संजय जोठे
स्मार्ट सिटी कैसे बनाई जाए इस विषय पर हफ्ते भर तक गंभीर मन्त्रणा के लिए कई देशों के प्रतिनिधि अमेरिका में इकट्ठे हुए। भारत की तरफ से एक "जमीन से जुड़े" खांटी देशभक्त और संस्कृतिरक्षक मन्त्री जी भारतीय दल का नेतृत्व कर रहे थे।
भारतीय प्रतिनिधियों को छोड़कर बाकी सब लोग बहुत परेशान थे। वे सब बार—बार, मोटी—मोटी किताबें और रिपोर्टें उलटते पलटते, कभी लैपटॉप पर कुछ एनालिसिस करते कभी नक़्शे बनाते कभी मॉडल्स बनाकर देखते। कभी ब्रेनस्टार्मिंग होती कभी प्रेजेन्टेशन, इस सबके बीच वे अपना खाना पीना तक भूल गए।
लेकिन भारतीय प्रतिनिधि दिन भर मजे से सुरति रगड़कर खाते, वीडियो गेम खेलते और न्यूयार्क में शॉपिंग करते डिस्को में जाकर नाचते और डटकर दावत उड़ाते।
बाकी लोग ये सब देख रहे थे वे समझे कि शायद भारतीयों ने अपनी तैयारी बहुत पहले ही पूरी कर ली है इसीलिये वे टेंशन फ्री हैं।
एक अमेरिकन ने कुछ झेंपते शरमाते हुए भारतीय मन्त्रीजी से पूछा "भाई आप इतने मजे में हैं शायद आपका सब कुछ तैयार हो गया है।"
मन्त्रीजी बोले "हमारी तैयारी तो हजारों साल पहले ही हो चुकी है महाराज ... आप आज स्मार्ट सिटी की बात कर रहे हो हम तो सदियों से एक स्मार्ट कल्चर बनाकर बैठे हैं.... इस स्मार्ट कल्चर को थोड़ा सा इधर उधर घुमाते ही हम जिसे चाहें रातोंरात स्मार्ट या इडियट बना सकते हैं"
अमेरिकन को चक्कर आ गए, वो संभलते हुए मन्त्रीजी से बोला "ये स्मार्ट कल्चर क्या चीज है? हम तो ये पहली बार सुन रहे हैं"
मन्त्रीजी: स्मार्ट कल्चर हजार बिमारियों की एक दवा है। आप हर बीमारी का अलग अलग इलाज करते हो आप एलोपैथी वाले हो आपके पास आँख का डाक्टर अलग और पेट का डाक्टर अलग होता है ... हम आयुर्वेदिक इश्टाइल में काम करते हैं एक ही काढ़े से सर के बाल से लेकर पाँव की खाल तक का इलाज कर देते हैं, आप सौ सुनार की करते हो हम एक लोहार की करते हैं"
अमेरिकन: मैं कुछ समझ नहीं सर थोडा विस्तार से बताइये न
मन्त्रीजी: देखो भाई ... ये सनातन फार्मूला है थोड़ी कही ज्यादा समझना ... समझो कि तुम्हारी पब्लिक हल्ला मचाती है कि उसे स्मार्ट सिटी चाहिए बुलेट ट्रेन या मेट्रो ट्रेन चाहिए, या जंगल मैदान जाने की बजाय पक्के टॉयलेट चाहिए, जुग्गी झोपडी की बजाय पक्के मकान चाहिए या कहो कि उच्च शिक्षा के लिए कालेज यूनिवर्सिटी या आधुनिक हस्पताल मागती है तब आप क्या करेंगे?
अमेरिकन: इतनी सब मांगें पूरी करने के लिए हम एक कमीशन बैठाएंगे, वो रिसर्च करेगा प्लान बनयेगा, एस्टिमेट बनाएगा, अलग अलग डिपार्टमेंट्स से सुझाव मांगेगा कि क्या काम कितने समय में कितने मिलियन डॉलर्स में होगा ... फिर ...
मन्त्रीजी (टोकते हुए): उ सब छोड़िये महाराज ये बताइये पब्लिक को क्या देंगे??
अमेरिकन: देखिये हम पब्लिक को सबसे पहले पक्की और रेग्युलेटेड कालोनियां बनाकर देंगे साफ़ पानी का इंतेजाम करंगे चौड़ी सड़कें बनाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट देंगे बड़े हस्पताल और स्कूल कालेज बनाकर देंगे। नगर निगमों को ट्रेनिंग देकर वेस्ट मैनेजमेंट वाटर रिसाइकलिंग सीवर ट्रीटमेंट सिखाएंगे। रेलवे ट्रैक सुधारकर बुलेट ट्रेन दौड़ाएंगे, शहरों में ऊँचे पिलर और सुरंगें बनाकर मेट्रो ट्रेन दौड़ाएंगे ...
मन्त्रीजी: अरे बस करो महाराज ... इस सब में इतनी बुद्धि वक्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? ये सब सच में ही दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?
अमेरिकन एकदम आसमान से जमीन पर गिरता है पूछता है "लेकिन ये सब न दिया तो पब्लिक आंदोलन करेगी शासन प्रशासन को उखाड़ फेंकेगी, चलिए आप ही बताइये आप कैसे डील करंगे"
मन्त्रीजी सुरति दबाये मन्द मन्द मुस्काते हुये कहते हैं "भैयाजी यहीं तो स्मार्ट कल्चर काम आता है, कुछौ बनाने की जरूरत नहीं जनता जो मांगती है उसके बारे में कहानियाँ सुनाइए और ये बताइये कि वो जो मांग रही है उससे ज्यादा उनके पास पहले से ही धरा हुआ है"
अमेरिकन: कुछ समझे नहीं, तनिक विस्तार से बताइये
मन्त्रीजी: अरे भाई, तुम भारतवर्ष के इतिहास में नहीं झांके हो कभी। हम एक ही विद्या जानते हैं, पब्लिक मैनेजमेंट, बस उसी से सब ठीक हो जाता है... समझो ...हमारी पब्लिक के हमने दो हिस्से किये हैं। पांच प्रतिशत वे लोग जो कुछ भी करके सुविधा मांगेंगे, वे कुछ बड़े शहरों में रहते हैं। बाकी पंचानबे पर्सेंट गरीब गुरबे छटे शहरों या गांव में रहते हैं। अब पंचानबे पर्सेंट गरीब पब्लिक को मैनेज करना ही स्मार्ट कल्चर का असली हुनर है।
सुनो जैसे कि ये गरीब पब्लिक बड़े अस्पताल मांगती है तो हम आयुर्वेद और योग पकड़ा देते है, इधर से खींचो उधर से छोडो और ताली बजाकर कीर्तन करो, वे आधुनिक ट्रेन मेट्रो और हवाई जहाज के लिए बिलबिलाते हैं तो हम पुष्पक विमान दिखाकर पूर्वजों के जैकारे शुरू कर देते हैं कि ये लो ये सब तो हमारे पास हजारों साल है ही, इसके आगे हवाई जहाज क्या चीज है, पब्लिक पक्के शहरों में टॉयलेट मांगती है तो कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है, अब गाँव मतलब जंगल मैदान ... समझे कि नहीं?...
अगर कोई बड़े स्कूल कालेज या अंग्रेजी शिक्षा मांगे तो हम गुरुकुल परम्परा वैदिक विज्ञान अध्यात्म और संस्कृत का ढोल पीटने लगते हैं लोग अच्छे कपड़े मांगें तो थोड़ी देर केलिए हम खुद ही धोती दुशाला ओढ़कर बैढ़ जाते हैं ... पब्लिक अच्छा खाना या पानी मांगती है तो हम गरीब और मरियल साधू खड़े कर देते हैं कि इन्हें देखो और त्याग करना सीखो स्वर्ग जाना है तो भुक्खड़ों की तरह खाने की बात न करो त्याग और तप की बात करो।
फिर आखिर में ऐसी कथाएँ रचते हैं जिनमे गरीब दरिद्र नारायण हों, अछूत हरिजन हों, विकलांग दिव्यांग हों, किसान अन्नदाता हों, स्त्रियां देवी हों... दो तीन हजार कथाकार समाज में छोड़कर ये कहानियाँ पेलते रहिये जनता खुश होकर सन्तोष में जीने लगेगी, बाकी सब भूल जायेगी। अब सन्तोषी सदा सुखी ... समझे कि नहीं?
अमेरिकन: अरे वाह ये तो चमत्कार है, हम तो इतना मगजमारी करते हैं और फिर भी पब्लिक एक के बाद एक मांग करती ही जाती है, रूकती ही नहीं ... अच्छा बस एक बात और बता दीजिये आखिर में, इस "स्मार्ट कल्चर मैनेजमेंट" से जो पैसा बचता है उसका क्या करते है?
मन्त्रीजी (सुरती थूकते हुए) : अरे, ये भी कोई पूछने की बात है, उसी बचत से हम उन शहरी पांच पर्सेंट लोगों के लिए दो चार विदेशी विमान, मेट्रो, बुलेट इत्यादि ख़रीदते हैं बाकी गरीबों को देशभक्ति पेलने के लिये इसी बचत से फाइटर प्लेन, पनडुब्बी जैसी चीजें खरीदते हैं, यही बचत फिर आखिर में राष्ट्रनिर्माण के सबसे बड़े अनुष्ठान में भी काम आती है।
अमेरिकन: राष्ट्रनिर्माण का सबसे बड़ा अनुष्ठान मतलब??
मन्त्रीजी (आँख मारते हुए) : मतलब अगला चुनाव, और क्या !!!
अगले दिन से गैर भारतीयों के सारे प्रेजेन्टेशन केंसल करके सिर्फ भारतीय ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं के "प्रवचन" करवाये गए .... भारतीयों ने पूरी कांफेरेंस में भौकाल मचा दिया।
इस तरह आख़िरकार दुनिया ने विश्वगुरु के स्मार्ट कल्चर का लोहा मान लिया।
No comments:
Post a Comment