Jul 21, 2010

साहस की पत्रकारिता और दमन की राजनीति


सरकार जब अपनी ही जनता को हर कीमत पर हराने की ठान ले,हत्याओं और दमन को विकास के लिए जरूरी बोले,तो सवाल समाज की तरफ से उठता है कि देश नागरिकों का है,या दुश्मनों का। पूर्वोत्तर के सभी राज्य,जम्मू कश्मीर समेत मध्य भारत का एक बड़ा हिस्सा इस समय सेना और अर्धसैनिक बलों के कब्जे में है जहां सरकार सिर्फ सुविधा मुहैया कराने की भूमिका तक सीमित रह गयी है। सबसे त्रासद यह है कि केंद्र हो या राज्य सरकारें देश की इस स्थिति पर जनता के प्रतिनिधि के रूप नहीं,बल्कि कमान के मेजर के तौर पर सामने आ रही हैं,जिसके लिए मुल्क का मतलब पूंजीपति घरानों को चलाना है।

सरकार विद्रोहियों से निपटने के लिए जिन तरीकों को अमल में ला रही है,उसे देख संदेह होने लगा है कि,खुद सरकार कहीं मुल्क के लोकतांत्रिक मुल्यों को बोझ तो नहीं मान चुकी है। हमारे समय के इन्ही जरूरी सवालों से जनपक्षधर पत्रकार कैसे निपटें,को लेकर दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में ‘जर्नलिस्ट फॉर पीपुल’की ओर से 20जुलाई को ‘अघोषित आपातकाल में पत्रकारों की भूमिका’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया.  

आर्यसमाज  नेता और समाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेष ने कहा कि आज देश में आपातकाल जैसी स्थितियां हैं। स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडेय और भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता कॉमरेड आजाद की कथित मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए स्वामी अग्निवेष ने उनकी शहादत को सलाम पेश किया। और कहा कि इस इस दौर में पत्रकारों को साहस के साथ खबरें लिखने की कीमत चुकानी पड़ रही है। ‘इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ के  सलाहकार संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने हेमचंद्र पांडेय और आजाद की हत्या को शांति प्रयासों के लिए धक्का बताया। गौतम ने कहा कि आज राजसत्ता का दमन अपने चरम पर है। देश के हर हिस्से में सरकार अलग-अलग तरीके से पत्रकारों का दमन कर रही है।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए ‘समकालीन तीसरी दुनिया’के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि अब सरकारें अपने बताए हुए सच को ही प्रतिबंधित कर रही हैं। और जो भी पत्रकार इसे उजागर करने की कोशिश करता है उसे दमन झेलना पड़ता है.सही सूचनाएं पहुंचाने वाले संगीनों के साए में जी रहे हैं. उन्होने इस स्थिति के विरोध के लिए संगठन बनाने की जरूरत पर बल दिया.

इस मौके पर ‘हार्ड न्यूज’के संपादक अमित सेन गुप्ता भी मौजूद थे। उन्होने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता कारपोरेट घरानों के इशारे पर संचालित हो रही है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्थिति और भी बुरी है। न्यूज चैनल के संपादक बॉलीवुड सितारों के गलबहियां करते नजर आते हैं। और अभिनेताओं से खबर पढ़वाई जाती है। नेता-कारपोरेट घरानों और मीडिया के गठजोड़ पर बोलते हुए अमित ने कहा कि देश के अलग अलग हिस्से में हुई घटनाओं को अलग अलग तरीके से पेश किया जाता है। खासकर एक संप्रदाय विशेष के लिए मुख्यधारा की मीडिया पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।

कवि नीलाभ ने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर ‘सांस्कृतिक आंदोलन’की जरूरत है। सरकारी दमन के मसले पर हिंदी के लेखकों की चुप्पी पर सवाल उठातेहुए उन्होने संस्कृति-कर्मियों, कलाकारों,चित्रकारों की एकता और आंदोलन की जरूरत और उनकी पक्षधरता पर  बल दिया।

गोष्ठी को पत्रकार पूनम पांडेय ने भी संबोधित किया और कहा कि आपातकाल केवल बाहर ही नहीं है बल्कि समाचार पत्रों के दफ्तरों में भी पत्रकारों को एक किस्म के अघोषित आपातकाल का सामना करना पड़ता है। इस मौके पर हिंदी के तीन अखबारों (नई दुनिया, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण) के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया। इन अखबारों ने पत्रकार हेमचंद्र पांडेय की मुठभेड़ में हुई हत्या के बाद तत्काल नोटिस जारी करते हुए हेमचंद्र को पत्रकार मानने से ही इंकार कर दिया था।

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इस गोष्ठी को समायकि वार्ता से जुड़ी पत्रकार मेधा, उत्तराखंड पत्रकार परिषद के सुरेश नौटियाल, जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी के शाह आलम और ‘समयांतर’के संपादक पंकज बिष्ट,पीयूसीएल के संयोजक चितरंजन सिंह ने भी संबोधित किया। गोष्ठी में पत्रकार आनंद प्रधान, दिलीप मंडल, मुकुल सरल, नवीन कुमार, अरविन्द शेष, पियूष पन्त,कवि रंजीत वर्मा, सुधीर सुमन, रामजी यादव और फ़िल्मकार झरना झवेरी भी मौजूद थीं.

गोष्ठी के आखिर में पत्रकार हेमचंद्र की याद में हर साल दो जुलाई को एक व्याख्यान माला शुरु करने की घोषणा की गई। गोष्ठी का संचालन पत्रकार भूपेन ने किया और विषय प्रवर्तन राजेश आर्य ने किया. कार्यक्रम में बड़ी तादात में पत्रकार, साहित्यकार, छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे.

गोष्ठी को विस्तार से सुनने और सुझावों को साझा करने के लिए दाहिनी ओर सबसे ऊपर लगे ऑडियो पर क्लिक करें.



5 comments:

  1. Once in a village there was a peak(1000 metres).no one was interested to win over it.once a man climbed on it.everyone praised him a lot.he was like a superstar after climbing on the peak.the series of attempts to climb on it,went on……the society dreams of the standards which are made by society itself.often we see the list of 100 millionairs of the world or of country…….there is no definite model of development or success,in real the model of development(or what is success?)is created by men.what will be the goal of the youth???
    In india what we see on t.v.,what we read in news papers, abt which we talk of……..abt politicians,cricketers,bollywood stars,abt their scandles,their marriages,their break off,affairs,their activites etc(in general).
    How can the poverty be removed? I think that there’s no way to remove it.if someone says that benefit of fast growth of Indian economy will reach to the poor,it’s not possible at any cast.as to be a rich by any means is a BIG VALUE of the society,of country and of world.in history of man no class[rich people,whether it’s land(in ancient times),the cows(in vaidik period),the money(today) and may be credit card in future],has left money or facilities in cold blood,for the poor and needy.
    A lot of castly products(shoes,clothes,cars,mall culture etc) are coming in the market and they r sign of success and social proud.how can we think that people will not try to achieve them…………all promises of welfare of the poor are false,blank dreams.
    We travelled from rio de janeiro upto Copenhagen in case of climate change,but no major result.we will meet agn in maxico city(but I think that there will be agn no result).but in case of economic slow down,whole world was united in a little time[g-20,Washington d.c.,London,pittesberg,Toronto and now in future in south koria].evrythig is clear.the poor will have to take
    Care of themselves.noone is there for them.
    Thank you
    Sanjeev manohar sahil

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  3. aap logon ne achchi pahal kee hai.vyastaaon ke chalte main shirkat na kar saka afsos hai. lekin hamzabaan mein goshthi se pahle aur baad kee khabar zaroor dee .

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