Jun 12, 2010

खापों में लंपट हैं

डीआर चौधरी


हरियाणा में अच्छी भैंस की कीमत 50हजार है,जबकि बहू (जो वारिस दे सके)बनाने के लिए खरीदी जा रही लड़कियों की बोली दस हजार से शुरू होती है।

खाप पंचायतों का सामाजिक आधार भाईचारा है। एक खाप में जितने भी महिला-पुरूष हैं सभी में खून का रिश्ता माना जाता है। ऐसा मानने के पीछे तर्क यह है कि किसी एक खाप के अंतर्गत आनेवाले लाखों लोग उस एक ही बुजूर्ग की संतान हैं जिसने सैकड़ों साल पहले कोई एक गांव बसाया था। जैसे हरियाणा में हुड्डा खाप के 40गांव हैं, तो यह सभी चालीस गांव के लोग भाई-बहन माने जायेंगे और इनमें शादी नहीं हो सकती।

 हरियाणा में भैंसों के साथ बहुओं का भी बाज़ार है.  
खापों के ये सभी मानदंड उन मध्यकालीन गांवों के हैं जब आधुनिकता का उदय नहीं हुआ था। विदेशी आक्रमणकारियों का भारत में घुसने का यही रास्ता था इसलिए खुद को बचाने और संघर्ष को मुकम्मिल बनाये रखने में हो सकता है खापों का यह तरीका काम आया हो। पर मौजूदा समय में जबकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जन भागीदारी का पूरा एक ढांचा है,वैसे में गोत्र की शुद्धता का हौवा खड़ा करके युवक-युवतियों की हत्या करना,उनकी जमीन-जायदाद पर कब्जा करना कत्तई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। मेरी स्पष्ट राय है कि खाप और जातीय पंचायतों को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर, उनके समर्थकों और नुमाइंदों पर आपराधिक मुकदमें दर्ज हों।

मैं मानता हूं कि परंपराओं की कद्र होनी चाहिए लेकिन परंपराएं समयानुकूल हों तब। अन्यथा परंपराएं सड़ाध मारने लगती हैं और समाज पर बोझ बन जाती हैं। झज्जर जिले का एक गांव है समचाणा,वहां जाटों के पंन्द्रह गोत्र हैं। कुछ गोत्रों का आपस में भाईचारा माना जाता है। मान, देशवाल, सेहाग और दलाल इन चारों का आपस में भाईचारा है। दंतकथा है कि ये चारो गोत्र एक ही बुजूर्ग की चार संतानों के हैं। यह वर्जना यहीं नहीं रूकती। अब उस गांव में जितने भी गोत्र है उनकी आपस में शादी नहीं हो सकती। साथ ही उस गांव में जितने भी गोत्र हैं उनके गोत्र की लड़की गांव में बहू बनकर नहीं आ सकती। दूसरी तरफ अमानवियता का हद ये है कि हरियाणा में अच्छी भैंस की कीमत 50 हजार है और खरीद कर लायी बहू दस हजार में मिलनी शुरू हो जाती है।

खापों की व्यवस्था के बारे में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह राजा हर्षवर्धन के समय से है। कहा जाता है कि पहली बार हर्षवर्धन ने सर्वखाप पंचायत बुलायी थी। सर्वखाप का मायने है अलग-अलग खापों के प्रतिनिधियों की पंचायत। मगर मैंने बीस साल के अध्ययन में पाया कि मध्यकालीन समाज में फैली अराजकता और बाहरी आक्रमण से निपटने की चुनौती के साथ खाप पंचायतें अस्तित्व में आयीं। उस समय कानून व्यवस्था चरमारायी हुई थी और लूटपाट आम बात थी। इससे निपटने के लिए घोषित तौर पर खापों के दो कार्यभार निर्धारित किये गये। पहला बाहरी मुल्कों के आक्रमण से खुद को बचाना और दूसरा आपसी विवादों-झगड़ों का निपटारा करना।

अंग्रेजी राज के दौरान ब्रिटिशों ने भी इन कानूनों को नहीं छेड़ा। शायद इसलिए कि राज करने का उनका यह नीतिगत कानून था कि देश विशेष के आंतरिक-सांस्कृतिक मसलों को नहीं छेड़ना है। हां,जिस कूप्रथा के खिलाफ देश के भीतर एक माहौल बना उसके खिलाफ जरूर अंग्रेजों ने पहलकदमी ली। जैसे सती होने की प्रथा को भारतीय समाज से कानूनी तौर पर खत्म किया। मगर सती प्रथा के खिलाफ आवाज देश के अंदर से उठी थी। लेकिन खाप पंचायतों के मामले में ऐसा नहीं था। ब्रिटीश विद्वानों ने कई गजेटियर में इसकी चर्चा भी की है।

दिल्ली से लगा हरियाणा, हरियाणा से लगा राजस्थान का कुछ क्षेत्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा और दिल्ली का देहात ही खाप का मुख्य भौगोलिक दायरा है। हरियाणा में भी सोनीपत, झज्जर, रोहतक, जिंद, कैथल जिले में ही खाप विशेष तौर पर सक्रिय हैं। इसके अलावा जो पंचायतें हैं वह जातीय पंचायतें हैं। इन जातीय पंचायतों की भी स्थापना इतिहास में अपने को ताकतवर किये जाने के लिए ही हुईं। खाप पंचायतों के इतिहास में जायें तो प्रेम करने वालों की हत्या, उनके घर-परिवार वालों की जमीन-जायदाद हड़पकर बेदखली के फरमानों का सिलसिला नया है। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि खाप पंचायतें अपने मूल में दलित और स्त्री विरोधी रही हैं। पंचायतें महिलाओं पर अमानवीय फैसले लेती हैं मगर कभी एक महिला की वहां उपस्थिति नहीं होती। सवाल उठा तो हाल में एक पंचायत के दौरान कुछ महिलाओं को चैधरियों ने बैठाया और महिला शाखा बनाने की बात कही। इससे पहले जितने भी फैसले हुए हैं उनमें कहीं महिला की भागीदारी नहीं रही।

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अगर इन खापों में सक्रिय  लोगों की गिनती करें तो ज्यादातर लंपट मिलेंगे जिन्हें गुंडा तत्व कहा जाना चाहिए। खाप के अंदर कोई चुनाव प्रक्रिया नहीं है। जो कोई एक बार किसी पंचायत का स्वयंभू प्रधान बन जाता है तो उसके बेटे-पोते उसे खानदानी सौगात मानकर संभालते हैं। दूसरा तरीका है,मौके पर ही कुछ लोगों की मनमर्जी से किसी को प्रधान बना डालना। इन तमाम कारगुजारियों का लोग विरोध नहीं करते कि खाप के अधिकतर प्रधान रसूखदार ही होते हैं।

खाप और जातीय पंचायतें पुरूष प्रधान समाज का घिनौना रूप हैं। जो दबंग लोग हैं वह अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए खोल की तरह खाप का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रशासन की ढिलाई की वजह से इनके हौसले बुलंद हैं। राजस्थान में इसी किस्म की विकास पंचायतें  हुआ करती थीं जिनका पेशा इज्जत के नाम पर हत्याएं करना और फरमान जारी करना ही था। राजस्थान के श्रीगंगानगर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर से बाड़मेर तक खाप क्षेत्र से बड़ा इलाका है जहां जाट या राजपूत आबाद हैं। इन क्षेत्रों में भी जातीय पंचायतें इज्जत के नाम पर एक दौर में फतवे जारी किया करती थीं। बढ़ती वारदातों के मद्देनजर राज्य मानवाधिकार आयोग और जयपुर उच्च न्याायालय ने सरकार से अंकुश लगाने की सख्त हिदायत दी। न्यायाल के आदेश पर गृहमंत्रालय ने राज्य के पुलिस अधिक्षकों को निर्देश जारी किया कि ऐसे लोगों  के खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाये। सख्ती होते ही राजस्थान में इस तरह के मामले आने बंद हो गये। हरियाणा में सख्ती नहीं है। रही बात हिंदू विवाह अधिनियम के बदलने की मांग की तो,बिल्कुल फिजूल की बात है। हिंदू विवाह परंपरा में कानूनी तौर पर पहले से ही पिता की पांच पीढ़ियों और मां की तीन पीढ़ियों में विवाह वर्जित है।

भारत में जाट तीन धर्मों में होते हैं। हिंदू जाट को छोड़ दें तो सिक्ख और मुसलमान जाटों में एक ही गोत्र में शादियों के मैं तमाम उदाहरण गिना सकता हूं। सबसे अच्छा उदारहण पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की बेटी की शादी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह कैरोन के पोते का है। बादल और कैरोन दोनों की गोत्र ढिल्लों है, जबकि शादी हुई है। इतना ही नहीं हरियाणा के जाटों और पंजाब के सिक्ख जाटों में बहुत शादियां होती हैं। रही बात गोत्र की तो जो गोत्र जाटों में मिलते हैं उनमें से दसियों गोत्र सिक्ख जाटों में भी मिलते हैं। इसलिए समान गोत्र में शादी का सवाल कोई सवाल ही नहीं है।

भाई बहन शादी करें तो वैज्ञानिक दिक्कत समझ में आती है लेकिन हत्या उसका समाधान कत्तई नहीं है। गोत्र की शुद्धता की पैरोकारी में घूम रहे लोगों को कौन बताये की जहां जातियों की आपस में इतने मेलजोल हुए हैं वहां खून की शुद्धता की बात बेमानी है। खासकर हरियाणा पंजाब में तो इसका सवाल ही नहीं। इसलिए कि हुण, शाकाज, ग्रीक, मंगोल, सिन्थियन्स और मुगल आक्रमणकारियों से पहला मुकाबला इन्हीं राज्यों का हर बार हुआ। बहुतेरे आक्रमणकारी यहीं के होके रह गये। ऐसे में कितनी शुद्धता बची होगी इसकी मुसलसल जानकारी के लिए खाप समर्थकों को इतिहास पढ़ना चाहिए। मेरे मुताबिक पंजाब-हरियाणा के लोग तो पूर्णरूप से वर्ण संकर हैं।

(अजय प्रकाश से बातचीत पर आधारित)



(द पब्लिक एजेंडा में खाप पर प्रकाशित आवरण कथा का एक संपादित अंश)

2 comments:

  1. हरियाणा में अच्छी भैंस की कीमत 50हजार है,जबकि बहू (जो वारिस दे सके)बनाने के लिए खरीदी जा रही लड़कियों की बोली दस हजार से शुरू होती है।
    इस बात पर क्‍या कहा जाए ??

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  2. 'खाप-पंचायत' कौन है??
    'पंचायती' कहाये जाने वाले अधिकांश लोग निठ्ठल्ले हैं. इनका मुख्य काम ताश पीटना व दारूबाजी (फ्री वाली) करना है. खाप-पंचायत के जरिये दबंग लोग अपनी राजनीति चमकाने में लगे रह्ते हैं. हरियाणा में जाटो व दलितो के अधिकांश गोत्र एक समान हैं,लेकिन इस आधार पर उनके साथ तो भाईचारे जैसा बर्ताव नहीं किया जाता. दहिया,पूनिया,रंगा,मेहरा,रांगी जैसे गोत्र जाटो के इलावा दलितो में भी पाये जाते हैं. गौरतलब है कि खाप-पंचायत के अधिकांश ठेकेदारो को उनके अपने घर में कोई नहीं पूछ्ता. इनकी राजनीति गरीब लोगो के फैसले करने तक सीमित है. सर्वजातीय कही जाने वाली पंचायत में मुख्यत एक-दो दबंग जातियो का ही वर्चस्व होता है,जहां मध्ययुगीन सामंती तरीको से फैसले किये जाते हैं. वोट की राजनीति की वजह से विभिन्न राजनीतिक दल भी इनके पक्ष में रह्ते हैं..

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