Oct 11, 2008

जेल से पत्र

उन्होंने जेलों से पत्र भेजा है

अजय प्रकाश

उत्तर प्रदेष कचहरी बम विस्फोट के दो मुख्य आरोपी मोहम्मद हकीम तारिक कासमी और मोहम्मद खालिद मोजाहिद पर से हाल ही में अदालत ने देषद्रोह का मुकदमा खारिज कर दिया। ये दोनों आरोपी बाराबंकी जेल में बंद हैं। इसी केस में कोलकाता से गिरफ्तार आफताब अंसारी पहले ही बाइज्जत रिहा हो चुके हैं। एसटीएफ ने गिरफ्तारी के वक्त आफताब को इंडियन मुजाहिद्दीन का कमांडर बताया था जबकि तारिक और खालिद को मास्टर माइंड कहा।
गिरफ्तारी के बाद पुलिस और एसटीएफ ने आरोपियों के साथ कैसा व्यवहार किया इस बारे में तारिक और खालिद ने जज और जेल अधीक्षक के नाम जेल से पत्र लिखे। पत्र की मूल प्रतियां उर्दू में हैं। जेलों में गुजारे गये दिनों के बारे में उन पत्रों में विस्तार से चर्चा की गयी है। उसके एक छोटे से हिस्से का अनुवाद हम हिंदी में छाप रहे हैं।


श्रीमान श्रीमान अधीक्षक साहब
सीजेएम साहब जिला कारागार लखनउ
फैजाबाद
मैं मुहम्मद खालिद महतवाना (मुहल्ला) मड़ियाहूं जिला जौनपुर का रहने वाला हूं। 16-12-07 की षाम एसटीएफ वाले मड़ियाहूं बाजार के दुकान से लोगों की मौजूदगी में मुझे उठाये और नामालुम जगह पर ले गये। जहां जबरदस्त तषद्दुद किया। मुख्तलिफ तरीके से मारा पिटा। दाढ़ी के बाल जगह जगह से उखाड़े गये। दोनों पैरों का चीरकर उस पर खड़े होकर अजू-ए-तनासुल (लिंग) को मुंह में डालकर चुसवाया गया। पखाना के रास्ते पेट्रोल डालना, षर्मगाह को धागे से बांधकर दूसरे किनारे पर पत्थर बांधकर खड़ा कर देना और षर्मगाह पर सिगरेट दागना आम बात थी। षराब पिलाना और सुअर का गोष्त खिलाना, पेषाब पिलाना जारी रहा। साथ ही बर्फ लगाना, मूंह और नाक के रास्ते जबरदस्ती पानी पिलाया जाता रहा,जिससे दम घुटने लगता था। इलेक्ट्रिकल षोला मारते हुए आला के जरिये से जिस्म जलाना, करंट चार्ज का देना आम बात थी। यह सिर्फ इसलिए किया जाता रहा कि हम मान लें कि गुनहगार हैं।




श्रीमान श्रीमान अधीक्षक साहब
सीजेएम साहब जिला कारागार लखनउ
फैजाबाद

तारिक कासमी

निवेदन इस प्रकार है कि मैं मुहम्मद तारिक पुत्र श्री रियाज अहमद साकिन सम्मुपुर रानी की सराय आजमगढ़ का रहने वाला हूं। 12 दिसंबर को मेरी अपनी दवाई की दुकान के आगे के रास्ते से राह चलते हुए एसटीएफ के जरिये उठाया गया और 10 दिन तक गैर इंसानी सुलूक और तषद्दुद करके झुठी कहांनियां गढ़कर विडियो बनवाई गयी। 22 दिसंबर को अपनी गाड़ी से एसटीएफ वाले बाराबंकी ले गये और आरडीएक्स और दिगर सामान के साथ हमारी गिरफ्तारी दिखाई गयी। जबकि हम 10 दिनों से इन्हीं के कब्जे में थे। हमारे पास आरडीएक्स या कोई भी सामान नहीं था। 24 दिसंबर से दो जनवरी तक रिमाण्ड पर एसटीएफ ने आफिस में ही रखा था। दूसरी रिमाण्ड सीओ फैजाबाद के जरिये 9 जनवरी को को षुरू हुई । दिन रात तषद्दुद के जरिये अपनी मकसद की बात करवाते रहे। 17 जनवरी 2008 की रात में सीओ सीटी फैजाबाद श्री राजेष पाण्डेय और एसटीएफ दरोगा ओपी पाण्डेय ने एक छोटी लाल रंग की बैटरी (जिस पर षक्ति लिखा हुआ था और उसपर कोई ऐसी चीज लगी हुई थी जो चिपक रही थी) को पकड़वाया था। इसके बाद डाबर केवड़ा की बोतलें पकड़वायी गयी और फिर आखों पर पट्टी बांधकर दूसरे कमरे में ले गये। मालुम नहीं हाथों में क्या क्या चीजें पकड़वायीं। पट्टी बंधी होने की वजह से मालुम नहीं हो पाया। हां इतना अंदाजा हुआ कि डिब्बा और बैग है। मुझे डर इस बात का है कि इन्होंने हमारे फिंगर प्रिंट मुख्तलिफ तरीकों से लिए और इस चीज की कोषिष की, हम समझने न पायें। अत: आपसे निवेदन है कि ये लोग हमको फंसाना चाहते हैं। सुबूत में ये फिंगर प्रिंट पेष करें तो आप हमारी इन बातों का जरूर ध्यान रखें, आपकी अतिकृपा होगी। मैं एक अमन पसंद, मुहिब्बे वतन षहरी हूं, मैंने कभी कोई अपराध नहीं किया है और ना ही ऐसी तबयत का हूं।

3 comments:

  1. भाई अजय जी, आपने बहुत ही अच्छा प्रयास किया है, जुल्म की कहानी को स‌ार्वजनिक करने का। मुझे लगता है कि आपके द्वारा पोस्ट की गयी चिट्ठी स‌े जो लोग आंखें मूंदकर पुलिस पर भरोसा कर लेते हैं, उनकी आंखें खुलेंगी। लेकिन एक बात तो मैं मानता हूं कि हमारे देश के लोग अपनी दुर्दशा के लिए खुद जिम्मेवार हैं। आज किसी को भी आतंकी बोल कर जेल में ठूंस दिया जा रहा है, तो लोग पुलिस और स‌ुरक्शा एजेंसियों की तारीफ के पुल बांधने लगते हैं, जबकि उन्हें नहीं मालूम कि कभी भी जुल्म के तोप का मुंह उनके घर की ओर भी मुड़ स‌कता है। इसलिए मुझे ऎसा लगता है कि किसी को भी दोषी मान लेने स‌े पहले लोगों को कम स‌े कम स‌वाल करने की हिम्मत करनी चाहिए।
    दूसरी बात यह है कि मुझे आज पता चला कि आप भी ब्लॉगर हैं। भाई हम लोग भी कुछ लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं। अगर आप चाहें, तो रांचीहल्ला परिवार में शामिल हो स‌कते हैं। हमारा लिंक नीचे दिया गया है।
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  2. अजय भाई, जनज्वार पर आपका लिखा लेख 'जेल से पत्र' पढ़ा। पढ़ने के बाद पता लगा कि एक समुदाय विशेष को लक्ष्य करके हमारी पुलिस उनपर बड़े से बड़ा आरोप लगा सकती है और तथाकथित अरोपियों पर जुल्म बिनािकये आरोप को स्वीकारने के लिए जुल्म के किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं। किन्तु इससे वे अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते। उनको चाहिए कि असली मुल्जीमों को सामने लायें। जिससे आज हमारी पुलिस खो चुकी साख को हासिल कर सके।

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  3. ajay ji aapka blog me padhta rha hu ye patr dil ko jhagjhor rhe hai.stf,special cell basically police me bharti kiye hue aadamkhor logon ki foj hai jinko ki aadmi ka bhakshan karne ki khuli choot mili hui hai.par inki kya pariniti hoti hai wo rajbeer singh or sharma ke sath hum dekh chuke hain.
    aaj jarurat hai ki is tarah ke forces ko bepard kiya jaye.

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