Jun 25, 2011

पर्यावरण और विकास के बीच पाखंड


सरकार की उदासीनता,लाहपरवाही और जनता की अज्ञानता के चलते योजनाओं से अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। प्रदूषण सूचकांक -2010 में भारत का 123वां स्थान है और लगातार हम निम्न से निम्नतम् स्थान की ओर खिसकते जा रहे हैं...
 
डॉ0 आशीष वशिष्ठ

हाल ही में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने विश्व की विशालतम स्टील कंपनी ‘पास्को’को उड़ीसा में प्लांट लगाने की सशर्त इजाजत दी है। जिस क्षेत्र में ये प्लांट स्थापित किया जाएगा वो क्षेत्र वनस्पतियों और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। सरकार को भलीभांति मालूम है कि उस क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने से जंगल और जमीन को भारी नुकसान होगा,बावजूद इसके प्लांट लगाने देने की अनुमति प्रदान करना उसकी की नीति और नीयत को ही दर्शाता है। 

सरकार का पक्ष है कि देश के विकास के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है। दुनिया के हर मुल्क में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हैं, लेकिन भारत में सरकारी मशीनरी इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि एक बार उद्योग स्थापित होने के बाद लेनदेन का खेल शुरू हो जाता है। किसी भी उद्योग को देंखे, ऐसा हो ही नहीं सकता कि वहां पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन न होता हो। और सरकारकी आंख तब तक नहीं खुलती, जब तक कोई हादसा न हो जाए। 

पिछले दिनों ही लखनऊ के रिहायशी इलाके राजाजीपुरम में प्लाई बनाने की यूनिट और एक अन्य कारखाने में भीषण आग लगने के बाद प्रशासन की आंख खुली। आनन-फानन में इन औद्योगिक इकाईयों पर सख्त कार्रवाई का नाटक किया गया। लखनऊ की तरह  देश के हर छोटे-बड़े शहर के रिहायशी इलाकों में धडल्ले से सैकड़ों कारखाने चल रहे हैं। इनमें पर्यावरण कानूनों का खुलेआम उल्लंघन किया जाता है। पुलिस-प्रशासन की नाक के नीचे मानकों को ताक पर रखकर पर्यावरण और समूचे समाज की सेहत से खिलवाड़ आम बात है।

देश में पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियत्रंण के लिए कानूनों का भारी बस्ता तो हमारे पास है, लेकिन उनका पालन करवाने की इच्छाशक्ति नहीं है। सरकारी तंत्र की उदासीनता और सरकार की लाहपरवाही के कारण ही अन्य देशों से खतरनाक कचरा हमारे तटबंधों पर आसानी से उतार जाता है। ऐसी कई घटनाएं पूर्व में घट चुकी हैं और अक्सर ऐसे वाकया सुनाई देते रहते हैं।

कुछ समय पहले दिल्ली में संपन्न हुए सतत विकास शिखर बैठक-2011में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘सतत विकास को सुनिष्चित करने की रणनीति का केन्द्रीय सिद्धांत   यह है कि आर्थिक पहलुओं का फैसला करने वाले सभी लोगों या संगठनों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि वे पर्यावरण अनुकूल बातों को हमेशा ध्यान में रखें।’अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के मौजूदा मानकों को नाकाफी बताया। उनके मुताबिक अवशिष्ट प्रदूषण से निपटने के लिए ऐसा प्रवधान होना चाहिए कि प्रदूषण फैलाने वाले भुगतान करें। उनके विचार और सरकार के कारनामों में स्पष्ट विरोधाभास दिखाई देता है। वाकई पीएम पर्यावरण को लेकर इतने चिंतित है तो ‘पास्को’ को अनुमति क्यों दी गई।

पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार और सरकारी मशीनरी कितनी गंभीर है उसकी सच्चाई हाल ही में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की ताजा रिपोर्ट से पता चलती है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कामकाज पर पहली बार जारी पर्यावरण ऑडिट रिपोर्ट में कैग ने जंगलों की सेहत सुधारने, जैव-विवधता और नदियों को बचाने समेत कईं मोर्चे पर योजनाओं के क्रियान्वयन में उदासीनता को लेकर फटकार लगाई है। रिपोर्ट के अनुसार परियोजनाओं के लंबित उपयोगिता प्रमाणपत्र के अंबार को लेकर भी आश्चर्य जताया है। 

इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय में वित्त वर्ष 2008-09के आंकड़ों की पड़ताल में पाया कि परियोजनाओं की पर्याप्त निगरानी नहीं की गई, जिसके कारण वे अपना उद्देश्य ही पूरा नहीं कर पाई। रिपोर्ट के अनुसार पेड़ लगाने की 93 फीसदी परियोजनाएं अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई है। कैग सरकारी संस्था है और जब सरकारी संस्था स्वयं सरकार की गतिविधियों पर सवाल उठा रही है तो जमीनी हालातों का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

सरकारी उदासीनता और ओछी राजनीति के कारण ही देश में नदी प्रदूषण की समस्या दिनों-दिन गंभीर रूप धारण करती जा रही है। चाहे नदियों को प्रदूषण मुक्त करने से लेकर नदियों पर बांध बनाने तक की हर छोटी-बड़ी योजना और पर्यावरण से जुड़े अहम् मसलों पर केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य विवाद आम बात है। केंद्र और राज्य सरकारों की राजनीति के फेर में पर्यावरण जैसा अहम् मुद्दा पिस जाता है।

गंगा और यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक करोड़ों रूपये खर्च किए जा चुके हैं, बावजूद इसके अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो पाए हैं। जिन राज्यों से होकर गंगा नदी गुजरती है वहां की सरकारों का अपेक्षित सहयोग न मिल पाने के कारण गंगा को प्रदूषणमुक्त कर पाने में दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। वहीं केन्द्र सरकार के साथ ही साथ राज्य सरकारें भी गंगा को साफ-सुथरा बनाने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना पर काम नहीं कर रही हैं। 

उत्तराखंड में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की बाढ़ आई हुई है,वहीं उत्तर प्रदेश में गंगा एक्सप्रेस हाईवे योजना अपने उफान पर है। वर्तमान में गंगा एक्षन प्लान को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के साथ विलय कर दिया गया है, बावजूद इसके स्थिति में मामूली सुधार भी नहीं आया है। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए विश्व बैंक ने भी मदद का हाथ आगे बढ़ाया है। उसने इस कार्य के लिए 26 लाख अरब डालर की राशि स्वीकृत की है, जो पीएम की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के माध्यम से खर्च किया जाएगा। अगर ईमानदारी से इस धनराशि से उपयोग किया गया तो स्थिति में सुधार हो सकता है।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद कानपुर में चमड़ा शोधन इकाईयों को बड़ी मुश्किल से बंद करवाया जा सका है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा के तट पर बसा कानपुर देश का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। गंगा की भांति यमुना नदी में भी प्रदूषण का स्तर सारी हदें पार कर रहा है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश मे स्थित औद्योगिक इकाईयां और घरेलू कचरा नदी जल को जहर में तब्दील कर रहा है। पिछले साल चम्बल अभ्यारणय में जहां यमुना नदी का प्रदूषित जल आकर चम्बल नदी में मिलता है,वहां सैंकड़ों घड़ियालों की मौत सुर्खियों में रही है। हाल ही में इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मछलियों के भी मरने की खबरें आ रही हैं। इन सब घटनाओं के बाद भी सरकार महज कागजी कार्रवाई कर अपनी डयूटी पूरी कर रही है।


भारतीय संविधान विश्व का पहला संविधान है जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए विषिष्ट प्रावधान है। लेकिन यहां पर्यावरण की स्थिति गंभीर रूप धारण करती जा रही है। सरकार के एजेंडे में पर्यावरण का स्थान काफी नीचे है, तभी तो कड़ाई से पर्यावरण कानूनों और प्रावधानों का पालन नहीं हो रहा है। असलियत यह है कि हमारी विकास रणनीति में पर्यावरण और विकास के बीच सांमजस्य बैठाने का प्रयास कभी किया ही नहीं गया है। यही कारण है कि समूची विकास योजनाआं में पर्यावरण संरक्षण का प्रश्न उपेक्षित ही रहता है। ज्यादातर मामलों में विकास का तर्क देकर जंगल के जंगल उजाड़ना, नदियों का रूख मोड़ने से लेकर उनके पानी को प्रदूषित करना, भूजल का अंधाधुंध दोहन, खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों-कीटनाषको के बेलगाम इस्तेमाल आदि को खुद सरकारें प्रोत्साहित करती रही है।

पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण की रोकथाम के लिए अनेक परियोजनाएं चलाई जा रही हैं,लेकिन सरकार की उदासीनता,लाहपरवाही और जनता की अज्ञानता के चलते योजनाओं से अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। प्रदूषण सूचकांक -2010 में भारत का 123वां स्थान है और लगातार हम निम्न से निम्नतम् स्थान की ओर खिसकते जा रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, शहरीकरण, खेती के लिए कम होती धरती, बढ़ता औद्योगिककरण, अनियंत्रित  विकास और पर्यावरण के महत्ता को न समझने के कारण देश में आने वाले दिनों में पर्यावरण से जुड़ी समस्यायों  में बड़ा इजाफा होना तय है।


 
स्वतंत्र पत्रकार और उत्तर प्रदेश के राजनितिक -सामाजिक मसलों के जानकार.


 

2 comments:

  1. bahut hi badhiya lekh, sabhi ayamon ko kholkar rakh deta hai

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  2. Ecology is the permanent economy

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