May 17, 2017

स्वतंत्रता सेनानी की जमीन पर कलक्टर ने कराया कब्ज़ा

जिस स्थल पर बजाज इलेक्ट्रिकल जबरन टावर लगाना चाह रही है, वह भूमि मेरे दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी रामखेलावन शास्त्री  की है और उस स्थल पर उनकी अंतिम इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए एक शोध संस्थान प्रस्तावित है.....

जनज्वार, पटना। चम्पारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में बापू गांधी के साथ वर्धा प्रवास करने वाले प्रसिद्ध गाँधीवादी एवं स्वतंत्रता सेनानी रामखेलावन शास्त्री की मंझौल स्थित विरासत पर बेगूसराय के जिलाधिकारी ने जबरन कब्जा जमा लिया है। 

दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की विरासत पर जबरन लगा टावर
7 मई को 100 से ज्यादा पुलिस बल की ताकत से उन्होंने इस कार्रवाई को अंजाम दिया और स्वतंत्रता सेनानी के उत्तराधिकारियों के विरोध के बावजूद वहां पर जबरन 1 लाख 32 हजार का ट्रांसमीशन टावर खड़ा करवाया।

दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी के पौत्र पुष्पराज के मुताबिक जिस स्थल पर जिलाधिकारी ने बंदूक की ताकत से जबरन कब्ज़ा किया, वह बापू गांधी के सहकर्मी रहे जनपद के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी की भूमि थी और उनकी विरासत को कायम रखने के लिए उस स्थल पर "रामखेलावन शास्त्री स्मृति गरीबी एवं समाज अध्ययन शोध संस्थान" प्रस्तावित था। पुष्पराज चर्चित पुस्तक नंदीग्राम डायरी के लेखक हैं और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहते हैं।

इस मामले में जिला प्रशासन को 21 मार्च 2017 को उन्होंने लिखित आवेदन देकर सूचित किया था कि जिस स्थल पर बजाज इलेक्ट्रिकल जबरन टावर लगाना चाह रही है, वह भूमि मेरे दिवंगत दादा स्वतंत्रता सेनानी की है और उस स्थल पर उनकी अंतिम इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए एक शोध संस्थान प्रस्तावित है।

वहीं ट्रांसमीशन टावर के निर्माण में लगी बजाज इलेक्ट्रिकल के विरूद्ध शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है। इसी मार्च और अप्रैल माह में बजाज इलेक्ट्रिकल के द्वारा किसानों की जमीन पर जबरन अतिक्रमण के मामले में जिला लोक शिकायत प्राधिकरण ने कंपनी से जुर्माना कर कुछ किसानों को 1 लाख 20 हजार का मुआवजा दिलवाया था। 

पुष्पराज कहते हैं, जिला प्रशासन ने सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में गांधी के एक सहकर्मी स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के साथ जिस तरह अपराधियों की तरह के बर्ताव किया है, यह अकल्पनीय था। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री ने रामखेलावन शास्त्री की मृत्यु से पूर्व स्वतः संज्ञान लेते हुए राजकीय सम्मान के साथ उनकी चिकित्सा का निर्देश स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों को दिया था औऱ 2008 के मार्च माह में स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारी पटना से मंझौल पहुँचे थे। 

रामखेलावन शास्त्री बापू-गाँधी के साथ वर्धा प्रवास करने वाले बिहार के अंतिम स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने नैतिकता के आधार पर स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को अस्वीकार किया था। वर्धा प्रवास से लौटकर उन्होंने तत्कालीन मुंगेर जिला में "टीक जनेऊ आंदोलन" का सूत्रपात किया था और हजारों लोगों ने उस आंदोलन के प्रभाव में अपने टीक -जनेऊ हटाए थे। उन्हें कुछ वर्षों तक धार्मिक बहिष्कार भी झेलना पड़ा था। 

मंझौल में दलितों को शिक्षित करने, स्त्रियों को शिक्षित करने और मुसहर समाज को जमीदारों के कोप से बचाने की उनकी ऐतिहासिक भूमिका अविस्मरणीय है। मंझौल के सभी शिक्षण संस्थानों की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनके समाज सुधार आंदोलन से खफा जमींदारों ने उन्हें "टीककट्टा मुसलमन्ना" घोषित किया था।आजादी से पूर्व अस्पृश्यता निवारण के राष्ट्रीय कांग्रेस के अभियान के तहत शास्त्री जी को हरिजन सेवक संघ और मुसहर सेवक संघ की जिम्मेवारी दी गयी थी।

गौरतलब है कि जिलाधिकारी बेगूसराय को 21 मार्च 2017 को दिए गए आवेदन की प्रति की एक प्रतिलिपि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी दी गई थी, मगर मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया गया।

2 comments:

  1. Col Bupal C LahidiFriday, May 19, 2017

    In our country, since independence, there has been no worthwhile effort to establish the democratic rights of the common people. Our poets, writers and media has been very meak and subdued. At the same time, the suppressed people has not been able to project their demand unitedly in a strong voice. Unless we are able to do that, we are destined to languish.

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  2. Col Bupal C LahidiFriday, May 19, 2017

    Rashtra and its administration is an inanimate machine, without any heart or compassion. In a democratic country, it is the character of the people which renders heart and compassion to this inanimate machinery called Rashtra.
    Since independence, the political parties are so engrossed in the game of capturing power using muscle and money power, they had no time to ponder on subjects such as character building of the nation or rendering a compassionate heart to the gigantic machinery called Rashtra. Since we have failed to do that, what do you expect from a District Collector, who is nothing but one of the gears of that great inanimate heartless machine?

    I can feel the pain of bleeding of your heart, when they forcibly erect a electricity transmission pylon, on the very piece of land belonging to your swadhinata sangrami ancestor, where you wanted to erect a memorial.
    The notion that we live in a democratic country and all citizens have equal rights, is so misplaced, we get a rude shock when we face the reality. We then realise, that the state machinery can trample over your rights like a heavy bulldozer running over a little insect!

    State always appease the powerful to weave what is called a power-grid. The book you recently gave me talks about the state weaving a power grid with the Ambanis! In this gigantic power system, people like you and me are insignificant.

    In our country, since independence, there has been no worthwhile effort to establish the democratic rights of the common people. Our poets, writers and media has been very meak and subdued. At the same time, the suppressed people has not been able to project their demand unitedly in a strong voice. Unless we are able to do that, we are destined to languish.

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