Sep 4, 2010

कहते हैं पाकिस्तान गए होंगे


अफगानिस्तान में 1000 लोगों पर 25 अमेरिकन आर्मी है, जबकि कश्मीर में 1000 पर 70 आर्मी है। बावजूद इसके भारत-पाक दोनों देशों की इस समस्या को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखती  और हम कश्मीरियों को  सिर्फ मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है...

सुनील गौतम

‘मैं हिंसा और विरोधाभास के बीच पैदा हुई हूं। मैंने जितनी सांसें नहीं ली हैं, उससे भी कहीं ज्यादा गालियों की आवाजें सुनी हैं।’इन्शाह मलिक द्वारा कही गयी उपरोक्त बातें अपनी पहचान की जद्दोजहद में जूझते जम्मू और कश्मीर की हालत खुद-ब-खुद बयां करते हैं।

कश्मीर से ताल्लुकात रखने वाली और टाटा इनस्टीट्यूट ऑफ  सोशल साइंस मुंबई की छात्रा इन्शाह आगे कहती हैं -‘यह संघर्ष सिर्फ ‘कश्मीर बचाओ आंदोलन’के सदस्यों का नहीं,बल्कि उन तमाम कश्मीरी युवाओं का है जो अपनी अस्मिता और पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम भारतीय सेना के एके-47का मुकाबला पत्थरों से कर रहे हैं। इस लड़ाई में मुझ जैसे लाखों  कश्मीरी शामिल हैं,जो डर और विरोधाभास के साये में पैदा हुए हैं। यह लड़ाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हमारे साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया जाता है। हम अपने ही देश में दूसरे ग्रह के जीव के रूप में जीवन-यापन कर रहे हैं और यही हमारी लड़ाई का मूल कारण है। हमारी यह लड़ाई नेता विहीन है और इसका कोई राजनीतिक मकसद भी नहीं है।’

‘कश्मीर बचाओ आंदोलन’ द्वारा 23 अगस्त 2010 को जारी की गयी प्रेस रिलीज में साफ तौर पर कहा गया है कि जून 2010 से अब तक 63 युवक भारतीय फौज की गोलियों के शिकार हो चुके हैं। पिछले तीस सालों में एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। आखिर कब तक हम इस तरह की फौजी कार्रवाई को मूकदर्शक बनकर देखते रहेंगे।

दिल्ली के जामिया इस्लामिया में पढ़ने वाली फरीदा खान ने कहा कि ‘कश्मीर के हर युवक में गुस्सा काफी ज्यादा है। साथ ही वो असमंजस के शिकार भी हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वे हिन्दुस्तान में हैं या पाकिस्तान में। 15 से 17 साल के छोटे-छोटे बच्चों को आतंकवादी का नाम देकर आर्मी द्वारा उठा लिया जाता है। उन्हें बुरी तरह पीटा जाता है। कई कश्मीरी युवक तो घर से ही गायब हैं। पूछने के वास्ते पुलिस के पास जाओ तो पुलिस द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता है और ‘पाकिस्तान गये होंगे’जैसे वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इस संबंध में भारत सरकार द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। हम संगीनों के साये में जिंदगी जीते हैं। हमारे चारों तरफ पुलिस और आर्मी तैनात रहती है। रात को 12 बजे जब कोई दरवाजे पर दस्तक देता है तो यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि पुलिस है या आतंकवादी।’

मीडिया को भी लताड़ते हुए डॉ.फरीदा खान ने कहा-‘मीडिया भी अब अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से नहीं निभा रहा है। मीडिया हमें गलत तरीके से पेश करता है। आखिर हमारे साथ इस तरह का जुल्म क्यों किया जा रहा है। हमारे यहां भी जनता द्वारा चुनी गयी सरकार है। लोकतंत्र भी मौजूद है,फिर क्यों हमारे विरोध करने पर गोलियां चलायी जाती हैं। भारत सरकार हमारे वोट लेकर हमें भूल जाती है।’

कश्मीर में होने वाली फौजी कार्रवाई का यह रूप काफी दर्दनाक है। इस कार्रवाई में अब बच्चों को भी शिकार बनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत 8 जनवरी 2010 से हुई जिसमें इनायत खान नामक एक 16 साल के लड़के को गोली मार दी गयी। इस संबंध में बात करते हुए इन्शाह मलिक ने हमें बताया कि ‘अफगानिस्तान में 1000 लोगों पर 25 अमेरिकन आर्मी है, जबकि कश्मीर में 1000 पर 70 आर्मी है। लेकिन हम इन्हें याद दिलाना चाहते हैं कि ये लोग जितना हमें दबाने की कोशिश करें हमारी यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक हमें हमारी पहचान नहीं मिल जाती।’

निःसंदेह जितनी भी बातें कही गयीं वो सभी सत्य थीं,लेकिन सवाल यह उठता है कि यह आंदोलन आखिर उन अलगाववादियों से जो कि कश्मीर के नाम पर भारत में जेहाद फैला रहे हैं,से कैसे अलग है। इस सवाल के जवाब में इन्शाह ने कहा-‘देखिये,ये एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा है। भारत-पाक दोनों देशों की यह समस्या सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हमें सिर्फ मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है। और रही बात अलगाववादियों की तो हम आपको बता दें कि हम उनसे काफी अलग हैं। हम सिर्फ पत्थर फेंककर ही विरोध का प्रदर्शन करते हैं। नई पीढ़ी के कश्मीरी युवक किसी भी अलगाववादी नेता या कट्टरपंथी की नहीं सुनते। हमारा विरोध हमारा है।’

कश्मीर के मुद्दे पर जारी की गयी प्रेस रिलीज में सरकार से निम्न कदम उठाने के लिए कहा गया-

1. कश्मीर से तुरंत आर्मी हटा ली जाये।
2. एएफएसपीए (आम्र्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट) को निरस्त किया जाये।
3. विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार हुए बेकसूर युवाओं को तुरंत रिहा किया जाये।
4. निष्पक्ष न्याय प्रणाली को लागू किया जाये ताकि वहां के लोगों को न्याय मिल सके।


(जनता का आइना से साभार)

3 comments:

  1. कश्मीर का यह निर्मम सच आखिर कब बदलेगा. सरकार, अलगाववाद और आतंकवाद के चक्रव्यूह में फंसे कश्मीरी लोग कभी निकल भी पाएंगे या ख़बरें ही बनते रहेंगे.

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