इस मामले में सीबीआई का दोहरापन इस बात से भी साफ हो जाता है कि बालकृष्ण के फर्जी पासपोर्ट में तत्काल कार्रवाई शुरू हो गई, लेकिन सुब्बा के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने में एक दशक से भी ज्यादा समय लग गया...
आशीष वशिष्ठ
बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण पर सीबीआई का शिकंजा धीरे-धीरे कसता चला जा रहा है। सीबीआई ने बालकृष्ण के खिलाफ धारा 420 (ठगी), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज किया है। उनके खिलाफ फर्जी डिग्री और भारतीय पासपोर्ट अधिनियम की धारा 12 के उल्लंघन के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।
बालकृष्ण को लेकर जिस तरह से सीबीआई ने तेजी और फुर्ती दिखाई, वह वाकई काबिलेतारीफ है। हालाँकि अधिकतर मामलों को सालोंसाल टालने वाली सीबीआई में अचानक आई फुर्ती की वजह किसी से छिपी नहीं है। कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरने की मुहिम के मुखिया बाबा रामदेव के दाहिने हाथ माने जाने वाले बालकृष्ण पर सीबीआई का शिकंजा लगभग कस चुका है।
सूत्रों की मानें तो सीबीआई कभी भी उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। हालांकि बालकृष्ण अण्डरग्राउण्ड चल रहे हैं और बालकृष्ण के अंगरक्षक जयेंद्र सिंह असवाल ने हरिद्वार के कनखल थाने में उनकी गुमशुदगी की रपट दर्ज कराई है। लेकिन जो तेजी और कार्यकुशलता सीबीआई बालकृष्ण के मामले में दिखा रही है और उन पर जो आरोप हैं, उससे कहीं ज्यादा गंभीर आरोप असम से कांग्रेस के पूर्व सांसद एम. के. सुब्बा पर हैं। कांग्रेसी सांसद सुब्बा की भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाते हुए सीबीआई चार्जशीट दायर कर चुकी है। इसके बावजूद सिर्फ एफआईआर के बाद बालकृष्ण का पासपोर्ट रद्द कराने पर आमादा सीबीआई ने सुब्बा का पासपोर्ट रद्द कराने की कोई कोशिश तक नहीं की है। इससे सीबीआई ने साबित कर दिया है कि वह स्वतंत्र जांच एजेंसी नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने वाला संगठन है।
गौरतलब है कि काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केंद्र की संप्रग सरकार को योगगुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने बड़े जोर-शोर से घेरा था। 4-5 जून की रात को बाबा रामदेव और उनके सर्मथकों पर डंडे बरसाकर संप्रग सरकार खुद को फ्रंटफुट पर मान रही है। बाबा रामदेव के उठाए सवालों का जवाब और कोई कार्रवाई करने की बजाय कांग्रेस ने ये ठान लिया कि वो रामदेव को भी अपने स्तर पर लाकर ही दम लेगी, अर्थात उन्हें और उनके सहयोगियों को भी भ्रष्ट साबित करके छोड़ेगी।
इसी कड़ी में रामदेव और बालकृष्ण पर सरकार की नजरें टेढ़ी हैं। नागरिकता, फर्जी डिग्रियों संबंधी जो भी केस बालकृष्ण पर दर्ज करके सीबीआई ने उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है और विदेश मंत्रालय से बालकृष्ण के पासपोर्ट को रद्द करने की मांग की है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई किसी दबाव या इशारे पर काम कर रही है।
सीबीआई की चार्जशीट के बावजूद सुब्बा न सिर्फ अपना बिजनेस आराम से चला रहे हैं, बल्कि एक पूर्व सांसद को मिलने वाले सुविधाओं का लाभ भी ले रहे हैं। इस मामले में सीबीआई का दोहरापन इस बात से भी साफ हो जाता है कि बालकृष्ण के फर्जी पासपोर्ट में तत्काल कार्रवाई शुरू हो गई, लेकिन सुब्बा के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने में एक दशक से भी ज्यादा समय लग गया। लंबे समय तक सुब्बा के मामले में निष्क्रिय रहने पर सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गंभीरता से जांच शुरू करनी पड़ी। बाद में अदालत के निर्देश पर ही उसने चार्जशीट भी दाखिल की।
सीबीआई ने अभी तक बालकृष्ण की भारतीय नागरिकता पर उंगली नहीं उठाई है। उन पर केवल पासपोर्ट ऑफिस में जमा की गईं शैक्षिक डिग्रियों के फर्जी होने के प्रमाण हैं। यहां सवाल यह नहीं है कि सीबीआई बालकृष्ण के पीछे क्यों पड़ी है, हां अगर बालकृष्ण ने सच्चाई को छुपाया है या दस्तावेजों से हेराफेरी करके पासपोर्ट या अन्य सुविधाएं प्राप्त की हैं तो उन पर कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए। लेकिन इन सबके बीच एक बात जो अखरती है वो यह है कि क्या केवल बालकृष्ण ही एकमात्र ऐसे गुनाहगार हैं? नागरिकता के मामले से लेकर फजी पासपोर्ट के कई अन्य मामले सरकार के संज्ञान में हैं, लेकिन उन केसों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। ऐसे हालातों में ये लगता है कि सरकार जान-बूझकर कानून की आड़ लेकर निजी स्वार्थ, खुन्नस और बदला लेने की भावना से बालकृष्ण के विरुद्ध कार्रवाई करवा रही है।एम. के. सुब्बा : सीबीआई ने दिखाई रहमदिली |
सीबीआई को चाहे जितनी बार स्वतंत्र जांच एजेंसी का तमगा दिया जाए, लेकिन उसकी कार्यशैली और व्यवहार हर बार यही सिद्ध करता है कि वो दिल्ली की गद्दी पर काबिज (केंद्र में सत्तासीन) दल की गुलाम से अधिक कुछ नहीं है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के इशारे पर सीबीआर्इ्र हर मामले को अंजाम देती है। इतना ही नहीं, अगर ऊपर से हरी झंडी नहीं है तो संगीन से संगीन मामलों में जान-बूझकर देरी और लटकाने का रवैया अपनाया जाता है।
आज संप्रग सरकार के सबसे धड़े कांग्रेस के पूर्व सांसद सुब्बा के मामले को जिस तरह से सीबीआई दबाकर बैठी हुई है, उससे यही प्रतीत होता है कि बिना सरकार के इशारे के स्वतंत्र जांच एजेंसी का दम ठोंकने वाली सीबीआई दो कदम चलने को मोहताज है। सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियों को स्वतंत्र तब कहा जा सकता है, जब वे छोटे-बडे़, अपने-पराये, अमीर-गरीब में बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष तरीके से कार्रवाई करें। विपक्ष वैसे भी सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन ही कहता है। बालकृष्ण दोषी हैं तो उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए, लेकिन वहीं सीबीआई के पास पेडिंग पड़े मामलों को इसी तत्परता से निपटाए तो अपराधियों का हौंसला गिरेगा और आम आदमी का पुलिस-प्रशासन पर भरोसा बढेगा।
स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक- सामाजिक मसलों के टिप्पणीकार.
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