयंभू मध्यस्थों को फलने फूलने का मौक़ा दिया है और हम लोगों ने भी कभी न तो स्वामी से जवब तलबी की और न अरुन्धती और मेधा पाट्कर जैसे लोगों से. भूल हमारी भी है. एक सवाल तो समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक श्री आनन्दस्वरूप वर्मा से भी पूछा जाना चाहिए जो स्वामी के लिए उपयुक्त ज़मीन तैयार करने वालों मे अग्रणी हैं. मेरी समझ से तो शम्सुल का ख़त परोक्ष रूप से उन्हें भी सम्बोधित है.

    नीलाभ

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  4. राजीव राय, आपका एक पुराना साथीFriday, September 10, 2010

    बेशक आनंद स्वरुप वर्मा को भी जवाब देना चाहिए. तीसरी दुनिया में अग्निवेश का छपा साक्षात्कार जिसने भी पढ़ा है उससे मैं साझा करना चाहूँगा कि यह साक्षात्कार अग्निवेश को क्या महान बनाने के लिए नहीं है. अग्निवेश सार्वजनिक मंचों पर जो महानता के गीत गाते रहे हैं उसको बातचीत बना देना कौन सी वैकल्पिक मीडिया है. साक्षात्कार में ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से अग्निवेश को विशाल जगह कवर पर दी गयी है. इसमें अग्निवेश का एहसान कितना है और वर्मा जी की माओवादी पक्षधरता कितनी.

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