जनज्वार विशेष
बालकृष्ण मामले में अबतक का सबसे बड़ा खुलासा
करीब चार साल पहले 2007 में बालकृष्ण योगी के भारतीय नागरिकता मामले में पासपोर्ट को लेकर खुफिया रिपोर्टों के आधार पर विवाद हुआ था और संदेह उठा था कि उन्होंने तकनीकी नियमों का उल्लंघन किया है। उस समय इस रिपोर्ट के लेखक नेपाल में माओवादियों की सत्ता में हुई भागीदारी के बाद की स्थितियों का जायजा लेने के लिए रिपोर्टिंग पर गये हुए थे। उसी दौरान उन्हें बालकृष्ण मामले में खोज करने का भी मौका मिला था। इस मामले के सभी पहलुओं को टटोलती जनज्वार की विशेष रिपोर्ट... मॉडरेटर अजय प्रकाश
बाबा रामदेव के दाहिने हाथ और पातंजलि योगपीठ के मुख्य कर्ताधर्ता बालकृष्ण योगी की नागरिकता को लेकर 5 मई से शुरू हुआ तमाशा अभी थमा नहीं है। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने बालकृष्ण को नेपाल का गुण्डा और नेपाल के कई मामलों में अपराधी बताया है। वहीं बालकृष्ण को लेकर उत्तराखण्ड खुफिया पुलिस की स्थानीय ईकाई की ओर से जारी रिपोर्ट में उन्हें नेपाली नागरिक के तौर पर चिन्हित किया गया है और उनके पासपोर्ट को संदेहास्पद। पासपोर्ट के अनुसार बालकृष्ण पुत्र रामकृष्ण , गांव-टिटोरा, थाना-कथौली का पता ही उनके पासपोर्ट के संदेहास्पद होने का आधार है। इसी खुफिया रिपोर्ट के आधार पर कुछ भारतीय चैनल और अखबार दावा कर रहे हैं कि उनके पास बालकृष्ण की असलियत है।
मीडिया के पास बालकृष्ण की क्या असलियत है, वह उजागर होता उससे पहले ही बालकृष्ण ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर रोने-धोने के माहौल के साथ जो इमोशनल अत्याचार किया है, जाहिर है उसके पीछे सिर्फ भय है। भय बालकृष्ण को नेपाली गुण्डा होने का नहीं है, कई मामलों में अपराधी होने का भी नहीं है, बल्कि उनका भय नेपाल के स्यान्जा जिले के वालिंग कस्बे के उस स्कूल से है, जहां उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। इसी वजह से यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या भारत का नागरिक बनने के लिए जो तकनीकी खानापूर्ति करनी होती है, उसे बालकृष्ण ने पूरा किया है या नहीं। अगर ऐसा नहीं किया गया है तो बालकृष्ण की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
बालकृष्ण ने मीडिया के सामने आकर कहा कि उनकी पैदाइश और पढ़ाई भारत में ही हुई है और वे भारत के नागरिक हैं। यह बालकृष्ण का आधा सच है, क्योंकि बालकृष्ण के भारत में पैदा होने की बात तो उनको जानने वाले कहते हैं, मगर पढ़ाई का प्रमाण तो उस रजिस्टर में दर्ज है जो नेपाल के स्यांजा जिले के वालिंग कस्बे के एक प्राथमिक स्कूल में पड़ता है। बालकृष्ण जिस कस्बे के रहने वाले हैं, वहां के लोगों का कहना है कि उनके मां-बाप जब भारतीय तीर्थस्थलों के दर्शन करने गये थे, उसी समय बालकृष्ण का जन्म भारत में हुआ था।
इस मामले से जुड़ी पहली तथ्यजनक खबर सिर्फ जनज्वार के पास है, लेकिन जनपक्षधरता की अपनी परंपरा को जारी रखते हुए हमें यह वाजिब नहीं लगा कि कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बन रहे एक राष्ट्रव्यापी माहौल के बीच सस्ती लोकप्रियता और सनसनी फैलाने के लिए संघर्ष में लगे लोगों की खुर्दबीन की जाये। क्योंकि अगर यही खोजी रिपोर्टिंग है तो पहली खोजी खबर अपने उन माफिया मालिकों के खिलाफ लिखनी होगी, जिनके दिये पैसों से हम मीडिया में मुनाफे का बाजार खड़ा करते हैं।
वैसे में सवाल अब यह उठता है कि जनज्वार ने बालकृष्ण मामले में अपनी खोजी रिपोर्ट को अब जारी करने की जरूरत क्यों समझी। तो जवाब है, ‘सिर्फ इसलिए कि बालकृष्ण को लेकर जो धुंध और धंधा फैलाने की कोशिश हो रही है, उसके सच को सामने लाया जाये, जिससे बालकृष्ण सच का सामना करने को मजबूर हों न कि गुण्डा और अपराधी होने के फर्जी आरोपों की सांसत झेलने में उलझें।
भारत की सोनौली सीमा से नेपाल के बुटवल के रास्ते काठमांडू की ओर बढ़ने पर पोखरा जिले से पहले स्यांजा पड़ता है। बालकृष्ण योगी का घर स्यांजा जिले के भरूआ गांव में है और वह स्कूल गांव के ऊपर,जिसके रजिस्टर में बालकृष्ण के चौथी तक पढ़ने का साक्ष्य दर्ज है।
बालकृष्ण के चाचा के लड़के और स्कूल |
इस सिलसिले में हमारी पहली मुलाकात बालकृष्ण के चाचा के लड़कों से होती है जो अपने नामों के पीछे सुवेदी लगाते हैं। वालिंग कस्बे में दुकान चला रहे बालकृष्ण के चाचा के लड़कों से पता चलता है कि भरूआ गांव ब्राह्मणों का है और वहां सुवेदी ब्राह्मणों की तादाद ज्यादा है। उनमें से एक जो फोटो में सबसे किनारे है, वह बालकृष्ण के साथ ही पढ़ा होता है, लेकिन जब मैं उससे दुबारा उसका नाम पूछता हूं तो उसको मुझ पर संदेह होता है और वह हंसते हुए नाम बताने से इंकार कर देता है।
मैं हाथ में डायरी नहीं निकालता, क्योंकि अपना परिचय उनको मैंने बालकृष्ण के दोस्त के रूप में दिया होता है और रिकॉर्डर तो बिल्कुल भी नहीं। मुझे ऐसा इसलिए करना पड़ता है कि जिनके जरिये यहां मैं पहुंचा हुआ होता हूं उन्होंने हिदायत दे रखी थी कि ऐसी कोई गलती मत करना जिससे तुम गांव न जा सको, जहां वह स्कूल है। तस्वीर में दिख रहे दो लोग जिनकी उम्र ज्यादा है, वह बताते हैं कि जब बालकृष्ण चौथी कक्षा के बाद भारत चले गये थे तो भी वह बाबा रामदेव के साथ आया करते और जंगलों में जड़ी-बूटियां ढूंढ़ा करते थे। उनसे ही पता चला कि पिछले दस-बारह वर्षों से बालकृष्ण यहां नहीं दिखे, हां उनकी कमाई से वालिंग में बनवाई गयी आलीशान कोठी जरूर दिखती है, जो इसी साल तैयार हुई है.
बालकृष्ण के चाचा के उन दुकानदार लड़कों से मैं कहता हूं कि उस कोठी तक हमें ले चलो, शायद आप लोगों की वजह से हमसे उनके परिवार के लोग बात कर लेंगे, लेकिन वह नहीं जाते हैं। पते के तौर पर वे बस इतना कहते हैं कि जो कोठी दूर से दिखे और कस्बे में सबसे सुंदर हो उसी में घुस जाना।
कोठी का गेट खटखटाने पर हमारी आवभगत के लिए दो बच्चे आते हैं। उन दोनों से मैं हाथ मिलाता हूं और गेट के अंदर दाखिल होता हूं। उनमें से एक फर्राटेदार हिंदी बोलता है और बताता है कि वह बालकृष्ण का सबसे छोटा भाई नारायण सुवेदी है। फिर साथ के लड़के के बारे में पता चला है कि वह मौसी का लड़का है। अब हम उनके डायनिंग रूम में होते हैं जहां बड़े स्क्रीन की टीवी लगी होती है। हमें लड्डू खाने को दिया जाता है। उस समय मैं बच्चों को अपना परिचय बालकृष्ण के दोस्त के रूप में देता हूं और बताता हूं कि मैं तुम्हारे गांव चलना चाहता हूं। गांव जाने की बात सुन नारायण खुश होता है और आत्मीयता से कहता है ‘गांव यहां से चार किलोमीटर दूर है और पैदल ही पहाड़ियों पर चलना होता है, इसलिए इस समय चलना खतरनाक होगा, कल सुबह यहां से निकल लेंगे।’
बालकृष्ण का स्कूल और भरुआ में उनका घर |
तभी अधेड़ उम्र की एक महिला दिखती है। उसको नमस्कार करने के बाद नारायण बताता है कि वह उसकी मौसी है और मां गांव में है। वह महिला थोड़ी देर तक मुझे देखती है और फिर करीब घंटे भर बाद किसी पवन सुवेदी को लेकर आती है, जो खुद को बालकृष्ण की मौसी का बेटा बताता है। वह मुझसे कुछ रुष्ट दिखता है वह इशारे से बच्चों को अपने पास बुलाता है, जिसके बाद बच्चे वहां नहीं दिखते। थोड़ी देर बाद पवन सुवेदी एक नयी कहानी बताता है कि बालकृष्ण के माता-पिता तीर्थ करने काठमांडू गये हैं और पंद्रह दिनों बाद आयेंगे। मैं फिर भी गांव जाने की बात कहता हूं तो वह शुरू में तो इंकार करता है, फिर कहता है ‘ठीक है सुबह देखेंगे।’ लेकिन वह साफ कह देता है कि इस घर में आप रात नहीं गुजार सकते।
तब तक करीब रात के आठ बज चुके होते हैं और मैं कहीं दूसरी जगह जा पाने में खुद को असमर्थ बताता हूं तो वह मुझे कस्बे के एक होटल में ले जाता है, जहां मैं दो सौ नेपाली रुपये में एक कमरे के बीच तीन लोगों के साथ सोता हूं। होटल कैसा था इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मैंने सुबह उसके शौचालय में जाने के मुकाबले खेत में जाना पसंद किया था।
अब मेरी अगली चिंता एक ऐसे आदमी की तलाश की होती है जो मुझे भरूआ गांव ले जाये, क्योंकि सुबह बालकृष्ण की आलीशान कोठी में बड़ा ताला जड़ा होता है। बहरहाल, मुझे एक कुरियर मिल जाता है जो मुझे गाँव तक ले जाता है। कुरियर कहता है पहले गांव चलते हैं और लौटते हुए स्कूल। मेरे दिमाग में आता है कि अगर गांव में बात बिगड़ गयी तो स्कूल से मिलने वाली जानकारी से हम लोग चूक जायेंगे।
हम पहले स्कूल के मास्टर से मिलते हैं जो हमें बताता है कि वह नया आया है। वह आगे बताता है कि बालकृष्ण ने बचपन में यहीं पढ़ाई की है। उसके बाद हम मास्टर की मदद से रजिस्टर खोजने में लग जाते हैं। कई वर्षों का रजिस्टर खंगालने के बाद हमें पता चलता है कि बालकृष्ण नाम का कोई छात्र ही नहीं है। हम बालकृष्ण के पिता जयबल्लभ सुवेदी के नाम से खोजते हैं तो एक नाम डंभर प्रसाद सुवेदी का मिलता है, जिसमें पिता के तौर पर जयबल्लभ सुवेदी नाम दर्ज होता है। बालकृष्ण का असल नाम डंभरदास सुवेदी है, यह इसलिए भी पक्का हो जाता है क्योंकि बालकृष्ण के चाचा के लड़कों ने भी बालकृष्ण का यही नाम बताया होता है। दूसरा प्रमाण यह भी रहा कि बालकृष्ण का चौथी कक्षा के बाद नाम रजिस्टर से कट जाता है, जो अगली कक्षाओं के उपस्थिति रजिस्टरों में नहीं दिखता है। जबकि जयबल्लभ सुवेदी के दूसरे बेटों का नाम रजिस्टर में है.
जब यह साफ हो जाता है कि बालकृष्ण सुवेदी उर्फ डंभर प्रसाद सुवेदी ही जयबल्लभ सुवेदी के चार लड़कों में से एक हैं और उनका गांव घाटी में स्थित भरूआ है, तो हम उनके मां-बाप से मिलने भरूआ की ओर चल देते हैं। करीब दो घंटे पैदल चलने के बाद हम बालकृष्ण के घर पहुँचते हैं और हमारी मुलाकात उनकी मां से होती है। अभी हम उनकी मां से कुछ पूछते उससे पहले ही आलीशान कोठी में मिले नारायण सुवेदी और उसकी मौसी का लड़का एक साथ नेपाली में चिल्ला पड़ते हैं और वह औरत घर में घुसकर खुद को अंदर से बंद कर लेती है, लेकिन इस बीच कैमरे ने अपना काम कर लिया होता है और हम बालकृष्ण की मां का फोटो खींच लेते हैं।
रजिस्टर में ६३ नम्बर पर डंभर प्रसाद सुवेदी है , और गाँव में उनकी माँ |
घर में छुपी मां से बाहर आने को कहा तो कुरियर ने बताया कि वह गाली दे रही है और कैमरा छिनवाने की बात कह रही है। कुरियर ने आगे कहा कि बालकृष्ण की मां अपने छोटे बेटे नारायण सुवेदी को पिता और भाइयों को बुला लाने की बात कह रही है। दूसरे ही पल हमने देखा कि खेतों में काम कर रहे कुछ लोगों की ओर नारायण बड़ी तेजी से घाटी में उतरता जा रहा है और कुछ चिल्लाता जा रहा है।
हमने कुरियर से पूछा अब क्या करें?उसने कहा कि वह गाँव में कई लोगों को जानता है और उसकी अच्छी साख है, इसलिए कोई मारपीट तो नहीं कर सकता, लेकिन कैमरा छीन लेंगे। मैंने पूछा ऐसा क्यों? कुरियर का कहना था कि यहां गांव की परंपरा के हिसाब से कोई औरत का फोटो नहीं खींच सकता। फिर हमने कुरियर के बताये अनुसार निर्णय लिया कि यहां से भागना चाहिए। लेकिन हम घाटी से पहाड़ी पर उस रास्ते से नहीं जा सकते थे, जो सामान्य रास्ता था या जिस रास्ते से आये थे। पकड़ से बचने के लिए हमें जंगल के रास्ते वालिंग कस्बे का रास्ता तय करना पड़ा। हमने दिन के 11 बजे चलना शुरू किया था और दुबारा वालिंग कस्बे में पोखरा के लिए गाड़ी पकड़ने के लिए 4 बजे पहुंच पाये थे।
खोजी पत्रकारिता का शानदार नमूना है यह रिपोर्ट. आने वाले दिनों में जनज्वार को इस खबर से भी लोग याद करेंगे.
ReplyDeleteधन्याद अजय प्रकाश जी
ReplyDeleteजो सच रुपी कांच के शीशे से आपने धुंद को हटाने के प्रयास किया सराहनीय है
आज के समय में सच जो की अटल होना चाहिए ,पारदर्शी होना चाहिए एवं होता भी है ,को कांच के शीशे की भांति ही बना रखा है
उसको भ्रष्ट राजनेताओ द्वारा एवं कुछ भ्रष्ट चाटुकार मिडिया कर्मियों एवं वो हर व्यक्ति जो भ्रस्टाचार में लिप्त है अपनी सुविधानुसार भांति भांति के रंगों से पोत रहे है एवं आवश्यकता पड़ने पर उसे टुकड़े टुकड़े भी करदे रहे है, कुछ होशियार लोग सत्य को महाभारत काल में अश्वत्थामा की म्रत्यु के सम्बन्ध में बोले गए सत्य की भांति प्रयोग करते जो सत्य तो है परन्तु दिग्ब्रमित करने वाला, यहाँ प्रश्न सत्य का है उसे सामने आना चाहिए. ये तथ्य जो आपने जुटाए है आपकी पत्रकारिता धर्मं के प्रति लगन को एवं निष्ठा को प्रदर्शित कर रहे है एवं ऐसी ही उम्मीद हम आपसे करते है
भारत शर्मा
9810179069
बहुत सुविचारित रिपोर्ट. बस इतना कहूँगा सही समय, सही तरीका और सही चोट. ना दिग्विजय की जय ना बाबा बालकृष्ण की जय. सबकी कर दी खटिया खड़ी और बेचारे कहाँ गए वह लाखों के रिपोर्टर जिनकी होती है हर खबर पर नजर. ब्लॉग -वेबसाइट का ऐसा उपयोग बहुत जरुरी है. दूसरे देशों में तो मेनस्ट्रीम मीडिया ब्लॉग्गिंग पर बहुत हद तक निर्भर हो रही है.
ReplyDeletesach men balkrishna ke dhundh ko hata diya is report ne. bahut acche tareeke se likha bhi hua hai
ReplyDeleteबालकृष्ण जैसे ढांगी योगी का सच सामने लाकर आपनें देश का सच में ही बडा उपकार किया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि इतने समय तक कहां सोई रहीं सरकार की खुफिया ऐजेंसिंयां और बडे बडे अखबारों के नामी गिरामी खोजी पत्रकार। जाहिर हें कि ये अखबार ओर उनके पत्रकार बाबा के प्रचार में इतना बह गए थे कि बाबा के वचन को ब्रहम वाक्य मान रहे थे। क्या इससे उनकी और साथ में बाबा रामदेव के अंध समर्थकों तथा भाजपा नेताओं की आंखों पर चढी धुंध कुछ छटेगी ? नरेंद्र तोमर
ReplyDeleteवाह ताज की तर्ज पर वाह अजय कहने को जी चाहता है. अरे भाई अजय की भी फोटो लगाओ, दिखने में तो ठीक ही है. बहुत अच्छा काम जनज्वार का. यहाँ तो मैंने इंदौर में एक मैगजीने देखी जिसमें जनज्वार से स्टोरी लगी थी.
ReplyDeleteKamal Jagati, Nainital:- Ajay ji, Thanks for this lovely piece that led us to the truth of Balakrishna.I am heartedly thankful for your great effort that led to our knowledge and that unfurled the "Criminal" Yogi...
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