Oct 10, 2009

दिल्ली पुलिस का इंसाफ

                                                                                                                                           
गुस्से और बौखलाहट से भर देने वाली ये तस्वीरें आपने देख ली होंगी। ये तस्वीरें दिल्ली प्रेस की अंग्रेजी पत्रिका कारवां से जुड़े पत्रकार जोएल इलिएट की हैं। इससे मिलती-जुलती तस्वीरें हमने इराक के अबू गरेब जेल की देखी थीं। लेकिन यह जेल की नहीं, दिल्ली के सड़कों के जेल बन जाने की बाद की हैं।

पुलिसिया काम के इस नमूने को हम इसलिए देख पा रहे हैं कि यह एक अमेरिकी पत्रकार के साथ किया गया इंसाफ है। पत्रकार जोएल इलिएट पत्रिका कारवां के साथ मई महीने से जुड़े हुए थे। इससे पहले वे न्यूयार्क टाइम्स, द क्रिष्चियन सांइस मानिटर, सैन फ्रांसिस्को, क्राॅनिकल और ग्लोबल पोस्ट के स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम करते रहे हैं।

दिल्ली के जंगपुरा की एक सड़क पर 6 अक्टूबर की रात  पुलिस द्वारा पीटे जा रहे एक आदमी को बचाने के चक्कर में खुद षिकार हो गये जोएल फिलहाल अपने देष अमेरिका लौट गये हैं। हमें तो खुषी है वे बेचारे भारत के नहीं हैं, उपर से हिंदी के तो बिल्कुल भी नहीं। नहीं तो पुलिस वाले धमकाकर चुप करा देते, नहीं मानने पर मीडिया घराने का मालिक नौकरी से निकाल देता और बात अगर इससे भी नहीं बनती तो लड़कीबाज, दलाल या रैकेटियर बनाकर रगड़ देते। मौका तो रात का था ही जिसमें यह सब आसान होता।

यहां राहत है कि कारवां पत्रिका के प्रबंध संपादक अनंत नाथ और अमेरिकी दुतावास वाले इस मामले को गंभीरता से उठा रहे हैं। रही बात बिरादरों की तो, सब पूछ रहे हैं कि हम क्या कर सकते हैं......


3 comments:

  1. Chidambram ko bataya jaye, wahee rasta batayenge. Unkee police bahut shareeg hai.

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  2. महोदय जहां तक मुझे मालूम है कि इलियट साहब रात के तीन बजे दारू पीकर गाड़ियों के शीशे तोड़ रहे थे। एक जगह इन्होने एक अंबेसडर का सीसा तोड़ा और जनता द्वारा वहां पीटे गए। पुलिस आई लेकिन विदेशी नागरिक वो भी अमेरिका का होने के नाते चेतावनी देकर छोड़ दिया। फिर उसके बाद वे एक आटो में तोड़ - फोड करते हुए पकड़े गए और वहां पीटे गए। इसके बाद पुलिस इन्हें ले गई। हलांकि पुलिस का दावा है और ऐसा ही मैडिकल रिपोर्ट में भी दर्ज है कि इलियट साहब को डंडे से नहीं मारा गया । खैर...अगर मेरी जानकारी सही है तो इलियट साहब को पीटा जाना लाजमी था और यह अच्छा हुआ। दूसरे अगर आपकी जानकारी सही है यह गलत हुआ है फिर भी दिल्ली पुलिस ने अगर ऐसा किया है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं है ये तो उसकी आदत में शुमार है।
    अवनीश

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  3. यहां राहत है कि कारवां पत्रिका के प्रबंध संपादक अनंत नाथ और अमेरिकी दुतावास वाले इस मामले को गंभीरता से उठा रहे हैं.thik hai.

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