Dec 18, 2008

मुंतदिर अल जैदी को सलाम


तानाशाह और जूते

मदन कश्यप

उसके जूते की चमक इतनी तेज थी
कि सूरज उसमें अपनी झाइयां देख सकता था
वह दो कदम में नाप लेता था दुनिया
और मानता था कि पूरी पृथ्वी उसके जूतों के नीचे है
चलते वक्त वह चलता नहीं था
जूतों से रौंदता था धरती को

उसे अपने जूतों पर बहुत गुमान था
वह सोच भी नहीं सकता था
कि एक बार रौंदे जाने के बाद
कोई फिर से उठा सकता है अपना सिर
कि अचानक ही हुआ यह सब

एक जोड़े साधारण पांव से निकला एक जोड़ा जूता
और उछल पड़ा उसकी ओर
उसने एक को हाथ में थामना चाहा
और दूसरे से बचने के लिए सिर मेज पर झुका लिया
ताकत का खेल खेलने वाले तमाम मदारी
हतप्रभ होकर देखते रहे
और जूते चल पड़े
दुनिया के सबसे चमकदार सिर की तरफ
नौवों दिशाओं में तनी रह गयीं मिसाइलें
अपनी आखिरी गणना में गड़बड़ा गया
मंगलग्रह पर जीवन के आंकड़े ढूंढने वाला कम्प्यूटर
सेनाएं देखती रह गयीं
कमांडों लपक कर रोक भी न पाये
और उछल पड़े जूते

वह खुश हुआ कि आखिरकार उसके सिर पर नहीं पड़े जूते
शर्म होती तब तो पानी पानी होता
मगर यह क्या कि एक जोड़े जूते के उछलते ही
खिसक गयी उसके पांव के नीचे दबी दुनिया
चारो तरफ से फेंके जाने लगे जूते
और देखते देखते
फटे पुराने, गंदे गंधाये जूतों के ढेर के नीचे
दब गया दुनिया का सबसे ताकतवर तानाशाह

2 comments:

  1. हॉं अगर होता वो असली तानाशाह
    सददाम के बंश का ।
    तो फिर फेकने वाले और ताली बजाने वालो का पता भी न चलता ।।
    फेंकने वाले से तो फिर भी सहानूभूति
    मगर ताली बजाने वाले तो बस सुभान अल्‍लाह

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