Jul 28, 2010

साहित्यिक-सांस्कृतिक जगत में चुप्पी क्यों है?


कार्यकर्त्ताओं के साथ किये गये अमानवीय कुकृत्य परिवार के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया और सिद्वान्तों को पैर की जूती बना देना--जघन्य आपराधिक व सामन्ती मानसिकता का द्योतक है,जो फासीवादी राजनीतिक प्रवर्ग ही हैं।

आदेश सिंह, प्रकाशक- आह्वान कैम्पस टाईम्स

जनज्वार में कामरेड अरविन्द स्मृति संगोष्ठी के निमंत्रण पत्र पर डॉं विवेक कुमार की प्रतिक्रिया से शुरू हुई बहस को लगातार देखता रहा.दरअसल यह विचारधारात्मक विपथगमन ही है. लेकिन इसका कैनवास बेहद बड़ा और गहरा है।

अतिवामपंथ और संशोधनवाद  दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है और लम्बे समय से क्रन्तिकारी आन्दोलन इन्हीं दोनों छोरों पर झूल रहा है। विचारधारात्मक विपथगमन की जडें,गौरवशाली क्रन्तिकारी आन्दोलन में अतीत से ही चली आ रही हैं। नक्सलबाड़ी आन्दोलन ने संशोधनवाद से निर्णायक विच्छेद किया,लेकिन पार्टी गठन और निर्माण की प्रक्रिया को सही रूपों में अन्जाम नहीं दे सका और आन्दोलन अतिवाम का शिकार हुआ और वह आज तक जारी है। हमारी धारा ने अतिवाम से विच्छेद कर एक नयी धारा और नयी मंजिलों की तलाश  तो किया लेकिन विखराव जारी रहे।

हमारा पूर्व संगठन जनवादी केन्द्रीयता,दो लाइनों के संघर्ष और कमेटी निर्माण अर्थात सांगठनिक लाइन और काम करने के दो पैरों के सिद्वान्त के प्रश्न  पर ही अलग हुआ। हमारे सामने सांगठनिक लाइन के नजरिये से इतिहास का विश्लेषण  करते हुए इसे व्यवहार में साबित करने का लक्ष्य था। लेकिन हुआ क्या?इसकी तस्वीर आपके सामने आ चुकी है।

 दूकान में सपने और भी हैं
साथियों ने अपने कटु अनुभवों और अहसासों से आप को परिचित करा दिया है। मैं इन साथियो को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं,इसलिए पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि व्यक्ति केन्द्रित उनकी टिप्पणियां किसी प्रतिशोध  या कीचड़ उछालने की नीयत से नहीं की गयीं है,बल्कि उनके अनुभव मुकम्मिल राजनीतिक प्रवर्गों के तथ्य हैं।

कार्यकर्त्ताओं के साथ किये गये अमानवीय कुकृत्य ,परिवार के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया और सिद्वान्तों को पैर की जुती बना देना--जघन्य आपराधिक व सामन्ती मानसिकता का द्योतक है,जो फासीवादी राजनीतिक प्रवर्ग ही हैं। इस संदर्भ में मैं भी कई और नये तथ्य दे सकता हूँ लेकिन महत्वपूर्ण  है बात के मर्म को समझने का मसला.
यदि तथ्य से सत्य का निर्धारण करें तो इस विचारधारात्मक विपथगमन,जो आज पूरे आन्दोलन में व्याप्त है--के डिग्री का पता चलता है। हमें इसी की पड़ताल करनी चाहिए और इसके सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक कारणों की जड़ों तक जाना चाहिए। आज विष्व पूंजीवाद द्वारा पैदा की जा रही मानसिक दासता,पराजय बोधी मानसिकता,पूंजी पूजक संस्कृति  का व्याप्तीकरण और पूंजीवादी राजनीति का फासीवादी चरित्र के रूप में देखा जाना चाहिए।

भारत जैसे पूर्ण औपनिवेशिक अतीत की मानसिकता व अपनी परम्पराओं और विरासत से कट जाने में और राष्टीयताओं के विकसित नहीं होने के परिप्रेक्ष्य में हमें इसकी पड़ताल करनी होगी। अन्यथा इस बहस का कोई औचित्य नहीं है।

हम विश्वासपूर्वक कह सकते है कि साथियो का कटुअनुभवों को प्रस्तुत करने का उद्देश्य  उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में बहस व विपथगमन की इस प्रक्रिया के विरूद्व खडे़ होना ही है न कि किसी की सहानूभूति पाने में। प्रगतिशील साहित्यिक- सांस्कृतिक जगत और मजदूर आन्दोलन से जुडे साथी इस पर मौन साधे रहना चाहते हों  तो यह उनकी आजादी है, परन्तु तब हम भी आजाद है भाई गोरख पाण्डेय की कविता कहने के लिए

हम भी यह खूब समझते हैं
कि आप, सब कुछ समझकर
क्यों नहीं समझते?....

(लेखक इण्डियन रेलवे टेक्निकल एर्ण्ड आर्टिजन   इम्पलाइज एसोसिएशन के केन्द्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रहे हैं।)

3 comments:

  1. आलोक, दिल्लीWednesday, July 28, 2010

    सबको गरियाने के लिए प्रसिद्ध शशि प्रकाश एंड संस कहा दुबके हैं............किसी एक सवाल पर फफनाने वालों कहाँ हो........... किसका इंतज़ार है तुम्हें............और कबतक .......... विक्रेताओं कुछ तो बोलो............

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  2. sahityik jagat pash ke kahne par chuppi to toda nahi ab guru adesh kaun chakkar men fanse ho...

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  3. I want to know the lyrics of the song by sunil kumar posted on this site...can anybody help?

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