दलित खिलाड़ी राजबली का जमा किया अपना ही पैसा नहीं दिया बैंक ने, करनी थी उनको बेटी की शादी, डीएम के हस्तक्षेप का भी नहीं पड़ा था बैंक पर असर, मरने के बाद दे गया बैंक 60 हजार रुपए
राजबली के इन सम्मान पदकों को रखने के लिए एक बक्सा तक उपलब्ध नहीं करा पायी सरकार |
खेलों में 15 पदक जीतकर देश का मान बढ़ाने वाले ओलम्पियन राजबली का दिल का दौरा पड़ने से 9 अप्रैल को निधन हो गया। निधन का कारण था अपने खून—पसीने की कमाई को बैंक से न निकाल पाना, जो बेटी की शादी के लिए बैंक में जमा करके रखे हुए थे।
दस स्वर्ण, पांच रजत और एक कांस्य पदक जीतकर पैरा ओलंपियन खेलों में देश का नाम रोशन करने वाले दलित राजबली के इस तरह निधन से सरकार की खिलाड़ियों के प्रति असंवेदनशीलता और बेरुखी भी साफ झलकती है।
बेटियों के भविष्य के लिए उन्होंने किसी तरह अपना पेट काटकर सहकारी बैंक में 60 हजार रुपए जमा किए हुए थे। एक बेटी की शादी तय की हुई थी, उसी के लिए सहकारी बैंक में पैसा निकालने गए। मगर ऐन शादी के मौके पर जब सहकारी बैंक पैसे निकालने में रोड़े अटकाने लगा और वे अपना पैसा निकालने में कामयाब नहीं हो पाए तो उनकी तबीयत बिगड़ गयी और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी। मौत के बाद सहकारी बैंक अपना पल्ला झाड़ने के लिए जरूर उनके घर आकर पैसा दे गया।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के रुद्रपुर स्थित पिपरा कछार के मूल निवासी राजबली लंबे समय से बदहाली और गुमनामी की जिंदगी बसर करते हुए किसी तरह अपना जीवन—यापन कर रहे थे। कानपुर की एक मिल में नौकरी करते थे, मगर मिल की नौकरी भी चली गयी तो गांव में ही आकर बस गए। दलित राजबली की अपनी कोई संतान नहीं थी, दो लावारिश लड़कियों को गोद लेकर पाल रहे थे। उन्हीं बेटियों और पत्नी के साथ वह मेहनत—मजदूरी करके मुफलिसी में किसी तरह जीवन जी रहे थे। गांव में उनके पास मात्र 5 कट्ठा जमीन थी, जिससे सालभर खाने के अन्न तक पैदा नहीं हो पाता था।
पैरा ओलंपिक में इतने सारे गोल्ड जीतने वाले एक दलित खिलाड़ी का बदहाल जीवन और सरकारी तंत्र की बेरुखी से हुई मौत को देख साफ हो जाता है कि हमारा तंत्र देश का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ियों को अच्छा जीवन स्तर और रोजगार देना तो दूर, गरीबी रेखा से भी नीचे जीवन स्तर जीने को मजबूर कर देता है।
दोनों पैरों से विकलांग राजबली ने 1981 में जापान में आयोजित पैरा ओलंपियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। यहां उन्होंने तैराकी और गोला श्रेपण प्रतियोगिता में दो स्वर्ण जीते। सम्मान स्वरूप पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सम्मानित किया था।
सरकार की खिलाड़ियों के प्रति बेरुखी इस बात से भी झलकती है कि पैरा ओलम्पियन गेम्स में कभी स्टार रहे राजबली को वह उसके सम्मान पदकों को रखने के लिए एक बक्सा तक उपलब्ध नहीं करा पायी। उन्होंने प्लास्टिक के झोले में समेटकर देश का मान बढ़ाने वाले पदक सुरक्षित रखे हुए। समय—समय पर मात्र कोरे सम्मान के लिए उनका नाम याद किया जाता रहता था, मगर उनका जीवन स्तर गरीबी रेखा से कभी भी ऊपर नहीं उठ पाया।
Shameful
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