Aug 24, 2010

दलित क्यों नहीं हैं भागीदार


कात्यायिनी के नाम की यह वही संपत्ति है जिसकी जड़ें 1990की सांगठनिक फुट के साथ भी जुड़ी हुई हैं.बहस के विस्तार में गए बिना,मैं बस इतना पूछना चाहता हूँ कि कात्यायिनी के नाम से मकान क्यों ली गयी?

सुनील चौधरी

दोस्तों इस बहस में कुछ मुद्दे ठीक से सामने नहीं आ पाए है उनकी तरफ ध्यान देना काफी जरुरी है. ये ऐसे मुद्दे है जो वामपंथी आन्दोलन में शशि प्रकाश की लाइन को ठीक से समझने में मददगार साबित होंगे.वामपंथी आन्दोलन में दिनदहाड़े जिस झूठ फरेब और लूट को यह ग्रुप अंजाम दे रहा है उस पर एक नज़र -

1 - हिंदी में प्रकाशित होने वाली तीन पत्रिकाएं आह्वान, दायित्वबोध और बिगुल के संपादक प्रकाशक और मुद्रक क्रमशः आदेश सिंह, डॉ विश्वनाथ मिश्र और डॉ दूधनाथ थे जो इस संगठन से अलग हो चुके है. अब आह्वान के नाम में थोडा फेर बदल कर इसका संपादक प्रकाशक और मुद्रक शशि के बेटे अभिनव सिन्हा और उनकी मौसी कविता को बनाया गया है. इसी ग्रुप से निकाली जाने वाली बाल पत्रिका 'अनुराग' के संपादक भी अभिनव सिन्हा ही हैं. अब सवाल ये है तीनों संपादक क्यों अलग हुए उनके क्या सवाल है और उनके अलग होने के बाद आपके सैकड़ों कार्यकर्ताओ में से कोई इसकी जिम्मेदारी उठाने के काबिल क्यों नहीं है ...या सचेत तौर पर नहीं दिया गया है.

2 अब आइये इस ग्रुप के कुछ मुक़दमे पर एक नज़र डालते है

मुकदमा नंबर एक ...
गोरखपुर में कात्यायनी का जाफरा बाज़ार का पैत्रिक निवास जिसे संस्कृति कुटीर के नाम से जाना जाता है उसके सामने गेट के बगल में दो छोटे-छोटे कमरे है.एक में कात्यायनी के घर में काम करने वाली पैत्रिक दलित गरीब दाई रहती है.उसी कमरे को खाली कराने के लिए उसके साथ 1997मारपीट की गयी और उस घर को तोड़ने का प्रयास किया गया. गोरखपुर की अदालत में यह मुक़दमा आज भी लड़ा जा रहा है

मुकदमा नंबर दो...
गोरखपुर के राप्ती नगर का फ्लैट MIG-134जिसका मालिकाना कात्यायनी के नाम है, इसको लेकर गोरखपुर विकास प्राधिकरण से मुकदमा लड़ा जा रहा है क्योंकि GDA ने खराब स्तर का मकान बना कर दिया है.कात्यायिनी के नाम की यह वही संपत्ति है जिसकी जड़ें 1990की सांगठनिक फुट के साथ भी जुड़ी हुई हैं. बहस के विस्तार गए बिना मैं बस इतना पूछना चाहता हूँ कि कात्यायिनी के नाम से मकान क्यों ली गयी.यहाँ यह भी जान लेना जरुरी है क़ि कात्यायिनी अपने राजनीतिक जीवन में कब पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता रहीं और कब नहीं यह भी रहस्य का विषय  है.


रामबाबू और कात्यायिनी: कौन किसका साझीदार 
मुकदमा नंबर तीन ...
लखनऊ में 69बाबा का पुरवा निशातगंज. बिगुल का उप सम्पादकीय कार्यालय.इस बड़े से मकान के मालिक थे बीड़ी सक्सेना जिनकी किरायेदार कात्यायनी थीं लेकिन अब उस मकान पर इस ग्रुप ने कब्ज़ा कर लिया है.अब उसमें रामबाबू ( शशि के साथी ) रहते हैं. जब इस मकान पर रामबाबू ने कात्यायिनी के साथ मिलकर कब्ज़ा कर लिया तो इस संपत्ति के असली मालिक बीडी सक्सेना ने आन्दोलन के कई लोगों से गुहार लगाई.बिगुल के सभी पाठकों को पत्र लिखा क़ि उन्हें उनका मकान दिलाया जाय लेकिन मकान उन्हें नहीं मिला और वे दिवंगत हो गये.जब कात्यायनी से इस बारे में पत्रकारों,साहित्यकारों ने पूछा था तो उनका जबाब था,'ये राम बाबु का मामला है मेरा नहीं.'सच यह है कि इस माकन पर कब्जेदारी बनाये रखने के लिए इस ग्रुप ने सत्ता के अपने सभी संपर्को से पूरी मदद ली.

अब आगे-

दायित्वबोध क़ि पुस्तिका श्रृंखला एक और दो-अनश्वर है सर्वहारा संघर्षो क़ि अग्नि शिखाएं और समाजवाद की समस्याएं और पूंजीवादी पुनर्स्थापना,ये दोनों पुस्तिकाएं इस ग्रुप के शुरूआती समय की पुस्तिकाएं है.इनके लिए दो बड़े कोचिंग संसथाओ से विज्ञापन लिया गया था.लेकिन चालाकी यहाँ भी चालाकी बरती गयी और विज्ञापन देने वालों के लिए कुछ अंक निकाल कर बाकि सबमें विज्ञापन नहीं दिया गया था और यही सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है.

मीनाक्षी ने आदेश और सतेन्द्र का वर्ग बांटने में में कोई कोताही नहीं बरती है लेकिन मजदुर वर्ग से आने वाले नन्हें लाल, जनार्दन , घनश्याम, स्वर्गीय रघुवंश मणि और बिगुल संपादक डॉ दूधनाथ के साथ वहां क़ि पूरी इकाई का वर्ग बताना भूल गई हैं.इनमें से लगभग सभी के परिवार वाले और वे खुद भी दिहाड़ी पर जीने वाले गरीब और दलित लोग हैं.दूसरा सच यह उभरकर सामने आता है कि इनके संगठन से सबसे ज्यादा वापस जाने वाले तो मजदुर वर्ग के ही लोग हैं.

सर्वहारा पुनर्जागरण -प्रबोधन की लाइन पर इस ग्रुप के बीस वर्षों के इतिहास में मेरी जानकारी में अपवाद स्वरुप भी दलित समुदाय से आने वाला कोई कार्यकर्ता इनके यहाँ टिका नहीं है, क्या इन्हें अपने लिए नई जनता चुनने का समय आ गया है जो इनके लिए पैसा उगाहती हो.

दुकान में क्रांति के आधार: जनचेतना से जगी कार्यकर्ताओं में चेतना
बहरहाल ऊपर लिखे  सवालों के साथ कुछ अन्य जरुरी सवाल.अगर कात्यायिनी इन प्रश्नों का हमें जवाब देने में तौहिनी मानती हैं तो वह जवाब वामपंथी बुद्धिजीवियों के समूह को भेज सकतीहैं क्योंकि यह सवाल हमारे अकेले का नहीं है...


1. कात्यायिनी, सत्यम वर्मा, शशि प्रकाश, रामबाबू, अभिनव, मीनाक्षी, नमिता, कविता संपत्ति का ब्यौरा दें और बताएं कि यह सभी लोग किस तरह की रिहाइशों में रहते हैं.

2. ऊपर लिखे सभी नामों में से एक एक के बारे में बताएं कि कब और किन वर्षों में किस टीम के साथ दलितों, मजदूरों और किसानों के बीच इन्हें काम करने का अनुभव है.

3. रिवोलुशनरी कम्युनिस्ट लीग( भारत) के महासचिव शशिप्रकाश यानी आपके पार्टी प्रमुख की मजदूर- किसान- छात्र आंदोलनों में भागीदारी और अनुभवों के वर्ष के बारे में बताएं.हो सकता है आप कहें कि सुरक्षा कारणों से बताना संभव नहीं है.इसलिए हम सिर्फ अनुभव के ब्योरे मांग रहे हैं, जगह बताना आपकी मर्जी.

4. दिल्ली, गोरखपुर, लखनऊ और इलाहाबाद में कौन कौन सी प्रोपर्टी है, सभी को सार्वजानिक करें? कहाँ और कौन से मुकदमें चल रहे हैं उसको भी बताएं.

5. जितने भी आंदोलनों में आप शामिल रहे हैं और आन्दोलन की वजह से राजसत्ता ने कितने मुकदमें किये हैं और सिर्फ संपत्ति के कारण कितने मुकदमों में संगठन के लोग या संगठन आरोपित है.

6 . जितने भी ट्रस्ट, सोसाइटी, प्रकाशन और संस्थान हैं उनमें कौन -कौन है और उसके प्रमुख कौन हैं?

7. बिगुल, आह्वान, दायित्वबोध, सृजन परिप्रेक्ष्य और अनुराग बाल पत्रिका का संपादक और मुद्रक, मालिक प्रकाशक कौन है?

8. राहुल फाउंडेशन , परिकल्पना प्रकाशन, अनुराग बाल ट्रस्ट, अरविन्द सिंह मेमोरियल की कार्यकारिणी और पदाधिकारियों का विस्तृत ब्यौरा दें.

9. बिगुल मजदूर दस्ता, दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, नारी सभा, बाल कम्यून की कार्यकारिणी बताएं और उनके पमुखों की जानकारी दें.

10. पिछले दस वर्षों में संगठन ने विभिन्न पत्रिकाओं, स्मारिकाओं और किताबों को छपने के लिए व्यक्तिगत सहयोग के आलावा किन-किन श्रोतों से आर्थिक सहयोग लिया है.ये सभी पत्रिकाएं और किताबें रजिसटर्ड हैं इसलिए आपको लिए गए और प्रकाशित विज्ञापनों को सार्वजानिक करने में दिक्कत नहीं होगी.साथ ही विज्ञापन दाताओं ने जो आपको कीमत अदा की है उसे भी बताएं.

11. जिन कार्यकर्ताओं ने संगठन छोड़ दिया है उनके नाम पर संगठन की कौन सी संपत्ति है, उसकी जानकारी दें.

12. आपके यहाँ कई बड़े प्रकाशन( हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी), किताब की बड़ी दुकानें, ट्रस्ट, सोसाइटी, गाड़ियाँ हैं जिसमें तमाम लोग काम करते हैं उनको दिए जाने वाली तनख्वाह और भत्तों की विस्तृत जानकारी दें.

13 . संगठन  से जुडी संस्थाओं और उनके स्वामियों के नाम से खुले खातों का ब्योरा दें.  करेंट और सेविंग  अकाउंट  की जानकारी अलग-अलग दें.  



13 comments:

  1. सुनील जी आप एक सूचना अधिकार का आवेदन भेज दीजिए शशि प्रकाश / कात्यायनी एंड एसोसिएट के नाम हो सकता है कुछ जवाब मिले ऐसे तो यह लोग देंगे नहीं और आप लोग जो कहेंगे उसे मानेंगे भी नहीं /

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  2. Ajit Srivastaw BetulTuesday, August 24, 2010

    शशिप्रकाश एंड कंपनी के श्री चरणों में सादर प्रणाम.

    मैं चंद सवाल पूछने की हिमाकत कर रहा हूँ. क्योंकि काफी दिन से मैं जनज्वार पर चल रही बहस को देख रहा हूँ और उस गाली गलोज को भी जो जवाब न दे पाने की निराशा में या फिर खुद को तीसमारखां समझाने की खुशफहमी में उगली जा रही है. पूरी बहस के दौरान कुछ सवाल लगातार मन में उठते रहे जो शायद इस लिए भी उठते रहे क्योंकि मैं भी कही न कही इस सब में शामिल था.

    १. शशिप्रकाश एंड कंपनी के प्रवक्ता क्या एक सवाल का जवाब देंगे कि उनके संगठन में इतनी बड़ी तादात में पेटिकोतिये और विधर्मी तत्त्व और मुंशी और नाकारा लोग कहा से घुस आते हैं जिन्हें चार या पांच साल बाद संगठन से निकलना पड़ता है? क्या आपकी कंपनी चुन चुन के ऐसे ही लोग भरती करती है ? ध्यान रहे कि जितने लोग अभी तक निकाले जा चुके हैं वे बचे हुए लोगों की तादात के १० गुने से कम नहीं होंगे.

    २. जो लोग निकाले जाते हैं वे पहले से ही ख़राब होते हैं या संगठन में आने के बाद ख़राब हो जाते हैं? लोगों के ख़राब हो जाने के कितने दिनों के बाद उन्हें निकाल दिया जाता है? क्या कुछ ख़राब लोग आपके साथ सिर्फ इसलिए बने रहते है क्योंकि वे आपके खिलाफ नहीं जाते? तो लोगों को निकाले जाने का मुख्य कारण आपके खिलाफ जाना है या फिर कुछ और?

    ३. क्या आप लोग अभी भी इसी भ्रम के शिकार हैं कि आप क्रांति कर रहे हैं?

    पिचले बीस सालों में आपने अपने कुनबे के अलावा और किसका भला किया?

    ४. क्या आप केवल उसी प्रेम का समर्थन करते हैं जिसपर आपकी मुहर लगी हो. जिस प्रेम को आप पसंद नहीं करते या जो आपकी मर्जी के खिलाफ होता है वह भ्रष्टाचार होता है. आपको किसने अधिकार दिया कि आप लोगों के नितांत निजी मसालों में अपनी टांग घुसाएँ?

    ५. अगर कोई ''हिजड़ा" क्रांति के लिए आपके साथ आएगा तो क्या आप उसे अपने साथ शामिल करेंगे? क्या उन्हें भी आम इंसानों जैसे अधिकार होते है? क्या आपके परम पूज्य नेतागण उस वक़्त भी हिजड़ा शब्द का इस्तेमाल गाली के रूप में करेंगे?

    ६. क्या आप के परम पूज्य नेता गण इस देश के आम आदमी कि भाषा बोलना जानते हैं? क्या आपमें से कोई पूरे १० वाक्य बिना बड़े बड़े कोटेशन या भरी भरकम डिक्शनरी से छांटे गए शब्दों के बोल सकता है?

    ७. श्रम क़ी चोरी के बारे में आपकी अधिकारिक राय क्या है? kripaya जनचेतना और अपने प्रकाशन के विशेष सन्दर्भ में बताएं ?

    ८. क्या आप मार्क्स और लेनिन का नाम लेकर किये जा रहे भ्रष्टाचार और श्रम क़ी चोरी को गलत नहीं मानते? क्या आप किसी भी ऐसे काम को गलत नहीं मानते जो कि शशिप्रकाश जिंदाबाद बोलकर किया जाये ?

    ९. क्या आपका पुरजोर तौर पर मानना है कि नेता के लड़के को ही नेता बनना चाहिए क्योंकि उसके अन्दर ही नेता वाले तत्व विरासत में मिले होते हैं और वह विजातीय तत्व नहीं होता. क्या आप यह भी मानते हैं कि आम जनता के अन्दर से आने वाले लोग नेता नहीं बन सकते या उन्हें नहीं बनने देना चाहिए. अगर कोई आपकी कुर्सी के लिए खतरा बन रहा हो तो उसे ठिकाने लगाने के लिए किस हद तक की नीचता को आप उचित समझते हैं?

    १०. जनता के पैसे का निजी उपयोग क्या उस वक़्त भी गलत होता है जब वह शशिप्रकाश या उसके कुनबे के किसी सदस्य के लिए किया जा रहा हो? अरविन्द सिंह जैसे किसी कार्यकर्ता के इलाज के लिए उस पैसे का इस्तेमाल करना क्या क्रांतिविरोधी होता है?

    ११. अब एक प्रश्न गणित का-- अगर कोई संगठन बीस साल सिर्फ किताबे छाप कर और लच्छेदार बातें करके निकाल देता है तो उसे क्रांति के आस पास पहुँचाने में कितने साल लगेंगे?

    १२. आपकी तरफ से भेजे जवाब में कहा गया था की अगर आज कोई गोर्की "माँ" जैसी किताब लिखेगा तो उसे छापने को कौन तैयार होगा, आप का प्रकाशन उसी किताब को छापने के लिए चलाया जा रहा है, मेरा सवाल ये है की अगर वो गोर्की आपके संगठन का नहीं हुआ और और खुदा न करे शशि प्रकाश या कात्यायनी के खिलाफ हुआ तो भी क्या आप उसकी किताब छापेंगे और उसे क्रन्तिकारी लेखक मानेंगे?

    अगर वह आपके ग्रुप से अलग होने के बाद किताब लिखेगा तो उसके बारे में आपकी क्या राय होगी? सोच कर बोलना क्योंकि अजय और अशोक पाण्डेय तक तो आपसे बर्दाश्त नहीं होते.
    १३. क्या आपके संगठन से निकालने के बाद आदमी आदमी नहीं रह जाता? क्या अपनी कमी खाने को आप निकृष्ट और जनता के पैसे पर परजीवी बन कर ऐश करने को ही आप क्रांति मानते हैं?

    १४. क्या आपके अलावा भी कोई सच बोलता है?

    अजित श्रीवास्तव
    बेतुल, मध्य प्रदेश

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  3. अजमल, गोरखपुरTuesday, August 24, 2010

    सुनील भाई, मेरे सोए हुए शेर कहाँ हो. बात एकदम सटीक पकड़ी है. कात्यायिनी को जवाब भिजवाना चाहिए, जिससे कि लोगों का उनपर भरोसा बहाल हो. तुम तो गुरु इनके घर में ही रहते थे फिर भी पता नहीं चला, लेकिन अबकी जवाब लेके रहना.

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  4. निर्मेश, नोएडाTuesday, August 24, 2010

    अजित श्रीवास्तव से सहमत और सुनील चौधरी की मांगो के समर्थन में आवाज बुलंद हो. इस पर आरटीआइ मांगी जानी चाहिए. क्रांतिकारी संगठन सरकार से हिसाब मांग सकते हैं तो हम क्रांतिकारियों से क्यों नहीं.

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  5. सुनील भाई , आपका बोलना ज़रूरी था। जिन शासकीय संस्थानों से विज्ञापन लिये गये हैं उनसे सूचना के अधिकार के तहत डिटेल्स मिल ही जायेंगे…आप लोगों के पास जो अंक हों उनका स्कैन यहां लगाया जाना चाहिये।

    शशिप्रकाश गिरोह में अगर जरा भी गैरत हो तो यह बताया जाना चाहिये कि कल्याणपुर वाले पैतृक घर में दिशा का दफ़्तर बनाने के नाम पर उस ग़रीब महिला के घर पर दिशा के कार्यकर्ताओं का गुण्डे की तरह इस्तेमाल कर कब्ज़ा किया गया था…वह किसके नाम से कराने के लिये मुक़दमा चल रहा है? लखनऊ में उस सीधे-साधे आदमी से उसका विश्वास जीत कर उसके मक़ान पर कब्ज़ा कर लेना इंक़लाब के किस कार्यक्रम के तहत सही ठहराया जा सकता है? जीवन भए बेनामी रहकर पोस्टर बनाने वाले आज़म के बरक्स रामबाबू को कैसे महान क्रांतिकारी कलाकार की तरह स्थापित किया गया और ईनाम के तौर पर उसने इन्हें या इन्होंने उसे उस मक़ान का कब्ज़ा दिया?

    मैं यह भी पूछना चाहूंगा कि परिकल्पना प्रकाशन ने किस अनाम भारतीय क्रांतिकारी लेखक की किताब छापी है? हिन्दी के सर्वश्री विष्णु खरे, नीलाभ, नरेश चंद्रकर, मदनमोहन, असद जैदी आदि की किताबें छापी गयीं है वे सब स्थापित लेखक हैं और उनको प्रकाशित कर परिकल्पना ने अपने को ही स्थापित किया है। इसके अलावा ज़्यादातर पहले छप चुकी किताबें या संगठन के लोगों द्वारा लिखे गये आलेखों को शशि कुनबे के नाम से छापा गया है। संगठने के बाहर तो छोड़िये अन्दर के किसी व्यक्ति की भी कोई किताब नहीं छापी गयी है। राजकमल के साथ मिलकर सत्यम-कात्यायनी ने जिस दुरभिसंधि को अंजाम दिया है उस पर फिर कभी…

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  6. I tell you these are very dangerous people. They have made revolution their career and what a bright, shining career it has been. They are worse than criminals. Criminals and murderers, who openly do murder and crimes are at least not hypocrites. These people have ruined lives of a large number of bright youngsters. God will punish them. The curses of the victims shall chase them till the end and snatch their peace. They will not rest in peace. Because ultimately God ensures justice to all.

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  7. भाई इस मुहीम के लिए आभार!! आज ज़रुरत है कि ऐसे लोगों के खिलाफ जमकर हल्ला बोला जाए!

    समय हों तो अवश्य पढ़ें:

    यानी जब तक जिएंगे यहीं रहेंगे !http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html


    शहरोज़

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  8. sunil ji bahut badhiya. kya khub baat mari hai. kamal kar diya. apke dwara uthaye gaye sawal hamare communist movement ke liye kaphi mayne rakhte hain, lekin usse pahle main aapse kuchh sawal puchhna chahunga..umeed hai aap bura nahi maneinge aur mere comment ko delete bhi nahi karnge. aap ke dwara uthaye gaye sawaloan se main sahi mein kaphi confuse ho gaya hun aur koi final conclusion tak pahunchne ke liye aap va aapke sathiyoa ki sachhai bhi janna chahta hun.
    1. aap is samaya kya karte hain?
    2. aapne ab tak bhartiya kranti ke liye kya kiya hai?
    3. kya aap aur apke sathiyoan ne bhartiya kranti ke bare mein koi nischit soch banayi hai?
    4. kya aap CPI(maoist) ke supportr hain aur bharat mein NDR ki line ko sahi mante hain? ya aap CPI, CPM ya kisi anya communist group ko krantikari rah ka rahi mante hain?
    5. kya aap ki nigah mein aaj hamare desh mein koi krantikari sagthan bacha hai? agar hai to vah kaun sa hai?
    6. aur agar aaj bharat meion koi bhi krantikari sangthan nahi bacha hai to phir aap aur aapke sathi is niskarsh par kab pahunche? kya revolutionary communist league se nikal dene ke baad? aur ek krantikari vikalp kadha karne ki disha mein aap logon ne kya prayas kiye hain?
    7.revolutionary comunist league (india) se lagbhag pichle 5-10 saloan ke bich nikale gaye hamare kranti ke subhchintak sathiyoan ne sangtahn se nikale jaane ke baad kya kiya? kya ve nirash hokar ghar baith gaye ya ek saachhe communist ki taraha majduroan va chhatroan ke bich kaam karte rahe?
    8. ya kahin aisa to nahi ki aap logon ki krantikari line pahle bharat mein kaam karne wale sangathnoan ki sachhai ko ya kaha jay to jis sangathan se aap ko nikala gay hai uski sacchayi ko logon ke saamne lana hi hai?

    plz un karyoan ka byaora jaroor dijiyega jo aapke va aapke sathiyoan ne ab tak sangathan se nikale jaane ke baad kiya hai.

    vikal ki talash karta ek samajik karyakarta......

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  9. dost prashant humlog isiliye yah baat utha rahe hain ki kal ko aapko nikalane men itani der na ho ki log aapse vahi pucchen jo aap aaj hamse puch rahe hain. sabhi krantikari shivir dhvast ho chuke hain, shashi ka yah kahna hee sabit karta hai ki yah tareeka sivay hamaree dukan ke koi aur jagah nahin hai.
    yani vahan kaam karne vala aadmi ya to shashi ki line ko kranti ka ek matra rasta manga anytha ghar baith jayega. nikalane ke baad kuch logon kee yah sthiti bani. aisa siliye bhi tha ki vahan rahte hue kabhi swatantra vyaktitva viksit hone ka mauka hi nahin milta. jaise agar aap neta ke taur ubhare to dikkat, aap lekhan men aage jayen to bhatkav, vaise men sivay ki koi chanda jutane men maharat hasil kare, kuch bachta hi nahin.
    mere dost yah baten abhi bageduon ki bhasha lag rahi hogi. magar rai bus itani kee us samay se pahle nikal lena jab yah vakt aaye ki log vahi savaal tumse karen jo tum mujhse kar rahe ho.
    baki baat yah ki desh men bahutere vampanthi sangathan hain. tamam asfaltaon ke bavjood sangharsh jaree hai, yah tum par hai ki pratirodh kee sabse shashakt rajneeti ko theek mante ho ya dukan men mohre sajate ho.

    salam
    dost

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  10. भाई प्रशांत जी…आप अगर उस आईलैण्ड से बाहर निकल कर देखेंगे तो शायद जान पायेंगे कि हममे से अनेक के लिये ये सवाल बेहद महत्वपूर्ण रहे। हममे से अधिकतर अब भी समाजवादी क्रांति को सही मानते हैं और अपने-अपने तरीके से इसके पक्ष में काम कर रहे हैं और आप जब चाहें इस पर लंबी बात हो सकती है। अब कात्यायनी की तरह इंकलाबी का बाना पहनकर तिजोरियां भरने के रास्ते को अगर हम बेपर्द कर रहे हैं तो सिर्फ़ इसलिये कि जिस समाज को धमकियों और ग्लानिबोधों के ज़रिये ये मूर्ख बनाते रहे हैं वो उनकी हक़ीक़त जान सके।

    इनका रास्ता सही नहीं है और इसके अलावा आज क्रांति के नये रास्ते को समझने के लिये नवसाम्राज्यवाद के विभिन्न आयामों को समझने तथा उनके विकल्प की तलाश का जो महत्वपूर्ण काम है उसे तमाम सारे लोग अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं।

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  11. mujhe samaj mein nahi aata ki aap logon ke sath sangathan mein itna bura bartav hota tha to aap log vahan chuppi mar kar baithe rahte the kya? aur jab aap logoan ne sangathan join kiya tha tabhi se aap logon ke saath ye sab ho raha tha aur aap log sab kuchh jhel rahe the? aisa kyon hai ki sagathan ke netritva dwara apne karyakartaon ke sath itna bura bartav karne ke bawjood ve natritva ke khilaph kuchh nahi bole aur aap logon ke support mein bhi nahi aye?
    kal maine aap logon dwara kiye gaye karyaon ka byora manga tha, jisse ki ek vikalp kadha karne mein aap logon ki bhumika tay ho sake? sangthan se nikale gaye log aaj tak ek common platforom par akar kisi ek sahi party ke nirmaan ke liye aage kyon nahi aa sake? kya aap sabke bichh common mimimum program sirf itna hai ki aap logon ko jis sangathan se nikale gaye hai uski "sacchai" sabke samne lana? kewal

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  12. Santosh Sharma Baruni BiharThursday, August 26, 2010

    शशि प्रकाश के जिस राजनीतक लाइन की प्रैक्टिस हम लोगों ने किया है एक हद तक उसकी कमजोरियों से बरी हम भी नहीं हो सकते है फर्क बस ये है हम वो सचेतन नहीं कर रहें थे लेकिन बाहर आने के बाद देश भर में चल रहें संघर्षो को हमने समझने का प्रयास किया है और अपनी समझ से हमने अपनी भूमिकाये भी तय किया है और सबसे जरुरी ये की अपने विचारधारात्मक समझ को शशि प्रकाश की समझ से मुक्त करने का प्रयास किया है... इसलिए साथी अपने संगठन की तरह निकले साथियों के प्रोफेशन को गाली देने की बजाय अपने पैरों को थोडा कस्ट दीजिये जाकर उन लोगों से मिल लीजिये और उनकी राजनितिक भूमिका जान लीजिये ...अगर आप वाकई गंभीर है तो ......
    और साथ ही इस बात पर भी विचार कर ले आपके यहाँ किसी को पीछे हटने की जगह क्यों नहीं है लगभग सभी बाहर जाने वाले दुश्मन ही क्यों बना दिए जाते है साथी बाहर एक खुली हवा है जहाँ आप ताजि साँस ले सकते है बेहद शानदार लोगों से आप मिल सकते है बात कर सकते है अपनी समझ बना सकते है इसी बात के लिए आप जरा अपने ग्रुप से इजाजत ले कर दिखा दे आप भी अपने को हमारी कतार में कल नहीं आज ही खड़े पाएंगे

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  13. krantikari atma kavyitri katyayini ko iska javab dena chahiye, galiyan nahin. belag belaus bani ghum rahin katyayini janandolan ke log aapko jaan chuke hain ki abtak aap kya karti rahi hain, isliye janta se kshma mangkar galtiyaan sudhariye anytha fir kya

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