आजमगढ़. मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की उत्तर प्रदेश इकाई के आजमगढ़ जिला प्रभारी तारिक शफीक और विनोद यादव ने जहांनागंज के बबुरा गांव निवासी यशवंत यादव का अतिरिक्त मजिस्टेªट नुरुल हसन के समक्ष 20 जून 2011 को बयान दर्ज करवाया। पीयूसीएल ने कर्ज के बोझ से दबे किसानों को गैरकानूनी व अपराधिक तरीके से उठाकर तहसीलों और जेलों के हवालातों में दी जा रही यातनाओं को मानवाधिकार हनन का गंभीर मसला बताते हुए किसानों के ऐसे सवालों को उठाया है।
यह बयान पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव राजीव यादव और प्रदेश संयुक्त सचिव मसीहुद्दीन संजरी द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग को 15 अप्रैल 2011 को भेजे शिकायती पत्र के बाद राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा आजमगढ़ के मण्लायुक्त को भेजे गई नोटिस के बाद कि ‘‘वह प्रकरण की निष्पक्ष जांचकर आख्या आयोग को एक माह में प्रेषित करें’’ के बाद दर्ज किया गया है।
यशवंत 29 मार्च को जब दो पहिया वाहन से जा रहे थे तो सेमा और रोशनपुर गांव के बीच में राह चलते तहसीलदार ने यशवंत को उठवा लिया। इस बात की जानकारी दूसरे दिन समाचार पत्रों में छपी खबरों से मालूम हो पायी। यशवंत की पत्नी नरमी ने बताया कि यशवंत ने उससे बताया था कि जब उसे तहसील के हवालात में बंद कर दिया गया तो उसकी तबीयत काफी बिगड़ गई। जिसके बाद उसे जिला अस्पताल आजमगढ़ लाया गया जहां से उसे जेल भेज दिया गया। यशवंत यादव ने अपने बयान में दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाई की मांग करते हुए भारत सरकार से मांग की कि उसका कृषि ऋण माफ किया जाय।
पीयूसीएल नेता तारिक शफीक और विनोद यादव ने कहा कि जिस तरह से आपराधिक तरीके से यशवंत को तहसील के लोगों ने उठाया और परिवार को कोई सूचना नहीं दी इस पर सख्त कार्यवाई की जाय। जिस तरह से किसान देश में आत्महत्या कर रहें हैं वैसी स्थिति में इस तरह से किसानों को जलील करने पर अगर कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए राज्य जिम्मेदार होगा।
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