Jul 25, 2010

जब एक कम्युनिस्ट पतित होता है...

पाठकों,वामपंथी पार्टी कम्युनिस्ट लीगऑफ इंडिया(रिवोल्यूशनरी)के सचिव की तानाशाह वाली कार्यशैली,संगठन में पारदर्शिता के अभाव और कार्यकर्ताओं के साथ की जाने वाली ज्यादतियों के बारे में अब तक आपने पढ़ा, वे छुपते हैं कि चिलमन से झरता रहे उनका नूर, सांगठनिक क्रूरता ने ली अरविंद की जान, 'जनचेनता' के मजदूर, बेगार करें भरपूर और शशि प्रकाश का पूंजीवादी मंत्र 'यूज एंड थ्रो',अब इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए अपने अनुभव साझा कर रहे हैं दिशा छात्र संगठन के पूर्व कार्यकर्ता. 

अशोक कुमार पांडेय (दिशा छात्र समुदाय के पूर्व कार्यकर्ता)

‘’नामिका की कविता और इस कविता में मूल अंतर है कि जहां अनामिका ने कविता रची है कात्यायनी ने गढी है। यह स्वाभाविक गुस्से या समर्थन की उपज नही लगती। कात्यायनी की समस्या यह है कि उनकी पूरी रचना प्रक्रिया अस्वाभाविक और एक गर्वपूर्ण भर्त्सना से भरी हुई है।

हां आपने भी उन्हें एक्टिविस्ट कहा है। प्रकाशन चलाना एक्टिविज़्म नहीं होता। बाकी के बारे में न कहूं तो ही बेहतर’’।

घाव अभी तक हरे हैं

ग्रज कवि शरद कोकास के ब्लॉग पर प्रकाशित कात्यायनी की एक कविता पर लिखी इस टिप्पणी का असर यह हुआ कि पिछले पुस्तक मेले में उनके शानदार स्टाल में जैसे ही घुसा वह फट पड़ीं,“तुमने मेरी कविता को गढ़ी हुई कहा था न और बाकी के बारे में क्यूं नहीं कहा।”मैं अशालीन नहीं होना चाहता था…तो सिर्फ़ इतना कहा ‘कहूंगा…मौका आने पर वह भी कहूँगा ही।’आज जब तुम लोगों को अपने इतने दिनों से दबा कर रखे गए गुस्से का इज़हार करते देखा तो लगा अब समय आ गया है और इस मौके पर मुझे भी सामने आना ही चाहिए. जख़्म पुराना सही पर घाव अब तक हरे हैं…और शायद यह इसलिए भी ज़रूरी है कि कई और युवा मित्रों को इससे बचाया जा सके. जवानी के पहले सपने के टूटने का जो दर्द हमने झेला है वह दूसरों को न झेलना पड़े। अब तक चुप रहे कि सुदर्शन की कहानी बचपन में पढ़ रखी थी, डर था कि अंततः बदनामी समाजवाद की ही होगी…लेकिन अब लगता है कि और चुप रहे तो ये लोग समाजवाद को इतना बदनाम कर डालेंगे कि फिर किसी की सफाई का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. सही को सही कहने से ज़्यादा ज़रूरी है ग़लत को ग़लत कहना.

तो मित्रों शुरुआत में ही साफ़ कर दूँ कि मैं शशिप्रकाश-कात्यायनी की तथाकथित पार्टी को एक भ्रष्ट, पतित और किसी ही प्रकार से धन एकत्र करने वाला गिरोह मानता हूँ. उतना ही घृणित जितना कि बच्चों को चुरा कर भीख माँगने पर मजबूर करने वालों को।

लंबी बहसों का दौर

वे1991-92के दिन थे…गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाथ चंद्रावत छात्रावास…किसी शाम कुछ युवा मेरे कमरे पर आए.हाथ में आह्वान कैंपस टाईम्स लिए दिपदिपाते चेहरे (क्या बताऊं वर्षों वाद उन चेहरों की उदासियों ने कितना रोया हूं…तुम तो जानते हो न अरुण!).मैं खानदानी संघी, भिड़ गया…फिर कई रातों चली लंबी बहस…स्टेशन के सामने दिशा के दफ़्तर में…हास्टल में…रात की सूनी सड़कों पर…और इसी दौरान परिचय हुआ मार्क्सवाद से. एक बेहतर दुनिया के निर्माण का स्वप्न जागा और यह तय किया कि अब ज़िंदगी का कोई और लक्ष्य हो ही नहीं सकता। तब यह नहीं जानता था कि मैं जिन लोगों के जाल में फंस रहा हूं वे इस स्वप्न को ‘आने-पाई के महासमुद्र’ में डुबा चुके हैं… और हम उनकी भ्रष्ट योजनाओं की पूर्ति के साधन बने.

पैसा उगाहो अभियान

ह इस प्रक्रिया का आरंभिक काल था. तब इन सब उपक्रमों की योजनाएँ बन रही थीं…चासनी पगे शब्दों में शशिप्रकाश इन योजनाओं को बताते और हमें मुतमईन करते कि पूंजीवादी सांस्कृतिक षड़यंत्रों को ध्वस्त करके एक समाजवादी विचारधारा स्थापित करने के लिए ज़रूरी है कि हमारे पास अपना प्रकाशन हो, अपना एक ट्रस्ट हो, अपना विश्विद्यालय हो.हम इस अपने का मतलब नहीं समझ पाए थे तब और हमें यह बताया गया कि इसके लिए ज़रूरत है समर्पित कार्यकर्ताओं की एक टीम की और पैसों की. पैसे जुटाने की रोज नई तरकीब ढ़ूढ़ीं जाने लगीं. स्ट्रीट थियेटर से पेट कहाँ भरता. लेवी की सीमा होती है, तो एक एकदम नया तरीका ढ़ूंढा गया. एक अभियान ‘लोक स्वराज अभियान’ अर्थात एक आदमी किसी व्यस्त चौराहे, बस, हास्टल या किसी ऐसी जगह जहाँ लोगों की जेब ढीली की जा सके (यहाँ तक कि रेस्त्रां भी)पर चिल्ला कर व्यवस्था के ख़िलाफ़ उग्रतम संभव भाषा में भाषण दे और शेष लोग वहाँ पर उपस्थित लोगों को परचे वितरित करें और चंदा लें…जो जितनी अधिक राशि शाम को ला सके वह उतना ही दुलारा…(और यह यहीं तक नहीं रुका यह सब…कई साल बाद पत्नि के साथ गोरखपुर से ट्रेन से लौटते हुए उसी अभियान का पर्चा हाथ में लिए कुछ युवा साथियों को ट्रेन में देखा…उनसे परिहास करते डेली पैसेंजर्स को और उनके पीछे-पीछे आते भिखारियों को. पत्नि की सवालिया आँखों ने घूरा तो पता नहीं क्यूं ख़ुद पर शर्म आई)…

कात्यायनी का कायायंतरण

कुछ समझ नहीं आता था.इसी दौरान राहुल सांस्कृत्यायन की जंयती के दौरान वह कार्यक्रम हुआ जिससे राहुल फाउन्डेशन की योजना फलीभूत होनी थी…सहारा की वह टिप्पणी और फिर लखनऊ की सड़कों पर वह तमाशा, हमने शशि की मैनेजमेंट क्षमता देखी. देखा कात्यायनी का रातोरात एक्टिविस्ट में कायांतरित होना.आदेश के साथ मैं भी गोरखपुर लौटा था, शहर में समर्थन जुटाने और पैसे भी पर इन सबके बीच यह तो लगने लगा था कि कुछ गडबड़ है…जिस काम को ज़िंदगी का मक़सद तय किया था उसमें दिल नहीं लगता था. जब कात्यायनी के कल्याणपुर वाले घर के सामने रहने वाले एक मज़दूर के घर को जबरन दिशा के दफ़्तर के लिए ख़ाली कराने में साथियों का गुंडों की तरह इस्तेमाल किया गया तो मुझे नहीं पता था कि यह तमाम संपत्तियों को कब्ज़ाने की लंबी कड़ी की शुरुआत है. लेकिन मैं उसमें शामिल नहीं हुआ…अक्सर उन पैसा उगाहो कार्यक्रमों से बाहर रहने लगा.इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी कि दिल कांप गया, मुजफ़्फ़रपुर के एक अभियान (जिसमें मै परीक्षा की वज़ह से शामिल नहीं हो पाया था) की समीक्षा मीटिंग में हमारे एक साथी सलमान पर घटिया आक्षेप लगाए गए, महिलाओं को लेकर, यहाँ तक कि जिस कात्यायनी को हम दीदी कहते थे, वह भी आरोप लगाने वालों में शामिल थीं. सलमान को सफ़ाई का मौका तक न मिला. उसने कुछ कहने की कोशिश की तो संतोष ( जिसे हम शशि का वुलडॉग कहते थे) ने सबके बीच उस पर हाथ उठाया. हम प्रतिकार में उठकर चले आए और फिर कभी वापस नहीं गए.

शशि प्रकाश के अनमोल वचन

बाहर आकर यह सब और ज़्यादा साफ़ दिखने लगा. एक पूरी प्लांड स्कीम. शशि का पर्दे के पीछे रहकर पूरा काम सँभालना, कात्यायनी का संगठन के चेहरे के रूप में प्रोजेक्शन, लोगों के प्रति चूसो और फेंक दो वाला एप्रोच,डरपोक और हीनतावोध से भरे साहित्य-समाज में हाई डेसीबेल की थोथी कविताओं के सहारे आतंक फैलाकर छा जाना और फिर उसका हर संभव लाभ उठाना,धीरे-धीरे अकूत धन एकत्र करते जाना, पूंजीपति प्रकाशनगृहों की चमचागिरी और उनके साथ दुरभिसंधियाँ. सब साफ़ दिखता था...

…और शशि की कही दो सूक्तियां बेहद याद आती हैं…पहली यह कि ‘जब एक कम्युनिस्ट पतित होता है तो उसकी कोई सीमा नहीं होती क्योंकि वह तो ईश्वर से भी नहीं डरता’ और दूसरा यह कि ‘अगर इंकलाब न करना हो तो छोटे शहरों में नहीं रहना चाहिए.'वह कभी कम्युनिस्ट था और पिछले तमाम सालों में वह बड़े शहरों में ही रहता है!




8 comments:

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  2. ओह, कितना वीभत्स चेहरा सामने आया है. लगातार पढ़ रही हूं सारे लेख. जाने-अनजाने इस ग्रुप से ज्यादा न सही थोड़ा तो मैं भी जुड़ी रही हूं. भाव सिर्फ सम्मान का था कि कुछ लोग सचमुच जनहित में काम कर रहे हैं. लेकिन ये सब...कितना खतरनाक है.

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  3. साथियों
    शशि प्रकाश की करतूतों पर जिन साथियों ने आज लिखने की पहल कदमी दिखाई है उन्हें मै सलाम करती हूँ इस ग्रुप में परिवार के बाहर से आई महिलाओं के साथ भी नौकरानी जैसा ही व्यवहार होता है 'महान कवियत्री' कात्यायनी का व्यवहार तो सभी लड़कियों के साथ किसी मालकिन से कम नहीं होता है ये मै खुद अपने अनुभव से जानती हूँ / सभी साथी आज जो लिख रहे है वो उनका भोगा हुआ है न की किसी लालच में आकर मै भी इस संगठन का हिस्सा रही हु इसलिए ये सब भोगा और जाना है. इस सगठन द्वारा सिर्फ और सिर्फ मार्क्सवाद के नाम पर घृणित काम ही अंजाम दिए जा सकते है अगर विस्तार से लिखा जाये तो इनकी कार्य शैली की बदबू इतनी अधिक फैलेगी की कोई सभ्य समाज उसे पढ़ नहीं पायेगा....

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  4. जितना विभत्स काम शशिप्रकाश एंड कात्यायनी मंडली कर रही है या किया है उससे भी विभत्स काम इन कुकर्मों को छाप कर किया जा रहा है। यह छिछोरापन बंद होना चाहिए। आप लोग सोच रहे हैं कि आप कम्युनिज्म का बहुत भला काम कर रहे हैं लेकिन आप उस विश्वास को खत्म कर रहे हैं जो जनता के बीच है।

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  5. isi bhay kaa laabh uthaate rahe hai ye log...aur anonymus mahoday aap ko is 'sach' ko kahne ke liye naqab kii zaroorat kyon pad rahii hai?

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  7. aap logo ki baat sach hai ya galat isse alag ek baat anonymus mahoday ki baat ka samarthan karte hue ki-aap log janta se sahyog lene ke sashi prakash ke tareeke aur uske galat tareeke se kharch karne ka virodh karte hain ya us tarah se sayog lene ka? aur agar aapka virodh sirf dhan ke durupyog ke liye hai to fir kya aap log unki tarah se janta se dhan juta kar uska sahi tarah se istemal karte hain. kripya is vishay me bhi apni rai dijie, kyonki apke tamaam lekhon me is par koi rai nahi rakhee gayi hai.

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  8. aap logo ki baat sach hai ya galat, is se alag ek baat anonymus mahoday ka samarthan karte hue ki-aap log janta se sahyog lene ke sashi prakash ke tareeke aur uske durupyog-dono ka virodh karte hain ya sirf us tarah se sayog lene ka? aur agar aapka virodh sirf dhan ke durupyog ke liye hai to fir kya aap log unki tarah se janta se dhan juta kar uska sahi tarah se istemal karte hain. kripya is vishay me bhi apni rai dijie, kyonki apke tamaam lekhon me is par koi rai nahi rakhee gayi hai.

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