Aug 11, 2010

शारीरिक परिवर्तन, सामाजिक विद्वेष


उन अपवित्र हाथों के छूने से अचार खराब हो जाता है।  फूल वाले पौधों और तुलसी को महिलाएं पानी नहीं देतीं और न ही उनके पास बैठती हैं। मुझे याद है कि तुलसी का गमला रास्ते से हटाकर ऐसी जगह रख लिया जाता था, जहां अपवित्र महिलाओं की परछाईं  न पड़े। माहवारी और बच्चा जनने के दौरान पंजाब-हरियाणा की महिलाओं को किन स्थितिओं से गुजरना होता है,बता रही हैं युवा  पत्रकार...

मनीषा भल्ला

मासिक धर्म जवान हो रही किसी भी लड़की के जीवन की ऐसी घटना है जिसके बाद फिर वह सभी की 'लाडली' नहीं रह जाती। मां का ही अपनी बेटी के प्रति नजरिया बदल जाता है। मां को लगता है कि आज के बाद से बेटी के प्रति समाज की नजरें बदल जाएंगी।

 मां अपनी बेटी को तरह-तरह की हिदायतें देने लगती है। उठने- बैठने के तरीके सिखाने लगती है। कई घरों में मांओं को दूसरे रिश्तेदारों से फुसफुसाते देखा जाता है। मां अचानक चिंतित हो जाती है। वह इसे शारीरिक परिवर्तन कम सामाजिक परिवर्तन ज्यादा मानती है। अबोध बच्ची को लगता है कि पता नहीं उसके साथ क्या हो गया है और अब न जाने क्या हो जाएगा। यहां तक कि मैंने मांओं को रोते देखा है कि बेटी अब जवान हो गई है।


 पंजाब और हरियाणा में घूमते दस साल बीत गए। बचपन में गांव (पंजाब में) काफी आना-जाना रहता था। इसलिए उस परिवेश का अहसास है। पंजाब और हरियाणा दोनों खेती के लिहाज से देश के विकसित राज्य हैं। प्रतिव्यक्ति आय, तकनीक, रुपया और डॉलर दोनों बरसते हैं यहां। गुड़गांव जैसे जिलों में आसमान छूती इमारतें विकास की इबारत लिख रही हैं, मगर यह अधूरा सच है। इन्हीं राज्यों के बाशिंदों को बेटियों का पैदा होना मंजूर नहीं। कन्या भ्रूणहत्या में सबसे आगे हैं ये दोनों राज्य। यानी महिलाओं के मामले में इस समाज के एक तबके की सोच अभी भी पुरानी और दकियानूसी है।

सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो इन राज्यों के ज्यादातर घरों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को अलग-थलग कर दिया जाता है। हरियाणा में इस दौरान महिलाएं घर, खेत और पशुओं का काम तो करती हैं, लेकिन कुछ कामों से उन्हें वंचित कर किया जाता है। हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों में महिलाएं मासिक धर्म के दौरान अचार को हाथ नहीं लगातीं,क्योंकि उस समयावधि में उन्हें पवित्र नहीं समझा जाता है और माना जाता है कि अपवित्र हाथों के छूने से अचार खराब हो जाता है। तब फूल वाले पौधों और तुलसी को महिलाएं पानी नहीं देतीं और न ही उनके पास बैठती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से फूल मुरझा जाते हैं। मुझे याद है कि हमारी एक रिश्तेदार तुलसी का गमला रास्ते से हटाकर ऐसी जगह रख लेती थी जहां माहवारी के दौरान लड़कियों और महिलाओं की उस पर परछाईं भी न पड़े।

इन महिलाओं का पूजा-पाठ या किसी भी शुभ माने जाने वाले काम में शरीक होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। शादी के दौरान शगुन की रस्मों में वो शरीक तो होती हैं, लेकिन उनकी कोई भूमिका नहीं होती। मसलन, वह दूल्हे या दुल्हन को हल्दी नहीं लगा सकती, प्रसाद नहीं बना सकती। किसी ऐसी चीज को हाथ नहीं लगा सकती जो पूजा की हो। शादी के सामान को हाथ नहीं लगा सकती।


 मासिक धर्म के दौरान महिला किसी नवजात बच्चे को तक गोद में नहीं ले सकती। मुझे याद है कि जब मेरी बहन की बेटी हुई थी तो उसे देखने के लिए घर में जो भी महिला रिश्तेदार आती थी,मेरी नानी उससे बाकायदा पूछती थीं 'तुम ठीक हो न...'। नानी कहती हैं कि नवजात को ऐसी औरत गोद लेती है तो बच्चे पर भूत-प्रेत का साया आ जाता है।

परिवार के लिए मासिक धर्म न हुआ,हौवा हो गया। मां ही बेटी से इस बारे में बात नहीं करती तो पिता या भाई का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। खासकर ग्रामीण हरियाणा में ज्यादातर मांएं इस बारे में लड़कियों से बात करना सही नहीं समझती। सबसे ज्यादा दिक्कत उन बच्चियों को होती है जिन्हें पहली बार माहवारी होती है। ग्रामीण लडकियां नैपकिन इस्तेमाल नहीं करतीं,ऐसे में घर में उनके लिए अपने गंदे कपड़े धोना,बार-बार कपड़ा बदलना या गंदे कपड़े फेंकना मुश्किल हो जाता है। वह गंदे कपड़े छुपाकर रखती हैं और नजरें बचाकर उसे फेंकती हैं। यही नहीं,ज्यादातर लड़कियों को जब पेट दर्द और उल्टियां होती हैं तो मैंने खुद देखा है कि परिवार में कोई दवा कराना तो दूर, उनका हाल भी जानना मुनासिब नहीं समझता।

हरियाणा में माहवारी के दिनों में महिलाएं खाना तो बनाती हैं,लेकिन आज भी कुछ ब्राह्मण,राजपूत और बनिया जातियों  में महिलाओं को चौका करने की इजाजत नहीं है। ग्रामीण पंजाब में कई घरों में माहवारी से गुजर रही महिलाओं की जूठन नहीं खाई जाती,उनके बर्तन अलग होते हैं। इसे छूआछूत माना जाता है। इनके हाथ से कोई खाने की चीज नहीं ली जाती।

कमोबेश यही हालात तब होते हैं जब महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं। दोनों ही राज्यों में जच्चा-बच्चा को घर का सबसे पीछे का अंधियारा कमरा दिया जाता है। जो न तो हवादार होता है और न वहां कोई आ सकता है। हवादार इसलिए नहीं क्योंकि माना जाता है कि जच्चा को हवा नहीं लगनी चाहिए। इससे जच्चा का शरीर फूल सकता है या फिर उस पर कोई बाहरी हवा (भूत-प्रेत)लग सकती है। पंजाब में कहा जाता है कि छिले (बच्चा पैदा होने के बाद सवा महीने का समय)की एक अलग महक होती है, जो भूतों को आकर्षित करती है। इसलिए जच्चा के सिरहाने लहसुन बांधा जाता है, तो कभी कोई तावीज।

पंजाब में माना जाता है कि अंधेरे कमरे में जच्चा-बच्चा को इसलिए भी रखा जाता है क्योंकि बच्चे की लैटरीन और बच्चे के दूध को किसी की नजर न लग जाए। औरत के कच्चे शरीर में हवा न घुस जाए। हरियाणा में दस दिन तक जच्चा को रोटी नहीं दी जाती। कहते हैं कि महिला के रोटी खाने से जो दूध बच्चा पिएगा उससे बच्चा अंगड़ाईयां लेगा। ऐसे में महिला को छिओणी दी जाती है। जो गर्म पानी में देसी घी मिलाने से बनती है। पंजाब में भी महिला को कुछ दिनों तक खाने के लिए नहीं दिया जाता है। उसे सिर्फ पंजीरी और दूध दिया जाता है।


4 comments:

  1. शिवानी, delhiWednesday, August 11, 2010

    जनज्वार पर चल रहे इस बहस के क्रम में हरियाणा और पंजाब की जानकारी देने के लिए आपको बधाई . मनीषा जी इन सवालों के सुलझाने पर भी कोई बात हो तो अच्छा. आखिर हमारे गाँव में यह कबतक होता रहेगा. शिवानी

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  2. bahoot accha manisha.

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  3. Archna raj, chandigarhWednesday, August 11, 2010

    sidhi aur sateek baat kahane ke liye shukriya. in lekhon ko dekhkar lag ragha hai ki bahut din nahin hai jab mahvari aur prajnana ek bade saval ke roop men ubhrega.

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  4. tamam blog ko dekhkar badi nirasha hotee hai, kam se kam yah ek blog hai jis par sarthak bahas ho rahi hai.

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