माओवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे आजाद की हत्या को लेकर कल भी संसद में सवालों का क्रम जारी रहा। वित्तमंत्री से गृहमंत्री बने पी चिदंबरम ने संसद में भाजपा नेता यशवंत सिन्हा के सवाल पर कहा कि ‘मामला प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र का है,केंद्र कैसे जांच के आदेश दे सकता है।’आजाद की हत्या के बाद देश में जारी गहमा-गहमी के मद्देनजर देखें तो इस मामले में तीन पक्ष उभरकर सामने आते हैं। पहला माओवादियों का,दूसरा सरकार का और तीसरा इन दोनों की कड़ी बने स्वामी अग्निवेश का। माओवादी कहते हैं-आजाद की हत्या सरकार ने की है,सरकार कहती है-उसने मुठभेड़ में मारा है और अग्निवेश साफ संदेह व्यक्त करते हैं कि जिस दिन वे माओवादियों की ओर से 72 घंटे के युद्धविराम की तारीख घोषित करने वाले थे, उससे पहले ही खुफिया एजेंसियों ने आजाद को ट्रैप कर लिया था और सरकार ने हत्या का मन।
सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश से अजय प्रकाश की बातचीत
माओवादी प्रवक्ता आजाद और स्वतंत्र पत्रकार हेमचद्र पांडे की हत्या के बाद जब आप केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम से मिले तो शांतिवार्ता की क्या संभावना जान पड़ी?
कोई संभावना नहीं दिखी और निराषा हुई। मैंने उनसे पूछा कि माओवादियों की तरफ से शांतिवार्ता की अगुवाई कर रहे आजाद की हत्या क्यों की गयी तो,चिदंबरम साहब ने कहा कि यह सवाल आंध्र पुलिस से पूछिये। मामला राज्य सरकार का है इसलिए इस बारे में मैं कोई जवाब नहीं दे सकता। उनके व्यवहार से ऐसा लगा कि वे शांतिवार्ता के लिए अब इच्छुक नहीं हैं।
आपको लगता है कि आजाद की हत्या केंद्रीय गृहमंत्री की इजाजत के बगैर पुलिस कर सकती है?
मुझे भी संदेह है। क्योंकि जब चिदंबरम ने कहा उस वक्त भी और अभी भी मुझे विश्वास नहीं है कि बगैर उनकी इजाजत के आजाद की हत्या पुलिस ने की होगी।
आजाद पर इनाम था इसलिए सरकार ने मार डाला, पत्रकार हेमचंद्र की हत्या क्यों की गयी?
इसी सवाल पर चिदंबरम ने मुझे माओवादियों के उत्तरी क्षेत्र के नेता अजय का बयान दिखाया जिसमें लिखा था कि हेमचंद उनकी पार्टी का सदस्य था। मगर मैंने हेमचंद्र को लेकर गुड्सा उसेंडी के बयान की चर्चा की तो वह चुप हो गये। मुझे ऐसा लगता है कि हेमचंद्र की हत्या उस अपराध के अकेले चश्मदीद होने की वजह से कर दी गयी ताकि कोई सबूत शेष न रह जाये।
गृहमंत्री ने जांच के बारे में कोई आश्वासन दिया?
जांच की मांग को स्पष्ट रूप से इनकार कर गये। यह बताने में लगे रहे कि माओवादियों ने पिछले एक साल में मुखबीर होने के शक में 142 हत्याएं कीं, आपलोग इनकी जांच की मांग क्यों नहीं करते। मैंने कहा कि आप सरकार हैं, इसकी जांच कीजिए। हम तो हमेषा ही हिंसा के विरोधी रहे हैं। लेकिन इस बहाने आजाद और हेमचंद्र की हत्या की जांच की बात टरकाते रहे। अंत में उन्होंने कह दिया कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता,आंध्र प्रदेश की गृहमंत्री से मिलिये।
हेमचंद्र को आप किस आधार पर पत्रकार मानते हैं?
जैसे ही मुझे सूचना मिली की आंध्र प्रदेश के जंगलों में पुलिस की हत्या का शिकार एक उत्तराखंड का पत्रकार भी हुआ है तो मैंने तत्काल इसकी तस्दीक उत्तराखंड के जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता शाशेर सिंह बिष्ट से की। उन्होंने कहा कि ‘मैं उसे और उसकी पत्नी बबीता दोनों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं और वह पत्रकार था।’इसी आधार पर मैंने चिदंबरम साहब से कहा कि पत्रकार हेमचंद्र माओवादी नहीं था।
माओवादियों और सरकार से वार्ता को लेकर कुछ बातें साझा करने के लिए 18जून को आपने प्रेस कांफ्रेंस रखी थी जिसे ऐन मौके पर टाल दिया गया?
हम माओवादियों से मिले पत्र के आधार पर 10,15और 20जुलाई को यानी इन तीन तारीखों में से किसी एक तारीख को 72घंटे के युद्धविराम के लिए घोशित करने वाले थे। उन्होंने मुझे इतनी छूट दी थी कि इन तीन में से जो भी तारीख मैं घोशित करूंगा,पार्टी उसे स्वीकार कर लेगी। मगर उसकी पूर्व शर्त थी कि सरकार भी कुछ कदम आगे बढ़े, जिसका बहुत साफ आश्वासन चिदंबरम साहब ने दिया था। मगर बाद में हमें लगा कि माओवादी वार्ता के लिए इच्छुक हैं, पर सरकार कुछ चाहती ही नहीं है। ऐसे में मेरे लिए संकट हो गया कि मैं उस दिन प्रेस कांफ्रेंस में क्या कहूंगा और मुझे ऑस्ट्रेलिया जाना पड़ा।
क्या आपको लगता है कि सरकार आजाद को पकड़ने की पहले ही तैयारी कर चुकी थी और इसके लिए सरकार ने आपका उपयोग किया है?
इसका कोई प्रमाण तो नहीं है,लेकिन मुझे लगता है कि खुफिया एजेंसियां कांफ्रेंस की तारीख तक आजाद को ट्रैप कर चुकी थीं। इस संदेह का सबसे पुख्ता कारण उस कांफ्रेंस का टलना है जिसमें सरकार को भी वार्ता के लिए समान दिलचस्पी दिखानी थी। पहले इसकी भनक होती तो मैं यह गलती कभी नहीं करता। सरकार ने उपयोग तो किया ही, मुझे यह भी लगता है कि तैयारी भी कम थी। अब जबकि दोबारा मैं चिदंबरम से मिलकर आ चुका हूं, कह सकता हूं कि सरकार इस समस्या को सुलझाने के प्रति गंभीर नहीं है। वह उलझाये रखने में अपनी सफलता देख रही है।
इस सिलसिले में आपका अगला कदम क्या है?
हमें लग रहा है कि देश को सरकार के भरोसे छोड़ने के नागरिक शक्ति जगानी चाहिए। यह नागरिक शक्ति ही शासकों को मुल्क की जरूरत बतायेगी। इसकी शुरूआत हमलोग क्रांति दिवस के मौके पर कलकत्ता से 9अगस्त पदयात्रा से कर रहे हैं। इसमें देषभर के गांधीवादी और शांति चाहने वाले लोग शामिल होंगे और लालगढ़ पहुंचकर 15 अगस्त को तिरंगा फहरायेंगे। यहां पिछले 2 वर्षों से धारा 144 लगी हुई है। यह एक राश्ट्रीय स्तर का आंदोलन होगा जिसे इस विश्वास से खड़ा किया जायेगा कि सरकार की शर्तों पर नागरिक समाज नहीं,बल्कि समाज की जरूरतों से सरकार चलेगी।
(द पब्लिक एजेंडा में छपे साक्षात्कार का संपादित अंश)
चिदंबरम बड़ा मदारी है. अबतक जनता को फांसता था, अब मओवादिओं को भी फांस रहा है. हंस की गोष्ठी में नई दुनिया के संपादक अलोक मेहता ने अग्निवेश पर जो आरोप लगाये थे, उसपर कोई बात नहीं होनी चाहिए क्या.
ReplyDeletesarkar ki mansha kisi trah kei shanti ki nahi hai.shanti sarkar ke liye kafi nukshan dayak hai .ydi maowadiyon se sarkar batcheet suru karti hai to unko achi trah pta hai ki wo log andhra ki trah un mool bhoot baton ko uthayenge or chidambram sahab ki pyari company VEDANTA ki loot ka kya hoga inka jabab sarkar ke pas nahi hai.
ReplyDeletejahan tak swami ji ki baat hai to unko sarkar pe itna bharosa kaise ho sakta hai.unhe apne har move ki jankari civil society ko karte rahna chahiye ydi sari baatcheet gupt kamre me ho to fir is trah ki sambhawana badh jati hai.jaisa ki bhupen ke lekh se pta chalta hai maowadiyon ne ab open letter dena suru kiya hai ye ek acha kadam hai ab sari baatcheet civil society ke samne hogi.par mera anuman hai ki sarkar is pe aage badhne me kuch khas ruchi nahi deekhayegi.
Ajayji aapko har tarh ke mudde uthane ke liye dhanywad.aapka blog hi ekmatra aisa blog lagta hai jo vividhta liye hue hai. isme har masle par lekh hain. sahitya, rajneeti se lekar har tarh ke samajik muddon ko aapne jagh di hai. khaskar aapki reporting isme 4chand laga deti hai.phir ek baar Swami Agnivesh ke acche interview ke liye dhanywad.
ReplyDeleteriya prakash