Jul 20, 2011

समय से पहले हो सकते हैं यूपी चुनाव


खुफिया रिपोर्टों के अनुसार अगर बसपा सरकार निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवा लेती है तो वो दुबारा सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है...

 आशीष वशिष्ठ

प्रदेश की दिनोंदिन बदहाल होती कानून व्यवस्था और विपक्षी दलों के हमलों से परेशान मायावती ने इसी साल विधानसभा चुनाव करवाने का मन बना लिया है। सूत्रों की मानें तो सरकार ने अंदर ही अंदर इसकी तैयारी भी कर ली है और अगले माह मानसून सत्र के दौरान सरकार यूपी विधानसभा चुनाव की सिफारिश कर सकती है। कहा तो ये भी जा रहा है कि खुफिया रिपोर्टो के आधार पर सरकार ने निर्धारित समय से छह माह पूर्व ही चुनाव करवाने का मन बनाया है। राज्य सरकार पर लग रहे भष्टाचार, तीन सीएमओ की हत्या, रेप, दलित अत्याचार की बढ़ती घटनाओं और मजदूर, किसान का संघर्ष से बसपा सुप्रीमों की परेशानी बढ़ गई है। मायावती की परेशानी मंत्रियों, विधायकों और पदाधकारियों की हरकतें भी हैं। 

खुफिया रिपोर्टों के अनुसार अगर बसपा सरकार निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवा लेती है तो वो दुबारा सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। इस समय मायावती सरकार कई परेशानियों से घिरी हुई है। सत्ता विरोधी वातावरण और विरोधियों की चालों से निपटने के लिए मायावती ने निर्धारित समय से पूर्व चुनाव करवाने का इरादा कर लिया है। पिछले दिनों राहुल की किसान पंचायत के बाद माया ने पार्टी पदाधिकारियों की मीटिंग के दौरान बसपाइयों को राहुल की काट तो बताई ही थी, वहीं चुनाव के लिए कमर कसने का फरमान भी सुनाया था। अगर सब कुछ ठीकठाक रहा तो इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव का अखाड़ा सज जाएगा।

गौरतलब है कि राहुल गांधी यूपी सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं। राहुल के साथ उनकी टीम मिशन 2012 में लगी हुई है। दिग्विजय सिंह, रीता बहुगुणा जोशी, पीएल पुनिया, बेनी प्रसाद वर्मा, जगदम्बिका पाल आदि कांग्रेसी नेता माया सरकार को घेरने का कोई मौका चूकते नहीं हैं। कांग्रेस के अलावा सपा, भाजपा, रालोद और पीस पार्टी भी चुनावी दंगल में कूदने को पूरी तरह से तैयार है। सपा, भाजपा और अन्य दल संभावित उम्मीदवारों की घोषणा आए दिन कर रहे हैं। प्रदेश में छोटे दलों ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। अंदर ही अंदर सबकी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। 

भट्ठा-पारसौल की घटना से लेकर अलीगढ़ में किसान पंचायत तक से मायावती काफी परेशान हो गई हैं। सपा और रालोद भी अंदर ही अंदर यही चाहते हैं कि राहुल फैक्टर के और अधिक ऐक्टिव होने से पूर्व चुनाव उनकी सेहत के मुफीद होगा, क्योंकि अगर कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक उसकी ओर रूख करता है तो निश्चित तौर पर दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़ी जातियों और किसानों की राजनीति करने वाले कई दलो की दुकानों के शटर डाउन हो जाएंगे, वहीं कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग के मुख्य घटक ब्राहाण वोट को भी प्रभावित करने में सक्षम है। मायावती ऊपर से कठोर और सख्त दिखाई देती हैं। अपने पहले तीन कार्यकाल में उनकी यही छवि आम जनमानस के दिलों में बसी थी। सूबे की नौकरशाही उनके सामने पड़ने से घबराती थी। अपराधी और काले कामों में लिप्त हाथ यूपी से बाहर अपना ठिकाना ढूंढते थे। लेकिन 2007 में पूर्ण बहुमत के दम पर अपनी सरकार बनाने के बाद से ही मायावती के तेवर बदल गए।

रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था और प्रशासन के मामले में सरकार हर मोर्च पर असफल रही है। पिछले चार सालों में प्रदेश में माफिया और ठेकेदारों का साम्राज्य मजबूत हुआ है। सरकार का लगभग हर मंत्री, विधायक और बसपा पदाधिकारियों पर तमाम आरोप लग रहे है। महिलाएं, बुजुर्ग, किसान, छात्र, शिक्षक, वकील, कर्मचारी अर्थात समाज का हर वर्ग इस समय परेशान है। कुछ समय पूर्व तक जो लोग ये कहा करते थे कि माया को टक्कर दे पाने की हिम्मत किसी दल में नहीं है, आज उनके सुर बदले हुये हैं।

अब ये चर्चा आम है कि माया के लिए ये चुनाव आसान नहीं होगा। राजनीतिक गलियारों और आम आदमी के बीच चल रही इन चर्चाओं और जमीन हकीकत से बसपा सुप्रीमों भी अनजान नहीं हैं, इसलिए स्थिति के बद से बदतर होने से पूर्व ही चुनाव करवाने का दांव चलकर मायावती अपने विरोधियों का धूल चटाने के मंसूबे बना रही हैं।


 

1 comment:

  1. akhir janta chune to kise chune. sabhi ek hi thali ke chatte-batte hain.bharat ke har rajy ka yahi haal hai.

    Neeraj Gupta
    Lucknow

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