जेएनयू में अफजल गुरु और मकबूल बट्ट पर कार्यक्रम DSU जैसे एक छोटे संगठन ने कराया। DSU हमेशा से अति वामपंथी संगठन रहा है और ऐसा नहीं की ये कल बना है। यह संगठन सालों से है और मैंने दस सालों में उसकी विचारधारा में कोई बदलाव नहीं देखा है। वो हमेशा से माओवाद का समथर्न करते रहे हैं, पर जैसा की बहुतों ने कहा है कि वह जेएनयू की प्रतिनिधि आवाज़ नहीं है|
जेएनयू में संगठन बनाने पर कोई पाबंदी है। जेएनयम में एक हिन्दू विद्यार्थी सेना भी है। कहने का मतलब ये कोई भी, एक अकेला भी एक संगठन बना सकता है, लेकिन इनमें से कोई भी आवाज़ जेएनयू की एकलौती आवाज़ नहीं है| आप कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों दोनों पर पर कार्यक्रम करा सकते हैं, सरकार समथर्क और विरोधी भी, शायद यही जेएनयू की खूबी है कि यहाँ हर विचार के लिए जगह है|
दूसरी बात कि अफज़ल गुरु पर कोई कार्यक्रम होना चाहिए या नहीं? संसद हमलों में जो लोग पकड़े गए उनमें से दो को निर्दोष पाया गया, एक अफज़ल को फांसी हुयी| मैं जो भी मानूं, पर बहुत से न्यायविदों ने कहा की उसके खिलाफ फांसी लायक सबूत नहीं थे| काटजू ने खुलेआम कहा की यहाँ न्याय में गलती हुई है (आप चाहे तो उन्हें पागल कह सकते है)|
आप सुप्रीम कोर्ट की बात को ब्रम्ह वाक्य मान सकते हैं, लेकिन दूसरों से ये अधिकार नहीं छीन सकते कि वो इस फैसले पर सवाल खड़े न करें, आप उन्हें ये सवाल पूछने से नहीं रोक सकते की क्यों उसकी लाश उसके घर नहीं जाने दी गयी| बहुत सारे मुसलमान लड़के पिछली सरकार में पकड़े गए ये कहकर कि वो आंतकवादी हैं।
सालों जेल में रहने के बाद वो निर्दोष पाए गए, ये मानने वाले कि अफज़ल को फंसाया गया था बाहर के नहीं हैं, इसी देश के हैं। अगर उनकी आवाज़ बहुमत की नहीं है, अगर वो “राष्ट्र की सामूहिक चेतना” में शामिल नहीं है, जिसके लिए अफज़ल को फांसी दी गयी तो वो क्या देशद्रोही हो गए?
और ये sedition का मतलब क्या है राजद्रोह या देशद्रोह? व्यवस्था की आलोचना करने वाले लोग जैसे कबीर कला मंच, असीम त्रिवेदी, अरुंधती, प्रोफेसर साईंबाबा आदि क्या इसलिए देशद्रोही हैं कि वो आपकी हमारी समझ में सहज हो चुकी व्यवस्था पर सवाल कर रहे हैं? पूछ रहे हैं कि आदिवासी का मतलब माओवादी, कश्मीरी मुसलमान का मतलब आतंकवादी कैसे हो गया?
कार्पोरेट घरानों को ज़मीन न देना, अपने जल, जंगल, ज़मीन की बात करना और सरकार का विरोध करना माओवाद कैसे हो गया, कश्मीर में आधी बेवाओं के शौहरों की बात करना, घरों के बाहर भारतीय सेना की मौजूदगी और AFSPA का विरोध करना आतंकवाद कैसे हो गया?
जेएनयू इसी समाज, इसी देश का है। अपने आप में एक छोटा भारत है। भारत की अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दोनों यहाँ हैं| आपको लगता है कि जो कश्मीर के वो लोग जिन्होंने सेना की ज्यादतियां देखी हैं, जिनके घर के किसी आदमी को सेना एक दिन पूछताछ के लिए ले गयी और वो कभी नहीं लौटा, उनके लिए भारत शब्द का मतलब क्या है?
आप सेना के किसी जवान के फोटो लगा कर देशभक्ति के सबूत के तौर पर लाइक्स माँगते रहते हैं, आपको क्या लगता है उस सेना का मतलब छत्तीसगढ़ के आदिवासी के लिए क्या है? आप बिलकुल नहीं देख पाते की मणिपुर की औरते क्यों निर्वस्त्र होकर कहती हैं Indian army rape us! इरोम शर्मिला क्यों भूख हड़ताल पर हैं?
जिस सोनी सोरी के गुप्तांग में पत्थर भर दिए गए उसके लिए पुलिस का मतलब “शांति सेवा न्याय” है? नार्थ ईस्ट के लड़के ने सालों पहले जब मुझे Indian Friend कहा तो मुझे भी बुरा और अजीब लगा, पर बहुत बाद में समझ आया की वो ऐसा क्यों कह रहा था| जेएनयू इनसे अछूता नहीं है.
कश्मीर, नार्थ ईस्ट, छतीसगढ़ के ये लड़के—लडकियां जेएनयम में पढ़ते हैं, वो वही कह रहे हैं, जो उन्हें लगता है| सेना, पुलिस, आपके लिए देशभक्ति का stimulation होगी, उनके लिए नहीं. फर्क सिर्फ इतना है कि दूसरे किसी विश्वविद्यालय में शायद वो सब न कह पाते, जो वो जेएनयू में कह पाते हैं|
बहुत साल नही हुए, जब तमिलनाडु में भारत के झंडे जलाये जा रहे थे. बहुत साल नहीं हुए जब हमने त्रिभाषा फार्मूले के तहत उन पर हिंदी थोप दी थी, बिना पूछे की वो क्या चाहते हैं? किसी भी घर में कोई अफज़ल नहीं होना चाहिए, पर जो लोग कह रहे हैं कि हर घर से अफज़ल निकलेगा. उन्हें चुप कराने की जगह एक बार रुककर देखिये को वो ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या भारत का मतलब हमारी राज्यसत्ता भर है? ये सवाल मुश्किल है इनके लिए धैर्य चाहिए और हम instant देशभक्ति चाहते हैं, इंस्टेंट क्रांति चाहते हैं|
आपको बुरा इसलिए भी लग रहा है कि जो आवाज़ें बहुत दूर कश्मीर, नार्थ ईस्ट, छतीसगढ़ में थी, अचानक जेएनयू में सुनायी दे रही है. जेएनयू इसलिए है कि वो इस आवाजों को चुप नहीं करता, बल्कि इसने संवाद की कोशिश करता है| हाशिये की आवाज़ें हमेशा खामोश कर दी जाती है, चाहे वो बंगाल हो या गोरखपुर विश्वविद्यालय. जेएनयू यही स्पेस है, जहां आप बिना डरे अपनी बात रख सकते हैं. जैसे टैगोर कहा करते थे where mind is without fear.
पिछले कुछ दशकों में ये स्पेस तेज़ी से ख़तम हो रहे हैं. विश्वविद्यालय की अवधारणा ही यही है, जहां विचारों पर कोई पाबंदी न हो. आप सोच सकें, देख सकें, अपने विचार चुन सकें और आप भले अकेले हों, लेकिन आपके सोचने कहने की आजादी हो! मेरे लिए JNU एक विश्वविद्यालय नहीं, एक विचार है जहां मैं बिना डरे, अपनी बात कह सकूँ, आलोचना सुन सकूँ...
Where the mind is without fear and the head is held high
Where knowledge is free
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